Astha ki kalam se

।। आस्था की कलम से ।। 
आप इस पन्ने पर जिन अनुभूतियों से गुजरने वाले हैं। उसकी कलमकार हैं "आस्था मिश्रा" (Astha Mishra) जो कि  University of Allahabad, Prayagraj से MSc in Zoology हैं। एक बात और आस्था बिना खुशी के पूरी नहीं होती 🌷🌷 👇👇


Diary लिखना खुद को संजोने का एक बेहतरीन तरीका है और वह कुछ कविता जैसा बन पड़े तो, उसके क्या कहने। जब किसी शख़्स को इस कारीगरी में अपनी अनुभूति होने लगती है तब हर पन्ने पर बिखरे, प्रत्येक शब्द से खुद से जोड़ लेता है, उसी वक्त वह रचना जीवंत हो उठती है। वैसे भी जीवन की विडंबनाएं तो एक जैसी होती हैं सिर्फ़ आदमी बदलता है। एक कलमकार उन्हीं विडम्बनाओं को हसीन शब्दों में पिरो देता है। तो आइये "आस्था की कलम से" जो कलमकारी हुई है उसी से परिचित होते हैं..


"सच्चाई"
***********
जन्म कहीं दुख, 
कहीं सुख का माहौल, 
लेकर आया था,,
किसी ने महीनों इंतजार के बाद, 
अपना अंश पाया था,
तो कहीं दुनिया के भेद ने, 
अपना मुंह दिखाया था,
कुछ बड़े होते ही, 
दुनिया के दर्द ने, 
मेरी तरफ अपना, 
पहला कदम बढ़ाया था,,
वह दर्द भी शायद कुछ अजीब था,,
जिसे हमारे पूर्वजों ने, 
हमारे लिए बनाया था,
संस्कृति, परंपरा, मर्यादा, सभ्यता, 
कुछ ऐसे शब्दों से हमें बांधा था,,
छम-छम करती हुई, 
लाल जोड़े घुंघट किए हुए,
एक सपने ने सभी को लुभाया था,,
शायद! सबके मन में,
एक ख्याल आया था, 
वह चमकती हुई पोशाक, 
हमारी ही संस्कृति है,,
इसीलिए सब ने उसे अपनाया था,,
फिर कुछ ऐसे ही, 
निरंतर हमें बांधा था,,
साड़ी कपड़े गहने घुंघट, 
तमाम चीजों को, 
परंपरा और संस्कृति कहकर, 
हम से जोड़ा था,,
बढ़ते हुए कदमों को रोका था,,
झुकना और डरना सिखाया था,,
शायद कुछ ऐसी ही सच्चाईयो ने,
इन्हें समाज में लाया था,,
थोड़े बड़े होते ही, 
जिंदगी भर के दर्द को, 
हमें समझाया था,
कहीं जेवरों से तुलना होती थी, 
तो कहीं पहनने के पहले, 
दर्द महसूस होता था,,
शरीर में कंपकंपी सी होती थी, 
एक बात हमेशा चुभती थी, 
मैं ही क्यों???
पता चला! अब मैं बड़ी हो गई हूँ, 
यह एहसास मन में, 
मन में हजार सवाल ले आता हैं, 
अपना ही घर, 
पराया लगने लगता है, 
बाबुल का आंगन है, 
समझ आने लगता है,
किसी अनजान का सपना, 
फिर मन में आने लगता है, 
फिर कुछ दिन, 
कुछ महीने, 
कुछ सालों बाद, 
यह सब एक अनोखे, 
सपने सा लगता है,,
एक अनजान सी जगह में, 
मैं बिल्कुल डेरी घबराई सी रहती हूं,,
तो वही कोई, 
मेरे प्यार की आस में, 
खोया सा रहता है,,
सालों बाद मेरा, 
फिर एक जन्म होता है,,
मुझे मेरा अंश मिलता है,,
मैं फिर से वही जिंदगी जीती हूं,,
उसकी आंखों से दुनिया देखती हूं,,
ना खोने का डर, 
ना पाने की आस, 
अपना सब कुछ लुटा देती हूँ, 
एक लड़की से एक बेटी,
एक बेटी से एक बीबी, 
फिर एक माँ बनती हूँ, 
तमाम रिश्तो में बंधती हूँ, 
सारा कष्ट हंस कर सहती हूँ, 
उससे ज्यादा, 
सहने की क्षमता रखती हूँ, 
इसीलिए समाज में, 
हर पल खिलती हूँ, 
और खुद में खुश रहती हूं।।
आस्था मिश्रा
11/1/2013
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Sangam
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संगम
********
वरसो इंतजार के बाद,
आज यह पावन दिन आया है,,
हर तरफ एक उत्साह, 
उमंग सा छाया है,,
लोगों ने हर दिन बहुत, 
जतन से बिताया है,,
गंगा यमुना सरस्वती, 
ने हम सभी को लुभाया है,,
एक अच्छी सी महक, 
दिल को भाया है,
उसने बार-बार, 
अपने पावन तट पर, 
हमें बुलाया है
Astha Mishra
21/12/12
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"दामिनी का दमन" - 1
******'*********
आज शायद फिर मैं, 
बंद रही हूं,
कंधे से कंधा मिलाकर, 
साथ चलने का वादा था,,
एक दूसरे के सुख दुख में, 
खड़े रहने का वादा था,,
आज शायद वह वादा, 
टूटता दिख रहा था,
विश्व के कोने से लेकर, 
भारत की राजधानी तक, 
साथ रहने का वादा था,,
अस्पताल के बिस्तर से, 
लेकर राष्ट्रपति भवन तक, 
एक संग्राम सा नजर आता था,,
हजारों की भीड़ रहती थी,,
देखते ही देखते, 
सैलाब उमड़ जाता था,,
जीने की आस थी, 
मन में 
पर! 
दुनिया का डर, 
हमेशा खाता था,,
कुछ उसी के जैसों ने, 
मुझसे कई वादे किए थे,
वह अनजान चेहरे 
"वीरान सड़क
"खाली बस"
मेरे दिल को दहलाता था.. 
चिल्लाई बहुत थी,
पर! शायद कोई सुन नहीं रहा था, 
ढेरों लोग आते जाते थे,,
मुझे देख कुछ कह जाते थे,,
पर कोई मेरे पास ना आता था....
..
बहुत दुख आज भी
ना जाने कितनी दामिनियों का,
यूँ ही दमन हो रहा है..

