दृष्टि | Drishti
दृष्टि
वैसे भी करने को कुछ नहीं है,
आओ हिन्दू-मुसलमान खेलते हैं,
वास्तव में पूरी दुनिया में,
किसी खतरे का,
पहले जिक्र होता है,
फिर उसकी राजनीति,
शुरू हो जाती है,
इस खेल में असली खतरा,
किसको किससे है?
ए समझना,
उतना मुश्किल नहीं है।
फिलहाल हम गाय की बात,
करना चाहते हैं,
पर गाँव की नहीं,
जो गाय को चाहिए,
हमारी गाय सड़क किनारे,
कूडेदानों में खाना ढूँढती हैं,
वही एकदम,
गंगा माँ वाली कहानी है,
अब गंगा स्वच्छता नहीं,
गंगा बचाओ अभियान चलाना होगा,
फिर सरकारी पैसे की बंदरबाट,
घोटाला होगा,
चलो अच्छा है गंगा को,
किसी खास जात-मजहब से,
खतरा नहीं है।
नहीं तो अब तक न जाने,
कितने फतवे जारी हो जाते,
फिर घाटों का रंग क्या होता?
थोड़ी अकल लगाओ,
थोड़ा समझो भाई,
खतरा किसको, किससे है??
लोग डरते हैं, खुद के सच से,
अच्छी शिक्षा, कमजोरों के हक से,
महिला की आजादी,उसके कपड़ों से,
जबकि हम बेमकसद, बेगैरत भी हैं,
अब भी खेत, सूखे हैं,
किताबें नहीं हैं,
बच्चों के हाथों में,
गाँव बचे हैं काफी,
वहाँ अब भी अँधेरा रहता है,
लेकिन गाली देने का हुनर,
हमें खूब भाता है,
अच्छा हिन्दुस्तान कैसा हो?
सोच के देखो,
नए संदर्भ में एक बार,
"हिन्द स्वराज" पढ़कर देखो,
कौन कहता है?
मानो उसको,
सब झूठा है कह देना,
लेकिन उससे बेहतर,
विकल्प मिले तो बतला देना,
जबकि तुम तो काबिल हो,
जैसा कि तुम कहते हो,
फिर उस अधनंगे बापू से क्यों डरते हो?
खतरा कभी खत्म नहीं होता,
जब तक खुद खतरा होते हैं,
किसी जात, धरम का दुश्मन,
कोई और नहीं होता है,
उसको मानने वाले,
जब उसको संदूको में,
बंद कर देते है,
ऊपर से उस पर,
खाना, कपड़ा, सभ्यता, संस्कृति,
वाला ताला जड़ देते हैं,
जबकि वो तो नदी है,
हाँ गंगा है,
जिसको हरदम बहना है,
फिजाओ के साथ बदलना है,
जो इन्द्र धनुष है,
आसमान में दिखता है,
जबकि तेरे हाथ में,
जो निशानियाँ हैं,
खुदा ने नहीं,
किसी दुकानदार ने रखा है।।
©️rajhansraju
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(२)
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(6)
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(२)
जय सियाराम
राम सबके,
क्यों कि राम हम सब में हैं,
राम को भी यही पता था,
यहाँ सिर्फ इंसान हैं।
पर!!
एक दिन अदालत का सम्मन आया,
तब उनको मालूम हुआ,
जिसका पूरा जहाँ है,
उसके लिए भी,
जमीन का विवाद है।
खैर! अच्छा हुआ,
उनको भी पता चला,
मंदिर-मस्जिद में फर्क है,
इंसान??
इंसान के अलावा बहुत कुछ है,
जिसने सब कुछ बनाया,
उसके लिए?
लड़ने का दावा करते हैं,
पर!
इसके लिए,
पता नहीं क्यों?
खुद को,
हिन्दू-मुसलमान,
कहते हैं।
rajhansraju
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(३)
पत्थर का खुदा
हाँ! मैने
बहुत मिन्नतें की,
और लोगों ने भी
तमाम जतन किए
पर! उसने,
न तो कुछ सुना
और न कुछ देखा,
उसकी हर चौखट पर,
बड़ी उम्मीद से गया,
शायद! अबकी
दुआ कबूल हो जाय,
यह दुनिया थोड़ी सी,
उसके लिए हसीन हो जाय,
सारी कोशिश नाकाम रही
कोई तरकीब काम नहीं आयी
वह वैसे ही अपनी जगह कायम रहा
न कुछ देखता है, न सुनता है
इसमें भी उसका कोई दोष नहीं है
आखिर जिसको हमने खुदा कहा है
उसको हमने ही पत्थर से गढ़ा है।
rajhansraju
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(४)
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(४)
a temple in the moll
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इमारत बहुत ही शानदार
आसमान तक ऊँची है,
भव्यता, ऐश्वर्य
कोई मामुली चीज नजर आती है।
सब कुछ सोने की तरह,
महिमा मंडित हो रहा है,
इतनी ज्यादा रोशनी है कि,
कुछ नजर नहीं आता।
राधे राधे की आवाज हर जगह है,
पर यह कान्हा की पुकार तो नहीं है।
भला कृष्ण, राधा को
इतनी बार आवाज क्यों देंगे?
