काशी बनारस वाराणसी | Banaras

बनारस की पचपन गलियां 
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(1) 

इन पचपन गलियों को 

जब भी जहाँ से देखता हूँ 

ऐसा लगता है हर गली से 

मैं गुजरा हूँ

या फिर ए गलियां मुझमें गुजर रही हैं 

उस गली में जो जलेबी की दुकान है 

बहुत मीठी है 

लाख कोशिशों के बाद भी 

जिंदगी सीधी सड़क जैसी नहीं होती, 

वह इन्हीं किसी गली में 

रह-रह के ठहर जाती है 

अभी इस गली के मोड़ से 

थोड़ी सी मुलाकात कर लें, 

पता नहीं लौटकर आना कब हो? 

हर गली का एक नाम और नंबर है 

एकदम उम्र की तरह

जिसकी मियाद है 

फिर आगे बढ़ जाना है

जो गली पीछे छूट गई 

वहां मेरा बचपन 

अभी वैसे ही ठहरा हुआ है 

बगैर चश्मे के भी 

उसे देख लेता हूँ 

मैं कितना शरारती था 

सोचकर हंस देता हूं 

यही वजह है 

नाती पोतों को डाटता नहीं हूँ 

यही उस गली को जीने का वक्त है 

गलियों के चक्कर लगाने हैं 

इश्क किसी चौखट पर 

न जाने कब दस्तक देने लगे 

हर पल एक जगह वह ठहरने लगे 

किसी शायर को खूब पढ़ता है 

गुलाब संभाल कर किताबों में रखता है 

वह समझता है लोग अनजान हैं 

जबकि जिस गली में 

इस समय वह कब से खड़ा है 

उसे अंदाजा नहीं है 

जबकि नुक्कड़ की दुकान पर 

उसी के चर्चे हैं 

यूँ ही हर शख़्स 

किसी न किसी गली में 

उम्र के हर पड़ाव पर 

मौजूद रहता है 

अनंत यात्रा में 

इन गलियों और मोड़ की 

स्मृतियाँ सदा रहती हैं 

ए गलियां मुझमें 

रहने लगती हैं 

हर शख़्स को अपनी गली 

संभाल कर रखनी है 

इन्हीं गलियों से 

जो टुकड़े जुड़ते हैं

जैसे वक्त के लम्हों के मिलने से 

महाकाल बनते हैं 

आज मणिकर्णिका में उतर रहा हूँ 

अपनी गलियां 

अपने साथ लिए जा रहा हूँ 

तुम्हारे हिस्से का वह मोड़ 

अब भी वहीं है 

बस उसके पास 

बेमकसद 

यूँ ही ठहरना है 

©️Rajhansraju 

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(2)


है बहुत छोटी परिधि 
मेरे देख पाने की 
किसी बिंदु पर सिमटा 

मैं पूर्ण लगता हूँ 

यह आहुति है मेरी 

मैं जल रहा हूँ 

यह सत्य है, अग्नि है 

बचकर कहाँ निकल पाता कोई 

प्रह्लाद ऐसे ही कोई बनता नहीं 

जो बीत गया 

यहीं पर, अंत हो गया 

बहुत अच्छा था, बुरा था 

अब नहीं रह गया 

यही आरंभ है, अंत है, 

निर्माण है, ध्वंस है 

अग्नि है अग्नि है अग्नि है 

स्वीकार है स्वीकार है स्वीकार है

©️Rajhansraju 

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(3)

एक ही दरख़्त पर आशियाने थे
खूब नोक झोक होती थी
जरा आराम से
दूसरी तरफ जाया करो
वह डाली जो सूख गयी थी
आहिस्ता से अलग हो गयी थी
वहीं पर खोड़र मौजूद हैं
जिसमें गिलहरी का घर है
जब गिलहरी को
चिड़ियों की आवाज़ सुननी होती है
वह घोसले में आ गयी है
शायद कुछ फिक्र होती हो
इन्हीं शरारतों से
एक दूसरे की खबर
लेते देते रहते हैं
आज वह दरख़्त
जो कबसे कितनों को
रिश्ते में बांध रखा था
उसे इंसानों की नजर लग गयी
उसमें उन्हें सिर्फ
लकड़ी नजर आयी
और दोनों बेघर हो गये
अब कहीं और जाना हैं
कहाँ..
मालूम नहीं
पता नहीं
अब कब मिलना हो
चलो..
एक दूसरे को
अलविदा कहते हैं
©️Rajhansraju

