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Showing posts from May, 2018

Samvad

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संवाद  ********** वह मुसाफिर  जिसे अब ए भी याद नहीं, वह किस देश का है, उसकी जुबान कौन सी है? वह सारा जहाँ,  देखने का दावा करता है, हर मुल्क के बाशिंदों से मिला है, सब जगह उसके दोस्त रहते हैं, हलाँकि सभी जुबानें,  बोल तो नहीं पाता, पर तमाम जुबानों को, पहचान लेता है, और जब वह,  किसी अनजानी जुबान से मिलता है, चुपचाप उनको देखता है उनकी आँखों में सब कुछ, बाकियों जैसा ही तो रहता है, जिसको समझने के लिए, किसी जुबान का आना, जरूरी नहीं होता, बस थोड़ी देर ठहरकर,  महसूस करना है, ठीक उसी तरह,  जब बच्चे एकदम छोटे होते हैं, वो कुछ नहीं कहते, पर! माँ सब समझ जाती है, बिना शब्दों के, सारे संवाद हो जाते हैं, और कभी-कभी लगातार बोलते रहने के बाद भी, कोई संवाद कहाँ हो पाता है? बात उस समय की है, जब वह बहुत छोटा था, कहीं के लिए निकला था, शायद किसी चीज के पीछे, नन्हे कदमों से बहुत तेज, भागा था, वो क्या था?  अब तक नहीं समझ पाया, पर उसमें एक कशिश थी, जिसे पाने के लिए, उसके पीछे लगातार भागता रहा, और आज तक लौट नहीं पाया,

Dahlij

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दहलीज  ******* रोशनी और अंधेरे के बीच,  एक दहलीज है, वक्त का एक लम्हा,  न जाने क्यों? कब से वहीं ठहरा हुआ है, अच्छा है बाकी सभी,  इस पार है,  नहीं तो उस पार है, उन्हें सिर्फ रोशनी, या अंधेरे से वास्ता है, दहलीज पर वो लम्हा, अब भी रुका है, उसके एक तरफ रोशनी है दूसरी तरफ घनघोर अंधेरा है, वह दोनों तरफ, देखता और सुनता है, अंधेरे-उजाले के चर्चे, सुनता रहता है, दोनों के बीच में खड़ा, मुस्कराता रहता  ©️rajhansraju ***************************** (2) Delhi to Mumbai शर्म के सिवा सब है  फक्र करने की वजह क्या अब भी बची है? अब किसी के मजहब का जिक्र मत करना बेहयायी में सब एक जैसे हैं कफन ओढ ली है जमीर मरे एक अर्षा हो गया। फिर वजह का जिक्र होगा कोई सियासत, कोई मजहब का, अजीब सा वजूद गढ़ रहा होगा। ए सही है यही होगा ठेकेदार चिल्ला रहा होगा फिर जो सबसे कमजोर होगा सारा इल्जाम उसी पर लगेगा बहुत होगा कुछ देर शोर मचेगा जल्द ही बोर हो जाएंगे सब भूल जाएंगे उसी मरे ज़मीर में लौट जाएंगे। ©️Rajhansraju ******