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Rahnuma

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रहनुमा  ********* क्या कहें और किसे दोष दें,  जिन्हें मंजर बदलना है,  वो अब भी सोए हैं,  उन्हें यकीन है,  कोई रहनुमा आएगा,  यह सोचकर  वो अपनी चादर खींच लेते है,  हालांकि..  वो पूरे जिस्म को ढकती नहीं,  पैरों को सीने से लगाकर,  खुद को समेट लेते हैं,  खुदा ऐसे बंदो के लिए,  करता भी क्या?  जिनके अक्ल पर पर्दा हो,  जिस्म जैसे,  उसी टूटी खाट का हिस्सा हो,  वर्षों से कुछ और उसने देखा नहीं,  रोशनी का सामना भला कैसे करेगा,  जो एक पुरानी मैली  सी चादर,  हटा सकता नहीं,  जिसमें लगे पैबंद की गिनती,  करना अब आसान नहीं है,  छेद इतने हैं कि उसका,  अपना कोई वजूद है,  यह भी लगता नहीं,  शायद!  कमाल उस खटिया में है,  जिसने अपने धागों में,  कोई उम्मीद बांध रखी है।  मै उस आदमी के पास से,  आँख बंद करके गुजर जाता हूँ,  मै क्यों कह दूँ रहनुमा हूँ तेरा,  खुद को तेरे हवाले यूँ ही कर दूँ,  जब खेल कुर्सी का है,  तेरी डोर कसके पकड़नी है,  तूँ बस जिंदा रहे इतनी ढील देनी है,  पर ए सच है जब,  हर बार मै अपने गिरेबान में झांकता हूँ,