Bachpan
बचपन
**************
जब बड़े हो जाएंगे
ए हसीन पल,
बहुत याद आएंगे।
हर शख़्स ने,
अपने किसी कोने में,
बहुत से खूबसूरत,
लम्हों को सहेज रखा है,
इनको देखकर,
अपने किस्से कहता है,
किसी से भी,
उसकी ख्वाहिश,
पूछकर देखे,
वह आज भी,
बचपन,
वापस चाहता है
©️rajhansraju
**************************
**************************
इन छुट्टियों में
*********
इस बार की छुट्टियों में,
एक छोटा सा पुल बनाते हैं,
थोड़ा सा गाँव,
इस तरफ ले आते हैं,
वैसे यहाँ फुर्सत किसे है?
शहर को बहुत जल्दी है,
वो तो पूरा,
गाँव निगल जाता है,
शहर की रफ्तार,
कुछ ऐसी है,
इसके साथ चलने वाले,
किसी को भी,
पता नहीं चलता,
कब वह इसकी,
चकाचौंध का हो गया,
हलांकि! गांव से आए,
हर आदमी में,
उसका थोड़ा सा गांव,
बचा रहता है,
जिसकी तलाश में वह,
जब भी किसी बड़ी,
सड़क से गुजरता है,
उसे ढूंढता है,
अब शायद!
वो वैसा न मिले,
जिसे हम छोड़कर गए थे,
चलिए एक काम करते हैं,
खुद को बचाते हैं,
किसी पगडंडी के किनारे,
कोई एक पेड़ लगाते हैं।
वो खूबसूरत पंख,
कैसे हर आँख में बस जाते हैं,
उनका बसेरा,
हाँ! वही जिसे हम घर कहते हैं,
इन्हीं दरख्तों में होता है,
अभी चिड़ियों की चहचहाहट,
जोर से आई है,
जैसे सामने वाला पेड़
बहुत दिनों बाद,
गांव में इतने लोगों को देखकर,
खुलकर हंस पड़ा हो,
बहुत दिन हो गया,
इन हड्डियों को चरमराए,
तभी कोई बच्चा,
उसकी डाल पर लटक गया,
वो जो सबसे बदमाश है,
खूब ऊपर चढ़ने लगा,
पेड़ को बहुत दिनों बाद,
अपनेपन का एहसास हुआ,
उसके पत्ते,
उंगलियों में बदलने लगे,
बच्चों की हर बात पर,
जैसे पेड़ हंस रहा हो,
और ऐसे ही हंसते-हंसते,
वह अपने आस पास देखता है,
उसके जैसा कोई नजर नहीं आता,
वह अपनी उम्र का अंदाजा,
नहीं लगा पाता,
कैसे कहे?
अकेले पन से नहीं लड़ पाता,
सारे लोग शहर जा रहे हैं,
गाँव खाली-विरान होता जा रहा है,
बूढ़ा पेड़ सड़क,
जोड़ने वाली पगडंडी,
देखता रहता है,
उसे उम्मीद है,
जिस रास्ते से लोग जाते हैं,
उसी से वापस आएंगे,
आने-जाने का,
यही दस्तूर रहा है,
तभी पेड़ ने देखा,
उसको नई रोशनी,
नजर आने लगी,
बच्चे मिलकर,
नये पौधे रोप रहे हैं,
ऐसे ही खेल-खेल में,
शहर और गाँव के बीच
एक पुल बना रहे हैं
©️rajhansraju
👇👇👇👇🌹🌹👇👇
चलिए एक दूसरे से कुछ कहते सुनते हैं
🌹 मतलब "संवाद" करते हैं 🌹
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जिद
शहर की रफ्तार,
कुछ ऐसी है,
इसके साथ चलने वाले,
किसी को भी,
पता नहीं चलता,
कब वह इसकी,
चकाचौंध का हो गया,
हलांकि! गांव से आए,
हर आदमी में,
उसका थोड़ा सा गांव,
बचा रहता है,
जिसकी तलाश में वह,
जब भी किसी बड़ी,
सड़क से गुजरता है,
उसे ढूंढता है,
अब शायद!