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(4)

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 कुछ कच्चे हों, कुछ पक्के हों, 
जो भाए तुझको, तेरे जैसे हों

रंग दे, रंग ले, एक रंग में

चेहरा सबका खो जाये 

जैसा तूँ चाहे 

सब वैसा हो जाये

कई मुखौटे छूटे हैं

नये फिर से पहने हैं

हाथ गुलाल लेकर 

पहले अपना चेहरा रंगा है 

एकदम सच्चा न सही 

पर झूठा भी तो है नहीं 

जितना भी है, जैसा भी है 

अपने जैसा ही है 

हाथ उठाऊँ दांया तो 

बांया उसका उठ जाता है 

अब जरा सा गौर कर 

हर तरफ अक्स है 

आइनों के बीच 

तूँ अकेला बैठा है 

©️Rajhansraju 

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(5)

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उसकी हर बात 
बहुत हसीन है

एक मासूम मुस्कराहट 

चेहरे पर हर वक्त रहती है 

वह आदमी नहीं 

कोई तश्वीर लगता है 

इस तरह भी कोई होता है 

जिसके होने पर 

यकीन करना मुश्किल हो 

अभी उसे देखा 

वैसे ही हंस रहा है 

जहाँ सब हैं 

उनसे थोड़ी दूर 

जिधर से धूप आ रही 

उस तरफ खड़ा है

छांव की वजह से अनजान 

एक उत्सव चल रहा है 

वह अब भी दूर ही है 

धूप जा चुकी है 

आज ठंड बहुत है 

अंधेरा बढ़ रहा है 

वह तश्वीर वाला शख्स 

नजर नहीं आ रहा है 

वैसे वह रोशनी में भी 

नजर नहीं आता 

नेपथ्य में कुछ गढ़ता रहता है 

पर्दे ऐसे ही उठते गिरते रहते हैं 

लोगों ने जोकर के लिए 

खूब जमकर ताली बजाई 

वह कौन है? 

