काशी बनारस वाराणसी | Banaras
बनारस
बनारस की पचपन गलियां
(1)
इन पचपन गलियों को
जब भी जहाँ से देखता हूँ
ऐसा लगता है हर गली से
मैं गुजरा हूँ
या फिर ए गलियां मुझमें गुजर रही हैं
उस गली में जो जलेबी की दुकान है
बहुत मीठी है
लाख कोशिशों के बाद भी
जिंदगी सीधी सड़क जैसी नहीं होती,
वह इन्हीं किसी गली में
रह-रह के ठहर जाती है
अभी इस गली के मोड़ से
थोड़ी सी मुलाकात कर लें,
पता नहीं लौटकर आना कब हो?
हर गली का एक नाम और नंबर है
एकदम उम्र की तरह
जिसकी मियाद है
फिर आगे बढ़ जाना है
जो गली पीछे छूट गई
वहां मेरा बचपन
अभी वैसे ही ठहरा हुआ है
बगैर चश्मे के भी
उसे देख लेता हूँ
मैं कितना शरारती था
सोचकर हंस देता हूं
यही वजह है
नाती पोतों को डाटता नहीं हूँ
यही उस गली को जीने का वक्त है
गलियों के चक्कर लगाने हैं
इश्क किसी चौखट पर
न जाने कब दस्तक देने लगे
हर पल एक जगह वह ठहरने लगे
किसी शायर को खूब पढ़ता है
गुलाब संभाल कर किताबों में रखता है
वह समझता है लोग अनजान हैं
जबकि जिस गली में
इस समय वह कब से खड़ा है
उसे अंदाजा नहीं है
जबकि नुक्कड़ की दुकान पर
उसी के चर्चे हैं
यूँ ही हर शख़्स
किसी न किसी गली में
उम्र के हर पड़ाव पर
मौजूद रहता है
अनंत यात्रा में
इन गलियों और मोड़ की
स्मृतियाँ सदा रहती हैं
ए गलियां मुझमें
रहने लगती हैं
हर शख़्स को अपनी गली
संभाल कर रखनी है
इन्हीं गलियों से
जो टुकड़े जुड़ते हैं
जैसे वक्त के लम्हों के मिलने से
महाकाल बनते हैं
आज मणिकर्णिका में उतर रहा हूँ
अपनी गलियां
अपने साथ लिए जा रहा हूँ
तुम्हारे हिस्से का वह मोड़
अब भी वहीं है
बस उसके पास
बेमकसद
यूँ ही ठहरना है
©️Rajhansraju
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(2)
मैं पूर्ण लगता हूँ
यह आहुति है मेरी
मैं जल रहा हूँ
यह सत्य है, अग्नि है
बचकर कहाँ निकल पाता कोई
प्रह्लाद ऐसे ही कोई बनता नहीं
जो बीत गया
यहीं पर, अंत हो गया
बहुत अच्छा था, बुरा था
अब नहीं रह गया
यही आरंभ है, अंत है,
निर्माण है, ध्वंस है
अग्नि है अग्नि है अग्नि है
स्वीकार है स्वीकार है स्वीकार है
©️Rajhansraju
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(3)
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(4)
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रंग दे, रंग ले, एक रंग में
चेहरा सबका खो जाये
जैसा तूँ चाहे
सब वैसा हो जाये
कई मुखौटे छूटे हैं
नये फिर से पहने हैं
हाथ गुलाल लेकर
पहले अपना चेहरा रंगा है
एकदम सच्चा न सही
पर झूठा भी तो है नहीं
जितना भी है, जैसा भी है
अपने जैसा ही है
हाथ उठाऊँ दांया तो
बांया उसका उठ जाता है
अब जरा सा गौर कर
हर तरफ अक्स है
आइनों के बीच
तूँ अकेला बैठा है
©️Rajhansraju
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(5)
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एक मासूम मुस्कराहट
चेहरे पर हर वक्त रहती है
वह आदमी नहीं
कोई तश्वीर लगता है
इस तरह भी कोई होता है
जिसके होने पर
यकीन करना मुश्किल हो
अभी उसे देखा
वैसे ही हंस रहा है
जहाँ सब हैं
उनसे थोड़ी दूर
जिधर से धूप आ रही
उस तरफ खड़ा है
छांव की वजह से अनजान
एक उत्सव चल रहा है
वह अब भी दूर ही है
धूप जा चुकी है
आज ठंड बहुत है
अंधेरा बढ़ रहा है
वह तश्वीर वाला शख्स
नजर नहीं आ रहा है
वैसे वह रोशनी में भी
नजर नहीं आता
नेपथ्य में कुछ गढ़ता रहता है
पर्दे ऐसे ही उठते गिरते रहते हैं
लोगों ने जोकर के लिए
खूब जमकर ताली बजाई
वह कौन है?
अब तक किसी को पता नहीं
अलाव जलने लगे हैं
आग की गुनगुनी गर्मी
मौसम को हसीन बना रही है
जो आग जली है
वह बुझने न पाये
इसी कोशिश में
वह सूखी लकड़ियों की
व्यवस्था में लगा है
अलाव पूरी रात कैसे जले
यह जिम्मेदारी उसी की है
वह शख़्स वही है
जो तश्वीर में ढ़ल गया है
वह देखो
वैसे ही
मुस्करा रहा है
अलाव से न केवल गर्मी
बल्कि रोशनी भी आने लगी है
©️Rajhansraju
कुएं के मेढ़क
पिंजडे में रहने वालों,
तुम्हारी ए दुनिया बहुत छोटी है।
उड़ना मत खो जाओगे,
क्योंकि दुनिया बहुत बड़ी है।।
-rajhansraju
एक दिन मै भी गया और खो गया उसकी गलियों में, तब जाना जब बनारस हो गया
ReplyDeleteइसी का नाम बनारस है
Deleteइस दुनिया को,
ReplyDeleteआबाद रखने की यही शर्त है,
इसका खारापन सोखने को,
हमारे पास,
एक समुंदर हो।