The Mad Man। Pagal adami
पागल
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छुट्टी और आराम
उसे छुट्टी और दिन का ढ़लना,वैसे भी आराम,
कोई काम तो है नहीं,
उसके लिये रोटी,
बहुत मंहगी है,
जो बाजार के हवाले है,
जिसकी तय कीमत,
सबको चुकानी है,
अब किसके हिस्से,
कितनी रोटी आएगी,
यह भूख से नहीं,
भुगतान से तय होता है,
इस वजह से,
वह आराम नहीं करता,
पहिए की तरह,
सुबह से शाम तक,
चलता रहता है,
रोटी भी पहिए की तरह है,
जो उससे हमेशा,
थोड़ी आगे ही रहती है,
यह आराम उसकी दूरी,
कम तो नहीं करता,
बनिया वैसे ही दुकान पर बैठा,
रोटी का कारोबार करता है,
वह रोटी बनाता है,
यहाँ से वहाँ लेकर जाता है,
खरीदारों को रोटी,
अपने हाथ से,
वही देता है,
न जाने कितनी रोटियां,
उसके हाथ से,
कितने हाथ तक पहुंचती है,
वह रोज चढ़ता भाव,
सबसे पहले ग्राहक को,
बताता है...
उसे रोटी की कीमत मालूम है,
उसके सामने पहिया,
बहुत तेज चल रहा है,
उसके हाथ से रोटी,
कहाँ-कहाँ सफर करती है,
इसका अंदाजा नहीं लगाता,
वह तो उसी के साथ जाती है,
जिसने कीमत चुकाई है,
रोटी की तलाश में,
वह भी गोल-गोल घूमता है,
मोटा बनिया चल नहीं पाता,
मगर रोटी घूमाना,
उसे आता है,
बस! एक-एक करके,
नये गोले बनाता है..
©️Rajhansraju
मेरा सफर
बंजारे ने बांध लिया
खुद को जंजीरों में
नाम दिया घर बार उसे
हुआ मस्त मलंग रे
यही कहता फिर रहा
सब मेरे अपने हैं
रिश्ते नातों की डोर बंधी
एक दूजे से
उम्मीदों की जो बढ़ी लड़ी
उतना ही कमजोर हुआ रे
बंजारे ने बांध लिया खुद को जंजीरों में..
मुसाफिर ठहर गया
न गया कहीं तब से
एक छप्पर डाली
खाट बिछाई है उसने जब से
झूमता गाता
कहता है
यह घर उसका है रे...
यही उसकी मंजिल है रे....
बंजारे ने बांध लिया खुद को जंजीरों में....
जिनको अपना कहता है
वह भी तो मुसाफिर है
एक दस्तक से ठहर गए हैं
साथ तेरे रह गए हैं
देखो अब भी चल रहे हैं
जंजीरों से लड़ रहे हैं,
उतने ही दिन के रिश्ते नाते
जितनी देर ठौर यहां रे
बंजारे ने बांध लिया खुद को जंजीरों में....
तूँ भी अपनी गठरी बांधे
हरदम रह तैयार रे
तूँ बंजारा भूल गया बंजारा है रे
जंजीरों को छोड़के
पल में हल्का होले
बंजारा तूँ बिन गठरी के
बैरागी हो ले
चलना तेरा काम है
उठ अब चल दे बंजारे
छोड़के जंजीरो को
हुआ मलंग अब ऐसे ही
बिन गठरी के
छोड़ दिया सब जंजीरें
तोड़के बंधन को
बंजारे ने ठान लिया बंजारा रहना है
ठहर गये हैं
जो कहीं
उनको ले चलना है
बंजारे ने छोड़ दिया
सब जंजीरों को
©️Rajhansraju
तन्हाई का मंजर
हसीन बन जाता है
तराशने-तलाशने में खुद को
किसी विरानगी में खो जाएं
देखे इस तरह खुद को
सामने कोई आइना न हो
पूरी सूरत नजर आ जाये
जहाँ भी रहूँ
कुछ इस तरह से
मैं हूँ
इसका एहसास रहे
©️Rajhansraju
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एक आदमी ऐसा भी है
जो सही-गलत में,
बेवज़ह उलझा रहता है
जबकि दौर है
नफा-नुकसान
समझने का
वह जो सिर्फ़
अपनी फिकर करता हो
देखो कैसे तनके चलता है
किसी मुकाम पर
कहने को नजर आता है
उसके नीचे कितने लोग
महज सीढ़ी बनकर
रह गये हैं
©️Rajhansraju
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मैं हूँ
यह सब जानते हैं
मगर होने का,
सबूत चाहते हैं
©️Rajhansraju
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जब चलना शुरू किया
लगा उम्मीद की सीधी लकीर
सफलता तक ले जाती है
जैसे ही कुछ आगे बढ़ा
ठोकरों का सिलसिला
शुरू हो गया
और कुछ हासिल होने से पहले
बेहद तजुर्बेदार हो गया
©️Rajhansraju
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बहुत देर तक
बातों का सिलसिला चलता रहा
हर शख़्स अपनी कहता रहा
न समझे जाने का इल्ज़ाम
दूसरों पर लगाता रहा
जबकि हर लफ्ज़
अपने में पूरी कहानी है
पय ठहर कर
देखने की फुर्सत
किसे है
©️Rajhansraju
अजीब आदमी है हर चीज का सौदा करता है
🤔🤔🤔🤔🤔🤔
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मैं बोलता हूँ यही मेरे होने कि निशानी है
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