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Safar

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मेरा सफर *********** परछाई का पीछा करता रहा हूँ, न जाने किसकी आरजू में, भटकता रहा हूँ, ए आइने में कौन है? जो मुझसे हर वक्त, कुछ कहता रहता है, मै बहुत पहले गाँव में, वो अपनी छोटी सी, मीठी नदी छोड़ आया, जहाँ आम के बाग थे, और इमली का पेड़ था, यकीन मानिए, उसकी पत्तियाँ भी खट्टी होती है, वक्त की किसे परवाह थी, वह तो हम सबकी मुठ्ठी में था, अभी आँख खुली तो देखा, मै किसी घने जंगल में, एक दम अकेला हूँ, जहाँ सब कंक्रीट और लोहे का है, न कोई कुछ सुनता है, न कहता है, और वो बूढ़ा दरख्त, आसपास नजर नहीं आता, जिसके छांव में वक्त भी, ठहर जाया करता था, खैर! मैंने आँख बंद की, उसी दुनिया में, लौट जाने की नाकाम, कोशिश करता रहा, कम्बख्त ए नींद, न जाने अब कब आए, वैसे मैने जो चाहा था, तूँने वही तो दिया, जिसकी शर्त यही थी, इस सफर में वापसी नहीं होगी, वक्त का पहिया चलता रहा, अब मेरे चारों तरफ, अथाह पानी है, पर! उसका एक कतरा, मैं पी नहीं सकता, तूँने तो पूरा समुंदर दे दिया, बस जीने का हक मुझसे मेरा छीन लिया। मैं इसी उदासी