The Memories Makes The Man। Smriti

स्मृति

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बहुत दूर तक चला जाता हैं,
जब सफर आसान हो जाता हैं,
वह अब चलता नहीं,
उड़ने लगा है,
उसको पहिए नहीं,
"पर" लग गए हैं,
जी भरकर अपनी कहने,
ठहरने-सुस्ताने का चलन,
खत्म हो गया है,
दरख्त सूखकर,
खुद छांव तलाश रहा है,
हर कुएं पर,
रस्सी-बाल्टी हुआ करती थी,
कहीं कोई राहगीर,
प्यासा न रह जाए,
वहीं पास में कुछ टूटे, पुराने,
मिट्टी के बर्तन पड़े रहते,
हर आदमी जो पानी भरने आता,
थोड़ा बहुत पानी,
इनमें भर देता था,
चिलचिलाती धूप में,
सभी को,
पानी मिल जाता था,
ऐसे ही यह सिलसिला,
पूरे बरस चलता रहता,
हर डाल पर चिड़ियों का,
बुना हुआ,
घोसला हुआ करता,
जुगाली करती गाय-भैंसे,
मानो पूरी दुपहरिया,
मालिकों की चुगली कर रही हों,
वहीं एक बुजुर्ग,
झोपड़ी में बैठा रहता है,
हर आने जाने वाले को,
कुछ देर ठहरने को कहता है,
खाली पानी,
किसी को पीने नहीं देता,
हाथ में थोड़ी सी,
कोई मीठी चीज रख देता है,
उस आदमी की याद में,
वह बूढ़ा आदमी और मिठास,
किसी के लिए,
पूरी उम्र की सौगात बन जाता है।
आने वाले समय में,
यह बात,
ऐसे ही कही जाती रहें,
इस फिक्र में,
वह भी मिठास बाँटने लग जाता है,
और झोपड़ी वाला बुजुर्ग,
हर जगह रहने लग जाता है।
जबसे उसको पहिए लगे,
और वह उड़ने लगा है,
छांव में ठहरने का सिलसिला,
टूटने लगा है,
धीरे-धीरे नये पौधों को रोपना,
बंद हो गया है,
कूएँ से पानी खींचना,
एक भूली बात हो चुकी है,
वर्षों तलक रहट,
किसी कोने में,
इंतजार करता रहा,
पर कुएं के पानी से मुलाकात न हुई,
ऐसे ही विरानगी छाने लगी,
मीठा कुआं बिना हलचल के,
मौन होने लगा,
उसका पानी उसे ही डराता है,
वह बिमार होकर,
धीरे-धीरे सूखने लगा,
उसके रगो से निकलता पानी,
वहीं जमने लगा,
उसके जिंदा रहने की,
यही शर्त है,
उसका पानी लोग पीते रहें।
किसी को उसकी फिक्र नहीं है,
उसके सारे दरख्त,
साथ छोड़ चुके हैं,
आसपास कोई आहट नहीं होती,
वैसे भी पगडंडियों से,
कोई गुजरता नहीं है,
पानी, पीने-पिलाने का रिवाज,
खत्म सा हो गया है,
दुकानों में बोतलें सजी हैं,
पानी बिकने लगा है,
पानी.. मीठा होता है
यह बात अब..
बहुत कम लोगों को पता है,
वैसे भी उस कुएं को,
बगैर पानी हुए,
बहुत साल हो गये हैं,
यह मिठास बांटने की जिद,
उसी तरह कायम है,
वह जर्जर बूढ़ा कुआं,
खुद से बेखबर,
आज भी,
एक बूँद,
पीता नहीं है
©️rajhansraju
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मेरा गाँव बदल गया

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बंजारा 
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बंजारे ने बांध लिया
खुद को जंजीरों में
नाम दिया घर बार उसे
हुआ मस्त मलंग रे
यही कहता फिर रहा
सब मेरे अपने हैं
रिश्ते नातों की डोर बंधी है रे
एक दूजे से
उम्मीदों की जो बढ़ी लड़ी
उतना ही कमजोर हुआ रे
बंजारे ने बांध लिया खुद को जंजीरों में.. 

मुसाफिर ठहर गया
न गया कहीं तब से
एक छप्पर डाली
खाट बिछाई है उसने जब से
झूमता गाता
कहता है
यह घर उसका है रे...
यही उसकी मंजिल है...
जिसे ढूंढ रहा था वो
बंजारे ने बांध लिया खुद को जंजीरों में.... 

