काशी बनारस वाराणसी | Banaras
बनारस की पचपन गलियां ********** (1) इन पचपन गलियों को जब भी जहाँ से देखता हूँ ऐसा लगता है हर गली से मैं गुजरा हूँ या फिर ए गलियां मुझमें गुजर रही हैं उस गली में जो जलेबी की दुकान है बहुत मीठी है लाख कोशिशों के बाद भी जिंदगी सीधी सड़क जैसी नहीं होती, वह इन्हीं किसी गली में रह-रह के ठहर जाती है अभी इस गली के मोड़ से थोड़ी सी मुलाकात कर लें, पता नहीं लौटकर आना कब हो? हर गली का एक नाम और नंबर है एकदम उम्र की तरह जिसकी मियाद है फिर आगे बढ़ जाना है जो गली पीछे छूट गई वहां मेरा बचपन अभी वैसे ही ठहरा हुआ है बगैर चश्मे के भी उसे देख लेता हूँ मैं कितना शरारती था सोचकर हंस देता हूं यही वजह है नाती पोतों को डाटता नहीं हूँ यही उस गली को जीने का वक्त है गलियों के चक्कर लगाने हैं इश्क किसी चौखट पर न जाने कब दस्तक देने लगे हर पल एक जगह वह ठहरने लगे किसी शायर को खूब पढ़ता है गुलाब संभाल कर किताबों में रखता है वह समझता है लोग अनजान हैं जबकि जिस गली में इस समय वह कब से खड़ा है उसे अंदाजा नहीं है जबकि नुक्कड़ की दुकान पर उसी के चर्चे हैं यूँ ही हर शख़्स किसी न किसी