अब तक किसी को पता नहीं 

अलाव जलने लगे हैं 

आग की गुनगुनी गर्मी 

मौसम को हसीन बना रही है 

जो आग जली है 

वह बुझने न पाये 

इसी कोशिश में 

वह सूखी लकड़ियों की 

व्यवस्था में लगा है 

अलाव पूरी रात कैसे जले 

यह जिम्मेदारी उसी की है 

वह शख़्स वही है 

जो तश्वीर में ढ़ल गया है 

वह देखो 

वैसे ही 

मुस्करा रहा है 

अलाव से न केवल गर्मी 

बल्कि रोशनी भी आने लगी है 

©️Rajhansraju 

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(6)
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जन्मदिवस की शुभकामना 
शुभकामना जन्मदिवस की
हमारे प्रियवर प्रिय को 
मिले तुम्हें हर पल 
खुशियों का खजाना 
खुशबू बनकर फैलो जग में 
अंबर से ऊपर उठना 
सागर में गहरे जाना 
बाहों का विस्तार हो इतना 
हर शख्स कहे तुझे अपना 
हंसी खुशी 
हम बाटे सब में 
आशीष बना रहे प्रभु का 
यही प्रार्थना है हम सबका 
मंगलमय हो जन्म दिवस यह
जन्मदिवस मंगलमय हो
©️Rajhansraju 
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(7)
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मन का अंधियारा 
मन के अंधियारे 
अब तो भागे 
भोर भई मेरे राम जगाये 
देखो राम पधारे हैं 
ऐसे ही अब का सोचे
मीच आंख दर्शन कर ले 
प्रभु आज यहां पधारे हैं 
तेरे जैसा रूप धरा है 
जो तेरे मन को भाए है 
आंगन में देखो कान्हा
कैसे खेल रहा है
हाथ में जिसके जग है सारा 
आंचल में वो छुप रहा है 
जिद पर अपने अड़ा पड़ा है 
बच्चों की मनुहार यही है 
घर जिससे सज जाता है 
एक खिलौना मिलते ही 
चेहरा खिल जाता है 
चंदा आ गया हाथों में 
देख उसको लगता है 
राम समाए कड़कड़ में 
हर तिनका पूरा लगता है 
मन का अंधियारा मिट जाए 
सब राम-राम हो जाए 
आंख खुले राम हो सामने 
देखें अपने राम को 
राम राम कहते कहते 
यात्री हैं हम राम के 
राह मेरी मंजिल मेरी 
सब में राम बसते हैं 
मुझमें राम तुझमें राम 
जग सारा है राम का 
जो भटके और अटके हैं 
यह मर्जी है राम की 
रावण से 
परिचय जरूरी है संसार का 
जब तेरे मन में सिंहासन पर 
बैठा रावण है 
युद्ध नया नहीं है 
अंदर का संघर्ष है 
राम को वनवास दिया है 
रावण को लंका सोने की 
मन के अंदर सजी है लंका 
अवध का कोई नाम नहीं 
खोए हैं दसकंधर में 
अपने शीश की परवाह नहीं 
रावण गान करने वालों की 
कमी नहीं है संसार में 
अब आज भी उसके कुछ महारथी 
हम में ही मौजूद हैं 
जो रावण को बेचारा विक्टिम 
साबित करते हैं 
चलो माना तुम रावण दल से हो 
लोकतंत्र है 
और तुमको भी अपने मत का 
पूरा हक है 
एक गुजारिश है 
कथा पूरी कहा करो 
राम को क्यों आना पड़ा 
यह भी बता दिया करो 
नहीं तो रामदल की भी 
कुछ बात सुन लिया करो 
खैर यह रावण भी तो 
अपना ही है 
हम सब ने 
इसको खूब पाला-पोसा है 
तभी तो आज तक वह
हम सब में यह जिंदा है 
हर साल जलाते हैं 
पर अंदर जिंदा रखते हैं 
वह भला मरेगा कैसे? 
जिसने अमृत पी रखा है  
उसका अंत 
सिर्फ राम कर सकते हैं 
जिन्हें तुमने वनवास दिया है 
जो हर पल दस्तक देते हैं 
और तुम नजरअंदाज करते रहते हो 
सोचो जब भी कुछ गलत करते हो 
एक आवाज जोर से आती है 
अनसुना करके 
तुम लंका चल देते हो 
तुम्हें सोने का सिंहासन चाहिए 
रावण ही तो बनना है 
फिर शिकायत क्यों करते हो 
यह दुनिया बहुत बुरी है 
जबकि इस को काला करने में 
तेरा भी तो हिस्सा है 
काश दस्तक सुन पाते 
उस आवाज पर 
वहीं ठहर जाते 
पता नहीं 
तुम कितना राम बन पाते 
पर रावण तो हरगिज़ नहीं रहते 
अब जग जाओ 
यह दिन वही है 
रावण को मरना है 
रामलीला में 
आज 
इसी की प्रतीक्षा है 
जबकि सबके अंदर रावण है 
असल में वही समस्या है 
अब पुतला उसका जल रहा है 
राम राम गूंज रहा है
 अंदर रावण हंस रहा है 
वह भी तो राम राम ही कहता है 
सबसे ज्यादा अधरों पर उसके 
यही शब्द रहता है 
मुक्ति की खोज में 
कब से भटक रहा है 
अमृत पीकर ने मरने को 
अभिशापित है 
रामदुलारे जा बैठे हैं 
रावण के दल में 
जबकि राम दूत बनकर उनको 
लंका दहन करना है 
तुम ही राम हो यह जानो 
आंख खोलो खुद को पहचानो 
यह रावण भी तुम ही हो 
जिससे तुमको लड़ना है 
अब राम नाम की जय बोलो 
सब राम राम हो जाओ
जय सियाराम 
जय जय सियाराम
©️Rajhansraju 
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(8)
***

वह सुकून से
उसकी आगोशी में 
सो जाता है
खोकर वजूद 
उसको पा लेता है
उसने इश्क की 
कोई बात नहीं की
आहिस्ता से
उसके दामन में समा जाता है
वह कौन है
कहाँ पता चलता है
वह खुशबू है कि हवा
बस महसूस होता है
मेरे आसपास है कि मुझमें
अब भला 
किससे क्या कहूँ
मैं इश्क में हूँ कि इश्क हूँ 
मैं हूँ 
शायद 
मैं 
नहीं हूँ 
©️Rajhansraju 
********
(9)
***

