Samundar

समुंदर

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वह समुंदर से नाराज, 
उस पर तोहमत लगाने लगा, 
जानता हूँ.... 
तुम पानी से बने, 
अथाह और अनंत हो, 
पर मेरे किस काम के, 
मैं प्यासा हूँ, 
तुम्हें पी नहीं सकता, 
तुम इतने गहरे हो, 
पता नहीं? 
मेरी आवाज़, 
तुम तक, 
पहुँचती है कि नहीं, 
जहाँ तक मेरी नजर जाती है 
तुम्हारा सन्नाटा दिखता है 
और किनारों से टकराती, 
तुम्हारी लहरें, 
हर बार कुछ दूर जाकर, 
फिर तुम्हीं में लौट आती हैं, 
वह गुमसुम किनारे पर बैठा, 
लहरों का आना-जाना, 
न जाने कब से देखता रहा, 
खुद से थककर, 
खारे समुंदर की सोचने लगा, 
ए जो बरसात और बादल है, 
उनको तुम्हीं तो गढ़ते हो, 
इन्हीं नसों से, 
आक्सीजन निकलता है, 
और धरती की सारी गंदगी, 
खुद में भर लेतो है, 
लोगों की तोहमतें भी कम नहीं हैं 
ऊपर से न पीने लायक, 
होने का तंज, 
सदा से कसा जाता रहा है, 
तूँ मीठा क्यों नहीं हो जाता? 
पर तुझे किसकी परवाह, 
तेरा वजूद इतना विशाल, 
कहने सुनने वालों से बेख़बर, 
तूँ जैसा है, 
वैसा ही बना रहता है, 
ऐसे ही, 
खारा बने रहना, 
कोई आसान काम तो नहीं है, 
एक जैसी फितरत के साथ, 
खुद को बनाए रखना, 
और लगातार नमक के साथ, 
जीने की शर्त, 
कितना मुश्किल होता है? 
इस खारेपन में, 
कुछ भी रिसना, 
और इस देह का धीरे-धीरे, 
नमक बनते जाना, 
वो भी अपनी मर्जी से, 
सारा खारापन, 
खुद में समेटते रहना, 
वैसे ए काम, 
सिर्फ तूँ ही कर सकता है, 
क्योंकि तूँ समुंदर है, 
और इस दुनिया को, 
आबाद रखने की यही शर्त है, 
इसका खारापन सोखने को, 
हमारे पास, 
एक समुंदर हो।
©️rajhansraj
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(२)

तन्हा पहाड़

आज़ पहाड़ को देखा,
तन्हा उदास था,
मैने पूँछा “क्या हुआ?”
उसने बेदरख्त सूखे चेहरे पर,
थोडी मुस्कराहट लाने की,
 नाकाम कोशिश की,
उसकी बदरंग झुर्रियाँ,
हरे पेडों को,
न जाने कहाँ छोड़ आयी थी,
वो मासूम पौधे जिनमें लगे फूल,
उसमें रंग भरते थे,
वो भी तो नहीं दिखते
दूर से टेढी-मेढी लकीरों जैसी,
दिखने वाली नदी, 
जो हर वक़्त गुनगुनाती,
और पहाड़ किसी बूढे‌ बाप की तरह,
खिलखिला उठता,
अब खामोश है,
वहाँ से कोई आवाज़ नहीं आती,
उसका बस मेरी तरफ यूँ देखते रहना?
मुझे सवालों के घेरे में लाता रहा,
मै उसे कहाँ कोई जवाब दे पाया?
©️rajhansraju
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(3)

नीली नदी 

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वह नीली नदी, 
अब नहीं मिलती,
उसे बेपानी हुए अर्सा हो गया,
उसकी चाहत में दबे पाँव,
रात में निकल पडता हूँ,
अंधेरा और पानी दोनों,
एक जैसे ही दिखते हैं,
जैसे नदी खामोशी ओढे‌,
चुप-चाप बैठी हो,
मैं उसका किनारा थामे,
वहीं उसके पास,
ठहर जाता हूँ..
नदी का अनंत विस्तार,
महसूस करने लग जाता हूँ,
अंधेरा जिंदगी का एक आयाम है
जो रोशनी में छुप जाता है
उसको देखना हो तो
अंधेरे में उतरना पड़ता है
नदी को मौन में बहते हुए सुनना,
एक अनोखी अनुभूति है,
यह अंधेरा,
जब गहरा होता चला जाता है,
तब नीली नदी,
सिर्फ़ धरती की नहीं रहती,
वह पूरे आकाश की हो जाती है,
वह बंद आँखों में
कुछ इस तरह बस जाती है,
हर तरफ नदी,
नजर आती है,
खोई हुई नदी पाने का,
यह तरीका अच्छा है,
नदी के किनारे,
कुछ देर बैठकर,
बंद आँखों से,
उसे देखा जाए,
©️rajhansraju 
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(4)

