The Mad Man। Pagal adami

पागल

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वह हर सड़क पर बेधड़क, 
बड़ी शान से चलता है, 
अभी उस चौराहे पर पहुँचा है, 
थोड़ा और अकड़ गया है, 
जैसे सड़क पर उसकी सेना, 
उसके पीछे कदम ताल कर रही हो, 
वह अब उसके, 
आदेश के इंतजार में खड़ी है, 
सारी नजर उसकी तरफ है, 
वह ज्यादा कुछ कहता नहीं, 
उसने तिरछी नजर से देखा, 
अपनी राह चल पड़ा, 
सड़क पर भीड़ वैसे ही खड़ी है, 
बत्ती लाल है, 
दूसरे तरफ का रास्ता खुला है, 
अपने सामने वाले सिग्नल पर, 
सबकी नजर टिकी है 
वह इन लाल, पीली, हरी बत्तियों,
पर हंसता है, 
फिर एक गहरी सोच में, 
कहीं खो जाता है, 
उनके इशारों पर ठहरते लोगों को, 
बड़े गौर से देखता है, 
उसे ए बत्तियां, 
बड़ी ताकतवर लगती हैं, 
वह तेज आती, 
किसी गाड़ी के सामने, 
अजीब सा मुंह बनाके, 
खड़ा हो जाता है, 
पर एक भी गाड़ी रुकती नहीं, 
वह लाल बत्ती बनने की, 
नाकाम कोशिश करता रहता है, 
रोज सिग्नल के सामने, 
घंटों खड़ा रहता है, 
लाल रंग को, 
बड़े गौर से देखता रहता है, 
यह रोक लेने की खूबी, 
इसने कैसे पाई है, 
जबकि वह आज तक, 
कुछ भी नहीं रोक पाया, 
हलांकि उसे अपने बारे में, 
कुछ भी याद नहीं, 
उसने कहीं जनम लिया होगा, 
उसके अपने लोग रहे होंगे, 
किसी सफर पर निकला होगा, 
कहीं से आया होगा, 
बोल तो सकता है, 
फिर कुछ बोलता क्यों नहीं, 
कई साल से उसको यहीं, 
आस पास देखता हूँ, 
वह इसी जगह पर, 
घूम फिर कर आ जाता है, 
ऐसा कौन सा नाता है, 
जो उससे जुड़ गया है, 
जिसे छोड़कर, 
वह जा नहीं पाता है, 
जैसे रास्तों की फिक्र में, 
यहाँ रहता हो, 
हर शख़्स इन्हीं से गुजरकर, 
न जाने कहाँ-कहाँ चला जाता है, 
कौन किस रास्ते से गुजरा, 
मंजिल पर पहुँचकर, 
कितनों को याद रहता है, 
जबकी वह रास्ते को निहारता, 
उसीके करीब बैठा रहता है, 
किसी से कुछ कहता नहीं, 
जीने मरने का फर्क, 
उसे मालूम नहीं है, 
हाँ पेट में कुलबुलाहट, 
बहुत तेज होती है, 
कुछ खा लेने के बाद, 
सब पहले जैसा हो जाता है, 
यही एक बिमारी है, 
जो खाने से ही ठीक होती है, 
रास्ता अपनी अनंत दूरियों में बंधा, 
उसके सामने रुका हुआ है, 
वह किसी को निराश नहीं करता, 
ठहरने, चलने और पहुँचने की, 
सबके लिए, 
संभावनाओं के द्वार खोलता है, 
वह रास्ते की तरह मौन, 
वहीं ठहरा हुआ है, 
अच्छा है, 
पागलों का रास्ते पर भटकना, 
कहीं मौन होकर, 
नि:शब्द बैठे रहना, 
आने जाने वालों को, 
बस ताकते रहना, 
अभी एक मुसाफिर, 
लाल बत्ती पर रुका है, 
वह पागल.. कुछ कहता नहीं, 
लाल बत्ती.. 
पूरी लाल है.. 
©️rajhansraju
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छुट्टी और आराम

उसे छुट्टी और दिन का ढ़लना,
अच्छा नहीं लगता,
वैसे भी आराम,
कोई काम तो है नहीं,
उसके लिये रोटी,
बहुत मंहगी है,
जो बाजार के हवाले है,
जिसकी तय कीमत,
सबको चुकानी है,
अब किसके हिस्से,
कितनी रोटी आएगी,
यह भूख से नहीं,
भुगतान से तय होता है,
इस वजह से,
वह आराम नहीं करता,
पहिए की तरह,
सुबह से शाम तक,
चलता रहता है,
रोटी भी पहिए की तरह है,
जो उससे हमेशा,
थोड़ी आगे ही रहती है,
यह आराम उसकी दूरी,
कम तो नहीं करता,
बनिया वैसे ही दुकान पर बैठा,
रोटी का कारोबार करता है,
वह रोटी बनाता है,
यहाँ से वहाँ लेकर जाता है,
खरीदारों को रोटी,
अपने हाथ से,
वही देता है,
न जाने कितनी रोटियां,
उसके हाथ से,
कितने हाथ तक पहुंचती है,
वह रोज चढ़ता भाव,
सबसे पहले ग्राहक को,
बताता है...
उसे रोटी की कीमत मालूम है,
उसके सामने पहिया,
बहुत तेज चल रहा है,
उसके हाथ से रोटी,
कहाँ-कहाँ सफर करती है,
इसका अंदाजा नहीं लगाता,
वह तो उसी के साथ जाती है,
जिसने कीमत चुकाई है,
रोटी की तलाश में,
वह भी गोल-गोल घूमता है,
मोटा बनिया चल नहीं पाता,
मगर रोटी घूमाना,
उसे आता है,
बस! एक-एक करके,
नये गोले बनाता है..
©️Rajhansraju 
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मेरा सफर