लोगों ने पूछा 
तुम कवि होते तो 
क्या करते 
तो मेरे पास हर बात का 
जवाब होता, 
मैं दुख 
बड़ी खूबसूरती से सजाता, 
मेरी नाराजगी पर भी 
लोग वाह-वाह करते, 
मैं अपना दुख कहता 
लोग गजल सुनते 
©️Rajhansraju
******
ऐसे ही
कल्पना करता रहता हूँ
मैं ए होता तो क्या होता
मैं वो होता तो क्या होता
कुछ हसीन ख्वाब आते 
कभी डर से जग जाता
इस अगर मगर में
फिर भी मैं होता
कुछ अधूरा कुछ पूरा होता
एक टुकड़ा यहाँ होता
दूजा जाने कहाँ होता
कौन तलाश करे किसकी
ए भी अक्सर मन में आता
अब कहाँ कैसे कितना हूँ 
कुछ कह नहीं सकता 
हाँ मैं हूँ 
यह एहसास 
हरदम 
मुझमें रहता है 
©️Rajhansraju 
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कभी लगता है 
ए सही है 
फिर लगता 
यही जो किया 
वही गलत हो गया 
सही गलत के लिए 
कौन सा फैसला 
कब क्या साबित हुआ 
इसी से तय होता है 
इसी से तय होता है 
जिंदगी बस चलती रहती है
©️Rajhansraju 
******
(10)
******
जरा गौर से देख 
तूँ क्या कर रहा है 
हाथ में तेरे खंजर तो नहीं है
जिस जमीन पर खड़ा है 
उसका रंग एकदम लाल है 
दोष दूसरों को दे रहा है 
कहीं तूँ ही जिम्मेदार तो नहीं है 
सोच ले बनना क्या है 
यह फैसला तेरा है 
गौर से देख हाथ में 
किताब है 
या फिर 
कोई और सामान है 
कब तक कहेगा 
तूँ हिंदू है मुसलमान है 
कमबख्त तू सिर्फ एक जिस्म नहीं 
पूरा हिंदुस्तान है 
खुदा के लिए तुझे लड़ना पड़े 
क्या वह इतना कमजोर है 
जबकि तेरे पास कुछ नहीं है 
रोटी का मोहताज है 
जिसके नाम पर फरेब करता है 
गिरेबान में झांक 
वह तुझी में ही में रहता है 
वो अक्ल के अंधे 
देखना सीख ले 
उसकी मर्जी के बगैर 
जब एक भी पत्ता नहीं हिलता है 
सोच तो किसका पैरोकार है 
और क्या कर रहा है 
किसको किस की क्या जरूरत है 
यह तय करना
तेरा काम तो नहीं है 
इल्म की रोशनी से 
रोशन हो ले
मेहनत कर खुद को 
इस लायक कर ले 
कोई गिरता रहे 
उसको संभाल ले 
और किसी को 
पता ना चले तेरा नाम 
गुमनाम रहे इस कदर 
तेरे चर्चे हर तरफ हो 
और कोई पहचानता ना हो 
बुलंदी पर कौन है 
हर शख्स को
वहां अपना चेहरा दिखाई दे 
तलाश में तेरी 
वह खुद को पा ले 
वह ऐसे ही हर जगह होकर 
किसी को दिखाई नहीं पड़ता है 
अभी जिसने 
तुम्हारा हाथ थामा था 
और तुमने ठीक से उसे देखा नहीं 
वह जा चुका है 
फिर तुमने पहचाना नहीं है
©️Rajhansraju
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(11)
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परछाई
रोशनी के बगैर
नहीं रहती
शायद कोई मजबूरी है
जो उसके सामने नहीं आती
रोशनी बड़ी अदब से
उसकी तरफ़ बढ़ता है
वह शरमा के
एकदम से
सिमट जाती है
©️Rajhansraju
********
(12)
********
एक दूसरे से अनजान 
चढ़ान पर पहुँचे
दोनों के कंधे पर 
एक जैसा सामान है 
एक गुनगुनाना रहा है 
शायद 
कोई गीत गा रहा है 
तभी दूसरे ने 
झुंझलाकर पूछा 
तुझे ऐ बोझ बोझ नहीं लगता 
उसने हंस कर कहा 
ए कोई बोझ नहीं 
मेरा भाई है 
©️Rajhansraju
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(13)
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बर्फ में जब जमने लगा 
सब धुंधला नजर आने लगा 
कुछ थकान है 
थोड़ी सी नींद है 
तभी आहिस्ता से 
एक आवाज आई
भारत.... 
मेरी झटके से 
आंख खुली 
भरपूर हरियाली 
खलिहान नजर आने लगे 
मौसम सुहाना है 
हर तरफ सफेद चादर 
गर्म होने लगी 
अभी वह सामने वाली चोटी बाकी है 
हमने एक दूसरे का 
हाथ थामा 
एक साथ हंसने लगे 
बस यही बची है 
और आगे बढ़ना है 
दुनिया में जो सबसे ऊंचा मुकाम है 
वहां तिरंगा रहना है 
मैं कौन हूँ 
ऐसा तो कोई सवाल ही नहीं है 
हम भारत हैं 
हममें भारत है 
बस बात इतनी ही है 
और सिर्फ यही सही है 
जय हिंद... जय भारत 
जय हिंद... जय भारत
©️Rajhansraju
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(14)
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हिम्मत करो,
हिम्मत करो,
असफलता से न भागो तुम,
जीतो जिंदगी की जंग,
आलस की नींद से जागी तुम।