कलमकार: आस्था मिश्रा 
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"दामिनी का दमन"- 2
********************'
दुनिया की सच्चाई से अनजान,,
अपने परिवार अपने दोस्तों के साथ,,
बहुत खुश रहती थी, 
,,हमेशा चहका करती थी,
घूमा करती थी,, 
मस्तियां किया करती थी,,
किसी के प्यार की आस रहा करती थी,,
तो कभी अपने सपनों के, 
महल बनाया करती थी,,
ना जाने किसकी नजर लगी, 
सारी खुशियां, 
देखते ही देखते बिखर गई,,
हंसते हंसते रो पड़ी,,
शायद जिंदगी की दास्तां, 
कुछ अधूरी सी रह गई,,
कहीं किसी के प्यार में, 
खुद को डुबोने का सपना, 
टूट सा गया,,
जिंदगी के मोड़ ने, 
मुझे कुछ ऐसी जगह लाया ,,
जहां मेरा अपना कोई ना था,,
आंख खुली तो सुनसान जगह पर,,
एक मेला सा नजर आया, 
जैसे दुनिया में, 
एक नया अनोखा जानवर आया था,
सभी की कुछ अजीब सी, 
नजरों ने मुझे रुलाया था,,
जब मुझे खुद का, 
ध्यान आया तो शायद मैं..........
......
......
.....
......
खुद को खो चुकी थी,,
सब की आवाज ने, 
मुझे वापस लाया था,,
सभी की आवाज ने, 
एक हिम्मत आत्मविश्वास, 
जीने की आस को जगाया था,,
We want justice के नारे ने, 
पूरी दुनिया को हिलाया था,,
शायद जिंदगी की सच्चाई ने, 
मुझे अपना चेहरा दिखाया था,,
और लड़की होने का कष्ट, 
हर पल खाया था।।
आस्था मिश्रा
27/12/12
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काल चक्र 
****'*******
समय चक्र कितना लंबा होता है?
घुमा फिरा के, 
एक अजीब अनकहे, 
अनसुने से मझधार पर, 
ला खड़ा करता है,,
यह समय भी, 
ना जाने क्यों. 
ऐसा होता है??
चाह कर भी, 
ना हो पाना, 
ना चाह कर भी हो जाना,
यह समय ही क्यों, 
निर्धारित करता है,
आखिर समय चक्र, 
इतना लंबा क्यों होता है?
By-Astha Mishra 
12/6/2012
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जन्म देने की खुशी 
*********'*****
तुझको पाने की खुशी,,
तेरे आने की आस में, 
सब विसराने की खुशी,
तेरी चाह में, 
खुद को भुलाने की खुशी,,
तेरे मुंह से "पापा"
शब्द कहे जाने की खुशी,
तेरे पास आने की खुशी,,
वह मेरी गोद में बैठ, 
खिलखिलाने की खुशी,,
वो छत और बिस्तर से, 
गिरने के बाद "आंसू" 
उन आंसुओं को, 
अपनी गोद में बिठा कर, 
अपने हाथों से पोछने की खुशी,,
उन आंसुओं को देख कर, 
मन में एक बात आती थी,,
इन आंसुओं को, 
यूँ न बहाया कर,,
किसी आंगन में, 
ऐसे ही छोड़ जाने का दुख ....
Astha Mishra
17/6/2012
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My father
*************'' 
मेरे पापा 
************
Father's day special
वह कई सालों बाद,
कई मन्नतो बाद,
मेरे घर ,मेरी चौखट, मेरे आंगन में,
मेरी किलकारियों का गूंजना,,
शायद उस एक पल में,,
मेरे मां पापा,,
मेरे परिवार ने अपनी सारी जिंदगी,
सारी खुशी का अनुभव कर लिया था,
उनकी गोद में बैठ खिलखिलाना,,
उनके कंधे पर सर रखकर रोना,
वह मेरी छोटी सी खुशी में,
मेरे पापा को खूब सारी खुशियां मिलना,
कुछ ऐसे हैं मेरे पापा,,
मेरी जिद पर उनका मुस्कुराना,,
