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Hindi Kavita | Khuda haafiz

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"खुदा हाफ़िज़"       इस्लाम और नवी की  शान बढ़ाने के लिए हमारे मुसलमानों ने फैसला किया  जुमे की नमाज के बाद  आगजनी, पत्थरबाजी के लिए  सबसे वाजिब वक्त है  सुना है खुदा ने काफिरों को  इतनी ताकत दे दी है  कि वह गुस्ताखियां कर सके  जबकि उसकी मर्जी के बगैर  एक पत्ता नहीं हिलता  जल्दी पता करो  कहीं ऐसा तो नहीं है  वह काफिरों में  काफिरों के साथ रहने लगा हो गौर से देखा तो  सभी शक्लें एक जैसी हैं  और उसे बाहरी रंग रोगन से  कोई मतलब नहीं है  हमने तमाम मजहब को  मानने वाले देखे जिनके काम से यही लगता है   जिसे वह मानते पूजते हैं  वह एकदम कमजोर  आदमी जैसा है  तभी तो उसे  किसी ना किसी का डर रहता है  उसे तमाम शब्द चुभते हैं  जिसे हम खुदा करते हैं  वह भी हमारी तरह मर जाएगा  शायद इस बात से डरते हैं  इंसान अपनी कमजोर कंधों पर  उसकी जिम्मेदारी ले रखी है  भीड़ बनकर बे-चेहरा हो गया है  नारों का शोर है  लाठियों का जोर है  अब ए भी अभी बताओ  खुदा कहां और किसमें नहीं है  मैं काफिर हूँ तो क्यों हूँ?  उसको कैसे मानूंँ या ना मानूँ  क्या इसमें उसकी रजा नहीं है  या फिर यह कह दो काफिरों पर  उसका जोर चलता न