डूब जाओ,
डूब जाओ,
सफलता के सागर में,
लहरों से डरकर न भागो तुम।


बैठ जाओ,
बैठ जाओ,
उस नैया में 
जिसमे मिले तुम्हे सफलता की राह,
मिल जाएगा वो तुम्हे जिसकी रखोगे चाह।


मंजिल पास है,
मंजिल पास है,
होने वाली है चुनौती की हार,
संघर्ष करने पर सफलता को छुओगे तुम।

-सक्षम मिश्र
*****

(15)
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नींद बहुत गहरी थी
तभी किसी ने दस्तक दी
कौन हो सकता है 
बहुत समय बाद
मेरे दरवाजे पर 
किसी ने आवाज दी
मेरा नाम ले रहा था
भला इस शहर में 
मुझे कौन जानता है
वह भी बचपन वाले नाम से
कैसे कोई पहचानता है
बड़े अचरज के साथ
किसी तरह आँख खोली। 
रात पता नहीं कब 
नींद आ गई
बहुत दिनों बाद
इतना सोया था
शायद कोई सपना है
यह सोचकर आँख बंद कर ली
क्या पता ? 
सपने को मेरा ठिकाना 
पता चल गया हो
मेरे जेहन में ही 
यह दस्तक हो रही हो 
यह छूटने का सिलसिला 
कभी टूटता नहीं है 
सब समय के यात्री हैं 
कोई ठहरता कहाँ है? 
फिर चौका 
नहीं ए सपना नहीं है 
दस्तक दरवाजे पर हो रही है 
कोई मेरा ही नाम ले रहा है 
आहिस्ता से आँख खोली
कमरे में जहाँ से भी गुंजाइश थी 
सुबह की रोशनी आ रही थी 
वह रोशनदान 
जो लोहे का बना है 
जिसमें जंग लग गई है 
अपना वजूद 
संभाल नहीं पा रहा है 
वहाँ पूरब की तरफ 
रोशनी का सबसे खूबसूरत 
रास्ता बन गया है 
शहरों की अपनी एक खूबी है 
हर आदमी थोड़ी कोशिश से 
एक कमरा हासिल कर सकता है 
मकान और घर का सफर
बहुत आसान नहीं है 
ऐसे ही कुछ नींद में 
अनमना सा जगा हुआ 
दरवाजा खोलता हूँ 
हर तरफ भरपूर रोशनी है 
सामने सूरज खिलखिला रहा है 
मैं चौका अरे अब भी सुबह 
एकदम वैसे ही होती है 
मेरा नाम अब भी 
कुछ बच्चे पुकार रहे थे 
मैं वहीं ठहर गया 
ए नाम तो मेरा है 
पर मैं 
वह नहीं हूँ
©️Rajhansraju 
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(16)
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दंगा-फसाद 
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फिर दंगे हुए 
शहर के कई मुहल्ले 
और कई शहरों के कुछ मुहल्ले 
कई दिन तक 
संभलने की कोशिश करते रहे 
अभी कुछ साल ही गुजरे थे 
बस संभल ही रहे थे कि 
फिर समेटने के लिए कुछ बचा ही नहीं
चुपचाप श्मशान बन चुके 
अपने वजूद को 
पहचानने की कोशिश कर रहा है 
तभी भीड़ की आवाज बढ़ने लगी 
शोर बहुत तेज था 
उसे समझ में नहीं आ रहा था 
वह क्या करें 
खुद को हिंदू कहे या फिर मुसलमान कहे
उसने ऐसा कोई लिबास भी नहीं पहना था
जिससे पता चले वह किस ब्रांड का है 
