Ek Kahani

एक कहानी 
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अलग-अलग जगहों से आए, 
लोगों ने शहर बसाया, 
इनमें कुछ भी, 
एक जैसा नहीं था, 
सबके घर एक दूसरे से, 
इतने दूर हैं, 
वहाँ भी मेरे गाँव जैसा, 
एक गाँव होगा, 
ए तो मैंने, 
बचपन में नहीं सोचा था, 
ए सच है कि, 
वैसा ही गांव मेरे दोस्त का भी है, 
उसने भी वही कहानियां सुनी हैं, 
वो चांद वाली बुढ़िया, 
सच में बहुत याद आती है 
अब मैं उसके बारे में, 
जब सोचता हूँ, 
उसकी शक्ल हूबहू, 
दादी से मिलती है, 
मुझे माँ फरिश्तों की कहानी, 
सुनाती थी, 
जो अपने साथ इसी आसमान में, 
लोगों को लेकर जाते हैं, 
मेरा यकीन कि दादी, 
जरूर चांद पर रहती होंगी, 
वहीं से हमको देखती होंगी, 
मैं अक्सर, 
जब खुले आसमान में, 
बिखरी चांदनी देखता, 
चांद बहुत, 
खूबसूरत नजर आता, 
दादी के वहाँ होने का यकीन, 
उसे मेरे बहुत करीब ला देता, 
पर जबसे, 
खुद में खोया-खोया सा,
रहने लगा हूँ, 
मेरे ऊपर कोई आसमान है, 
यह भूलने लगा हूँ, 
उस चांद को देखे एक अरसा, 
हो गया है, 
और वो बुढ़िया, 
अब मुझे नजर नहीं आती, 
मैं शायद थोड़ा सा समझदार, 
हो गया हूँ, 
धीरे-धीरे वो नजर खो दी, 
मैंने खूब किताबें पढ़ी, 
और समझ खोता गया, 
ऐसे ही एक दिन शहर आ गया, 
नया आदमी हूँ, 
जब चला था, 
सोचा अकेला हूँ, 
पर यहाँ तो भीड़ है, 
मुझ जैसों की कोई कमी नहीं है, 
उसकी नाक थोड़ी चपटी है, 
वो बहुत लम्बा है, 
दूसरा एकदम छोटे कद का है, 
कुछ भी तो नहीं मिलता, 
सब लम्बी यात्रा करके, 
यहाँ पहुँचे हैं, 
जब तक मैं शहर नहीं आया था,
मुझे मालूम नहीं था, 
इतनी दूर एकदम मेरे जैसा ही, 
कोई और भी रहता है, 
यह मुझे इस शहर ने बताया है, 
हलांकि उसके खान-पान, 
बोली-भाषा, 
कभी-कभी एकदम, 
कुछ समझ नहीं आता, 
पर यहाँ रहने की वजह, 
हम सबकी एक ही है, 
सबको कुछ बनना है, 
बड़ा मुकाम पाना है, 
ऐसे ही बहुत सारे दोस्त बनने लगे, 
हम दूसरे गांव और शहर को, 
थोड़ा-बहुत समझने लगे, 
अब इस सफर में, 
वक्त काफी गुजर चुका हैं, 
एक दूसरे से हमारा, 
रिश्ता भी बन चुका है, 
हमारे उम्र को, 
मुकाम मिलने लगा है, 
हमारे माँ-बाप, दादा-दादी बन चुके हैं, 
वैसी ही मिलती-जुलती कहानियां, 
अपने बच्चों को सुना रहे हैं, 
अभी एक दोस्त ने, 
चांद के सफर की बात की है, 
और मैं फिर कुछ कह नहीं पाया, 
हर बार जब, 
इस तरह की खबर मिलती है, 
किसी ने यात्रा पूरी कर ली, 
बहुत मुश्किल होता है, 
कुछ भी कह पाना, 
सभी दोस्तों की जो उम्र चल रही है, 
उसमें ए वाला भी सिलसिला, 
अब चल पड़ा है, 
इस वक्त, 
कुछ कर पाना संभव तो नहीं है, 
हर बार, 
सिर्फ इतनी ख्वाहिश रहती है, 
तेरे पास, 
चुपचाप खड़ा रह सकूँ,
पर ऐसा कुछ कर नहीं पाता, 
और ए बेबसी, 
कह भी नहीं पाता, 
तेरा शहर मुझसे बहुत दूर है, 
और मेरे शहर से, 
मेरा गांव बहुत दूर है, 
क्योंकि वहाँ भी, 
मैं कहाँ जा पाता हूँ, 
शहर का आदमी हूँ, 
लोगों से अपनी बात कहता हूँ, 
सुनने वालों को दास्तनें बहुत भाती हैं, 
सब यही कहते हैं 
मैं कहानियां, 
बहुत अच्छी कहता हूँ.. 
