हिन्दी कविता | घरौंदा | hindi poems
घर की तलाश
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ससुराल में उम्र की
तमाम हदें
पार कर लेने के बाद
अब भी जब
घर का जिक्र होता है
उसकी जुबान पर
मायके का नाम आता है
हलांकि कि उम्र कितनी हो गई
यह भी याद नहीं
नाती पोतों को कहानी सुनाती है
इसी बहाने
बचपन में लौट जाती है
अपने आंगन में खिलखिलाती है
किस जिद पर मुंह फुला के बैठी है
अक्सर यह पता नहीं होता
कोई जल्दी से मनाले
भूख कसके लगी है
आज खाने में
कुछ अच्छा बना है
जिसे देखो
मुस्करा के निकल जाता है
जैसे मेरी परवाह ही नहीं है
इस उम्र में भी
वह अक्सर
गुमसुम होकर बैठ जाती है
वैसे ही
शायद
अब भी कोई मना ले
कुछ देर बाद
उसे याद भी नहीं रहता
किस बात पर
वह रूठ के बैठी है
एक बदमाश नाती
उसकी गोद में आ गया
जो फरमाइशें
लगातार करने लगा
बुढ़िया सब भूल गयी
अपना बचपन जीने लगी
मगर अब भी वह
अपने घर जाना चाहती है
हलांकि
जिनसे मिलना है
अब वहाँ पर उनमें से
कोई रहता नहीं है
पर क्या करे?
ए घर-आंगन
कभी छूटता नहीं
उसे अपने घर जाना है
आज सुबह से
इस जिद पर
गुमसुम
मुँह फुला के बैठी है
©️Rajhansraju
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(2)
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एक बहुत बड़े कमरे में
छोटे-छोटे बच्चे
अपने बिस्तर पर
बड़ी खामोशी से
एकदम अनुशासित
समय से सब कुछ मिल जाता है
कोई भी बच्चा रोता नहीं
पहली बार सुना-देखा
बड़ा अचरज हुआ
इतने छोटे बच्चे?
रोते नहीं है?
भला ऐसा भी होता है क्या?
फिर ऐसा है तो क्यों है?
इसी उधेड़ बुन में
अनाथालय की बड़ी इमारत से
बाहर निकल आया
कुछ दूर यूँ ही चलता रहा
पगडंडी किनारे छोटी सी झोपड़ी है
जिसमें चाय की एक दुकान है
अधनंगे बच्चे धूप में खेल रहे
जरा-जरा सी बात पर झगड़ पड़ते हैं
वो सामने अपनी दादी से
अपनी किसी जिद पर अड़ा है
वो भी हंस रही है
उसकी कान में कुछ कहा
मामला सलट गया
बच्चों को पता है
माँ बापू दादी बाबा...
हर वक्त उन्हें सुनने वाले हैं
हाँ यही बात
वहाँ अनाथालय में भी
सभी बच्चों को पता है
उन्हें सुनने वाला कोई नहीं है
इसलिये...
वह रोते नहीं है
©️rajhansraju
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(३)
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वह सिर्फ,
आवाज हो तो हर्ज नहीं है,
शोर बनने बनाने का,
अजब चलन है।
कौन कहे,
चुप रहकर भी इबादत होती है,
उसे तो किसी जुबान की,
जरूरत नहीं होती।
©️rajhansraju
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(४)
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कुछ भी यूँ ही
सब कुछ समेटना चाहता है
एक ही आंगन में
अब भी रहना चाहता है
जबकि सब
एक दूसरे से जुदा है
जो जैसा है
बस वही
होना नहीं चाहता है
©️rajhansraju
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(५)
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अजीब लोग हैं
अब भी खुद को आदमी कहते हैं
जबकि आदमी जैसा
कुछ भी बचा नहीं है
जिंदगी सस्ती है
बस बात इतनी है
दुकान कौन सी है,
और खरीदार कौन है?