जिनको अपना कहता है
वह भी तो मुसाफिर है
एक दस्तक से ठहर गए हैं
साथ तेरे रह गए हैं
देखो अब भी चल रहे हैं
जंजीरों से लड़ रहे हैं,
उतने ही दिन के रिश्ते नाते
जितनी देर ठौर यहां रे
बंजारे ने बांध लिया खुद को जंजीरों में....
तूँ भी अपनी गठरी बांधे
हरदम रह तैयार रे
तूँ बंजारा भूल गया बंजारा है रे
जंजीरों को छोड़के
पल में हल्का होले
बंजारा तूँ बिन गठरी के
बैरागी हो ले
चलना तेरा काम है
उठ अब चल दे रे.. 

बंजारा छोड़के जंजीरो को
हुआ मलंग अब ऐसे ही
बिन गठरी के
छोड़ दिया सब जंजीरें
तोड़के बंधन को...
बंजारे ने ठान लिया 

अब बंजारा रहना है
ठहर गये हैं
जो कहीं
उनको लेकर चलना है
बंजारे ने छोड़ दिया
सब जंजीरों को
हुआ मलंग बिन जंजीरों के... 
बंजारे ने छोड़ दिया सब जंजीरों को
बंजारे ने तोड़ दिया सब जंजीरों को

हुआ मलंग... हुआ मलंग.. 

तोड़ के जंजीरों को

छोड़ दिया हर गठरी को

तोड़ दिया जंजीरों को.... 

©️Rajhansraju 

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 किसी को ढूँडते हैं हम किसी के पैकर में
किसी का चेहरा किसी से मिलाते रहते हैं
~आलम ख़ुर्शीद

हम-सफ़र चाहिए हुजूम नहीं
इक मुसाफ़िर भी क़ाफ़िला है मुझे
~अहमद फ़राज़

बस एक बार किसी ने गले लगाया था
फिर उस के बा'द न मैं था न मेरा साया था
#ज़फ़र_इक़बाल

धड़कते साँस लेते रुकते चलते मैं ने देखा है
कोई तो है जिसे अपने में पलते मैं ने देखा है
-आलोक श्रीवास्तव 

बच्चे मेरी उँगली थामे धीरे धीरे चलते थे
फिर वो आगे दौड़ गए मैं तन्हा पीछे छूट गया
~ख़ालिद महमूद 

मुझ को थकने नहीं देता, 
ये ज़रूरत का पहाड़, 
मेरे बच्चे, 
मुझे बूढ़ा नहीं होने देते। 

जैसा हूँ वैसा क्यूँ हूँ समझा सकता था मैं
तुम ने पूछा तो होता बतला सकता था मैं
~इफ़्तिख़ार आरिफ़

जो बात खुल चुकी है उसको, 
दिलो  में रख के  भी क्या करोगे। 
चलो इसी  ज़िन्दगी को जी ले, 
कहानी बन के भी क्या करोगे। 
    ~~शारिक कैफ़ी







चलो एक काम करते हैं,
वही..
लुका-छुपी वाला खेल,
याद है न..
वैसे ही खेलते हैं,
और एक दुसरे को..
ढूंढ लेते हैं,
Rajhans Raju






















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Comments

  1. 🌷💐🌹💝💖🏵️🌸

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  2. मेरी पहचान मेरी स्मृतियों से है

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  3. वह पेड़ भी बूढ़ा हो गया है
    पहले कई पेड़
    साथ हुआ करते थे
    आज अकेला हो गया है
    जब सब साथ थे
    धूप हवा पानी बांटने में लगे थे
    आज भी अपने हिस्से से ज्यादा
    कुछ ले नहीं सकता हैं।

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    Replies
    1. दुनिया के रंग देखो भइया
      कितनी रंग बिरंगी है
      शातिर है यह खेल उसी का
      और वही खिलाड़ी है

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  4. कबिरा खड़ा बज़ार में, लिया लुकाठी हाथ।
    बन्दा क्या घबराएगा, जनता देगी साथ।।
    छीन सके तो छीन ले, लूट सके तो लूट।
    मिल सकती कैसे भला, अन्नचोर को छूट।।
    आज गहन है भूख का, धुँधला है आकाश।
    कल अपनी सरकार का, होगा पर्दाफ़ाश।।
    (नागार्जुन)

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