Yuddh : The war

युद्ध 

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किसी युद्ध के दौरान 
जब शौर्य गाथाएं 
कही जाती है 
उसमें सिर्फ सैनिकों का 
जिक्र होता है 
किसने कैसे किसको मारा 
बहादुर वही कहलाता है 
जो ज्यादा से ज्यादा लोगों को 
हताहत करता है 
यह युद्ध का नियम 
कुछ ऐसा ही है  
मरने-मारने दोनों में 
बहादुरी का परचम फहराया जाता है 
सीमाओं का निर्धारण  
अक्सर युद्ध से ही किया जाता है 
हर जगह जो खबर छपती है 
उसमें इन्हीं सैनिकों का 
जिक्र होता है 
जो जीतकर आते हैं 
वहां उनके घर 
उनके देश में 
उनकी बटालियन में 
पूरा जश्न मनाया जाता है 
जो बेजान देह लेकर लौटते हैं 
उनका भी भरपूर स्वागत होता है 
फौजी को अजीब तरह की
जश्न की आदत पड़ जाती है 
वह जिंदा रहे या ना रहे 
दोनों ही परिस्थितियों में 
नारे बहुत लगते हैं 
पर असली लड़ाई 
कहीं और लड़ी जाती है 
जिसमें हर सिपाही का घर 
शामिल होता है 
उसके मां बाप, भाई-बहन 
बीबी-बच्चे, दोस्त 
जब वह 
किसी मोर्चे पर तैनात होता है 
युद्ध के हालात होते हैं 
तब लड़ाई इन्हीं घरों में 
लड़ी जाती है 
जहां दुआओं के सिवा 
कोई कुछ नहीं कर पाता 
कहीं बुरी खबर न आ जाए 
इस बात से 
हर वक्त डरता रहता है 
प्रार्थना में बैठा है 
कितनी जल्दी 
यह जंग खत्म हो जाए 
हर घर में 
यही दुआ मांगी जाती है 
उनका अपना जल्दी से 
घर लौट आए 
बस इसी ख्वाहिश में 
हर आदमी जीता है 
यूं कहें जब तक 
जंग चलती रहती है 
हर पल घरों में मौत होती रहती है 
ना कोई ठीक से सोता है
न जगता है 
जिंदगी में क्या कैसे चल रहा है 
इसका एहसास 
बड़ी मुश्किल से हो पाता है 
एक परिवार 
खुद को संभालता रहता है 
हर आदमी
जो घर में जंग लड़ रहा होता है 
वह जंग  
लड़ रहे फौजियों से 
किसी मायने में 
कम बहादुर नहीं होता  
उन्हें हर वक्त 
यह काम भी करना होता है
जिन्हें बहादुर कहा जा रहा है 
जो जंग लड़ रहे हैं 
उनकी हिम्मत 
हकीकत में इन्हीं घरों से आती है 
जिसे बनाये रखना होता है। 
वह बेपरवाह 
अपनी जिंदगी 
हाथ में लेकर गोलियों के बीच 
चल पड़ता है 
उसे भी मालूम नहीं चलता 
उसका मकसद  कब? 
देश बन जाता है 
गोलियां दोनों तरफ से 
लगातार चल रही हैं 
किसके हिस्से कब कितनी आयेंगी? 
इसका कोई अंदाजा नहीं है 
कौन किस मंजिल पर 
अगले पल होगा 
यह पता नहीं चलता 
ऐसे में युद्ध लड़ने वाले
युद्ध के नियम
अच्छी तरह जानते हैं 
क्योंकि गोलियों की फितरत से
अच्छी तरह वाकिफ होते हैं 
इनका जिंदगी-मौत से क्या वास्ता है 
वह सामने जिसे मौत की नींद 
सुला देता है 
इसमें उसे कोई बहादुरी 
नजर नहीं आती 
बस इस बार वह बीस पड़ा 
उसकी गोली पहले चली थी 
युद्ध में जीत का 
यही नियम है 
पहले गोली चले
निशाना सही लगे
यह गोली 
किस सीने के हिस्से आएगी 
यह बात 
किसी को पता नहीं होती 
जो बच जाता है 
मतलब जिसने पहले गोली चलाई 
उसे बहादुर कहा जाता है 
जीतने का यही पैमाना है
कई घरों में 
अभी नारों का शोर थमा है 
अब भयानक सन्नाटा 
पसर गया है 
सड़क पर आज भी 
विजय घोष जारी है 
©️Rajhansraju 
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(2)
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हार-जीत 