जबकि कान्हा से ही राधा बनी है,
और राधा में पूरे कृष्ण बसते हैं,
इस चमक दमक में,
जमुना की माटी और पानी नहीं है,
मेरे कान्हा की,
कोई निशानी नहीं है।
यहाँ सबकुछ है,
बस कान्हा नहीं है।
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(6)
नजरिया
फर्क नजरिए का है,
देखना नहीं आता,
वैसे भी हमारे बीच कितने शायर,
कितने मकबूल रहते हैं,
जिसने सीता-राम को अपने,
रग-रग में बसा रखा था,
उसका मजहब,
अब भी पूँछते हो?
अब भी पूँछते हो?
हम ही फैसला करें,
हमने क्या दिया?
क्या लिया?
क्या लिया?
अपनी हुनरमंदी से,
जिसने दिया,
उसे जहर दिया,
जो उसके सच कहने की सजा थी,
वह भी भला क्या करता?
उसे जहर दिया,
जो उसके सच कहने की सजा थी,
वह भी भला क्या करता?
लोग उस पर हँसते रहे,
और वह भी हंसने लगा,
पागल-काफिर,
कहकर गालियां देते रहे,
और वह रोशनी की तरफ,
इशारे करता रहा,
जब उसको सलीब पर चढ़ाया गया,
तब भी वह,
अपनी बात दुहरा रहा था,
नेकी का रास्ता दिखा रहा था,
जब उसका शरीर,
सिर्फ़ जिस्म रह गया था,
उस वक्त भी उसका हाथ,
ऊपर की तरफ था,
उसकी बात,
बहुत बाद में कुछ समझी गई,
यह समझ इस तरह हुई,
कारोबार होने लगा,
हर जगह उसके नाम वाले,
मंदिर-मजार बनने लगे,
कहते तो यही है
ए घर खुदा का है
उसका नाम कुछ इस तरह लेकर,
हर जगह व्यापारी रहने लगे,
यूँ ही न जाने कब से,
ए चलता रहा है,
सब समझने का दावा,
अब वह करता है,
जबकि कोई सलीब खाली नहीं है,
हर जगह विष भरे प्याले,
वैसे ही भरे पड़े हैं,
हाथ में खंजर है जिनके,
वही सबसे बड़े न्यायाधीश हैं,
जिन्होंने नाम तक नहीं सुना है,
वो दावा करते हैं,
वही समझते हैं,
और वह भी हंसने लगा,
पागल-काफिर,
कहकर गालियां देते रहे,
और वह रोशनी की तरफ,
इशारे करता रहा,
जब उसको सलीब पर चढ़ाया गया,
तब भी वह,
अपनी बात दुहरा रहा था,
नेकी का रास्ता दिखा रहा था,
जब उसका शरीर,
सिर्फ़ जिस्म रह गया था,
उस वक्त भी उसका हाथ,
ऊपर की तरफ था,
उसकी बात,
बहुत बाद में कुछ समझी गई,
यह समझ इस तरह हुई,
कारोबार होने लगा,
हर जगह उसके नाम वाले,
मंदिर-मजार बनने लगे,
कहते तो यही है
ए घर खुदा का है
उसका नाम कुछ इस तरह लेकर,
हर जगह व्यापारी रहने लगे,
यूँ ही न जाने कब से,
ए चलता रहा है,
सब समझने का दावा,
अब वह करता है,
जबकि कोई सलीब खाली नहीं है,
हर जगह विष भरे प्याले,
वैसे ही भरे पड़े हैं,
हाथ में खंजर है जिनके,
वही सबसे बड़े न्यायाधीश हैं,
जिन्होंने नाम तक नहीं सुना है,
वो दावा करते हैं,
वही समझते हैं,
तुलसी, कबीर को..
#rajhansraju
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➡️(45)Darakht
आइए "सूखे दरख़्त" की बात सुनते हैं
❤️❤️❤️
#rajhansraju
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(7)
शाहीनबाग
किसी बहाने,
उन दीवारों का दरकना,
जो तुझे बांधती हैं।
जबकि तूँ परिंदा है,
आसमान तेरा है,
तेरे पास पंख है,
और ए तेरे हैं,
यह एहसास जरूरी है,
सही-गलत का फैसला,
खुद ही तय करना है,
बस! बिखरे पड़े शब्दों को,
करीने से रखना है,
तुझे कोई,
क्या समझाए,
जब,
तेरे पास तालीम है,
चंद लकीरें खींचनी है
खुद को रौशन करना है,
बस..
पढ़ना है, पढ़ना है।
तूँ भीड़ बिना भी,
मुकम्मल है,
यकीं मानों,
तुझसे ज्यादा,
किसी को कुछ नहीं आता,
बड़ी-बड़ी बातों के लिए,
चंद किताबें पलटनी है,
तेरे पास तालीम है
तेरे हिस्से वाला सच,
तुझे ढूंढ़ना है
©️rajhansraju
आइए "सूखे दरख़्त" की बात सुनते हैं
❤️❤️❤️
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कहते हैं कब्र में सुकून की नींद आती है
ReplyDeleteअब मजे की बात ए है की ए बात भी
जिंदा लोगों ने काही है