The Traveller। Musafir ki kahani
सफर की तैयारी
********
वह रोज अपनी गठरी में,
एक नई गांठ देता है,
सफर के लिए,
जरूरी सामान सहेज लेता है,
किसी पल,
बहुत कुछ याद आता है,
दूसरे लम्हें में,
सब भूल जाता है,
पगडंडियों से सफर करते-करते,
बहुत साल गुजर गये,
और कहाँ से चले थे,
अब उसकी याद,
ठीक से आती नहीं है,
अब इन्हीं रास्तों से,
लौट पाना मुमकिन नहीं है,
वैसे भी अब उन रास्तों के,
कोई निशान नहीं हैं,
वहाँ लौटकर जाएं किसलिए,
कोई खत भी आता-जाता नहीं है,
पहियों का सिलसिला जब से चला है,
लोग खुद से कदम मिलाते नहीं है,
अब रास्ते में ठहरने का रिवाज,
बंद हो गया है,
मुसाफिरों की कहानियां,
कोई कहता नहीं है,
कहने-सुनने के लिए,
जो बात सबसे जरूरी है,
ठहर कर,
थोड़ी सी बात करनी है,
कैसे क्या हुआ,
यही तो कहना है,
ए किस्से सबको सुनना चाहिए,
क्योंकि हर आदमी की हद है,
वह सब जगह जा पाता नहीं है,
ए चर्चे उसे,
उस दुनिया का परिचय कराते हैं,
जिसे उसने कभी देखा नहीं,
ऐसे ही कहानी सफर करती है,
न जाने किससे-किससे जुड़ जाती है,
वक्त वैसे भी ठहरता नहीं है,
अब इस सिलसिले को,
पहिए मिल गये हैं,
आजकल ए लगता है,
जैसे बहुत तेज चलने लगा है,
पगडंडियों से आया मुसाफिर,
सफर की जिद में बैठा है ,
उसको घर जाना है,
यही कहता रहता है,
जबकि पतझड़ का मौसम है,
ठहरने के लिये छांव,
बड़ी मुश्किल से मिलता है,
घरवाले क्या करें,
कुछ सूझता नहीं है,
किस घर?
उसे कैसे लेकर जाएं?
हर बार कल की बात पर,
ठहर जाती है,
उसका घर जाना,
एक और दिन टल जाता है,
ए झूठ हर शख्स उससे बोलता है,
उसको कल उसके घर पहुँचा देगा,
यही कहता है,
यह जाने की ख्वाहिश,
उसमें इस कदर है,
वह सामान बांधकर राह में बैठा है,
अब कोई उससे यह क्यों कह दे,
उसे जहाँ जाना है,
कोई सवारी इस राह से,
गुजरती नहीं है,
ऐसी ही न जाने कब से,
उसको इंतजार में बैठा,
घर का हर शख्स देखता है,
उसकी बात पर हंसता है,
कभी कुछ कह देता है,
जब कभी थोड़ी देर,
ठहर कर उसके चेहरे को,
गौर से देखता है,
अरे! वह तो,
एकदम साफ आइना है,
जिसमें अपनी सूरत नजर आती है,
हर शख़्स उसके सामने आकर,
ठिठक जाता है,
अपनी हकीकत को,
रूबरू पाता है,
यूँ ही हर तरफ,
मौन पसरता चला जाता है,
©️rajhansraju
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सही गलत : अपना-अपना जीवन दर्शन
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इंतजार
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🥀🥀🌷🌷
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इंतजार
*************
जब कोई घर से,
यात्रा के लिए निकलता,
वह बहुत दूर तक,
उसके पीछे-पीछे चलती रहती,
तब हम गांव में थे,
बहुत छोटे थे,
और इस बात का मतलब,
नहीं समझ पाते थे,
कोई जा रहा हो तो,
उसके पीछे कुछ दूर तक,
चलने से भला क्या हो जाएगा,
और किसी जाते हुए को,
विदा करना,
तब तक उसकी राह में,
खड़े रहना,
जब तक वह आंखों से
ओझल नहीं हो जाता,
और जाने वाला भी कई बार,
पलट कर उनकी तरफ देखता,
वह वहीं उसके इंतजार में खड़ी है,
जबकि वह धीरे-धीरे,
अपनी मंजिल की तरफ,
बढ़ता चला जाता है,
शायद जाने के बाद भी,
यह इंतजार की स्मृति,
उसके जेहन में,
हमेशा के लिए बैठ जाती है,
उसे लौट कर आना है,
क्योंकि उसके इंतजार में,
जिस रास्ते से वह आया है,
वहीं पर पर कोई है,.
