Yatharth
यथार्थ
सुबह के वक़्त,
नुक्कड़ की दुकान पर,
नुक्कड़ की दुकान पर,
काफी भीड़ थी,
कई रंगों के,
बैनर पोस्टर लिए लोग खड़े थे।
बैनर पोस्टर लिए लोग खड़े थे।
भरपूर नाश्ता किया,
दोपहर में,
कहीं और खाने का प्रबंध था,
कहीं और खाने का प्रबंध था,
शहर में एक दिन की मजदूरी,
कम से कम दो सौ रूपए है,
इससे कम में कोई तैयार न था,
जैसे तैसे साथ में ,
नाश्ते और खाने से बात बन गई,
बंद कराने की तयारी पूरी हुई,
नए लाठी डंडे दिए गए,
कुछ नए नारे तख्तियों पर लिखे,
नेताजी ने क्रीज़ टाईट की,
कुछ ने कुरता-पजामा,
तो कुछ ने चमचमाती,
सफ़ेद पैंट शर्ट पहनी,
सफ़ेद पैंट शर्ट पहनी,
पैरों में बड़ी कंपनी का स्पोर्ट शू।
मीडिया चौराहे पर तैनात है,
नेताजी का जलूस चल पड़ा,
कुछ ठेले, खोमचे वालों को हडकाया,
साईकिल, रिक्शे से हवा निकाली,
कमज़ोर दुकानदारों की शटर गिराई,
बड़ी दुकाने ज्यादातर इन्हीं की थी,
पास खड़ी गाड़ियों में,
इन्हीं का सामान था।
इन्हीं का सामान था।
चौराहे पर,
किसी सरकार का पुतला फूँका गया ?
वैसे यह पुतला,
सफ़ेद कुर्ता-पजामा,पहने था,
सफ़ेद कुर्ता-पजामा,पहने था,
शायद नेताजी का ही पुराना कपड़ा था,
उन जैसा ही था।
उन जैसा ही था।
फोटो खिचाई की रश्म,
बखूबी निभाई गई,
सड़क पर लगा जाम बढ़ता रहा,
कोई बीमार था,
किसी की नौकरी का सवाल था,
नेताजी ने कुछ कहा,
चमचों ने ताली बजाई,
दोनों को उसका मतलब पता नहीं था,
सड़क पर बढ़ते काफिले के अन्दर,
गुस्सा उबलता रहा।
वहीं पुलिस का सिपाही बेमन खड़ा था,
वर्दी में भी आम आदमी ही था,
अपने साहब पर तरस खा रहा था,
बस एक मौका तलाश रहा था।
कुछ देर में इस पार्टी वाले चले गए,
दूसरी पार्टी को भी,
बंद कराने,
जाम लगाने का मौका देना था।
जाम लगाने का मौका देना था।
नाश्ते की दुकान वही थी,
उन्हीं तख्तियों पर,
दूसरे नारे पोस्टर लगने लगे,
फिर सब कुछ वही था,
सिर्फ सफ़ेदपोश की शक्ल बदल गयी।
काफिला अब भी वहीँ रुका पड़ा है,
वक़्त के इंतजार में,
अन्दर ही सुलग रहा है।।
©️rajhansraju
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©️rajhansraju
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आशिक
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एक आशिक माशूक के गम में,
दफ़न था.
अब किसी को नहीं चाहेगा,
ऐसा कसम था.
तभी एक फूल पास से गुज़रा,
दिल झूम उठा, लगा बहार आ गई.
कब्र छोड़ के भागा.
जैसे सालों बाद नींद से जागा,
आदत से लाचार प्रेमी,
हर फूल को अपना समझ लेता है.
उसके पीछे दिल का गुलदस्ता,
रख देता है,
रख देता है,
फूल को पता ही नहीं.
उसका बीमार आशिक,
उसका बीमार आशिक,
कहाँ पड़ा है,
आशिक हर मुस्कराहट पर,
रोज़ फ़िदा होता है.
माशूक अपनी राह चल देती है,
हँसना उसकी आदत है,
बस हँस देती है.
वह आशिकों को जानती है,
फूल के शिकार में बैठे है,
खूब समझती है.