वो वैसा न मिले,
जिसे हम छोड़कर गए थे,
चलिए एक काम करते हैं,
खुद को बचाते हैं,
किसी पगडंडी के किनारे,
कोई एक पेड़ लगाते हैं।
वो खूबसूरत पंख,
कैसे हर आँख में बस जाते हैं,
उनका बसेरा,
हाँ! वही जिसे हम घर कहते हैं,
इन्हीं दरख्तों में होता है,
अभी चिड़ियों की चहचहाहट,
जोर से आई है,
जैसे सामने वाला पेड़
बहुत दिनों बाद,
गांव में इतने लोगों को देखकर,
खुलकर हंस पड़ा हो,
बहुत दिन हो गया,
इन हड्डियों को चरमराए,
तभी कोई बच्चा,
उसकी डाल पर लटक गया,
वो जो सबसे बदमाश है,
खूब ऊपर चढ़ने लगा,
पेड़ को बहुत दिनों बाद,
अपनेपन का एहसास हुआ,
उसके पत्ते,
उंगलियों में बदलने लगे,
बच्चों की हर बात पर,
जैसे पेड़ हंस रहा हो,
और ऐसे ही हंसते-हंसते,
वह अपने आस पास देखता है,
उसके जैसा कोई नजर नहीं आता,
वह अपनी उम्र का अंदाजा,
नहीं लगा पाता,
कैसे कहे?
अकेले पन से नहीं लड़ पाता,
सारे लोग शहर जा रहे हैं,
गाँव खाली-विरान होता जा रहा है,
बूढ़ा पेड़ सड़क,
जोड़ने वाली पगडंडी,
देखता रहता है,
उसे उम्मीद है,
जिस रास्ते से लोग जाते हैं,
उसी से वापस आएंगे,
आने-जाने का,
यही दस्तूर रहा है,
तभी पेड़ ने देखा,
उसको नई रोशनी,
नजर आने लगी,
बच्चे मिलकर,
नये पौधे रोप रहे हैं,
ऐसे ही खेल-खेल में,
शहर और गाँव के बीच
एक पुल बना रहे हैं
©️rajhansraju
👇👇👇👇🌹🌹👇👇
चलिए एक दूसरे से कुछ कहते सुनते हैं
🌹 मतलब "संवाद" करते हैं 🌹
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जिद
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जिद करने,
कहनी सुनने की उम्र,
उसी वक्त खत्म हो जाती है,
जब वह कुछ-कुछ,
समझने लग जाता है,
उसके हिस्से घर का,
कुछ काम आ जाता है,
माँ को परेशान देखकर,
परेशान हो जाता है,
बहत कुछ तो नहीं कर सकता,
उसकी थकान कुछ कम हो सके,
यह सोचकर कुछ,
हाथ बटाने लग जाता है,
यूँ अनजाने में,
कुछ धूप, कुछ छांव ओढ़ लेता है ,
जैसे ही दो कदम चलने लगा,
अनजाने में ही
जिम्मेदारियों की,
उंगली थाम लेता है
©️rajhansraju
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कहनी सुनने की उम्र,
उसी वक्त खत्म हो जाती है,
जब वह कुछ-कुछ,
समझने लग जाता है,
उसके हिस्से घर का,
कुछ काम आ जाता है,
माँ को परेशान देखकर,
परेशान हो जाता है,
बहत कुछ तो नहीं कर सकता,
उसकी थकान कुछ कम हो सके,
यह सोचकर कुछ,
हाथ बटाने लग जाता है,
यूँ अनजाने में,
कुछ धूप, कुछ छांव ओढ़ लेता है ,
जैसे ही दो कदम चलने लगा,
अनजाने में ही
जिम्मेदारियों की,
उंगली थाम लेता है
©️rajhansraju
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मेरा रहनुमा
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मेरे पीठ पर,मे
मेरा बचपन है,
मै किससे?
क्या सवाल करूँ?
जब धंधे पर बैठा,
मेरा रहनुमा है ????
उसके लिये ,
मेरा कोई मोल नहीं है,
मैं कुछ ऐसा हूँ
जो हर जगह दिखता है,
एकदम बेकार हूँ,
ए जो मंडियां लगी हैं
उनके किसी काम का नहीं,
हलांकि मेरे नाम पर
न जाने कितनी
दुकानें चलती हैं,
एक सच ए भी है,
मैं लोकतंत्र का वोट हूँ,
बस एक दिन,
सरकार हूँ..
मैं कुछ ऐसा हूँ
जो हर जगह दिखता है,
एकदम बेकार हूँ,
ए जो मंडियां लगी हैं
उनके किसी काम का नहीं,
हलांकि मेरे नाम पर
न जाने कितनी
दुकानें चलती हैं,
एक सच ए भी है,
मैं लोकतंत्र का वोट हूँ,
बस एक दिन,
सरकार हूँ..