जो अभी वैसे ही ठहरा हुआ है,
आज मैं शहर में रहता हूँ,
और दरवाजों के,
बंद होने की आवाज सुनता हूँ,
यहाँ हर तरफ गलियां हैं,
सड़कें हैं
इमारतें बहुत ऊँची हैं,
सीढ़ियों पर भी बहुत लम्बा,
सफर होता है,
ए आने-जाने का अंतहीन,
सिलसिला है,
हमारी आंखों के सामने से,
कोई बहुत जल्दी विदा हो जाता है,
उसका जाना दिखाई नहीं पड़ता,
हम दरवाजे पर खड़े हैं,
उसको ओझल होने में,
वक्त बहुत ज्यादा नहीं लगता,
चलिए हम भी,
अपने शहर में खूबसूरत,
स्मृतियाँ गढ़ते हैं,
इसके लिए बस थोड़ी देर,
दरवाजा खुला रखना होता है,
और जाने वाले को,
बस जाने देना होता है,
बिना कुछ कहे,
चुपचाप खड़े रहना है,
सीढ़ियों से वह,
उतर रहा हो या फिर,
एकदम पास ही गली में,
मुड़ गया हो,
दरवाजे से दिखाई न पड़ रहा हो,
तब भी दरवाजे को,
थोड़े आहिस्ता से बंद करना चाहिए,
हो सकता है उसकी आवाज,
जाने वाले की कान में,
सुनाई पड़ जाए,
दरवाजे की स्मृति,
उसके अंदर कैसी होगी,
यह निर्भर करेगा,
सांकल चढ़ाने वाले पर,
वह कितनी जोर से,
चटखनी लगाता है
कितना अच्छा होगा,
जब भी हम कहीं से लौटें,
हम खुले दरवाजे की,
स्मृति लेकर आएं,
पता नहीं क्यों शहरों में अक्सर,
दरवाजे बंद मिलते हैं,
दस्तक देने के बाद भी,
बड़ी मुश्किल से खुलते हैं,
इन घरों के अंदर,
जो लोग हैं उन्हें सदा,
यह डर सताता रहता है,
कहीं कोई आ न जाए,
उनकी जिंदगी,
दुश्वारियां से न भर जाए,
जो गांव से आए हैं,
उन्हें तो याद होगा,
जाते हुए को देखने का,
एक अजब सा,
चलन हुआ करता था,
जहां लोग किसी अपने को,
जाते हुए देखा करते थे,
या यूं कहें कुछ दूर,
छोड़ने जाया करते थे,
मालूम है,
उनको छोड़ने जाने की,
कोई जरूरत नहीं थी,
जिसको जाना है,
वह तो चला ही जाएगा,
पर वह एक सुखद याद लेकर,
यहां से निकले,
और अपनी मंजिल की तरफ,
बढ़ता चला जाए,
वह पूरी दुनिया में कहीं भी रहे,
जहां से आया है,
उसकी यह स्मृति,
अभी उसके इंतजार में,
उसके घर वाले,
उसके दोस्त,
उसके अपने,
शायद!