वह अपने वजूद की तलाश में 
इस कदर खोया था 
शोर के शब्द 
वह नहीं समझ पा रहा था 
भीड़ एकदम उसके करीब आ गई 
उसमें कई लोग उसके अपने थे 
रोज का मिलना जुलना था 
तभी उसने एक बच्चे से पूछा 
तूँ इनके साथ क्या कर रहा है 
स्कूल का वक्त है 
किताबों की जगह
तेरे हाथ में क्या है 
तूँ भी फसादी बन गया 
अभी कल ही तो घंटों 
सही गलत को लेकर चर्चा हुई थी 
और तुमने माना था 
उसकी मर्जी के बगैर 
एक भी पत्ता हिलता नहीं है 
वह हर जगह मौजूद है 
उसको हमारी नहीं 
हमको उसकी जरूरत है 
उसका क्या नाम है
किसी ने जाना नहीं है 
कोई किताब क्या वह पढ़ता है 
वह कौन सी भाषा में हमसे कहता है 
फिर कौन सुनता है बेजुबानो की 
गढ़ा है जिसने सब कुछ 
और उसी में समाया भी है 
फिर बता किस भाषा के शब्द 
किस चीज में रहता नहीं है 
तेरे दावे झूठे हैं, तेरे शब्द काफी नहीं है 
वह कोई इंसान नहीं है 
जो जी हुजूरी से मान जाए 
जैसा तूँ चाहता है 
सब वैसा हो जाए 
तो यह जान ले 
उसको तेरे खिदमत की जरूरत नहीं है 
यह जो इबादत के तरीके हैं 
यह तेरे लिए हैं 
ठीक वैसे ही जैसे 
जब सफर पर हम निकलते हैं 
तो कुछ देर ठहर कर सोचते हैं 
कहां जाना है? कैसे जाना है? 
कौन सा सामान साथ रखना है? 
मौसम कैसा है? 
वहां किस तरह रहना है? 
कौन सी जुबान बोली जाती है? 
कौन सी पोशाक पहनी जाती है? 
कहीं ठंड बहुत ज्यादा तो नहीं है? 
या फिर हर तरफ रेत है
वहाँ सिर्फ तपन रहती है 
ऐसे ही बन जाती है
खाने पीने पहनने की आदतें 
और वह उसका, अपनी जुबान में
कोई नाम रख देता है 
क्योंकि उसकी समझ से परे 
बहुत कुछ है 
जिसका जवाब 
उसे जब तक नहीं मिल जाता 
उसे एक उम्मीद चाहिए 
कोई है जो उसे हर पल देखता है 
जो उसके अंदर भी है और बाहर भी 
जब यह कहता है सब उसकी मर्जी है 
तब फिर क्यों उसको जो मानते हैं 
या फिर नहीं मानते हैं 
ऐसे नहीं वैसे मानते हैं
यह नहीं वह कहते हैं 
मेरे जैसा कुछ भी नहीं करते 
उसके वैसा होने में उसी की तो मर्जी है 
यह बातें कल ही तो हुई थी 
और तुमने भी खूब ठहाके लगाए थे 
आज क्या हो गया 
उस बच्चे ने कोई जवाब नहीं दिया 
क्योंकि वह जानता है 
सच यही है 
पर भीड़ बनने का 
अपना ही मजा है 
चेहरा उसका धुंधला होने लगा 
धीरे-धीरे वह भीड़ में खोने लगा 
तभी वह जोर से चिल्लाया 
तुम ऐसा नहीं कर सकते 
तुम यह नहीं बन सकते 
अब यही देखना बाकी रह गया था 
मेरे बच्चे लौट आओ
वह सिर्फ रो रहा था 
इस दौरान 
यह भी तय हो चुका था 
वह किस तरफ का आदमी है 
वह किस तरफ का आदमी है
©️Rajhansraju 

