जय सियाराम

अग्नि परीक्षा 

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ए भी तो सच है, 
बनवास तो राम को हुआ,
पर! बेघर हमेशा सीता हुई,
चाहे वह राधा बनी,
या फिर मीरा हुई,
आग में गुजरना पड़ा,
विष का प्याला उसने पिया,
आँच राम को न लग जाए कहीं,
ए समझकर,
हर काल में जलती रही,
सदा मर्यादा पुरुषोत्तम रहें वो,
सब तजके भी,
हर दम,
राम-राम कहती रही।
पर क्या मिला इसका सिला?
अब तो यही लगता है,
उस वक्त बात मानकर,
तुमने अच्छा नहीं किया,
काश!
अग्नि परीक्षा से इंकार कर देती,
या फिर दोनों भाइयों से कहती,
आओ इस आग से तीनों गुजरते हैं,
देखते हैं फिर भला?
कितने कुंदन निकलते हैं,
सवाल जब राम पर नहीं उठा,
फिर सीता पर क्यों उठे?
जो लांक्षन किसी स्त्री पर लगे,
उसीसे भला?
कोई पुरुष क्यों बचे?
जब!
वो भी तो हाड मांस का है,
और देह धारण करता हो,
फिर जिस्मानी दोष से,
कैसे बच सकता है?
अच्छा होता कि कह देते,
तुम इंसान नहीं हो,
और सीता भी कोई आम औरत नहीं है,
पर तुमको तो मर्यादा पुरुषोत्तम बनना था,
जिसके लिए सब कुछ,
सीता को सहना था।
वो चुप रहकर  सहने वाली सीता,
सबको भाती है,
घरों में आज भी सबके,
तुम्हारे साथ पूजी जाती है।
अब भी वही आदर्श मानते हैं,
अपनी आवाज में बोलने वाली औरत,
किसी को नहीं भाती है,
चुप कराने के लिए ही,
आज भी तेरा ही जिक्र होता है,
अंतर केवल इतना है,
अग्नि परीक्षा,
सिर्फ एक बार नहीं होती,
हर घर, हर मोड़ पर रावण रहता है,
अब तुम्ही बताओ,
आग और रावण से कोई कितना भागे,
जब खुद लंका में रहते हों,
और चारों तरफ गहरी खाई हो,
फिर कितने राम आएँगे?
कितनी सीता को तारेंगे?
फिर सबकी अग्नि परीक्षा भी लेंगे?
युगों से ऐसे ही,
कब तक मैं,
जलती मरती रहूँगी?
कभी तुम्हारे साथ,
नहीं तो अकेले ही वनवास काटूँगी,
तुम मौन रहोगे,
झूठी मर्यादा संग, खुद को साधोगे,
मै फिर सच को थामे तन्हा,
किसी आग से गुजरुँगी।
अब बहुत हो चुका?
थककर तुमसे,
लो आज मै ए कहती हूँ,
अब कभी कोई परीक्षा ना दूँगी,
इस रावण की पूरी सेना से,
मै तन्हा लड लूँगी,
आवाज मेरी गूँजेगी,
मै हुंकार भरूँगी,
सोचो तब क्या होगा?
भला कोई आदमी?
किसी औरत से लड़ सकता है क्या?
मै कहती हूँ कि "मै हूँ"
जैसे कि "तुम हो"
आओ,
अग्नि परीक्षा साथ में देंगे,
ए मानो तो हाथ दो,
साथ-साथ 
हम चलते हैं...
©️rajhansraju
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(2)
अपनी कहानी 
🌻🌻🌻🌻🌻
कौन सा मुकाम आखिरी है 
कौन सी बात अंतिम 
यह भला 
कैसे पता चल सकता है 
अगले पल क्या होगा 
बंजारों का कोई 
ठिकाना होता नहीं है 
वह रोज वादे करता है 
कुछ ऐसे रहेगा 
ऐसा बनेगा 
हर बात कल पर छोड़ देता है 
और बेहतर हो जाएगा 
इसी वादे के साथ 
आगे बढ़ने की 
मतलब टालने की 
एक जुगत लगाई है 
जबकि हर पल 
जो इस वक्त में है 
वही आखिरी है 
क्योंकि इस सफर में 
कभी कोई लौटकर नहीं आता 
जो इस पल हुआ 
वह दुबारा नहीं हो सकता 
वक्त के रास्ते में 
वापसी की कोई गुंजाइश नहीं है 
स्मृतियों का एक सिलसिला है 
उसी की गठरी 
ताउम्र बांधे रहता है 
ऐसा होता तो 
ऐसा होता है 
वैसा होता तो
वैसा होता 
पर कुछ भी 
ऐसा वैसा नहीं होता 
जो जैसा आज है 
वैसा ही रहता है 
जो भी दिखाई पड़ता है 
वक्त की ही निशानी है 
इसी आज मैं सदा जीना है 
अब कहने और सुनने को 
तो बहुत कुछ रह जाता है 
मगर पास में 
जो आज है 
बस उतना ही रह जाता है 
ऐसे ही चलते रहना है 
वक्त कुछ कहता नहीं है 
मगर निशानियां 
भरपूर छोड़ जाता है। 
जो उसी वक्त में 
उसी दायरे में ठहर जाती है। 
उसकी परछाई 
वहां से गुजरने वाले 
हर शख्स पर पड़ती रहती है 
यह परछाइयां 
हमारी कहानी बन जाती है 
जो हर शख़्स के पास 
एकदम अलग तरह से पहुंचती है 
उसे लगता है 
वही पहला आदमी है 
जिसने इस तरह देखा 
और कहा है 
जबकि वह वक्त के 
किसी मुकाम पर
बहुत देर बाद पहुंचा है 
जहाँ से न जाने 
कितने काफिले गुजर चुके हैं 
इसमें उसकी कोई गलती नहीं है 
अब फासला इतना ज्यादा 
हो गया है 
कोई और यहाँ से 
गुजरा होगा 
ऐसा उसे लगता नहीं है 
जबकि वह परछाई में बैठा है 
वक्त का यह दरख़्त 
किसी ने रोपा होगा 
जो चुपचाप 
अपनी कहानी कह रहा है 
उसका मौन समझना है 
पर फुर्सत किसे है 
किसी और की सुने
वह अपनी कहानी गढ़ता रहता है 
वक्त के सफर की दास्तान 
एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक
ऐसे ही पहुंचती रहती है
जबकि न जाने 
कितने काफिले सफर पर निकले हैं 
वह हमसे पास हैं कि दूर 
इसका अंदाजा नहीं लग पाता
वह यूँ ही 
अपनी कहानियां गढ़ता है 
किसी रास्ते पर चलता रहता है
मतलब इससे पहले भी 
यहाँ से लोग गुजर चुके हैं 
यह बात समझ ले 
तूँ पहला आदमी नहीं है 
©️Rajhansraju 
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(३)

