Dahlij
दहलीज
*******
रोशनी और अंधेरे के बीच,
एक दहलीज है,
वक्त का एक लम्हा,
न जाने क्यों?
कब से वहीं ठहरा हुआ है,
अच्छा है बाकी सभी,
इस पार है,
नहीं तो उस पार है,
उन्हें सिर्फ रोशनी,
या अंधेरे से वास्ता है,
दहलीज पर वो लम्हा,
अब भी रुका है,
उसके एक तरफ रोशनी है
दूसरी तरफ
घनघोर अंधेरा है,
वह दोनों तरफ,
देखता और सुनता है,
अंधेरे-उजाले के चर्चे,
सुनता रहता है,
दोनों के बीच में खड़ा,
मुस्कराता रहता
©️rajhansraju
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(2)
वह दोनों तरफ,
देखता और सुनता है,
अंधेरे-उजाले के चर्चे,
सुनता रहता है,
दोनों के बीच में खड़ा,
मुस्कराता रहता
©️rajhansraju
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(2)
Delhi to Mumbai
शर्म के सिवा सब है
फक्र करने की वजह
क्या अब भी बची है?
अब किसी के मजहब का
जिक्र मत करना
बेहयायी में
सब एक जैसे हैं
कफन ओढ ली है
जमीर मरे
एक अर्षा हो गया।
फिर वजह का जिक्र होगा
कोई सियासत, कोई मजहब का,
अजीब सा वजूद गढ़ रहा होगा।
ए सही है यही होगा
ठेकेदार चिल्ला रहा होगा
फिर जो सबसे कमजोर होगा
सारा इल्जाम उसी पर लगेगा
बहुत होगा
कुछ देर शोर मचेगा
जल्द ही
बोर हो जाएंगे
सब भूल जाएंगे
उसी मरे ज़मीर में
लौट जाएंगे।
©️Rajhansraju
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(3)
अजीब आदमी
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वह दहलीज पर बैठा है,
कुछ कहता नहीं,
अभी आया है,
या जाने की तैयारी है,
कुछ समझ आता नहीं,
मेरी आँख अभी खुली है,
सामने!
वक्त का कोई पैमाना नहीं है,
मेरी तरफ वह देखता है,
इस तरह,
जैसे वर्षों बाद,
किसी ने आँख खोली हो,
वो शख़्स जिसे,
नींद की आगोशी में,
छोड़ आया था,
वह आदमी नजर नहीं आता,
इस आइने में तो कोई और है,
अब शिकायत किससे करें?
मेरी आवाज मुझसे बाहर जाती नहीं,
जो दहलीज पर बैठा है,
वह कुछ कहता नहीं,
ये सुबह है कि शाम,
इसका दावा कैसे करें?
उसने रोशनी रोक रखी है
या फिर मुझ तक,
अँधेरा!
आने नहीं देता,
फिर से देखता हूँ
चेहरा?
कम्बख़्त!!
आइना कहाँ है??
©️rajhansraju
********************
(4)
जो कुछ अजीब सा है,
थोड़ा बेपरवाह है,
कौन क्या कहेगा,
इसकी फिक्र नहीं है,
उसमें थोड़ा सा कलंदर है,
कोई फक्कड़ सा मुसाफिर है,
किसी अनजाने सफर पर निकला है,
जिसे रास्तों से वास्ता नहीं है,
कहाँ कब तक ठहरा है,
और न जाने कब चल दे,
कुछ तय नहीं है,
यह वक्त की थपकी,
कभी-कभी एक गीत बनकर,
हमारे दरमियाँ,
एक लय में बिखर पड़ती है,
तब वह इसी वक्त के साथ,
खुद का इजहार करता है,
फिर...
मैं मलंग..
मलंग...
©️Rajhansraju
*********************
(5)
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➡️(28)Ishq
उसे इश्क है यही कहता फिरता है
पर वह हिसाब का बहुत पक्का है
❤️❤️❤️❤️❤️
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(29)
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➡️(5) (9) (13) (16) (20) (25)
(33) (38) (44) (50)
©️rajhansraju
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(4)
मलंग
वो आदमीजो कुछ अजीब सा है,
थोड़ा बेपरवाह है,
कौन क्या कहेगा,
इसकी फिक्र नहीं है,
उसमें थोड़ा सा कलंदर है,
कोई फक्कड़ सा मुसाफिर है,
किसी अनजाने सफर पर निकला है,
जिसे रास्तों से वास्ता नहीं है,
कहाँ कब तक ठहरा है,
और न जाने कब चल दे,
कुछ तय नहीं है,
यह वक्त की थपकी,
कभी-कभी एक गीत बनकर,
हमारे दरमियाँ,
एक लय में बिखर पड़ती है,
तब वह इसी वक्त के साथ,
खुद का इजहार करता है,
फिर...