मेरी हर ज़िद को, 
मुस्कुरा कर पूरा करना,
हर तकलीफ में मुझे खुश देखना,,
मेरी खुशियों में खुश रहना,,
पापा का अपनी गोद में, 
मुझे लेकर वह मेला घुमाना,
कुछ ऐसे मेरे पापा,
अपने स्कूटर पर बैठाकर, 
मुझे दुनिया की सैर कराना,
मेरा फेवरेट फल केला दिलाना,
वह चौराहे पर मुसम्मी का जूस पिलाना,
वह हजार बदमाशियओ के बाद भी,
वो थोड़ा सा डांटना,,
और कुछ देर बाद,, 
अपनी गोद में बैठाकर,
भैया-भैया कहकर समझाना,
शायद, 
शायद, 
कुछ ऐसे हैं मेरे पापा.
Astha Mishra
17/6/12
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                       Memories
                       ***********
यादें
*******
यादें तो यादें ही होती हैं,,
सुनहरे पल की बातें ही तो,
उसकी यादें होती हैं,,
मिलने के बाद का एहसास होता है,
तो वही बिछड़ने के बाद का,
गम भी होता है,
यही तो यादें होती हैं, 
भले ही! 
मिलना और बिछड़ना, 
ही क्यों ना हो,,
यह तो कुछ पलों की बातें हैं,
कहीं,, सलाखों में कैद, 
पति की याद में पत्नी ने, 
अपनी आधी जिंदगी बिता दी,
तो वहीं यादों की याद में, 
खुद में ही खुश हो जाती है,
आखिर यादें तो यादें ही होती है,
इन दो शब्दों में कितनी ताकत है,
पूरी दुनिया को खुद में समेट लेती हैं,
और बार-बार हमें,
यादें कुछ याद दिलाती हैं, 
और हर बात की मौजूदगी, 
हममें बनी रहती है 
Astha Mishra
21/7/2012
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New year
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नया दिन है,,
नई आस है,,
नई उम्मीदों का,,
साया मेरे साथ है,,
शायद आज कुछ खास है,,
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जन्मदिन विशेष  
**************
जन्म देने की खुशी, 
कितनी अजीब होती है,,,
कुछ महीनों इंतजार के बाद, 
मां बाप को उनका, 
अपना अंश मिलता है,,
जिससे उनकी, 
लाखों उम्मीदे जुड़ी रहती है,,
जिसे वह अपनी आंखों के सामने, 
बड़ा होता देखते हैं,
उसकी तकलीफ,
उसकी खुशी का अनुभव, 
वह खुद में महसूस करते हैं,
वह लम्हा भी कितना अजीब होता है,,
जिस लम्हे में हर मां, 
अपनी संतान को पाने के लिए, 
सारा दुख खुशी-खुशी, 
सहन करना चाहती है,,
उस नन्ही सी जान का स्पर्श ,,
वह खुद में महसूस करना चाहती है,
आखिर एक मां के जीवन में, 
अपनी संतान को, 
जन्म देने की खुशी भी, 
कितनी अजीब होती है..
Astha Mishra
8/8/2012
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"कुछ सुना कुछ अनसुना" 
*********************
ना जाने क्यों ऐसा हुआ? 
जो नहीं कहा, 
वह भी, 
मैंने ही सुना,
ना जाने किसकी नजर लगी,
सारी खुशियां, 
देखते ही देखते बिखर गई,
और रह गए, 
सिर्फ आंसू ही आंसू,
अब उन्हीं को देखना है,
उन्हीं को समझना है,,
उन्हीं पर हंसना है, 
शायद! उन्हीं पर रोना है,
आंसुओं के भरोसे, 
कब तक रहूंगी,
मेरी जिंदगी के कुछ हसीन लम्हें, 
और उन लम्हों की यादों से जुड़े लोगों,
को वह आंसू रास ना आएंगे,
क्योंकि उन्हें मेरा, 

