Tanhai
©️rajhansraju
***********************
(2)
Accident
©️rajhansraju
******************
(३)
समझ
********
न कुछ सीखा,
कम से कम छाया देते,
मुर्झा जाते,
कुछ काम आते,
अफसोस ऐसा कुछ न हुआ
सदा की तरह,
लड़ते रहे
किसी कहा दुहराते रहे
यही सही है
यही सही है
हर तरफ़
इसी का शोर मचने लगा
जिन्हें सच पता था
वो चुपचाप
सारा तमाशा देखते रहे
जोर-जोर नारे लगाने लगे
ए आवाज और तेज होने लगी
दूसरी तरफ खामोशी,
सन्नाटे में बदल गई
जो बगैर आहट के,
खुद की मौन
खोजते रहे,
जबकि बाहर
जो जितना ज्यादा खोखला है
वहाँ उतनी ही जोर,
आवाज़ आ रही है
"सैलाब से कोई लड़ नहीं सकता"
पहाड़ से जब नदी
बहुत तेज बहती है
तब उसके रास्ते में
जो भी होता है
बहा ले जाती है
पूरा मंजर देख कर लगता है
जैसे अब पहाड़ की खैर नहीं
पहाड़ को भी
इसकी आदत पड़ गई है
जब नदी कुछ नाराज होती है
उसके लिये रास्ता बना देता है
वह जिस जगह चाहती है
थोड़ा सा दरक जाता है
नदी का गुस्सा
जैसे कुछ कम हो जाता है
अपने हिस्से का
पहाड़ लेकर चल देती है
ऐसे में इंसान के बनाए
छोटे-मोटे आशियाने
भला कैसे ठहरेंगे
उन्हें तो उसके साथ बहना होगा
नदी जैसे चाहेगी
चलना होगा।
वह तो बहुत धीरज रखती थी
आज इतना कैसे नाराज हो गई
वह भी इतने गुस्से में
जैसे रुद्र का अवतार हो गई
अक्सर ऐसा होता है
बहुत दिन चुपचाप
कहीं ठहरे रहें
मन ऊब जाता है
न जाने क्यों
सब बेकाबू हो जाता है
वह अपने ही किनारे
तोड़ने लग जाता है।
वह काफी दिन से गुमसुम थी
अपनों से गुस्सा थी नाराज थी
किनारे पर रहने वाले
लोगों ने
नदी का ख्याल नहीं रखा
बहुत दिनों से किसी ने
बात नहीं की
एकदम
उस बूढ़े आदमी की तरह
जैसे सबकी जरूरत
खत्म हो गई हो
वह घर के किसी कोने में
चुपचाप पड़ा है
घरवाले धीरे-धीरे उसको भूल गये हैं
मगर बूढ़ा आदमी
कुछ भूला नहीं है
एकदम नदी की तरह
उसे मालूम है
यह घर कैसे बना है
कहां पर कौन सी चीज रखी है
उसकी नींव में
कहाँ कमजोरी है
यही हाल नदी का है
घर वाले उससे मिलते नहीं
कोई खबर नहीं लेते
जबकि उसको उसके घर का
हर कोना जानता है
उसी ने इस घर को बनाया है
यह जो चारों तरफ
हरियाली दिख रही है
यही उसको बनाते हैं
वह भी इन्हीं में
रोज नये रंग-आकार भरती है
ऐसे ही न जाने कब से
एक दूसरे को गढ़ते हैं
इसी मिट्टी, पानी, हवा से सब बने हैं
यह पंच भूतों की कहानी है
जो नदी से गुजरती है
अब जरा गौर से देखें
इसमें कोई किसी से अलग नहीं है
ऐसे में जब सैलाब आता है
तो किसी इंसान की हैसियत नहीं है
वह उससे लड़ सके
बस उसे रास्ता देना है
उसका गुस्सा निकल जाए
कुछ दूर जाकर
शायद थक जाये
या फिर थोड़ा बदल जाये
उसके ठहरने का इंतजार करना है
सैलाब से किसी को लड़ना नहीं है
उसके रास्ते खाली रखना है
थोड़ा सा धीरज रखना है
पंच महाभूतों से सब बने हैं
हम सब ऐसे ही अंदर के
सैलाब से लड़ते रहते हैं
इसको हरा पाना
संभव नहीं है
क्योंकि जिसकी जो जगह है
उसको वहीं रहना है
अगर कोई
कहीं जाना चाहता है
तो हम रोक नहीं सकते
बस उसका रास्ता
खुला रखना है
©️Rajhansraju
******************
➡️(11)Zameen
रिश्ता जो आदमी को बहुत दूर जाने से
रोक लेता है जमीन में जड़े हैं यही बताता है
😁😁😊😊❤️❤️❤️
*****
(12)
******
ऐसे ही न जाने कब से
ReplyDeleteएक दूसरे को गढ़ते हैं
इसी मिट्टी, पानी, हवा से सब बने हैं
यह पंच भूतों की कहानी है