किताबों कि दुनिया

किताब
********

आज भी कुछ गूँजता है 
रह-रह कर कहीं 
बेचैन हो उठता है 
बेवजह ही  सही 
सब कुछ 
उसके लिए नया है 
क्योंकि अब तक 
कहीं कुछ देखा ही नहीं 
कैद है अपनी हदों में 
और दूसरों की सरहदें तय करता है
आदमी ऐसा ही है 
जिसने पट्टी बांध रखी है 
वही आगे-आगे चलता है। 
लोगों को भी उसी पर यकीन है 
जो कुछ देखता नहीं।। 
वह कैसे कह दे
उसे सच  से नहीं 
हसीन पर्दे से प्यार है, 
जो उसके लिए जरूरी है 
जिसमें वह खुद को छुपा लेता है। 
दिन रात उसी की फिक्र में रहता है 
जिसके बचे रहने की मियाद बहुत कम है 
उसकी रंगत भी एक जैसी नहीं रहनी, 
चाहत उसे नए पर्दे की 
हरदम रहती है। 
अब उसके साथ कुछ यूँ 
होने लगा है।  
सामने वाले, 
रंगीन पर्दे से 
परेशान रहने लगा है। 
©️RajhansRaju
*****************************
(2)

परदा

*********
कब तक बनेगा चेहरा?
जब रोशनी दूर हो आँखो से,
क्या करेगा परदा,
फिर तन्हा, मकानों मे,
खुद को पाता है,
ड़र-ड़र के, 
न जाने किससे,
चेहरा छुपाता है, 
आइने के सामने, 
परदा लेकर जाता है,
कुछ नज़र आए,
इससे पहले,
आइना ढ़क देता है..
एक खुशफहमी लिए
जीता रहता है
अच्छा है
कभी-कभी
परदे का बने रहना
इससे खुद को कोई
जवाब नहीं देना पड़ता है
©️rajhansraju
****************

**********************
(3)
*******
नींद बहुत गहरी थी
तभी किसी ने दस्तक दी
कौन हो सकता है 
बहुत समय बाद
मेरे दरवाजे पर 
किसी ने आवाज दी
मेरा नाम ले रहा था
भला इस शहर में 
मुझे कौन जानता है
वह भी बचपन वाले नाम से
कैसे कोई पहचानता है
बड़े अचरज के साथ
किसी तरह आँख खोली। 
रात पता नहीं कब 
नींद आ गई
बहुत दिनों बाद
इतना सोया था
शायद कोई सपना है
यह सोचकर आँख बंद कर ली
क्या पता ? 
सपने को मेरा ठिकाना 
पता चल गया हो
मेरे जेहन में ही 
यह दस्तक हो रही हो 
यह छूटने का सिलसिला 
कभी टूटता नहीं है 
सब समय के यात्री हैं 
कोई ठहरता कहाँ है? 
फिर चौका 
नहीं ए सपना नहीं है 
दस्तक दरवाजे पर हो रही है 
कोई मेरा ही नाम ले रहा है 
आहिस्ता से आँख खोली
कमरे में जहाँ से भी गुंजाइश थी 
सुबह की रोशनी आ रही थी 
वह रोशनदान 
जो लोहे का बना है 
जिसमें जंग लग गई है 
अपना वजूद 
संभाल नहीं पा रहा है 
वहाँ पूरब की तरफ 
रोशनी का सबसे खूबसूरत 
रास्ता बन गया है 
शहरों की अपनी एक खूबी है 
हर आदमी थोड़ी कोशिश से 
एक कमरा हासिल कर सकता है 
मकान और घर का सफर
बहुत आसान नहीं है 
ऐसे ही कुछ नींद में 
अनमना सा जगा हुआ 
दरवाजा खोलता हूँ 
हर तरफ भरपूर रोशनी है 
सामने सूरज खिलखिला रहा है 
मैं चौका अरे अब भी सुबह 
एकदम वैसे ही होती है 
मेरा नाम अब भी 
कुछ बच्चे पुकार रहे थे 
मैं वहीं ठहर गया 
ए नाम तो मेरा है 
पर मैं 
वह नहीं हूँ
©️Rajhansraju 
************
⬅️(38) Parinda
*****************
➡️(36) Fakir
 फकीर" हर हाल में मुस्कराता है 
जीने का तरीका बताता है
❤️❤️❤️
********
(37)
*******
➡️ (1) (2) (3) (4) (5) (6) (7) (8) (9) (10)
(11) (12) (13) (14) (15)
🌹🌹🌹❤️❤️❤️❤️🙏🙏🙏🌹❤️❤️🌹🌹


      

***********************
to visit other pages





***********************
to visit other pages

******************************
my facebook page 
**************************

*************************
facebook profile 
***********************

***************


***********************
to visit other pages


*********************************
my You Tube channels 
**********************
👇👇👇



**************************
my Bloggs
************************
👇👇👇👇👇



*******************************************





🌹🌹🌹❤️❤️❤️❤️🙏🙏🙏🌹❤️❤️🌹🌹

Comments

  1. सबसे अच्छे दोस्त सबसे अच्छे साथी

    ReplyDelete

Post a Comment

स्मृतियाँँ

Dastak

Gadariya

Hindu Jagriti

Darakht

Yogdan

an atheist। Hindi Poem on Atheism। Kafir

Fakir। a seeker

The Traveller। Musafir ki kahani

Kaal Chakr

The Memories Makes The Man। Smriti