बिकने वालों की कोई कमी नहीं है
कीमत अच्छी मिले
इसके लिए परेशान हैं
हर शख़्स बाजार में हिस्सा चाहता है
बहुत चीख रहा है
कीमत ज्यादा चाहता है।
वह आदमी जो दिन-रात
लोगों के लिये जाग रहा है
उसे किसी शिकायत की फुर्सत नहीं है
कई दिनों से घर नहीं गया है
इसी वजह से
अस्पताल की नब्ज़ चल रही है
जो लोग फुर्सत में है
जो फिक्र के जिक्र में परेशान हैं
करते कुछ नहीं
बस आहिस्ता से लड़ने वालों का
हौसला तोड़ देते हैं,
ठीक है आदमी जैसा होना
कुछ नहीं कर सकते
अच्छा नहीं बोल सकते
कोई बात नहीं है
बहुत कठिन नहीं है
चुप रहना,
आप क्या हो
यह बताने की जरूरत नहीं है
आपको हर आदमी
आपकी तरह ही जानता है।
माना आपदा बहुत बड़ी है
कमियों में कोई कमी नहीं है
इसके बावज़ूद लड़ रहे हैं
पीछे कहाँ हट रहे हैं
वह जो सब कुछ
दुरुस्त करने में लगा है
थोड़ी सी तालियां,
शाबाशी चाहता है
यह वक्त है एक दूसरे को
हौसला देने का
सब ठीक हो जाएगा
बस यही कहना है
©️Rajhansraju
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(६)
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गीले मौसम की खुमारी
इस तरह छा गई
कौन कौन है?
सब गुम हो गया
धुंध हटी
चेहरा
खो गया
©️Rajhansraju
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(७)
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श्मशान से लौटकर
मुर्दों के बीच फिर आ गया
जिंदा होने की निशानी
खुद में तलाशने लगा
अब तो याद भी नहीं आता
कब मैंने आखरी बार
अपनी धड़कन सुनी थी
©️Rajhansraju
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(८)
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हर काम
बेहतर तरीके से करें
यह बात तो ठीक है
मगर लोग यह क्यों कहते हैं
इस काम को रोककर
उस काम को करो
जबकि इस काम का
उस काम से
कोई संबंध ही नहीं है
सारे काम कोई एक शख़्स
अकेले तो नहीं कर रहा है
शिकायत इस बात की होनी चाहिए
जिसको जो करना चाहिए
वह शख़्स वह काम
क्यों नहीं कर रहा है?
हर आदमी का जिम्मेदारी में
अपना-अपना हिस्सा है
ए जो भी बुरा-बुरा है
उसमें भी
वह आम हो या खास
हर आदमी
कम या ज्यादा मौजूद रहता है
फैसला हम सबका अपना है
जिम्मेदारियों का बोझ उठाना है
या फिर जो गलत है
बहुत बुरा है
चुपचाप उसका हिस्सा
बने रहना है
©️Rajhansraju
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(९)
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अगली सुबह पर यकीं करके,
अपनी राह,
बिना शिकवा चलते रहे,
अबकी बार,
चलो सब ठीक हो जाएगा,
यह सोचकर,
पिछला भूलकर किसी तरह उठे,
फिर चलने लगे,
और..
हर बार की तरह,
इस बार भी कारवां लुटा,
हम चुपचाप देखते रहे,
अब इस यकीं का क्या करें?
किसी काम का यह लगता नहीं।
रहबर के बारे में किससे क्या कहें?
चेहरे और मुखौटे का फर्क
पता चलता नहीं,
किसके पीछे कौन है?
और कौन शोर करता है,
उसकी आवाज तेज है,
चोर चोर कहता है,
जबकि हमारे चारों तरफ,
एक मजबूत घेरा है,
कौन किसको किसके आगे,
लेकर चल रहा,
इस गोले को देखकर,
समझ में आता नहीं,
हो रहा है जो सच में,
कमबख्त नजर आता नहीं..