ऐसा करते-करते आशिक न जाने कब,
खुद शिकार हो गया,
देवदास का दूसरा अवतार हो गया.
अपना जनाजा लिए रोज़ निकलता है,
दुःख-गम का तालाब लगता है,
नया फूल अब नहीं खिलेगा,
यह वादा रोज़ करता है.
अब डूब जाएगा ऐसा लगता है,
नहीं उठ पाएगा, यह भी सोचता है.
ऐसे में अचानक दुनिया बदल गयी,
एक खिल खिलाता फूल पास से गुज़रा,
जनाजा छोड़ के दीवाना बन गया,
कफ़न उसका शामियाना बन गया.
हालाँकि वह मुर्दा था,
खुद को झूठ से ढक रखा था.
तभी न जाने कहाँ से,
एक आइना दिखा !
अब कुछ नहीं था,
न वह था,
न माशूक थी,
सिर्फ आइना था.
©️rajhansraju
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आशिक आवारा
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इश्क में इतना परेशान होना,
तेरी सेहत के लिए,
अच्छा नहीं है,
यूँ मजनू बने फिरना,
किसे रास आता है,
सुना है दिल्ली में,
इसके नाम का एक टीला है,
मतलब मरने वाला,
वह कोई अकेला नहीं था,
ए इस तरह होने का,
दस्तूर बहुत पुराना है,
अब भी वैसे ही,
उसी लकीर पर चलना,
किसी के लिए ठीक नहीं है,
चलो कोई और जिक्र करते हैं,
देवदास को तो देखा होगा,
कमबख्त खुदको कैसे पी गया,
और रहम भी नहीं चाहता था,
इस हद तक डूबना,
अच्छा नहीं है,
जीने के लिए भूलना,
बहुत जरूरी है,
ऐसे ही अपने मुहल्ले के,
मजनूं की कहानी सुनाते हैं,
कुछ उम्र हुई,
उन्हें भी इश्क हुआ,
बड़ा शरीफ बच्चा था,
नाम जुगनू था,
आसपास ही अटका था,
कुछ दिन में ही,
बेचारा उदास हो गया,
लैला तेज थी,
उससे बहुत आगे निकल गई,
जबकि मिंया को अब भी,
उसका इंतजार है,
सारे दोस्त बता रहे हैं
इक्कीसवीं सदी का प्यार,
ऐसे ही होता है,
अच्छे विकल्प की तलाश में,
हर शख़्स रहता है,
पर अपने जुगनू को,
मंजनू का टीला ही पसंद है,
पुराने इश्क का भूत,
उतरता नहीं है,
काश इनकी आशिकी में,
थोड़ी सी,
आवारगी आ जाए,
मियाँ जुगनू,
किसी भी चांद के पीछे लग जाए,
पर नहीं उसे तो,
अब भी वही पड़ोस वाला चाहिए,
अरे मियां ए दिन है,
और वो कब से,
आफताब के साए में बैठे हैं,
जबकि तुम टिमटिमाते हुए जुगनू हो,
तुममें जो रोशनी है,
उसे भी दुम में दबा के रखते हो,
और यह रोशनी,
खुद के काम नहीं आती,
यह औरों को रास्ता दिखाती है,
या फिर मैं कहाँ हूँ?
शायद!
