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Parikrama

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Thahraw ***********  ठहर ******** अरे रुक जा रे काहे कहीं जाता है रे पास नहीं कुछ न सही जब सब कुछ तूँ ही है रे अब क्या कहूं काहे कहीं जाता है रे न पाने की ख्वाहिश है न कोई आजमाइश है रे भटका है अब तक इतना अटका रहा है कितना रे कहने को कुछ नहीं है रे अरे रुक जा रे काहे कहीं जाता है रे धूप छांव आए गए मौसम भी बदल गए रहा नहीं कुछ भी वैसा जैसे चले थे घर से अब फिर वैसे ही भागे क्यों ठहर के थोड़ा देखे हम अच्छे तो वैसे ही थे जैसे पहले थे हम फिर इतना तेज भागे क्यों ठहर जा रे पगले काहे कहीं जाता है रे खुद को खो दिया तो सोच भला क्या पाया रे चवन्नी अठन्नी के चक्कर में रुपया छोड़ आया रे अरे रुक जा रे काहे कहीं जाता है रे ©️Rajhansraju 🌹🌹🌹🌹🌹 सही-गलत ************* कल तक था जो सही अब उसकी जरूरत नहीं रही फिर कहने को कहते हो पर क्या कहना है पहले से तय रखते हो ऐसे में कोई कहे भला क्या जब अपना अपना सबका सच है जबकि सच पास ही कोने में बैठा है पर नजर भला डाले कौन आइने में शक्ल निहारे कौन ©️Rajhansraju 🌹🌹🌹🌹 नजरिया ******* मुझे देखने के लिए सबके पास अपने अपने चश्मे है और मैंने भी एक चश्मा लगा रखा है