समय नहीं है 

एक दिन 
थोड़ा वक्त लेकर आना 
किसी अनजानी जगह चलेंगे 
जहाँ कोई पहचानता न हो
किसी पगडंडी पर
कुछ दूर साथ चलें
और आहिस्ता से गुम हो जाएं
खामोश नदी के 
किसी किनारे बैठे रहे 
एक पल जो हमारा हो 
उसी में सदियां गुजर जाएं
इसी ख्वाहिश में 
नदी के पास चला आता हूँ 
वक्त न जाने कब? 
वह लम्हा 
हमारे सुपुर्द कर दे
और नदी हमसे बात करने लगे
बचपन से यही सुनता आया हूँ 
चाँद वाली बुढ़िया क्या पता 
किसी दिन नदी किनारे मिल जाये 
वैसे भी नदी की उम्र बहुत ज्यादा है 
हो सकता है 
दोनों पुरानी सखी हों
और मुझे भी अपने किनारे पर 
रोज देखती हों
मैं नदी से बात करना चाहता हूँ 
वह मुसाफिर है कि रास्ता
बस इतना ही तो
जानना चाहता हूँ 
कहीं ऐसा तो नहीं है 
वह भी गुम हो गई है 
अपने किनारे की तलाश में 
आज तक उसे
अपना वह लम्हा नहीं मिला 
जिसमें सदियां गुजर जाती। 
वह एकदम शांत है
मेरे अंदर का ज्वार भाटा 
मुझे नदी तक ले आता है 
यह बेगाना शख़्स 
मेरे पास हर वक्त रहता है 
कहता है तेरा वजूद हूँ 
तुझसे दूर नहीं जा सकता 
चलो साथ रहते हैं 
एक दूसरे को समझते हैं 
जरा गौर से देखो 
नदी तुम हो
वह तुम्हारे अंदर 
बह रही है 
©️Rajhansraju 
********

(4)