©️rajhansraju
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(2)
ताला बंद है
एक दरवाजा, 
जो शदियो से नहीं खुला,
उसके बारे में,
तमाम कहानियाँ कही जाती है,
कुछ लोग बताते है,
ए दरवाजा किसी महल में,
जाकर खुलता है,
हलाँकि उसके पीछे,
कोई इमारत,
तो नजर नहीं आती,
बस!
एक छोटी सी दीवार है,
जिसमें ए दरवाजा है,
उसमें एक बड़ा सा ताला लगा है,
यहाँ के लोग,
जो कहानी कहते हैं,
उसमें किसी राजा का जिक्र आता है,
जो बड़ा बेरहम था,
पर!
उसकी एक कमजोरी थी,
वह हर खूबसूरत चीज,
सदा के लिए,
अपने पास रखना चाहता था,
इसके लिए,
उसने,
शानदार कैदखाने बनवाए,
उनके दरवाजों पर,
रत्न जडित ताले लगवाए,
उसे खुद के अक्श से भी,
बेशुमार मुहब्बत थी,
एक कमरे में तो
सिर्फ!
आइना था,
जहाँ राजा खुद को देखता था,
और पहले जैसी शक्ल,
तलाशता रहता,
उसकी बदनसीबी
तब शुरू हुई जब,
आइने में, 
हर दिन,
कोई और आदमी,
नजर आने लगा,
जिसका जिक्र,
वह किसी से नहीं करता,
राजा जो ठहरा?
लोग हंसेगे?
कमरे में तो सिर्फ आइना है,
वह चुपचाप,
खुद को ढूंढने की नाकाम,
कोशिश करता रहा,
अकेले में आइना देखता रहा,
धीरे-धीरे उसने,
सबको आजाद कर दिया,
बस यही एक ताला,
जो अब तक बंद है
जिसकी चाभी,
उससे,
न जाने कहाँ?
गुम हो गयी,
कहते हैं वह आज भी,
उस चाभी की तलाश में है,
कैसे तमाम परछाईयों को,
खुद से आजाद कर दे,
वह हर आइने में
खुद को ढूंढता है,
थक कर बंद दरवाजे,
पर लौट आता है,
क्या पता? कब? किसको?
इसकी चाभी मिल जाए,
और ... ।
अरे अभी
कहीं
एक आइना
तो
दिखा था ..
कहीं वो
राजा ..