हर शख्स,
बस अपने हिस्से के इंतजार में
कारवां पर आँख गड़ाए बैठा है,
©️Rajhansraju
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(१०)
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बाजार में खूबसूरत
जिल्द वाली किताबें सजी थी
वह हर समय उन्हें ही
खरीदना चाहता था
मगर पैसे बहुत कम थे
ऐसे में किताबों तक
हाथ भी नहीं पहुंच पाता
वह रोज
जिंदगी की किताब पढ़ता रहा
उन्हीं के पन्ने लकीरों से भरता रहा
फिर एक दिन ऐसा हुआ
एक खूबसूरत किताब
उसने किसी तरह खरीदी
उसके सारे पन्ने कोरे थे
किसी पर कोई शब्द नहीं था
जिसे वह किताब समझ रहा था
वह सिर्फ खूबसूरत जिल्द था
©️Rajhansraju
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(११)
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हालांकि वह मिन्नते
मांगता फिरता है
मगर अजीब आदमी है
खुद को खुदा समझता है
जो कहता है और जो करता है
उसमें कुछ भी
एक जैसा नहीं रहता
दुआओं में हाथ भी उठाता है उठाता है
दुआ भी तो नहीं मांगता है
और फिर अफसोस करने
बैठ जाता है कि
मैंने तो तुमसे यह नहीं मांगा था
और वह भी नहीं मांगा था
जिस चीज को
तूँ मुझे देता फिरता है
इसमें तो
मेरी कोई रजा नहीं थी
फिर क्यों
मुझे तुमने यह सब कुछ अता किया
यकीन मानो मुझे यह सब नहीं चाहिए
मगर खुदा के बंदे
खुदा तो नहीं हो सकते
और अक्सर क्या कब मांगा था
यह याद भी नहीं रहता नहीं रहता
और खुदा ने
कब कौन सी फरियाद सुन ली थी
यह खुदा को भी पता नहीं रहता
और उसकी झोली में न जाने
क्या-क्या दे दिया करता है
ऐसे ही एक दिन
वह कुछ बड़बड़ा रहा था
और न जाने क्या-क्या
मांगे जा रहा था
और खुदा बड़े ध्यान से
उसकी बात सुन रहा था
और लग रहा था
आज बड़ी फुर्सत में हो
और उसी की बात सुन रहा है
ऐसे ही सब कुछ उसे देता गया
और उसने यह भी कहा भी कहा था
यह दुनिया
उसके किसी काम की नहीं है
इस दुनिया की
कोई भी चीजनहीं चाहिए
और ऐसा कहते ही
उसे वह सब मिल गया
और दुनिया
उसके काम की नहीं रही
ना वह दुनिया के
किसी काम का नहीं रहा
©️Rajhansraju
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(१२)
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जो इश्क को
थोड़ी सी हवा दे देता है
तो चेहरे पर सबके,
मुस्कराहट आ जाती है
वह खूबसूरत
शरारतों का जादूगर है
बड़े इत्मिनान से
गुदगुदी कर देता है
वह पूरे शहर को
कुछ इस तरह से
खिला-खिला रखता है
©️Rajhansraju
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(१३)
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उनके कारोबार का,
तरीका यही है,
कब किस लाश पर,
मातम मनाना है,
इसका फैसला,
बड़ी खूबी से करना है,
किस घर की चौखट पर,
कौन सा निशान है
कफन का रंग क्या है
आदमी किस जमात का है
©️rajhansraju
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(१४)
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एक मौन
किसी अंतराल में
ठहर गया
बोलते-बोलते वह
चुप हो गया
अक्सर ऐसा होता है
हमारे बीच खामोशी
पसर जाती है
जैसे कुछ कहने को नहीं रहा
जबकि हर आदमी
बड़े इत्मिनान से
मौन सुन रहा है
जहाँ शब्द नहीं हैं
वहाँ
आकार गढ़ रहा है
शायद
मौन समझने का यही तरीका है
मौन हो जाना
©️Rajhansraju
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(१५)
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जिस आदमी से
तूँ इतना नाराज है
उसके बारे में
न जाने क्या-क्या
कह रहा है
गौर से देख
तेरे सामने
सिर्फ़
आइना है
©️Rajhansraju
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(१६)
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वक्त पर रोज निकलता हूँ
ढ़ल जाता हूँ
किसी दरख़्त जैसा
सफर करता हूँ
हर पल..
वक्त के साथ
बढ़ जाता हूँ
ए ठहरन...