यह बताती है
©️rajhansraju
©️rajhansraju
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आशिक आवारा
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इश्क में इतना परेशान होना,
तेरी सेहत के लिए,
अच्छा नहीं है,
यूँ मजनू बने फिरना,
किसे रास आता है,
सुना है दिल्ली में,
इसके नाम का एक टीला है,
मतलब मरने वाला,
वह कोई अकेला नहीं था,
ए इस तरह होने का,
दस्तूर बहुत पुराना है,
अब भी वैसे ही,
उसी लकीर पर चलना,
किसी के लिए ठीक नहीं है,
चलो कोई और जिक्र करते हैं,
देवदास को तो देखा होगा,
कमबख्त खुदको कैसे पी गया,
और रहम भी नहीं चाहता था,
इस हद तक डूबना,
अच्छा नहीं है,
जीने के लिए भूलना,
बहुत जरूरी है,
ऐसे ही अपने मुहल्ले के,
मजनूं की कहानी सुनाते हैं,
कुछ उम्र हुई,
उन्हें भी इश्क हुआ,
बड़ा शरीफ बच्चा था,
नाम जुगनू था,
आसपास ही अटका था,
कुछ दिन में ही,
बेचारा उदास हो गया,
लैला तेज थी,
उससे बहुत आगे निकल गई,
जबकि मिंया को अब भी,
उसका इंतजार है,
सारे दोस्त बता रहे हैं
इक्कीसवीं सदी का प्यार,
ऐसे ही होता है,
अच्छे विकल्प की तलाश में,
हर शख़्स रहता है,
पर अपने जुगनू को,
मंजनू का टीला ही पसंद है,
पुराने इश्क का भूत,
उतरता नहीं है,
काश इनकी आशिकी में,
थोड़ी सी,
आवारगी आ जाए,
मियाँ जुगनू,
किसी भी चांद के पीछे लग जाए,
पर नहीं उसे तो,
अब भी वही पड़ोस वाला चाहिए,
अरे मियां ए दिन है,
और वो कब से,
आफताब के साए में बैठे हैं,
जबकि तुम टिमटिमाते हुए जुगनू हो,
तुममें जो रोशनी है,
उसे भी दुम में दबा के रखते हो,
और यह रोशनी,
खुद के काम नहीं आती,
यह औरों को रास्ता दिखाती है,
या फिर मैं कहाँ हूँ?
शायद!
यह बताती है
©️rajhansraju
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लिखूं फसाने इश्क के,
क्या करूं लाचार हूंँ,
कमबख्त हर वक्त,
यह अक्ल आड़े जाती है,
वैसे भी इश्क में,
अक्ल का कोई काम होता नहीं है,
फिर महबूब से ज्यादा,
खाने पर नजर हो तो,
रोजा टूट ही जाता है,
और इफ्तरी हो जाती है,
फिर जिससे,
इश्क की गुंजाइश रहती है,
वो अगले रोजे तक,
कुछ और हो जाते हैं,
कोई इंतजार भी क्यों करें,
जब उन्हें ईद की शिद्दत हो,
और यहाँ लोग,
बेवजह रोजे रखते रहें
©️rajhansraju
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इश्क और अक्ल
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सोचता हूँ,लिखूं फसाने इश्क के,
क्या करूं लाचार हूंँ,
कमबख्त हर वक्त,
यह अक्ल आड़े जाती है,
वैसे भी इश्क में,
अक्ल का कोई काम होता नहीं है,
फिर महबूब से ज्यादा,
खाने पर नजर हो तो,
रोजा टूट ही जाता है,
और इफ्तरी हो जाती है,
फिर जिससे,
इश्क की गुंजाइश रहती है,
वो अगले रोजे तक,
कुछ और हो जाते हैं,
कोई इंतजार भी क्यों करें,
जब उन्हें ईद की शिद्दत हो,
और यहाँ लोग,
बेवजह रोजे रखते रहें
©️rajhansraju
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राम-राम
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रावण रक्षा मंच की एक भावुक अपील:
😀😀😀
😀😀😀
😀😀😀
दशहरा ब्राह्मणों का मुहर्रम है
😀😀😀
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😀😀😀
**************
हमने सोचा,
जाति बोध जगाते हैं,
जाति बोध जगाते हैं,
रावण के पक्ष में,
खड़े हो जाते हैं,
खड़े हो जाते हैं,
कहीं इस बाजार के दौर में,
ऐसा न हो जाए,
ऐसा न हो जाए,
जिनका जाति वाला,
रिश्ता नहीं है,
रिश्ता नहीं है,
कोई एक्टिविस्ट खड़ा हो जाए,
रावण के मानवाधिकार के लिए,
रिट फाइल कर दे,
रिट फाइल कर दे,
और रावण उसका हो जाए,
बेचारा, दलित, अल्पसंख्यक,
बिरादरी का घोषित हो जाए
बिरादरी का घोषित हो जाए
हे ब्राह्मण पुत्रों जागो,
अपने रावण को बचा लो,
अपने रावण को बचा लो,
हर साल जलाने वालों के खिलाफ,
मुहिम चला दो,
मुहिम चला दो,
बाजार का तो नियम यही है,
बिकता वही है,
जिसका डिमांड है,
वैसे भी रावण सर्वव्यापी, सर्वमान्य है,
गौर से देखो वही आदर्श,
वही अभिमान है,
राम किसे चाहिए?