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ए सच है,
सब बेचैनी से,
तुम्हें ही देख रहे हैं,
कैसे नाराज होकर,
गुमसुम से चले जाते हो,
न चमकते हो, न गरजते हो,
अपने राह चुपचाप,
न जाने कहाँ चले जाते हो,
जबकि तुम तो पानी से बने हो,
और पूरा भरे हो,
फिर जैसे बरसते थे,
अब वैसे क्यों नहीं बरसते हो?
तुम्हारे इंतजार में,
घर के सारे बरतन खाली हैं,
वो नदी अब ठहर गयी है,
जो हर वक्त खिलखिलाती रहती थी,
एकदम बूढ़ी और बिमार दिखती है,
तालाब अब बातें नहीं करता,
जबसे तुमने सुध लेना बंद किया है,
वह खुद को भूल गया है,
वो पेड़ बनकर,
अब सूख रहा है,
जिस पौधे को तुमने रोपा था,
माना हमने गलतियां की है,
जो तुम रूठ गए हो,
लेकिन ए भी तो सच है,
तेरी बूंदों से जो जीवन पाए, 
क्या उनको सजा दे पाओगे?
सच मानो..
तुम्हारी बडी़ जरूरत है,
तेरी नाराजगी और गुस्सा,
हम नहीं सह पाएंगे,
अभी सुनी है खबर..
तेरे कहर की..
यार.!.. बादल.. 
किसी पर,
इतना बरसना भी 
ठीक नहीं है..
©️Rajhansraju 





भिकमंगे के लड़कों ने 
अपने बाप से नाराज़ होकर
एक दिन कहा ,
हमें हमारा हक़ दो , लाओ  !
भिकमंगे ने 
अपना कासा थमा दिया , कहा ,
जाओ , माँगो , खाओ !!
~ हरिवंश राय  बच्चन


कुएं के मेढ़क
पिंजडे में रहने वालों,
तुम्हारी ए दुनिया बहुत छोटी है।
उड़ना मत खो जाओगे,
क्योंकि दुनिया बहुत बड़ी है।।
-rajhansraju


बनारस 
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मुझे नहीं पता कि तुम किस शहर में रहते हो, 
किसी दिन बैग में एक-आध कपड़े रख के निकल पड़ो बनारस।

कहतें हैं कि मुम्बई मायानगरी है, 
जहाँ छोटे-छोटे इंसानों के बड़े- बड़े सपने पूरे हुए हैं!
पर बनारस...

ये वो जगह है, जहाँ पर इंसान बड़े से बड़े सपने को जलते हुए,
 मिट्टी में खाक होते हुए देखता है...
एक चद्दर रख लेना साथ में 
या फिर बनारस सिटी स्टेशन के बाहर से 10 रुपये में बिकने वाली 
पन्नी ले लेना और पहुँच पड़ना सीधे मणिकर्णिका।
ये वो जगह है, 
जहां इंसानी लाशों के जलते हुए उजाले में 
सिर्फ और सिर्फ सच्चाई दिखाई देती है। 

एक रात के लिए भूल जाना 
तुम्हारे क्रेडिट कार्ड की लिमिट कितनी है,
 तुम्हारे डेबिट कार्ड में कितने पैसे पड़े हैं, 
जिन्हें तुम अभी निकाल के 5 स्टार होटल बुक कर सकते हो, 
भूल जाना अपने पैरों में पड़े हुए जूते की कीमत 
या कलाई में टिक-टिक करती हुई घड़ी की कीमत 
और पन्नी बिछाकर बैठ जाना एक कोने में 
और देखना चुप चाप वहाँ का तमाशा। 
तुम्हें सिर्फ और सिर्फ सच दिखाई देगा। 
तुम देखोगे कि कैसे वो लोग 
जिन्होंने अपनी जिंदगी सबकुछ भूलकर 
अपने सपनों को पूरा करने में बिता दी, 
कैसे यहाँ औंधे मुँह पड़े हैं। 
वो लोग जो जिनके पास कभी समय नही रहा 
लोगों के लिए उन्हें कैसे लोग जलते हुए ही 
छोड़ कर चला जाया करते हैं, 
वो लोग जिन्होंने अपने ईगो में आकर 
किसी के सामने झुकना नहीं स्वीकारा 
वो कैसे अभी गिरे हुए हैं 
और इस कदर गिरे हुए हैं 
बिना चार लोगों के 
उन्हें उठाया भी नहीं जा सकता।

