Fursat। stay at home

फुर्सत 

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वह न तो किसी की, 
खैरियत पूछता है, 
न शिकवे करता है, 
अजीब शख्स है, 
बस मुस्करा कर देखता है, 
इस तरह खबर लेना, 
अच्छा नहीं लगता, 
वह भी इतनी दूर से, 
उसके होने का पता नहीं चलता, 
शायद वो खुदा है, 
न जाने किस, 
आसमान में रहता है, 
अगर उसी ने ए जहान बनाया है, 
तो इसको भूलकर वह कौनसा, 
खुदाई का काम करता है, 
कहीं तूँ भी, 
हमारे जैसा बेबस तो नहीं है, 
जंजीरों में तूँ भी तो नहीं है, 
तुझसे इतना उम्मीद करना, 
ठीक तो नहीं है, 
या फ़िर तुझको बहुत काम है, 
हमारे लिए, 
फुर्सत नहीं है 
Rajhans Raju
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लुका-छुपी

आँखों का क्या दोष है,
एक रंगीन चश्मा लगा है,
जिसे जैसे चाहो,
वैसे देख लो,
बस!
शीशा ही तो बदलना है,
चाहत तो यही है,
तूँ हरदम यहीं रहे,
पर सफर जिंदगी का,
कुछ इस तरह है,
एक वक्त के बाद,
किसी का रुक पाना,
मुमकिन नहीं है
चलो एक काम करते हैं,
वही..
लुका-छुपी वाला खेल,
याद है न..
वैसे ही खेलते हैं,
और एक दुसरे को..
ढूंढ लेते हैं,
फुर्सत के कुछ लम्हें,
इतने हसीन हो,
नींद की गहरी,
आगोशी में,
समा जायें
पहले की तरह,
सपने बुनने लगें
RajhansRaju
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सुनना

हम क्या हैं,
इसका पता हमको भी,
तब चलता है,
जब थोड़ा सा वक्त बुरा हो,
फैसले की जिम्मेदारी हम पर हो,
उस वक्त कोई हाल पूछे,
हम मुस्कराते हुए कहें,
सब अच्छा है,
अपना ध्यान रखिएगा,
©️rajhansraju 
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लेखा-जोखा

लेखा जोखा बड़े गौर से देखा, 
नफ़ा नुकसान एक खेल है,
तेरा अच्छा होना,
तेरे लिए ठीक नहीं है।
क्यों कि तेरा कोई मोल नहीं है
तूँ बाजार के लायक नहीं है,
फिर जो बिकता नहीं,
सच में बेकार है।
वैसे खरीदार कौन है,
ए ठीक से पता नहीं है,
सभी एक जैसे,
लम्बी कतार में,
कैसे भी?
कुछ मिल जाएँ,
बिकने को तैयार हैं।
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🌹राजहंस राजू🌹
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 नींव की ईंट

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उसे कोई अफसोस नहीं है,
खुद के दफ़न होने से।
न तो कोई चिढ़ है,
उन ईंटो से,
जो उसके ऊपर हैं,
उन्हीं से बना ढाँचा,
इमारत को आकार देता है।
जिस पर इतना कुछ टिका है,
किसी को कहाँ नजर आती है,
वो नींव की ईंटे।
शायद! कुछ लोग
यह बात समझते हैं,
तभी! बड़े अद़ब से,
बुजुर्गों के सामने,
झुक जाते हैं।
rajhansraju
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खामोशी 

बिना शब्दों के, 
ढेरों बातें होती रही,  
तुम्हारा एहसास, 
न जाने कहाँ ले  जाता रहा,
तुमने भी कहाँ कुछ कहा? 
थोड़े-थोड़े लम्हों बाद, 
मेरी तरफ देखने की कोशिश,
और न देख पाना, 
फिर, 
उसी ख़ामोशी का लौट आना, 
जो खुद में बिखर गया था,
उसी को चुपचाप, 
समेटते रहना ..
©️rajhansraju 
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फिक्र 

बुजुर्ग दोस्तों ने,
आज के हालात पर,
नाखुशी जाहिर की।
ए क्या हो रहा है?
वो कौन है जो हर तरफ,
जहर भर रहा है?
वह तो एक है,
जिसका नाम हमने,
अलग-अलग रखा हैं।
आँख खोलकर देख,
कहाँ कौन रहता है?
पर ए तो समझ ले
देखना कहाँ, क्या है?
बस मौन रहकर,
खुद में झाँकना है।
अब .. जरा गौर से देख,
कहीं से कोई आया नहीं है,
और कोई आएगा भी नहीं,
यही समझना है,
जिस से लड़ रहा है,
कोई और नहीं "तूँ" खुद हैं,
बस यकीन करना है,
जिसे गैर समझकर नफरत करता हैं,
वो तेरे बदन का हिस्सा है,
बस तेरी सियासत कुछ ऐसी है,
जो कुछ और बात कहती है,
काटके फिर बाँट के टुकड़ों में,
सब पर राज करती है,
लोगों को ऐसे ही जाति धरम पर
यकीं हो जाता है,
फिर किसी और की खातिर,
तूँ कभी हिन्दू,
कभी मुसलमान,
हो जाता है।
©️rajhansraju
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दीपोत्सव
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Comments

  1. कहाँ किसे फुरसत है आदमी की अपनी जरूरते इस कदर हाबी हैं

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