वैसे ही खड़े होंगे,
क्योंकि उसने किसी को,
वापस जाते हुए नहीं देखा,
वह जब भी पलट कर देखता,
उसके लोग,
उसको जाते हुए,
निहार रहे थे,
लौट कर जल्दी आना,
क्या बिना जाए,
काम नहीं चल सकता,
जीने के लिये,
यात्रा करने का तरीका,
सीखना भी तो जरूरी है,
आपकी यात्रा मंगलमय हो,
ऐसे ही चलते रहिए,
सुरक्षित रहिए,
उन पगडंडियों को याद रखिए,
वह रास्ते अब भी वहीं पर हैं,
जिन्हें छोड़कर गए थे,
वह अब भी,
इंतजार कर रहे हैं
©️Rajhansraju
वह बहुत दूर तक,
उसके पीछे-पीछे चलती रहती,
तब हम गांव में थे,
बहुत छोटे थे,
और इस बात का मतलब,
नहीं समझ पाते थे,
कोई जा रहा हो तो,
उसके पीछे कुछ दूर तक,
चलने से भला क्या हो जाएगा,
और किसी जाते हुए को,
विदा करना,
तब तक उसकी राह में,
खड़े रहना,
जब तक वह आंखों से
ओझल नहीं हो जाता,
और जाने वाला भी कई बार,
पलट कर उनकी तरफ देखता,
वह वहीं उसके इंतजार में खड़ी है,
जबकि वह धीरे-धीरे,
अपनी मंजिल की तरफ,
बढ़ता चला जाता है,
शायद जाने के बाद भी,
यह इंतजार की स्मृति,
उसके जेहन में,
हमेशा के लिए बैठ जाती है,
उसे लौट कर आना है,
क्योंकि उसके इंतजार में,
जिस रास्ते से वह आया है,
वहीं पर पर कोई है,.
जो अभी वैसे ही ठहरा हुआ है,
आज मैं शहर में रहता हूँ,
और दरवाजों के,
बंद होने की आवाज सुनता हूँ,
यहाँ हर तरफ गलियां हैं,
सड़कें हैं
इमारतें बहुत ऊँची हैं,
सीढ़ियों पर भी बहुत लम्बा,
सफर होता है,
ए आने-जाने का अंतहीन,
सिलसिला है,
हमारी आंखों के सामने से,
कोई बहुत जल्दी विदा हो जाता है,
उसका जाना दिखाई नहीं पड़ता,
हम दरवाजे पर खड़े हैं,
उसको ओझल होने में,
वक्त बहुत ज्यादा नहीं लगता,
चलिए हम भी,
अपने शहर में खूबसूरत,
स्मृतियाँ गढ़ते हैं,
इसके लिए बस थोड़ी देर,
दरवाजा खुला रखना होता है,
और जाने वाले को,
बस जाने देना होता है,
बिना कुछ कहे,
चुपचाप खड़े रहना है,
सीढ़ियों से वह,
उतर रहा हो या फिर,
एकदम पास ही गली में,
मुड़ गया हो,
दरवाजे से दिखाई न पड़ रहा हो,
तब भी दरवाजे को,
थोड़े आहिस्ता से बंद करना चाहिए,
हो सकता है उसकी आवाज,
जाने वाले की कान में,
सुनाई पड़ जाए,
दरवाजे की स्मृति,
उसके अंदर कैसी होगी,
यह निर्भर करेगा,
सांकल चढ़ाने वाले पर,
वह कितनी जोर से,
चटखनी लगाता है
कितना अच्छा होगा,
जब भी हम कहीं से लौटें,
हम खुले दरवाजे की,
स्मृति लेकर आएं,
पता नहीं क्यों शहरों में अक्सर,
दरवाजे बंद मिलते हैं,
दस्तक देने के बाद भी,
बड़ी मुश्किल से खुलते हैं,
इन घरों के अंदर,
जो लोग हैं उन्हें सदा,
यह डर सताता रहता है,
कहीं कोई आ न जाए,
उनकी जिंदगी,
दुश्वारियां से न भर जाए,
जो गांव से आए हैं,
उन्हें तो याद होगा,
जाते हुए को देखने का,
एक अजब सा,
चलन हुआ करता था,
जहां लोग किसी अपने को,
जाते हुए देखा करते थे,
या यूं कहें कुछ दूर,
छोड़ने जाया करते थे,
मालूम है,
उनको छोड़ने जाने की,
कोई जरूरत नहीं थी,
जिसको जाना है,
वह तो चला ही जाएगा,
पर वह एक सुखद याद लेकर,
यहां से निकले,
और अपनी मंजिल की तरफ,
बढ़ता चला जाए,
वह पूरी दुनिया में कहीं भी रहे,
जहां से आया है,
उसकी यह स्मृति,
अभी उसके इंतजार में,
उसके घर वाले,
उसके दोस्त,
उसके अपने,
शायद!