उनको तो आज भी वनवास है,
जबकि रावण आकर्षक, शानदार है,
यहाँ हर किसी को लंका की दरकार है,
रत्न जड़ित सिंहासन,
स्वर्ण का अम्बार हो,
स्वर्ण का अम्बार हो,
उनको भला राम से क्या काम है?
क्यों लड़े वह रावण से,
अब वही उसकी पहचान है,
जबकि सच यह है कि,
रावण-राम दोनों बसते,
एक ही इंसान में,
और क्या बनना है,
यह तय करना,
है,
है,
हम सभी के हाथ में।
©️rajhansraju
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मोटापा
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©️rajhansraju
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मोटापा
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कहीं वेट जब बढ़ जाए,
खाना देख रहा न जाए,
समझो मोटापा दूर न जाए.
चाट-पकौड़ी मन को भाए,
आइसक्रीम छूट न पाए,
मोटापा रोज़ बढ़ता जाए,
एक दिन सोचा ! भूखा रह ले,
खाना कुछ कम खा लें,
क्या खा कर वेट घटाएँ ?
सोचें ए कुछ कर न पाएं,
खाना देख सबर न आए,
दुगनी ताकत से फिर खाएं,
वेट ऐसे ही बढ़ता जाए,
सिवा पेट कुछ नज़र न आए.
©️rajhansraju
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फेसबुकिए
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➡️(5) Khud Ki Khoj
आज एक काम करते हैं
खुद की खोज में निकलते हैं
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(6)
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⬅️(5) (9) (13) (16) (20) (25)
(33) (38) (44) (50)
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फेसबुकिए
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फेस बुक पर बईठा हैन,
रात भर ई जागत हैन,
काठ क घोड़ा दउडावइं ,
दुपहर तक ई सोवत हैन.
गूगल के चक्कर में,
घनचक्कर बन जावत हैन,
छुप-छुप के ई कुछ ताकत हैन,
पढ़ाई लिखाई क बहाना कईक,
दूसर वीडियो झाँकत हैन,
बाडी क फिजियालाजी-एनाटामी,
सब जानत हैन,
प्राइमरी पास होतइ,
प्राइमरी पास होतइ,
मेडिकल साइंस बाँचत हैन,
पापा-मम्मी के अउतइ,
विकीपीडिया खुलि जावत हइ.
आन लाइन फ्रैंडन से,
दिन-रात बतियावत हैन,
समझ आई अब हमके,
उल्लू की नाहीं काहे?
दिन-रात ई जागत हैन,
अकल क बत्ती गुल कईक,
सब आँखन से ताकत हैन,
समझ न आवइ तबउ,
सब शेयर कर जावत हैन,
इहाँ क फोटो उहाँ लगाई,
दुसरे जगह से लेंइ चोराइ,
आपन वाल,
अइसइ रंगीन बनावत हैन.
अइसइ रंगीन बनावत हैन.
फर्जी नाम पता से,
लडिका, लड़की बनि जावत है.
कुछ फद्दी गन्दी फोटो पर,
सबक ध्यान जावत है.
पता चला ई वाली साईट,
काउनउ कंपनी चलावत है,
अइसइ पढ़ा-लिखा लोग,
लाइक-शेयर के चक्कर में,
नादानी कर जावत हैन,
एक छोटी सी क्लिक कइक,
लोगन क घर छुड़वत हैन,
हर-तरफ कइसन अफरा-तफरी,
मच जावत है,
जान बचावइ खातिर,
इहाँ-उहाँ सब भागत हैन,
हम तोहरे संग हई,
अब ई वाला क्लिक दबावत हैन,
सारी रात उल्लू जइसन,
बिना अकल, ई जागत हैन,
फेस बुक पर बइठा हई हम,
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⬅️(7)Dharohar*******************
➡️(5) Khud Ki Khoj
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