यार बादल 

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ए सच है,
सब बेचैनी से,
तुम्हें ही देख रहे हैं,
कैसे नाराज होकर,
गुमसुम से रहते हो,
न चमकते हो, न गरजते हो,
अपनी राह चुपचाप,
न जाने कहाँ चले जाते हो,
जबकि तुम तो पानी से बने हो,
और पूरा भरे हो,
फिर जैसे बरसते थे,
अब वैसे क्यों नहीं बरसते हो?
तुम्हारे इंतजार में,
घर के सारे बरतन खाली हैं,
वो नदी अब ठहर गयी है,
जो हर वक्त खिलखिलाती रहती थी,
एकदम बूढ़ी और बिमार दिखती है,
तालाब अब बातें नहीं करता,
जबसे तुमने सुध लेना बंद किया है,
वह खुद को भूल गया है,
वो पेड़ बनकर,
अब सूख रहा है,
जिस पौधे को तुमने रोपा था,
माना हमने गलतियां की है,
जो तुम रूठ गए हो,
लेकिन ए भी तो सच है,
तेरी बूंदों से जो जीवन पाए हैं, 
क्या उनको सजा दे पाओगे?
सच मानो..
तुम्हारी बडी़ जरूरत है,
तेरी नाराजगी और गुस्सा,
हम नहीं सह पाएंगे,
अभी एक खबर सुनी है..
तेरे कहर की..
यार!.. बादल.. 
किसी पर,
इतना बरसना भी 
ठीक नहीं है..
rajhansraju 
👇👇👇❤️❤️👇👇
हलांकि पूरी उम्र गुजर चुकी है l 
"आम का पेड़" 
अब भी उतनी ही मिठास देता है
🌹🌹🌹🌹🌹
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(5)

सैलाब

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समंदर का कतरा, 
जो बादलों को गढ़ता है,
अपनी मर्जी से,
जाने कहाँ-कहाँ बरसता है,
आँख से जब
चेहरे की ढलान पर बहता है,
उसमें नमक का स्वाद,
अब भी बना रहता है,
वजह सिर्फ़ इतनी सी है
जो हर नदी,
समुंदर की तरफ बहती है।
पानी को अपना रास्ता पता है, 
उसे बांधने रोकने की,
तमाम कोशिशें,
नाकाम होती हैं,
वह ढूंढ लेती है,
रास्ता..
उन दरारों से,
जिस पर किसी की नजर नहीं होती,
आँख के कोने से,
एक लकीर,  
लम्बी होती चली जाती है,
बिना किसी आवाज के,
वह खुद को मानो,
आजाद कर लेती है।
लोगों को यही लगता है, 
ए जो रिस रहा है,
उसके रिसने में कोई हर्ज नहीं है,
जबकि दूसरी तरफ,
दरिया में सैलाब रुका पड़ा है,
और बांध की दीवार,
अब दरकने लगी है,
उसके लिए सैलाब,
एक तरफ,
रोक कर रखना,
अब संभव नहीं है,
ए पानी की लकीरें,
उसके टूटने की निशानी हैं,
और बाँध के बूढ़े,
कमजोर होने की याद दिलाती है।
जबकि कभी चालाकी, 
कभी नासमझी में,
नदी के रास्ते को हमने रोका है,
जैसे आँख डब डबा आई हो,
और चुपके से,
आँसू पोंछ लेते हों,
पर!
इनका काम तो बहना है
आखिर रोककर..
थामकर..
सैलाब का हमें क्या करना?
जबकि एक दिन,  
हद होनी है,
तब रोक पाना संभव नहीं होगा,
और जब बाँध टूटता है,
तब हर तरफ,
सैलाब नजर आता है,
किसी के लिए,
कुछ भी संभाल पाना,
आसान नहीं होता,
ऐसे में, 
ठहरकर सैलाब देखना अच्छा है,
क्योंकि कुछ कर पाने की,
हैसियत सच मानिए,
अब भी नहीं है,
नदी अब,
जब समुंदर की हो लेगी,
तब सैलाब की सिर्फ,
निशानी रह जाएगी,
अब संभलने का वक्त आया है,
नदी ने,
अपने आने-जाने का रास्ता बताया है,
अब समझकर उसके सामने,
कोई पत्थर रखना,
उसके हाथ में सैलाब है,
तुम्हारे पास कुछ नहीं बच पाएगा,
नदी तो समुंदर की है,
उसी की हो लेगी,
उसके किनारे,
बस!..
थामकर,
तूँ भी,
पार उतर जाएगा।
तूँ लाख कोशिश कर ले, 
लड़ नहीं पाएगा, 
बस किनारे को थाम ले, 
पार उतर जाएगा..
©️rajhansraju
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(6)

flood 

इन्सान अपनी  फितरत दिखाता रहा, 
उसकी राह में पत्थर पर पत्थर लगाता रहा,
खुद के जीतने का भ्रम ऐसे ही बढ़ता रहा, 
वह भी भला कब तक धीरज रखती,
थोड़ी नाराज़ हुई, 
खुद का एहसास किया, 
इंसानी जीत को घास-फूस में बदलने लगी,
अपने पुराने रस्ते पर चल पड़ी,
लोगों ने कहा बौरा गई,
वह चुपचाप आगे बढ़ती रही, 
नदी को पता नहीं था,
 पत्थर से बनी दीवारों को घर कहते हैं,
वह तो अपने रस्ते चलती रही, 
जहाँ ठहरा करती, 
उन्हीं जगहों को ढूंढ रही, 
लोग उसकी राह में आते रहे, 
ईंट-पत्थर का सबकुछ बनाते रहे,
अपनी नासमझी,
नाकामी का दोष, 
         नदी को देते रहे।        
©️rajhansraju
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⬅️(42) Riste-Nate
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➡️(40) Safar 
जिसे "मेरा सफर" कहता है 
साथ में उसके साया भी तो नहीं रहता है
🌷🌷🥀🥀🌷
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(41)
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🌹🌹❤️🙏🙏🙏🌹🌹

 








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Comments

  1. इस दुनिया को,
    आबाद रखने की यही शर्त है,
    इसका खारापन सोखने को,
    हमारे पास,
    एक समुंदर हो।

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