मैं मलंग..
मलंग...
©️Rajhansraju
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(5)
कुछ छूट गया
चारों तरफ सब उजला हो गया,
खुद की क़ैद में न जाने कब से था,
लगा दुनिया बदल चुकी है,
सब पीछे छूट गया,
अज़ीब हल्ला था, मेरे लिए,
सब नया था,
शायद! मै ही अजीब लग रहा था,
अरे नही सब वही है,
यह तो सुबह की खुमारी है,
यह शोर भी मेरा, और खामोशी भी,
जो छूट गया, जो टूट गया,
वह मै ही था,
फिर याद आया, पिछली रात,
जल्दी सो गया था,
उफ्फ! न जाने कब तक ?
सोता रहा था?
आज़ जैसे उसी बचपन में,
लौट जाना चाहता था,
फिर उस नीम के पेड़ की,
बड़ी याद आयी,
जहाँ पूरी दुपहरिया गुज़र जाती थी,
सोचता हूँ?
ख़ुद को रिहा कर पाऊँगा?
या फिर,
इस शहर से,
हार जाऊँगा?? ?
©️rajhansraju
*************
(6)
************
यहीं तो मिलता है,
आज कहाँ गया?
हाँ यह वही है,
कब से सोच रहा था,
कहीं देखा है,
फिर अनजाना क्यों हो गया?
न कुछ मैंने पूँछा न उसने बताया,
जो चाहता था,
उसने सब वैसे ही किया,
शिकायत की कोई वजह बनती नहीं,
फिर नाराज़गी कैसी?
उसके चुप रहने की आदत,
फिर मेरे मुस्कराते ही मुस्करा देना,
कम्बख्त!
यह आदमी भी अज़ीब है,
हूबहू मुझ जैसा,
मेरी ही नकल करता है,
तभी मै चौका?
कमरे का आइना कहीं दिख नहीं रहा,
अरे! हाँ याद आया,
कल ही तो चटक गया था...
©️rajhansraju
**********************
(7)
छूटना
रोशनी से नहाकर निकली,
तो रंग और खिल गया,
हवा ने हर जगह खुशबू भर दिया,
वक़्त गुज़रता रहा,
फिर कोई संग ले गया,
सुबह हुई,
वह सोई रही,
पहले वाली बात नहीं थी
अपने साख से,
बहुत दूर जा चुकी थी,
ए दूर जाने का सिलसिला,
सदियों से चलता रहा है
इस यात्रा का कोई,
अंतिम मुकाम,
तय नहीं हो पाता,
सफर के सिवा,
कहीं कुछ नहीं रहता,
रोशनी और अंधेरे ,
के दरमियाँ लम्हों की एक कड़ी है
जो दोनों को बाँधती है
ऐसा दावा करते रहे हैं
धीरे-धीरे रोशनी
अंधेरे में
बदल गई।
ऐसे ही अंधेरा बढ़ने लगा
काली रात ने
हर जगह खुद को भर दिया,
वक़्त के इस सफर को,
अब भी यहाँ,
कहाँ ठहरना था
वह सिर्फ़ चलता है,
उजाले की दस्तक शुरू हो गई
अंधेरा रोशनी से नहाने लगा
सुबह हो गई
हर तरफ रोशनी भर गयी
©️rajhansraju
***********************
(8)
काश
***********
आओ बह जाए घटाओं में,
उड़ जाए हवाओं में,
महक जाए फिजाओं में,
लहक जाए खेतों में,
भीग जाए ओसो में,
डूब जाए बूंदों में,
खो जाए मीतो मेंं,
ठण्ड हो रेतों में,
जीत हो हारों की,
रोटी हो भूंखों की,
कपडे हो नंगों के,
देश हो बंजारों का,
भेष हो अनजानों का,
राग हो मस्तानो का,
गीत हो ज़माने का,
सोए सब जग जाए,
खुशियों में डूब जाए,
भेद सब हट जाएँ,
नाम सब मिट जाएँ,
है तो यह सपना ही,
काश सच हो जाए ..
©️rajhansraju
*****************
(9)
आदमी नया है
कुछ वक़्त का तकाजा है,
हालात का मारा है,
थोडा सा रुआंसा है,
कुछ बोलने कहने में,
सकुचाता है,
शहर में नया-नया है,
हर जगह उम्मीद से तकता है,
बारीकी से समझता है,
सादगी, मासूमियत नज़र आती है,
शायद! कुछ कम पढ़ा-लिखा है,
कैसे भी,
आराम से ज़मीन पर बैठ जाता है,
कहीं मिटटी का एहसास छुपा है,
कुछ दिनों गलियों की खाक छानेगा,
चंद लोगों से दोस्ती होगी,
दो-चार किताबें पढ़ेगा,
दुनिया के स्कूल से,
अच्छे नंबरों में पास हो जाएगा.
