Posts

Showing posts with the label तलाश

काशी बनारस वाराणसी | Banaras

Image
बनारस की पचपन गलियां  ********** (1)  इन पचपन गलियों को  जब भी जहाँ से देखता हूँ  ऐसा लगता है हर गली से  मैं गुजरा हूँ या फिर ए गलियां मुझमें गुजर रही हैं  उस गली में जो जलेबी की दुकान है  बहुत मीठी है  लाख कोशिशों के बाद भी  जिंदगी सीधी सड़क जैसी नहीं होती,  वह इन्हीं किसी गली में  रह-रह के ठहर जाती है  अभी इस गली के मोड़ से  थोड़ी सी मुलाकात कर लें,  पता नहीं लौटकर आना कब हो?  हर गली का एक नाम और नंबर है  एकदम उम्र की तरह जिसकी मियाद है  फिर आगे बढ़ जाना है जो गली पीछे छूट गई  वहां मेरा बचपन  अभी वैसे ही ठहरा हुआ है  बगैर चश्मे के भी  उसे देख लेता हूँ  मैं कितना शरारती था  सोचकर हंस देता हूं  यही वजह है  नाती पोतों को डाटता नहीं हूँ  यही उस गली को जीने का वक्त है  गलियों के चक्कर लगाने हैं  इश्क किसी चौखट पर  न जाने कब दस्तक देने लगे  हर पल एक जगह वह ठहरने लगे  किसी शायर को खूब पढ़ता है  गुलाब संभाल कर किताबों में रखता है  वह समझता है लोग अनजान हैं  जबकि जिस गली में  इस समय वह कब से खड़ा है  उसे अंदाजा नहीं है  जबकि नुक्कड़ की दुकान पर  उसी के चर्चे हैं  यूँ ही हर शख़्स  किसी न किसी

हिन्दी साहित्य | Crisis of identity

Image
     खिलौने वाला *********** बहुत दिन बाद लौट कर आया शहर तो अपना ही है  पर अब बदल गया है  हर तरफ रंगीन मुखौटे नजर आते हैं  सब एक दूसरे से बेहतरीन होने की,  कोशिश कर रहे हैं,  पर यह तय कौन करे कौन सा मुखौटा सबसे हसीन है  उसे तो उन चेहरों की तलाश है  जिसे वह बहुत साल पहले,  छोड़ गया था  अब कोई पहचान में क्यों नहीं आता  किसी जगह कोई आईना,   नजर नहीं आता  हर आदमी खरीदने बेचने में लगा है  दुकानदार की तो खूबी यही है  उसे मुखौटा बेचना हैं  इसके लिए जरूरी है   कहीं कोई आईना न हो,  क्योंकि अक्स नजर आते ही  मुखौटे की जरूरत नहीं रह जाएगी  हर शख्स अपने चेहरे से,  खफा नजर आएगा,  मैं भी चेहरों की तलाश में,  कहीं मुखौटा तो नहीं बन गया  आईना देखे एक अरसा हो गया  मेरा चेहरा बचा है कि नहीं  पता नहीं चलता  ऐसे लोग अब भी हंसते हैं  मेरा चेहरा देखकर,  यही कहते हैं इसके जैसा मुखौटा,  कहीं देखा नहीं,  ऐसा कहीं दूसरा कोई बनाता नहीं यही वाला मुखौटा चाहिए  ऐसे ही परेशान नजर आते हैं  लोग मुझे देखकर वह जिस बात पर हंसते,  उन्हें सुनकर मैं रोता हूं वह जिस बात पर रोते हैं  उस पर मुझे हंसी आ जाती है  जरूरी क्या है?