मेरे राम 

मन के अंधियारे 
अब तो भागे 
भोर भई मेरे राम जगाये 
देखो राम पधारे हैं 
ऐसे ही अब का सोचे
मीच आंख दर्शन कर ले 
प्रभु आज यहां पधारे हैं 
तेरे जैसा रूप धरा है 
जो तेरे मन को भाए है 
आंगन में देखो कान्हा
कैसे खेल रहा है
हाथ में जिसके जग है सारा 
आंचल में वो छुप रहा है 
जिद पर अपने अड़ा पड़ा है 
बच्चों की मनुहार यही है 
घर जिससे सज जाता है 
एक खिलौना मिलते ही 
चेहरा खिल जाता है 
चंदा आ गया हाथों में 
देख उसको लगता है 
राम समाए कड़कड़ में 
हर तिनका पूरा लगता है 
मन का अंधियारा मिट जाए 
सब राम-राम हो जाए 
आंख खुले राम हो सामने 
देखें अपने राम को 
राम राम कहते कहते 
यात्री हैं हम राम के 
राह मेरी मंजिल मेरी 
सब में राम बसते हैं 
मुझमें राम तुझमें राम 
जग सारा है राम का 
जो भटके और अटके हैं 
यह मर्जी है राम की 
रावण से 
परिचय जरूरी है संसार का 
जब तेरे मन में सिंहासन पर 
बैठा रावण है 
युद्ध नया नहीं है 
अंदर का संघर्ष है 
राम को वनवास दिया है 
रावण को लंका सोने की 
मन के अंदर सजी है लंका 
अवध का कोई नाम नहीं 
खोए हैं दसकंधर में 
अपने शीश की परवाह नहीं 
रावण गान करने वालों की 
कमी नहीं है संसार में 
अब आज भी उसके कुछ महारथी 
हम में ही मौजूद हैं 
जो रावण को बेचारा विक्टिम 
साबित करते हैं 
चलो माना तुम रावण दल से हो 
लोकतंत्र है 
और तुमको भी अपने मत का 
पूरा हक है 
एक गुजारिश है 
कथा पूरी कहा करो 
राम को क्यों आना पड़ा 
यह भी बता दिया करो 
नहीं तो रामदल की भी 
कुछ बात सुन लिया करो 
खैर यह रावण भी तो 
अपना ही है 
हम सब ने 
इसको खूब पाला-पोसा है 
तभी तो आज तक वह
हम सब में यह जिंदा है 
हर साल जलाते हैं 
पर अंदर जिंदा रखते हैं 
वह भला मरेगा कैसे? 
जिसने अमृत पी रखा है  
उसका अंत 
सिर्फ राम कर सकते हैं 
जिन्हें तुमने वनवास दिया है 
जो हर पल दस्तक देते हैं 
और तुम नजरअंदाज करते रहते हो 
सोचो जब भी कुछ गलत करते हो 
एक आवाज जोर से आती है 
अनसुना करके 
तुम लंका चल देते हो 
तुम्हें सोने का सिंहासन चाहिए 
रावण ही तो बनना है 
फिर शिकायत क्यों करते हो 
यह दुनिया बहुत बुरी है 
जबकि इस को काला करने में 
तेरा भी तो हिस्सा है 
काश दस्तक सुन पाते 
उस आवाज पर 
वहीं ठहर जाते 
पता नहीं 
तुम कितना राम बन पाते 
पर रावण तो हरगिज़ नहीं रहते 
अब जग जाओ 
यह दिन वही है 
रावण को मरना है 
रामलीला में 
आज 
इसी की प्रतीक्षा है 
जबकि सबके अंदर रावण है 
असल में वही समस्या है 
अब पुतला उसका जल रहा है 
राम राम गूंज रहा है
 अंदर रावण हंस रहा है 
वह भी तो राम राम ही कहता है 
सबसे ज्यादा अधरों पर उसके 
यही शब्द रहता है 
मुक्ति की खोज में 
कब से भटक रहा है 
अमृत पीकर ने मरने को 
अभिशापित है 
रामदुलारे जा बैठे हैं 
रावण के दल में 
जबकि राम दूत बनकर उनको 
लंका दहन करना है 
तुम ही राम हो यह जानो 
आंख खोलो खुद को पहचानो 
यह रावण भी तुम ही हो 
जिससे तुमको लड़ना है 
अब राम नाम की जय बोलो 
सब राम राम हो जाओ
जय सियाराम 
जय जय सियाराम
©️Rajhansraju 
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लूटेरा      

अगली सुबह पर यकीं करके, 
अपनी राह, 
बिना शिकवा चलते रहे, 
अबकी बार, 
चलो सब ठीक हो जाएगा, 
यह सोचकर, 
पिछला भूलकर किसी तरह उठे, 
फिर चलने लगे, 
और.. 
हर बार की तरह, 
इस बार भी कारवां लुटा, 
हम चुपचाप देखते रहे, 
अब इस यकीं का क्या करें? 
किसी काम का यह लगता नहीं। 
रहबर के बारे में किससे क्या कहें? 
चेहरे और मुखौटे का फर्क 
पता चलता नहीं, 
किसके पीछे कौन है? 
और कौन शोर करता है, 
उसकी आवाज तेज है, 
चोर चोर कहता है, 
जबकि हमारे चारों तरफ, 
एक मजबूत घेरा है, 
कौन किसको किसके आगे, 
लेकर चल रहा, 
इस गोले को देखकर, 
समझ में आता नहीं, 
हो रहा है जो सच में, 
कमबख्त नजर आता नहीं.. 
हर शख्स, 
बस अपने हिस्से के इंतजार में 
कारवां पर आँख गड़ाए बैठा है
©️Rajhansraju 








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