ऐसे ही एक और आदमी,
हम जैसा हो जाएगा
©️rajhansraju
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⬅️(30) Samvad
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(6)
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यहीं तो मिलता है,
आज कहाँ गया?
हाँ यह वही है,
कब से सोच रहा था,
कहीं देखा है,
फिर अनजाना क्यों हो गया?
न कुछ मैंने पूँछा न उसने बताया,
जो चाहता था,
उसने सब वैसे ही किया,
शिकायत की कोई वजह बनती नहीं,
फिर नाराज़गी कैसी?
उसके चुप रहने की आदत,
फिर मेरे मुस्कराते ही मुस्करा देना,
कम्बख्त!
यह आदमी भी अज़ीब है,
हूबहू मुझ जैसा,
मेरी ही नकल करता है,
तभी मै चौका?
कमरे का आइना कहीं दिख नहीं रहा,
अरे! हाँ याद आया,
कल ही तो चटक गया था...
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(7)
छूटना
रोशनी से नहाकर निकली,
तो रंग और खिल गया,
हवा ने हर जगह खुशबू भर दिया,
वक़्त गुज़रता रहा,
वक़्त गुज़रता रहा,
फिर कोई संग ले गया,
सुबह हुई,
वह सोई रही,
पहले वाली बात नहीं थी
अपने साख से,
बहुत दूर जा चुकी थी,
ए दूर जाने का सिलसिला,
सदियों से चलता रहा है
इस यात्रा का कोई,
अंतिम मुकाम,
तय नहीं हो पाता,
सफर के सिवा,
कहीं कुछ नहीं रहता,
रोशनी और अंधेरे ,
के दरमियाँ लम्हों की एक कड़ी है
जो दोनों को बाँधती है
ऐसा दावा करते रहे हैं
धीरे-धीरे रोशनी
अंधेरे में
बदल गई।
ऐसे ही अंधेरा बढ़ने लगा
काली रात ने
हर जगह खुद को भर दिया,
वक़्त के इस सफर को,
अब भी यहाँ,
कहाँ ठहरना था
वह सिर्फ़ चलता है,
उजाले की दस्तक शुरू हो गई
अंधेरा रोशनी से नहाने लगा
सुबह हो गई
हर तरफ रोशनी भर गयी
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(8)
काश
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आओ बह जाए घटाओं में,
उड़ जाए हवाओं में,
महक जाए फिजाओं में,
लहक जाए खेतों में,
भीग जाए ओसो में,
भीग जाए ओसो में,
डूब जाए बूंदों में,
खो जाए मीतो मेंं,
खो जाए मीतो मेंं,
ठण्ड हो रेतों में,
जीत हो हारों की,
जीत हो हारों की,
रोटी हो भूंखों की,
कपडे हो नंगों के,
कपडे हो नंगों के,
देश हो बंजारों का,
भेष हो अनजानों का,
भेष हो अनजानों का,
राग हो मस्तानो का,
गीत हो ज़माने का,
गीत हो ज़माने का,
सोए सब जग जाए,
खुशियों में डूब जाए,
खुशियों में डूब जाए,
भेद सब हट जाएँ,
नाम सब मिट जाएँ,
नाम सब मिट जाएँ,
है तो यह सपना ही,
काश सच हो जाए ..
काश सच हो जाए ..
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(9)
आदमी नया है
कुछ वक़्त का तकाजा है,
हालात का मारा है,
थोडा सा रुआंसा है,
कुछ बोलने कहने में,
सकुचाता है,
शहर में नया-नया है,
हर जगह उम्मीद से तकता है,
बारीकी से समझता है,
सादगी, मासूमियत नज़र आती है,
शायद! कुछ कम पढ़ा-लिखा है,
कैसे भी,
आराम से ज़मीन पर बैठ जाता है,
आराम से ज़मीन पर बैठ जाता है,
कहीं मिटटी का एहसास छुपा है,
कुछ दिनों गलियों की खाक छानेगा,
चंद लोगों से दोस्ती होगी,
दो-चार किताबें पढ़ेगा,
दुनिया के स्कूल से,
अच्छे नंबरों में पास हो जाएगा.
ऐसे ही एक और आदमी,
हम जैसा हो जाएगा
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आरंभ और अंत कि अंतहीन कहानी
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