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बंजारा 
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बंजारे ने बांध लिया
खुद को जंजीरों में
नाम दिया घर बार उसे
हुआ मस्त मलंग रे
यही कहता फिर रहा
सब मेरे अपने हैं
रिश्ते नातों की डोर बंधी
एक दूजे से
उम्मीदों की जो बढ़ी लड़ी
उतना ही कमजोर हुआ रे
बंजारे ने बांध लिया  खुद को जंजीरों में.. 

मुसाफिर ठहर गया
न गया कहीं तब से
एक छप्पर डाली
खाट बिछाई है उसने जब से
झूमता गाता
कहता है
यह घर उसका है रे...
यही उसकी मंजिल है रे....
बंजारे ने बांध लिया खुद को जंजीरों में.... 

जिनको अपना कहता है
वह भी तो मुसाफिर है
एक दस्तक से ठहर गए हैं
साथ तेरे रह गए हैं
देखो अब भी चल रहे हैं
जंजीरों से लड़ रहे हैं,
उतने ही दिन के रिश्ते नाते
जितनी देर ठौर यहां रे
बंजारे ने बांध लिया खुद को जंजीरों में....
तूँ भी अपनी गठरी बांधे
हरदम रह तैयार रे
तूँ बंजारा भूल गया बंजारा है रे
जंजीरों को छोड़के
पल में हल्का होले
बंजारा तूँ बिन गठरी के
बैरागी हो ले
चलना तेरा काम है
उठ अब चल दे बंजारे
छोड़के जंजीरो को
हुआ मलंग अब ऐसे ही
बिन गठरी के
छोड़ दिया सब जंजीरें
तोड़के बंधन को
बंजारे ने ठान लिया बंजारा रहना है
ठहर गये हैं
जो कहीं
उनको ले चलना है
बंजारे ने छोड़ दिया
सब जंजीरों को
©️Rajhansraju 

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तन्हाई का मंजर
हसीन बन जाता है
तराशने-तलाशने में खुद को
किसी विरानगी में खो जाएं
देखे इस तरह खुद को
सामने कोई आइना न हो
पूरी सूरत नजर आ जाये
जहाँ भी रहूँ
कुछ इस तरह से
मैं हूँ
इसका एहसास रहे
©️Rajhansraju
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एक आदमी ऐसा भी है
जो सही-गलत में,
बेवज़ह उलझा रहता है
जबकि दौर है
नफा-नुकसान
समझने का
वह जो सिर्फ़
अपनी फिकर करता हो
देखो कैसे तनके चलता है
किसी मुकाम पर
कहने को नजर आता है
उसके नीचे कितने लोग
महज सीढ़ी बनकर
रह गये हैं
©️Rajhansraju
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मैं हूँ
यह सब जानते हैं
मगर होने का,
सबूत चाहते हैं
©️Rajhansraju
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जब चलना शुरू किया
लगा उम्मीद की सीधी लकीर
सफलता तक ले जाती है
जैसे ही कुछ आगे बढ़ा
ठोकरों का सिलसिला
शुरू हो गया
और कुछ हासिल होने से पहले
बेहद तजुर्बेदार हो गया
©️Rajhansraju
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बहुत देर तक
बातों का सिलसिला चलता रहा
हर शख़्स अपनी कहता रहा
न समझे जाने का इल्ज़ाम
दूसरों पर लगाता रहा
जबकि हर लफ्ज़
अपने में पूरी कहानी है
पय ठहर कर
देखने की फुर्सत
किसे है
©️Rajhansraju 

वह डाल को उसी पर बैठकर कर काटता है, 
अजीब आदमी है हर चीज का सौदा करता है 
🤔🤔🤔🤔🤔🤔
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अच्छा है 
कभी-कभी अनजाने में 
उसका खो जाना 
अब हम 
नये सफर पर निकलेंगे 
कुछ भूली 
कुछ याद आती 
पगडंडियों के सहारे
©️Rajhansraju 
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Comments

  1. मैं बोलता हूँ यही मेरे होने कि निशानी है

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