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Dussehra

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रावण दहन  *******  कुछ लोग बहुत दुखी थे  खूब आलोचना कर रहे थे  क्या होना चाहिए  सबसे यही कह रहे  पर आगे बढ़कर  किसी को कोई थामता नहीं  सब उपदेश देते हैं  खुद कुछ करते नहीं  अभी जब रास्ते से   गुजर रहे थे कोई बीमार था  कोई किसी का शिकार था  सड़क किनारे बेबस लाचार था  कुछ तो कर सकते थे  उसके लिए  वह किया नहीं  अफसोस जताते रहे  दुनिया पर  इंसानियत मर गई  यह भी कहते रहे पर एक क्षण के लिए भी  मुड़कर देखा नहीं  जो गिरे थे  उनको उठाने की कोशिश नहीं की और फिर  उपदेश देने लग गए  क्या-क्या बुरा है  दिन कैसे आ गए  इंसानियत पर भरोसा  अब किसी का रहा नहीं  और अपनी शानदार  नई गाड़ी में आगे बढ़ा गए।  अनजाने में अनायास ही  वह फुटपथ पर  सोए लोगों पर चढ़ गई यह भी कोई जगह है  सोने के लिए  लोगों को अक्ल नहीं है  कैसे रहना चाहिए  सड़क है  चलने के लिए ********   ए नए रईस और उनके बच्चे  जिन्हें मालूम ही नहीं  दुनिया में और भी लोग हैं  जिनके सर पर छत नहीं  उनके बाप अमीर नहीं है  इन्हीं फुटपाथ पर  पलते और बड़े होते हैं  वह सोशल नेटवर्क पर जैसे हैं वैसे दिखते नहीं हैं फिलहाल वह अपनी धुन में खोया  बहुत जल्दी में

शिकायतनामा | shikayatnama

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 लुहार   ********** कोई उसे जिंदगी के फलसफे समझा रहा था यह कितनी कठोर, जालिम है बता रहा था सब कुछ कैसे पिस रहा है उनके हाथ में कुछ नहीं है जो हो रहा है उसकी मर्जी है वह बेफिक्र अपने काम में लगा रहा लोहा तपकर एक दम लाल हो चुका है उसे मनमाफिक आकार देना है लोहार को अपना काम आता है वह तो उसे गढ़ कर जो चाहता है वह बना देता है ©️Rajhansraju 🌹🌹❤️❤️🌹🌹 ****************** सोचता हूँ, थोड़ा, बदल जाऊँ, पर! मैं ? खुद के, आडे आ जाता हूँ। ©️Rajhansraju 🌹🌹🌹🌹 *******************'' '** अगर जरूरत कम कर ली जाए तो कुछ कम नहीं होता जो है बहुत है इसे और भी बांटा जा सकता है कोई मेरे आसपास है जो भूखा है फिर मेरे होने का मतलब क्या है कितना कुछ हासिल किया है सब मेरा है इस बात पर जोर बहुत देता है जबकि छूट जाता है सब यहीं पर कोई सामान इस सफर में ले जा सकता नहीं है फिर इतने गठ्ठर और बोझ की जरूरत क्या है यह बात हम कब से कहते सुनते आ रहे हैं जितना कम सामान होगा सफर उतना ही आसान होगा ©️Rajhansraju *********************** कहते तो यही हैं, वह कहीं ठहरता नहीं है, जबकि वक्त लम्हों का, सिलसिला है, वह लम्