The Memories Makes The Man। Smriti
स्मृति
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मेरा गाँव बदल गया
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बंजारे ने बांध लिया
खुद को जंजीरों में
नाम दिया घर बार उसे
हुआ मस्त मलंग रे
यही कहता फिर रहा
सब मेरे अपने हैं
रिश्ते नातों की डोर बंधी है रे
एक दूजे से
उम्मीदों की जो बढ़ी लड़ी
उतना ही कमजोर हुआ रे
बंजारे ने बांध लिया खुद को जंजीरों में..
मुसाफिर ठहर गया
न गया कहीं तब से
एक छप्पर डाली
खाट बिछाई है उसने जब से
झूमता गाता
कहता है
यह घर उसका है रे...
यही उसकी मंजिल है...
जिसे ढूंढ रहा था वो
बंजारे ने बांध लिया खुद को जंजीरों में....
जिनको अपना कहता है
वह भी तो मुसाफिर है
एक दस्तक से ठहर गए हैं
साथ तेरे रह गए हैं
देखो अब भी चल रहे हैं
जंजीरों से लड़ रहे हैं,
उतने ही दिन के रिश्ते नाते
जितनी देर ठौर यहां रे
बंजारे ने बांध लिया खुद को जंजीरों में....
तूँ भी अपनी गठरी बांधे
हरदम रह तैयार रे
तूँ बंजारा भूल गया बंजारा है रे
जंजीरों को छोड़के
पल में हल्का होले
बंजारा तूँ बिन गठरी के
बैरागी हो ले
चलना तेरा काम है
उठ अब चल दे रे..
बंजारा छोड़के जंजीरो को
हुआ मलंग अब ऐसे ही
बिन गठरी के
छोड़ दिया सब जंजीरें
तोड़के बंधन को...
बंजारे ने ठान लिया
अब बंजारा रहना है
ठहर गये हैं
जो कहीं
उनको लेकर चलना है
बंजारे ने छोड़ दिया
सब जंजीरों को
हुआ मलंग बिन जंजीरों के...
बंजारे ने छोड़ दिया सब जंजीरों को
बंजारे ने तोड़ दिया सब जंजीरों को
हुआ मलंग... हुआ मलंग..
तोड़ के जंजीरों को
छोड़ दिया हर गठरी को
तोड़ दिया जंजीरों को....
©️Rajhansraju
मुसाफिर और सफर:
ए कभी अलग-अलग नहीं होते
क्योंकि मुसाफिर के बगैर कोई सफर नहीं होता
💐💐🌷🌷💐💐
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(51)
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➡️ (1) (2) (3) (4) (5) (6) (7) (8) (9) (10)
(11) (12) (13) (14) (15)
चलो एक काम करते हैं,
वही..
लुका-छुपी वाला खेल,
याद है न..
वैसे ही खेलते हैं,
और एक दुसरे को..
ढूंढ लेते हैं,
Rajhans Raju
मुसाफिर और सफर:
ए कभी अलग-अलग नहीं होते
क्योंकि मुसाफिर के बगैर कोई सफर नहीं होता
💐💐🌷🌷💐💐
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(11) (12) (13) (14) (15)
मुसाफिर और सफर:
ए कभी अलग-अलग नहीं होते
क्योंकि मुसाफिर के बगैर कोई सफर नहीं होता
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ReplyDeleteमेरी पहचान मेरी स्मृतियों से है
ReplyDeleteवह पेड़ भी बूढ़ा हो गया है
ReplyDeleteपहले कई पेड़
साथ हुआ करते थे
आज अकेला हो गया है
जब सब साथ थे
धूप हवा पानी बांटने में लगे थे
आज भी अपने हिस्से से ज्यादा
कुछ ले नहीं सकता हैं।
दुनिया के रंग देखो भइया
Deleteकितनी रंग बिरंगी है
शातिर है यह खेल उसी का
और वही खिलाड़ी है
कबिरा खड़ा बज़ार में, लिया लुकाठी हाथ।
ReplyDeleteबन्दा क्या घबराएगा, जनता देगी साथ।।
छीन सके तो छीन ले, लूट सके तो लूट।
मिल सकती कैसे भला, अन्नचोर को छूट।।
आज गहन है भूख का, धुँधला है आकाश।
कल अपनी सरकार का, होगा पर्दाफ़ाश।।
(नागार्जुन)