Parinda

परिंदा

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किसमें उसकी बेहतरी है  
फैसले का ऐलान कर दिया 
उसके चारों तरफ 
हर चीज सुनहरा शानदार कर दिया। 
वह समझता है,
दिलोजान से मरता है, 
यही कहता रहा, 
सबसे उसके बारे में। 
जरूरत की हर चीज, 
बेशुमार भर दिया, 
हर कोने में, 
बस एक शर्त है, 
इस मुहब्बत में, 
उसे बोलनी है, 
कोई और जुबान। 
शुरू में थोड़ी तकलीफ हुई, 
पर! वक्त के साथ सीख लिया, 
कहे हुए को दुहराना बार-बार, 
सभी खुश होते हैं, 
सुनकर उसकी आवाज, 
जबकि उसे मालूम नहीं है, 
वह क्या कह रहा है, 
जिसे सुनकर खुश हो रहे हैं, 
इतना लोग आज, 
परिंदे से प्यार जताने का, 
ए नायाब तरीका है 
उसके लिए छोटा सा, 
खूबसूरत पिंजरा बनाना है, 
बस इसकी छोटी सी कीमत है, 
जो परिंदा चुकाता है, 
उससे अनंत आकाश, 
छूट जाता है, 
और सदा के लिए, 
पिंजरे का हो जाता है, 
जहाँ परिंदा होने का एहसास, 
धीरे-धीरे खत्म हो जाता है 
पंख की ताकत, 
उड़ान, 
हौसला आसमान नाप लेने की, 
अब उसमें बचती नहीं है, 
उसकी पूरी कायनात, 
पिंजरे के इर्द-गिर्द सिमट जाती है, 
ए एकतरफा मोहब्बत बड़ी जालिम है 
जिसकी कीमत 
सिर्फ परिंदे को, 
उड़ान खोकर चुकानी है। 
तो जो दावा करते हैं, 
प्यार का परिंदे से, 
कोई पिंजरा क्यों रखें?
अपने घरों में, 
आजाद रहने दो, 
आसमान के, 
खूबसूरत रंगो को..
©️RAJHANS RAJU
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आजाद परिंदा

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ओ परिंदे यूँ बैठा सोचे क्यों?
पंखा है तेरे उड़ने को,
आसमान है तेरा रे,
फिकर करे क्यों राहों की,
कांटो से डरना क्या,
कोई पिंजरा तुझको,
कब तक रोके,
जब तुझको उड़ना आता है,
पंख है तेरे आसमानी,
सब कुछ यहां है माटी का,
ओ परिंदे यूँ बैठा सोचे क्या,
तूँ है मुसाफिर,
बस चलना तेरा काम है,
दो बातें हो गई लोगों से,
इतना भावुक होना क्या?
चलते समय,
ऐसे यूँ उदास रहना,
तेरी फितरत में नहीं,
तुझको तो वैसे भी,
कहीं रुककर करना क्या?
तूँ तो है,
वक्त का परिंदा,
कहाँ ठहरना आता है,
हर शख़्स को तूँ ही,
सीख देता फिरता है,
 कहीं कुछ पल आराम किया,
 उसको अपना नहीं समझना है,
कुछ याद संजो के,
कुछ बात भुला के,
फिर आगे चलना है,
आसमान है राह तेरी,
तुझको उड़ते रहना है,
ओ परिंदे....
©️rajhansraju
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इश्क के चर्चे

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जिनका घर आसमान है,
उनको पिंजरे में रखना चाहते हैं,
वो आजादी और इश्क की बातें,
फिर सुनहरे पिंजरे
और रत्न जड़ित ताले,
वक्त खूब गुजरता है उनका,
ऐसे ही तमाम चर्चों में,
जबकि रहते हैं खुद
न जाने कितनी बंदिशों में,
जो उड़ते और बहते हैं,
उनसे मोहब्बत बेपनाह कर लो,
तुम आजाद हो मर्जी तुम्हारी है,
पर ए भी तो समझ लो,
हवा और पानी भला कितनी देर,
किसी घर में ठहरते हैं,
वो जहाँ के हैं,
वहीं रहते हैं,
धरती से आसमां तक,
हर कहीं पर है,
मुठ्ठी खोल कर देख,
अभी यहीं पर है
©️Rajhansraju
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➡️((37) Kitab
सामने "रंगीन पर्दा" हो तो
 कुछ और नजर कहाँ आता है
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Comments

  1. उड़ाने के लिए पिंजरे का मोह छोड़ना पड़ता है

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