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Mera shehar

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मेरा शहर  ********** कितना मुश्किल है  खुद को बचाए रखना, खासतौर पर उन परिंदे को जिनमें थोड़ी गोश्त होती है, हमारे शहर भी कुछ ऐसे ही हैं, जो अब भी इंसान की तरह जीते हैं, तभी तो उनके  नाम बदल जाते हैं, और उसका कत्ल भी होता है, उसका लहू बहता है, मातम पसर जाता है, उसके श्मशान बन जाने का, शोर भी होता है, सुना है आज वो मर गया, जिसके जश्न की खबर भी छपी है, वह किसी गैर मजहब, बिरादरी का शहर था, उसमें अब भी कुछ गोश्त बाकी है, शायद इस वजह से, धमाके कुछ रुक-रुक के हो रहे हैं, दूसरे शहर के लिए नारे लग रहे हैं, अब यहाँ पूरी खामोशी है, कहते हैं अमन कायम हो गया, पर वो शहर अब नहीं रहा, कुछ भी सही सलामत नहीं है, जो जिस्म जिंदा हैं, वो पूरी तरह खाली है, उनके सामने पूरा शहर मर गया, और न जाने कितनों का, वजूद भी खत्म हो गया, शहर कभी तन्हा नहीं होता, वह अपने हर, शख्स के साथ रहता है, तभी तो जब कोई, किसी दूसरे शहर जाता है, उसकी पहचान में, उसके शहर का नाम आता है, अब हम हर उस शहर के लिए, दुआ करते हैं, जो पूरा जिस्म है जिसकी सांसे चल