वर्षा पानी बिन बादल के, 
सूनी आँखों से,
आह निकली दिल से, 
उसके न आने से।
राह चल दिया ऐसे, 
बिन पानी नदी जैसे।
अंगुली पकड़ के चलता था जो, 
बुढ़ापे का सहारा था वो।
उसकी माँ कैसे सह पाएगी,
अकेले बेटे के जाने का गम ,
मै तो दुःख छिपाऊंगा, 
बेवजह भी मुस्कराऊंगा,
बेटे के शहीद होने का, 
फक्र दिखाऊंगा, 
पर कैसे ? 
गोलियों से छलनी उठा होगा ?
जरूर अपनी माँ को याद किया होगा।
लहू की हर बूँद तक लड़ा होगा ,
शहीद तो उधर भी होंगे,
बेबस घर ऐसा ही होगा ।
कोई बाप जब वहां भी तनहा होगा,
अपने बेटे के, 
यही हालत सोचता होगा।
उसे दफनाया या जलाया होगा,
नहीं तो चील कौवों ने खाया होगा।
मेरे बेटे से ही, 
इस लड़ाई का अंत नहीं होगा,
अभी कितने ही बापों की, 
आँखें सूनी होंगी।
माओं की कोखें खाली होंगी, 
यही दर्द, यही आह निकलेगी,
जब भी लड़ाई होगी,
हार माँ बाप की होगी।
सीमाएं कुछ बदल जाएंगी,
कुछ नए नाम भी पड़ जाएँगे।
रोने को दो आँखें दूर,
किसी कोने में होंगी।
कौन मारा था?
किसने मारा था?
किसके लिए? 
कौन याद रखेगा?
कभी-कभी नारे लग जाएँगे,
शोर भी होगा।
पर ! इन हारी आँखों के सामने, 
कोई नहीं होगा,
बेटे के कंधे बिना इन,
इन सूखी लकड़ियों का क्या होगा?
फिर लड़ाई होगी,
फिर खून बहेगा,
मैं ही कन्धा दूंगा,
मैं फिर हार जाऊंगा, 
अपने बेटे को।
लड़ाईयां ऐसे ही होती रहेंगी ,
मैं अपने बेटे को, 
ऐसे ही खोता रहूँगा।
उसकी माँ से छिप कर रोता रहूँगा,
हर बार मैं ही हारता रहूँगा..
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©️ rajhansraju
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(3)
माँ-बाप 

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उनका क्या दोष है, 
जो सिर्फ माँ-बाप है,
हर बार उनके हारने की,
रश्म चल पडी है
पिछली बार भी,
जो जनाज़ा निकला था,
वह उन्ही के बेटे का था,
और इस बार भी,
न जाने यह दौर,
कितना और लम्बा चलेगा,
फिर मरने वाले का,
कोई मज़हब तो रहेगा ही,
लोग ऐसे ही उसका तमाषा बना देंगे,
अगली लाश?
कहीं किसी और की होगी,
कोई फौज़ी होगा, कोई काफिर होगा,
कैसा भी होगा?
इसी मिट्टी का बना होगा,
वही गम होगा, वही आँसू होंगें,
वैसा ही घर सूना होगा,
फिर कौन?
किसका इंतज़ार करेगा?
इन हारे माँ-बाप को,
भला कौन?
याद रखेगा..
©️rajhansraju
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Comments

  1. मैं युद्ध लड़ रहा हूँ
    बस सीमा पर नहीं हूँ

    ReplyDelete
  2. इस लड़ाई का कोई अंत नहीं है

    ReplyDelete

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