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Mahakumbh Prayagraj

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  महाकुंभ तीर्थ यात्रा व्यापार, अध्यात्म, खोज या कुछ और सिर्फ स्नान भीड़ श्रद्धालु मल्लाह पुजारी पंडा चोर दलाल भिखारी दाता ग्राही सब कुछ जो सोच सकते हैं जो ढूंढ रहे हैं पा सकते हैं यहां पर निर्भर करता है आपकी दृष्टि कैसी है क्या दर्शन करना चाहते हैं या फिर क्या देखना चाहते हैं कितने गहरे हैं कितने उथले हैं उसी हिसाब से आपको सब कुछ मिल जाएगा दूर तमिलनाडु के किसी गांव से कुछ लोग चले आ रहे हैं कुछ भी तो यहां के लोगों से नहीं मिलता न भाषा न पहनावा चेहरा भी कितना भिन्न है मगर एक भाव है जो अभिन्न है हम हैं उत्तर में भी हमीं है दक्षिण में भी हमीं है पूर्व में भी हमीं है पश्चिम में भी हमीं है यहां हम होने का भाव है उसी का नाम महाकुंभ है लोगों ने कहा बहुत पैदल चलना पड़ता है बहुत दूर है एक यात्रा पूरी होने के बाद जहां ठहर जाना होता है उसके बाद भी महाकुंभ नगरी मां गंगा के दर्शन करने के लिए काफी पैदल चलना पड़ता है पर यह पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण से आए लोग जो पहली बार प्रयागराज आए हैं उन्हें यही लगता है कि अब यह अवसर 12 साल बाद आएगा फिर इस पावन धरती पर महाकुंभ लगेगा उस वक्त मन और शरीर की स्थिति...