वैसे ही खड़े होंगे,
क्योंकि उसने किसी को,
वापस जाते हुए नहीं देखा,
वह जब भी पलट कर देखता,
उसके लोग,
उसको जाते हुए,
निहार रहे थे,
लौट कर जल्दी आना,
क्या बिना जाए,
काम नहीं चल सकता,
जीने के लिये,
यात्रा करने का तरीका,
सीखना भी तो जरूरी है,
आपकी यात्रा मंगलमय हो,
ऐसे ही चलते रहिए,
सुरक्षित रहिए,
उन पगडंडियों को याद रखिए,
वह रास्ते अब भी वहीं पर हैं,
जिन्हें छोड़कर गए थे,
वह अब भी,
इंतजार कर रहे हैं
©️Rajhansraju
**************************
मुसाफिर
********
अपनी फिक्र लिए,
दिन-रात परेशान रहता है,
इस दुनियादारी के,
जिक्र और चर्चे करता है,
अपनी गढ़ी कहानियों में,
हर दिन नये किरदार गढ़ता है,
यह सिलसिला,
बदस्तूर चलता रहा हैं,
जबकि "मुसाफिर" बहुत दूर,
जा चुका है
जिसका पता किसी को,
मालूम नहीं है,
उसके रास्ते का कहीं,
कोई निशान भी नहीं है,
हम सब कही हुई,
कहानियां दुहराते हैं,
बस यहाँ-वहाँ,
अपना नाम,
लिख देते हैं।
जबकि थकन,
सफर का एहसास कराती है,
छांव मिलते ही ठहर जाता है
इन कदमों को थोड़ा,
आराम चाहिए,
हम सबको बहुत दूर जाना है,
न रास्ते का पता है,
न दूरी का अंदाजा है
©️rajhansraju
************************
घर वापसी-1
***********
CORONA
*********
बच्चों ने लोगों से पूछा
??
ए अपने गांव,
क्यों लौट रहे हैं
....
🤔🤔🤔
दरअसल,
ए जिस शहर को,
बनाते-बसाते हैं,
वहाँ इनका,
कोई घर नहीं होता
☹️☹️
और... अपना घर,
अपना ही होता है..
©️ Rajhansraju
*********************
रोज घर लौट कर आना,
हम सब के लिए अच्छा है,
नहीं तो अब कहाँ याद रहती है,
रास्ते की निशानियां,
वह अपनी न जाने,
किस धुन में खोया,
कुछ ढूंढता रहता है,
जो उसे मिलता नहीं,
वह बहुत दूर,
सफर करते हुए
न मालूम,
किस मुकाम की तलाश में,
कहाँ से कहाँ तक,
भटकता रहता है,
और हर बार घर वापसी,
मुश्किल होती जाती है,
पर ए रास्तों की आदत,
बिना किसी कोशिश के,
वह जब एकदम,
थक चुका होता है,
उस वक्त वह अपने,
घर की चौखट पर,
पहुँच चुका होता है,
बिना किसी दस्तक,
दरवाजा खुल जाता है,
जहाँ कोई अपना,
इंतजार कर रहा होता है,
और वह कुछ कहता भी नहीं,
सच अपना घर,
अपना ही होता है
©️Rajhansraju
*********************
वह नहीं रुका
***********
पथिक
*********
************************
घर वापसी-1
***********
CORONA
*********
बच्चों ने लोगों से पूछा
??
ए अपने गांव,
क्यों लौट रहे हैं
....
🤔🤔🤔
दरअसल,
ए जिस शहर को,
बनाते-बसाते हैं,
वहाँ इनका,
कोई घर नहीं होता
☹️☹️
और... अपना घर,
अपना ही होता है..