©️rajhansraju
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मन की आँखें
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मैंने देखा है मन की आँखों से ,
महसूस किया है हाथों से ।
हर पत्ते में एहसास उसी का ,
बचपन तो है नाम उसी का ।
निश्छल प्यारा नाम रखूँ ,
बचपन तुझको क्या कहूं ।
मिट्टी में ढूंढ ली दुनिया,
मुट्ठी में बांध ली खुशियाँ ।
बस! ऐसे ही मुस्करा देना,
बाहें फैला के रोक लेना ।
छोटी सी जिद पे अड़ जाना ,
एक हंसी में सब पा लेना ।
कुछ आँखे ऐसी होती है ,
जो सोई सी होती हैं ।
दुनिया को एक रंग से भरती है ,
बिना अंतर देखा करती है ।
पंख लग जाते हैं ,
आसमान में उड़ जाते हैं ।
ख़याल उसके जब , नए रंग ले आते हैं ।
एक छोटी सी हंसी , होठों पर,
अनायास आ जाती है ।
अंधियारी दुनिया भी तब,
रौशन हो जाती है ।
©️rajhansraju
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आसमान मेरा है
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बचपन तो है नाम उसी का ।
निश्छल प्यारा नाम रखूँ ,
बचपन तुझको क्या कहूं ।
मिट्टी में ढूंढ ली दुनिया,
मुट्ठी में बांध ली खुशियाँ ।
बस! ऐसे ही मुस्करा देना,
बाहें फैला के रोक लेना ।
छोटी सी जिद पे अड़ जाना ,
एक हंसी में सब पा लेना ।
कुछ आँखे ऐसी होती है ,
जो सोई सी होती हैं ।
दुनिया को एक रंग से भरती है ,
बिना अंतर देखा करती है ।
पंख लग जाते हैं ,
आसमान में उड़ जाते हैं ।
ख़याल उसके जब , नए रंग ले आते हैं ।
एक छोटी सी हंसी , होठों पर,
अनायास आ जाती है ।
अंधियारी दुनिया भी तब,
रौशन हो जाती है ।
©️rajhansraju
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आसमान मेरा है
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जब तक, खुद के,
कमतर होने का,
एहसास नहीं होता,
तब तक, हम बेहतरीन,
बेमिसाल होते हैं,
और वह वक्त...
बचपन का,
होता है...
जब
बाँहें फैलाओ
उसमें..
पूरा आसमान समा जाता है।
धीरे-धीरे..
समझ बढ़ने लगती है..
तब बाँहें
सिमटती चली जाती हैं
और आसमान
बहुत बड़ा हो जाता है
©️rajhansraju
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मेरा कोना
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कमतर होने का,
एहसास नहीं होता,
तब तक, हम बेहतरीन,
बेमिसाल होते हैं,
और वह वक्त...
बचपन का,
होता है...
जब
बाँहें फैलाओ
उसमें..
पूरा आसमान समा जाता है।
धीरे-धीरे..
समझ बढ़ने लगती है..
तब बाँहें
सिमटती चली जाती हैं
और आसमान
बहुत बड़ा हो जाता है
©️rajhansraju
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मेरा कोना
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इस कोने में 'यूँ',
चुपचाप बैठे हो,
लगता है दुनिया से,
चंद दिनों में,
गुस्सा, नाराज़गी सीख ली है.
अब तुम्हारे साथ,
ए सब बढ़ता जाएगा,
दुनियादारी नित नए रंग ले आएगी.
कहीं यह कोना बड़ा होगा,
कहीं नज़र नहीं आएगा,
ऐसे ही मासूम आँखों से,
सब पढ़ लेना, समझ लेना,
आस-पास को थोडा परख लेना,
अंगुली थामे अभी,
चंद दिन चलोगे,
चंद दिन चलोगे,
फिर अपनी रह बनाओगे,
हाँ कभी-कभी नाराज़ होना,
फिर ढेरों खुशियाँ बिखेर देना,
दुनिया के हर कोने का,
हिस्सा बन जाना,
हिस्सा बन जाना,
अपने कोने को,
तुम इतना बड़ा कर देना.
