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israel hamas war

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युद्ध और बेबसी   जब भी युद्ध हुआ  सबने यही दावा किया  वह सही हैं  क्योंकि यह लड़ाई  वह अपनी पहचान बताने  बचाने के लिए लड़ रहे हैं  जबकि यह अपनी-अपनी  बर्बरता-क्रूरता, निर्ममता जताने का मौका है भला कैसे छोड़ दे  कोई अपनी फितरत  उसने बताया वह अब भी  इंसान नहीं बन पाया है  वह जानवरों से भी बद्तर है  क्योंकि जानवर तो जंगल में रहते हैं  और जंगल के अपने नियम है  वहां जिंदा रहने की कुछ शर्त है  पर हमने तो अपने अंदर  एक अंधेरा जंगल सहेज रखा है  जिसमें कोई नियम नहीं है  हम कौन से जानवर हैं  आज तक पता नहीं है  शिकार करते हैं  होते हैं।  पर इंसान जब इंसान को मारता है  तो वह शिकार नहीं करता है  वह अपनी हदें बताता है  वह इंसान नहीं है।  जानवर कहलाने लायक भी नहीं  हालांकि हमारे पास शब्द है  भावनाओं कि अभिव्यक्ति के तरीके है  मगर किस काम के  जब सिर्फ बंदूक  गोला बारूद से काम होता हो  यही सच है  हम ऐसे ही हैं  बस सच स्वीकार करने की  सामर्थ्य नहीं है  हम क्यों लड़ रहे हैं  इस बात का जो तर्क देते हैं  वह पूरा सच नहीं है  दुनिया का कोई भी कोना हो  युद्ध हकीकत है  सबसे ज्यादा वही लोग मारे जाते हैं  जिनकी

हिन्दी काव्य | Protest and democracy

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 लोकतंत्र है भाई लोकतंत्र में,  चुनकर आने वाला,  बादशाह बनकर रहता है? हलांकि हर पांच साल पर,  इम्तिहान होता है, खुद ही तो चुना है,  फिर क्यों इतना,  बेकरार होता है  चुनाव आने वाला है  जो भी चुना जाएगा  उसे भी कोई न कोई गरियाएगा,  कोई जाप करेगा  कोई तानाशाह कहेगा  अपना तो हाल  अब भी वही है  जिस पार्टी का झंडा लेकर जिस नेता के पीछे चले थे,  उसने बस यह काम किया  एक मौका मिलते ही  अच्छा सौदा कर लिया  जिसे हमने वोट दिया था  वह पार्टी भी अब नहीं रही।  अभी-अभी एकदम,  नया नेता मार्केट में आया है  हर तरह का डर दिखाता है  मोटा असामी लगता है  खूब खाता और खिलाता है  धरम-जाति वाला,  इमोशनल कार्ड भी रखता है  जयकारा लग रहा है  नेता आगे बढ़ रहा है  उस पर कोई सवाल नहीं है  नेता जी की संपत्ति चौतरफा बढ़ रही है। आँख मूंद कर जनता जिंदाबाद कर रही है  नेता अपना बड़ा शातिर है  पूरी भीड़ में उसके घर का कोई नहीं है,  बेटा-बेटी विदेश में है इसी चंदे से पल रहे हैं  युवा महीनों से आंदोलित हैं  स्कूल कॉलेज बंद पड़े हैं  बच्चों के भी बड़े मजे हैं। डंडा लेकर निकल पड़े हैं  किसी भी चौक चौराहे पर  जितने चाहे पत्थर मार