सिर्फ़ हंसता-मुस्कराता चेहरा, 

ही भाता है,,
मामा को मेरी बदमाशी,
बहनों को मेरी लड़ाई,
बुआ को मेरा प्यार,
और इन सबसे परे,
मेरे पापा को तो मैं, 
पूरी पूरी पसंद हूँ, 
और मां की लाडली जान हूँ, 
 तो!
यह‌ आंसू कैसे बनेंगे??
छुपके बहेंगे, 
तो भी ए आंखें बताएंगी, 
मामा परेशान होंगे,
मां घबराएगी,
सामने बहेंगे तो, 
सब मुझे देख मुस्कुराएंगे,
दीदियां चिढ़ाएंगी,  
जीजा समझाएंगे,,
बार-बार सवाल उठाएंगे,
मुझे देख गुनगुनाएंगे,,
मुझे तेरे चेहरे पर, 
यह गम नहीं जंचता,, 
मुझे गम से तेरा रिश्ता,
जायज नहीं लगता, 
सुन मेरी गुजारिश, 
इसे चेहरे से हटा दे,
जो भी गम हैं
"तेरे" 
उन्हें भूलकर, 
मुस्कुरा दे..
Astha Mishra
9/8/2012
==================++++=====

Mujhe mat maro
*******************
मुझे मत मारो, 
मुझे जीने दो,
यह वसुंधरा मेरी भी "माँ" है,
मेरा भी इस पर अधिकार है,
इसने मुझे भी जन्म दिया है,
पाल पोस बड़ा किया है,,
मुझे सदा के लिए, 
इससे दूर मत करो,
मैं बोलता नहीं 
पर! 
सुनता जरूर हूँ, 
मैं चलता तो नहीं, 
लेकिन खड़ा रहता हूँ, 
मैंने भी प्रदूषण भरी, 
इस दुनिया में, 
अपना वजूद बनाया है, 
मैं तुम्हें सिर्फ देता हूँ, 
तुमसे कुछ लेता नहीं, 
मुझे मत मारो, 
मुझे जीने दो,
मैं यहाँ खड़ा रहकर, 
तुम्हारा अस्तित्व बनाए रखता हूँ, 
फिर तुम्हें मेरी कब्र पर चलकर, 
ईंट का जंगल बना कर क्या मिलेगा??
चंद पल की खुशियां, 
या फिर अपना नाम,,
नाम के भरोसे, 
तुम जी नहीं पाओगे,
तुम्हें मैंने बनाया है,
तुम मुझसे हो, 
ना कि मैं तुमसे,
मेरी हरियाली मेरी छांव,,
मुझसे जुड़ी हर एक डाल,
तुम्हें कुछ देगी ही,
कभी कोई मीठा नहीं तो, 
एकदम जिंदगी की तरह, 
खट्टा सा फल, 
नहीं तो जब खूब कड़ी धूप हो, 
मेरी छांव में आकर खुश हो लेना, 
तुम जब भी मेरे पास आओगे,
मैं तुम्हें अपने आंचल में, 
छुपा लूँगी,
उस चमकते हुए सूरज की, 
किरणों से तुम्हें बचा लूंगी, 
चांद की चांदनी में, 
अपनी गोद में सिर रख, 
तुम्हें सुला लूंगी, 
दुनिया की हजार बाधाओं से, 
तुम्हें बचा लूंगी, 
मुझे मत मारो, 
मुझे जीने दो, 
मैं "वसुधा" 
तुम सब की माँ हूँ 
Astha Mishra
24/8/2012
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