(मेरे भांजे सात्विक और सारांश अपने पप्पा के साथ) *************************** |
जिद्दी बच्चे
************
जब गाँव,
गलियों में,
गलियों में,
आइसक्रीम वाले की,
आवाज़ सुनकर,
आवाज़ सुनकर,
बच्चे झूम उठते,
कम से कम एक तो लेनी है,
कम से कम एक तो लेनी है,
इसकी ज़िद और लडाई,
शुरू हो जाती,
शुरू हो जाती,
अंत में माँ-बाप हार जाते,
उस सस्ते मीठे बर्फ के टुकडे से,
बच्चों को खुशियों के पर लग जाते,
न अब वो ठेले दिखते हैं,
न वह साइकिल,
न वह साइकिल,
जिसका इंतज़ार,
सुबह होते ही शुरू हो जाता,
सुबह होते ही शुरू हो जाता,
अब तो सब कुछ साफ-सुथरा,
हाईजीनिक हो गया,
हाईजीनिक हो गया,
फिर वह सब कुछ कहीं छूट गया,
अब घरों के काँच भी कम टूटते हैं,
वैसे भी मकान बहुत ऊँचे होने लगे,
और गलियों में बच्चे भी नहीं दिखते,
सबको दौड़ में आगे रहना है,
वह छुपके घर आना,
फिर जमके पिटाई,
फिर जमके पिटाई,
चुपके से माँ का खिलाना,
तुरंत सब भूल जाना,
अरे आज़ मार नहीं पडी,
कुछ गडबड है?
कुछ गडबड है?
कोई भी घर ऐसा नहीं,
जहाँ बच्चों के झगडने का शोर न हो,
हर घर में रौनक बनी रहती,
न जाने क्यों सब समझदार हो गए,
अब कोई शोर नहीं होता,
कोई लडता नहीं, कोई बहस नहीं होती,
कोई गलत साबित नहीं होता,
तो कोई सही भी नहीं,
तो कोई सही भी नहीं,
वो जिद करने वाले,
टोकने वाले बच्चे कहाँ है?
टोकने वाले बच्चे कहाँ है?
जो हर बात पर लडते,
जिन्हे ठेले वाले देखकर हंस देते,
चलो अब कुछ बिक जाएगा,
सब कुछ डिसप्लीन में,
पढना, हँसना, बोलना,
पढना, हँसना, बोलना,
डिस्प्लीन में......
कोई बचपन होता है क्या??
कोई बचपन होता है क्या??
बच्चे जब ज़िद नहीं करते,
अच्छा नहीं लगता,
वह लडना जोर-जोर चिल्लाना,
घंटो रोना, रूठ जाना,
किचन से आवाज़ आयी,
तुम्हें खाना है कि तुम्हारा भी खा लूँ,
फिर जैसे कुछ हुआ ही न हो,
और खाने पर टूट पडना,
अब तो कम्प्यूटर,
मोबाइल पर,
मोबाइल पर,
घंटो आँखे गडाए रहते हैं,
कहीं किसी से कोई जान पहचान नहीं,
गोलू की जगह,
पडोस में मोनू रहने लगा,
पडोस में मोनू रहने लगा,
पता ही ना चला,
मोबाइल पर तो सब वैसे ही है,
चलो अच्छा है,
अब गेंद नही खोती,
कोई काँच नहीं टूटता,
वह, मोटा चश्मा लगाए,
टीवी के सामने बैठा है.
©️rajhansraju
👇👇👇👇👇
व्यापार में मुनाफे का खेल
इस तरह चलता है
शातिर बनिया बच्चों के हाथ में
हथियार थमा देता है
❤️❤️🙏🙏🙏❤️❤️
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::Rhymes::
**************
➡️(8)Likhawat
सने कुछ यूँ ही लिख दिया
और वह लोगों की किस्मत बन गयी
🥀🥀🥀🥀🥀
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(9)
*****
©️rajhansraju
👇👇👇👇👇
व्यापार में मुनाफे का खेल
इस तरह चलता है
शातिर बनिया बच्चों के हाथ में
हथियार थमा देता है
❤️❤️🙏🙏🙏❤️❤️
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::Rhymes::
नहीं करेंगे हम शैतानी,
देखो चूहा घर में आया,
हमसे कहने है कुछ आया,
अब बिल्ली की नहीं चलेगी,
सब चूहों ने है ठानी,
दूध मलायी खाना है,
बिल्ली को भगाना है,
कोई चूहा नहीं डरेगा,
अपना सब पर राज़ चलेगा,
चूहा अकड के आया अंदर,
जैसे हो वही सिकंदर,
अब अपना नारा होगा,
कोई चूहा राजा होगा,
उसके पीछे दो तगड़े चूहे,
आगे पीछे चूहे-चूहे,
लड़ने कि तैयारी शुरू हुई,
सेना आके खड़ी हुई,
तभी एक बूढ़ा चूहा आया,
ज़ोर-ज़ोर वह चिल्लाया,
बिल्ली आयी..बिल्ली आयी,
दुम दबाके भागे सारे,
बूढा चूहा बोला हँसके,
बिल्ली से क्या खाक लडेंगे,
ए तो हैं पक्के चूहे..