आदत बन गयी है
सोचता हूँ...
कुछ दूर निकल जाऊँ
बहुत चलता हूँ
कहीं जा नहीं पाता हूँ
©️Rajhansraju
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(१७)
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राम-राम
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मैं सिर्फ़ माटी की मूरत नहीं हूँ
मैं तो पूरी अयोध्या हूँ
मेरे राम मुझमें रहते है
जहाँ दीप नहीं बुझता है
मन का अंधियारा जब बढ़ता है
राम-राम कहता हूँ
मैं उस पल में ही
अपना दीप बन जाता हूँ
दूर अंधेरा करने
ऐसे ही चल पड़ता हूँ
हर चौखट पर,
धीरे से दस्तक दे देता हूँ
रात बहुत अंधेरी है
दिया जलाकर रखता हूँ
तुममें राम हैं
तुम ही अयोध्या हो
घट-घट में बसते हैं
वह सरयू धारण करते हैं
अंदर अहर्निश बहते है
जब घनघोर अंधेरा होता है
वह हम सबमें
एक दीप प्रज्वलित रखते हैं
नाम उनका लेते ही
सब राम-राम हो जाते हैं
©️Rajhansraju
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(१८)
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नींद
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यह अकेले,
खुद को संभालने की कोशिश,
आँख से नींद,
नाराज है गई हो जैसे,
जिसके इंतज़ार में पूरी रात,
न मालूम कैसे गुजरती है,
तन्हा...
पलकों पर,
उसकी दस्तक सुनना चाहता हूँ,
अब आ भी जाओ,
मैंने आँख बंद करली है,
तुम्हारी आगोशी की चाहत में,
बेचैन हो रहा हूँ,
मैं बहुत अकेला.. हूँ,
तुममें खो जाना चाहता हूँ,
बहुत कुछ कहने की हसरत,
मगर कहें किससे?
खुद की तलाश में,
गुम हो गया हूँ
किसी सफर पर निकला था,
न जाने कबसे,
रास्ता बन गया हूँ
©️Rajhansraju
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(१९)
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इस रंग बिरंगी दुनिया के,
दस्तूर निराले हैं प्यारे प्यारे प्यारे
सब रंगे है इसके रंग में,
और खूब तमाशा करते हैं,
अपनी कुव्वत के माफिक,
उसने भी रंग लगाया है,
अपना चेहरा भला किसे,
यहां नजर आया है,
दूसरी शक्लें देख कर,
खूब हंसता रहता है,
सब को ना जाने,
क्या-क्या कहता रहता है,
जबकि वह भी,
औरों जैसा है,
इस रंगीन तमाशा का,
वह भी हिस्सा है
©️Rajhansraju
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(२०)
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एक शेखचिल्ली
जो बद-जुबान, बातूनी है
आइने की नुमाइश करता है
कभी-कभी लोगों के सामने,
उसे किसी पर्दे से ढ़क देता है
जिन्हें गुरूर होता है
खुद की शख्सियत पर
उनके सामने,
बड़े आहिस्ता से,
उनका अक्स आ जाता है
आइना तो अब भी,
वैसा ही है,
कमबख्त..
चेहरा चटक जाता है
©️Rajhansraju
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🌹🌹🌹❤️❤️❤️❤️🙏🙏🙏🌹❤️❤️🌹🌹
सभी बन्दे नेक हों तो गुनाह कौन करेगा?
ऐ ख़ुदा मेरे दोस्तों को सलामत रखना
वरना मेरी सलामती की दुआ कौन करेगा
और रखना मेरे दुश्मनों को भी महफूज़
वरना मेरी तेरे पास आने की दुआ कौन करेगा...!!!
Mirza Ghalib’s 220th birthday. So many great lines...
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मकान मे कब से हैं, घर की तलाश अब भी है
ReplyDeleteइसी का नाम जिंदगी है
Deleteशुक्रिया
ReplyDeleteकहते हैं कब्र में सुकून की नींद आती है
ReplyDeleteअब मजे की बात ए है की ए बात भी
जिंदा लोगों ने काही है