वो लोग जिन्हें गुमान था 
अपने हुस्न अपनी हर एक चीज़ पर 
आज कैसे कुछ घंटों के बाद 
उनका यहाँ कुछ भी अपना नहीं रहेगा।
हमेशा-हमेशा के लिए, 
वो लोग जिन्होंने ठोकर मार दी 
उनको जिन्होंने उन्हें सबसे ज्यादा चाहा 
और आज उनके पास कोई 
आखिरी लौ बुझने तक 
साथ बैठने वाला तक नहीं , 
वो लोग जिन्होंने पहनी महंगी घड़ियाँ पर 
आज  पता चला कि समय क्या है, 
वो लोग जिन्होंने पूरी जिंदगी 
दूसरों को दुःख दिया 
उनकी आवाज 
आज उनकी चटकती हड्डियों से 
कैसे निकल रही हैं, 
तुम देखोगे कि यहाँ जो हो रहा है 
वही सच है, बाकी सब झूठ

तो सुनो न यार!
कभी भी किसी को दुःख मत दो!
हाँ पता है कि दुनिया में 
सबको खुश नहीं रखा जा सकता 
पर हर कोई 
आपसे दुखी भी नहीं हो सकता। 
अभी मैं कुछ भी कर दूँ, 
कितना भी बुरा उससे दुनिया के 
बड़े-बड़े सेलेब्रिटी को 
कोई फर्क पड़ने वाला है क्या?
नही!
तो वही तुमसे दुःखी होगा, 
जो तुमसे प्यार करता हो, 
जो तुमसे जुड़ा हुआ है, 
तो अगर तुम किसी को खुशी नहीं दे सकते 
तो पहले ही बोल दो 
और उसे भी उन्हीं बाकी के 
सेलिब्रिटी वाले कैटेगरी में डाल दो, 
वरना एक बार जुड़ जाने के बाद 
कभी भी किसी को मत रुलाओ 
अपनी वजह से, अपनों की वजह से! 

पता नहीं किस पिक्चर का डायलॉग है 
पर सच है। ''हमारी  दादी" कहती थीं  
कभी किसी की ''आह'' नहीं लेनी चाहिए'' 
वरना ये आह चीखती हैं, 
चिल्लाती हैं, जलती हुई हड्डियों से 
इसकी आवाज दूर तक श्मशान पर गूँजती है! 
और उस वक्त कोई सुनने वाला नही होता। 
एक दिन तो इस शरीर को अकड़ ही जाना है, 
तब तक के लिए अपनी अकड़ थोड़ा किनारे रख लो।

बस एक रात की बात है 
जाओ कभी मणिकर्णिका, 
सब सीख जाओगे बिना किसी के सिखाए। 
यकीन करो अगली सुबह अपना बैग, 
घड़ी और जूते और शायद खुद को भी 
साथ लेकर वापस आने का भी मन नहीं करेगा, 
क्योंकि जलती हुई हड्डियों की चीखें 
बहुत सन्नाटा भर देंगी तुम्हारे अंदर, 
जो किसी का दर्द, दुःख हँसते हुए ले लेने के लिए 
काफी रहेगा हमेशा के लिए।  
हर-हर महादेव,  जय महाकाल 🙏🙏
Haresh kumar की wall से 











































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Comments

  1. एक दिन मै भी गया और खो गया उसकी गलियों में, तब जाना जब बनारस हो गया

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    Replies
    1. इसी का नाम बनारस है

      Delete
  2. इस दुनिया को,
    आबाद रखने की यही शर्त है,
    इसका खारापन सोखने को,
    हमारे पास,
    एक समुंदर हो।

    ReplyDelete

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