***************************
"monoplay"
************
कोई कहता ए करो,
कोई कहता वो करो,
जल्दी-जल्दी उठ के भागो,
होम वर्क भी सारा कर लो,
अब थोड़ा सा खा लो,
और इसको भी पी लो।
आगे तुमको बढ़ना है,
Strong भी तो बनना है।
अब मुझको देखो
सोचो तब,
कित्ता बड़ा ..
हूँ ही मै,
बोझ लाद दिया ..
मुझ पर इत्ता,
अरे .. सोचो ..
कैसे उठाऊँ मै?
कितनी आफत मुझको है?
किसको बतलाऊँ मै?
सोऊँ कब???
खेलूँ कब???
बच्चा हूँ मशीन नहीं,
कैसे समझाऊँ?
मम्मी, पापा, मैम..
आप कहो तो,
थोड़ा ...
खेल के आऊँ मैं..
©️rajhansraju
*******************
***************************
"monoplay"
************
कोई कहता ए करो,
कोई कहता वो करो,
जल्दी-जल्दी उठ के भागो,
होम वर्क भी सारा कर लो,
अब थोड़ा सा खा लो,
और इसको भी पी लो।
आगे तुमको बढ़ना है,
Strong भी तो बनना है।
अब मुझको देखो
सोचो तब,
कित्ता बड़ा ..
हूँ ही मै,
बोझ लाद दिया ..
मुझ पर इत्ता,
अरे .. सोचो ..
कैसे उठाऊँ मै?
कितनी आफत मुझको है?
किसको बतलाऊँ मै?
सोऊँ कब???
खेलूँ कब???
बच्चा हूँ मशीन नहीं,
कैसे समझाऊँ?
मम्मी, पापा, मैम..
आप कहो तो,
थोड़ा ...
खेल के आऊँ मैं..
©️rajhansraju
*******************
सक्षम
********
ए तो बड़ा सच्चा है ,
नटखट छोटा बच्चा है ,
झटपट करता रहता है,
सरपट चलता रहता है,
खटपट थोड़ी हो गयी है,
समझो गड़बड़ हो गयी है,
देखो, पकड़ो, जल्दी इसको,
भागम भाग मचाया है,
उथल पुथल सब हो गया है,
जब से!
घर में आया है।
=
चिड़िया
***********
देखो चिड़िया रानी को,
बड़ी सयानी नानी को.
तितली फूल पे बैठी है,
रंग बिरंगी लगाती है.
दूध में मलाई है ,
बिल्ली घर में आई है.
चूहा अभी जागा है,
बिल्ली देख के भगा है.
पापा जल्दी आए हैं,
लड्डू-पेडा लाए हैं.
अब जल्दी जाता हूँ,
एक मिठाई खाता हूँ.
मत पीना चाय-वाय,
नमस्ते, टाटा, बाय-बाय.
=
*******************
गुड़िया
************
सुबह-सुबह चिड़िया बोली,
उठ जा प्यारी गुड़िया बोली.
जल्दी-जल्दी तुम उठ जाना,
अच्छे से फिर खाना खाना,
मन लगाके करो पढाई,
ना किसी से करो लड़ाई.
सच्ची बात हरदम करना,
अच्छा सच्चा तुमको बनना.
©️rajhansraju
*********************
=
चिड़िया
***********
देखो चिड़िया रानी को,
बड़ी सयानी नानी को.
तितली फूल पे बैठी है,
रंग बिरंगी लगाती है.
दूध में मलाई है ,
बिल्ली घर में आई है.
चूहा अभी जागा है,
बिल्ली देख के भगा है.
पापा जल्दी आए हैं,
लड्डू-पेडा लाए हैं.
अब जल्दी जाता हूँ,
एक मिठाई खाता हूँ.
मत पीना चाय-वाय,
नमस्ते, टाटा, बाय-बाय.
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गुड़िया
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उठ जा प्यारी गुड़िया बोली.
जल्दी-जल्दी तुम उठ जाना,
अच्छे से फिर खाना खाना,
मन लगाके करो पढाई,
ना किसी से करो लड़ाई.
सच्ची बात हरदम करना,
अच्छा सच्चा तुमको बनना.
©️rajhansraju
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