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Rajhans Raju
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(3)
Joker 
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हर शख्स,
बादशाह न होने का रंज, 
लिए फिर रहा हैं, 
जबकि ए इल्म, 
अब तक न हुआ, 
मोहरा कब बन गये हम, 
इस खेल को कितनी खूबी से, 
खेलता है वो, 
और अब भी, हमारा यकीन, 
खिलाड़ी हैं हम, 
जिसे जोकर समझते रहे,
सारे समझदार,
उसके मुखौटे को,
अपना मुखौटा कहते रहे,
यही सोचकर चारों तरफ, 
हसीन पर्दे लगा लिए।
लोगों की शुतुरमुर्गी,
समझदारी देखकर,
मुस्कराने लगा,
उसने कहा, 
क्यों बेवजह परेशान होते हो, 
मेरी नज़र से, 
देखो तो सही, 
कितना खूबसूरत है, 
मेरा रचा संसार। 
यहीं बैठे रहो,
बस इतना ही तो करना है, 
जो कहता हूँ, 
 वही दुहराते रहना है,
बार-बार, 
मैं तय करता हूँ, 
तुम्हें क्या चाहिए, 
ठीक से देखो, 
सब कुछ इसी दायरे में है, 
बस एक शर्त है, 
तुम्हें इतना करना है, 
कभी पर्दे के बाहर, 
नहीं देखना है, 
और अपने पास, 
आइना नहीं रखना है।
जबकि पूरे सर्कस की डोर,
जोकर के हाथ में है,
लोग हंसते-हंसते,
रोने लगे हैं, 
जिसे वो खुशी के आँसू कहते हैं, 
ऐसे ही धीरे-धीरे जोकर की, 
कब आदत हो गई, 
उसको पता नहीं चला, 
हां एक बदलाव हुआ है 
अपनी कोई, 
सोच नहीं रही, 
उसकी हरकतें, 
अब तंग नहीं करती, 
पूरा मजा आने लगा है, 
सर्कस में,
कोई अपनी जगह छोड़ता नहीं, 
जोकर की दीवानगी, 
कुछ इस तरह है, 
हर किरदार के बीच,
वह जरूरी है,
दर्शकों को सिर्फ जोकर चाहिए, 
यह उन्हीं का रचा हुआ है. 
जोकर रगरग में बह रहा है, 
उसकी खिलाफत, 
भला कैसे होगी, 
सबके सामने, 
एक आईना है, 
जिसमें खुद का चेहरा है।
जिंहे ऐतराज़ है मुखैटे से, 
वो भी तो, 
सर्कस का हिस्सा हैं। 
अब तक तो यही लगता था, 
उनका काम दर्शक बने रहना है, 
 पर! भीड़ और तालियों के बिना, 
कोई जलसा पूरा नहीं होता, 
ऊपर से जोकर, 
अच्छे करतब दिखाता है, 
तालियां लगातार बज रही हैं, 
सारा माहौल, 
जोकर के अनुकूल है, 
हर शख्स को जोकर बनना है, 
उसका मुखौटा बेहतरीन है, 
लोगों का मानना है, 
ऐसा शानदार मुखौटा, 
उन्होंने आज तक नहीं देखा। 
हर तरह के मुखौटे से,
पूरा बाजार भरा है, 
और जोकर हंस रहा है, 
बगैर किसी चेहरे के.. 
#rajhansraju 
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(4)
रोटी का बाजार 
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शहर अपने को, 
कूछ यूँ बयाॅ करता है,
बाजार सब चला रहा,
यही लगता है,
यहाँ रोटियाँ खूब बिकती है,
जो भूखे हैं,
वही दुकानों में काम करते हैं,
मगर जब ए बँटती है,
सबसे छोटा टुकड़ा,
इन्हीं को मिलता है।
वो न जाने खुद पर,
या किसी और पर,
अब भी हँस रही है
हाँ! वह चिथडों में लिपटी,
रोटी बना रही है,
हर रोटी की अपनी कीमत है,
बस मुट्ठी में,
सिक्कों की जरूरत है,
यहाँ सबके हिसाब से,
रोटियाँ बनती हैं,
जैसी चाहत हो 
वैसे ही रूप, रंग, आकार रखती हैं।
अरे हाँ! वहाँ मक्खन से,
सरोबार रोटियाँ रहती हैं,
जो थोड़ी भारी जेबों को मिलती है। 
यहाँ कुछ टेढ़ी-मेढ़ी मोटी होती हैं
पर इनमें स्वाद बहुत है,
ए हरदम भूखे, प्यासे, मेहनतकश,
लोगों के हाथ लगती हैं,
फिर जो लोग इस रोटी को,
अपनी मेहनत से हासिल करते हैं,
असल में स्वाद वाली,
तो सिर्फ, 
उन्हीं को मिलता है।
rajhansraju
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Comments

  1. शहर का आदमी हूँ,
    लोगों से अपनी बात कहता हूँ,
    सुनने वालों को दास्तनें बहुत भाती हैं,
    सब यही कहते हैं
    मैं कहानियां,
    बहुत अच्छी कहता हूँ..

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  2. हमारी जिंदगी हमारी कहानी

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