©️ Rajhansraju
*********************
घर वापसी - 2
********
ए आदतन,रोज घर लौट कर आना,
हम सब के लिए अच्छा है,
नहीं तो अब कहाँ याद रहती है,
रास्ते की निशानियां,
वह अपनी न जाने,
किस धुन में खोया,
कुछ ढूंढता रहता है,
जो उसे मिलता नहीं,
वह बहुत दूर,
सफर करते हुए
न मालूम,
किस मुकाम की तलाश में,
कहाँ से कहाँ तक,
भटकता रहता है,
और हर बार घर वापसी,
मुश्किल होती जाती है,
पर ए रास्तों की आदत,
बिना किसी कोशिश के,
वह जब एकदम,
थक चुका होता है,
उस वक्त वह अपने,
घर की चौखट पर,
पहुँच चुका होता है,
बिना किसी दस्तक,
दरवाजा खुल जाता है,
जहाँ कोई अपना,
इंतजार कर रहा होता है,
और वह कुछ कहता भी नहीं,
सच अपना घर,
अपना ही होता है
©️Rajhansraju
*********************
किनारे
********
खैरियत से
यूँ ही चलते रहिए,
ए जिंदगी का सफर,
एक बहता हुआ दरिया है,
कभी कुछ कम,
कहीं पानी,
बहुत..
गहरा,
है..
इसका एहसास,
उन किनारों
से होता है,
जिसने,
सब कुछ,
थामके,
रखा है।
©️rajhansraju
*************************
🌷🌷🥀🙏🌷🥀🌷
*************'**' '***********©️rajhansraju
*************************
All is well
***************
अविरल गति से चलता रहा .
बिना रुके,
एक पल लगा था,
एक पल लगा था,
सब कुछ ठहर गया है .
पर ! ऐसा कुछ नहीं,
सब पहले जैसा ही सामान्य है,
सब पहले जैसा ही सामान्य है,
भावना शून्य ,मूक,
सभी कदम अब भी चल रहें है,
सभी कदम अब भी चल रहें है,
आँखें हाथ सब हिल रहे हैं,
हाँ ए सब अब भी जिन्दा है .
आज फिर कोई,
अमानवीयता के भेंट चढ़ गया,
हाँ ए सब अब भी जिन्दा है .
आज फिर कोई,
अमानवीयता के भेंट चढ़ गया,
पर कुछ खाश नहीं हुआ !
कुछ पल, कुछ दिन,
कुछ लोग मुरझाए रहे,
कुछ लोग मुरझाए रहे,
आखिर सब्र टूट ही गया,
फिर सब उसी तरह चलने लगा,
किसी के साथ कुछ भी हो,
क्या फर्क पड़ता है,
क्या फर्क पड़ता है,
सब सामान्य ही दिखता है,
एक आदत हो गयी है,
एक आदत हो गयी है,
चुप रहना, कुछ न कहना,
सब का जड़ हो जाना ,
सब का जड़ हो जाना ,
आज हम भी,
जिन्दा लाशों के बीच जिन्दा हैं ,
जिन्दा लाशों के बीच जिन्दा हैं ,
खुद को अपने कंधे पर ढोते हैं ,
सिर्फ अपने ही बोझ से दब जाते हैं ,
सब सामान्य रहे,
इसलिए खुद को भूल जाते हैं .
भीड़ में शामिल होते ही,
वह नहीं रुका
***********
कब से राह तकता रहा,
इसी तरफ से गया था,
दरवाजे पर ठहरा उसे,
जाते हुए देखता रहा,
शायद ! वह पलट कर देखे,
या फिर लौट आए,
इसी ख्वाइश में, उसे देखता रहा।
वह नहीं मुड़ा,
तेज़ कदमों से दूर जाता रहा,
उसे मालूम था,
मैं उसकी उम्मीद में,
दरवाज़े पर रुका हूँ,
शायद!
यही सोचकर उसने मुड़कर नहीं देखा,
या फिर,
अपना दुखी चेहरा, मुझसे छुपाता रहा,
वह नहीं मुड़ा।
मै उसके जाने के बाद,
काफी देर तक,
वहीँ ठहरा रहा,
दरवाज़ा अब भी खुला है,
कैसे बंद कर दूँ ?
अभी-अभी तो गया है,
पता नहीं कब.....
©️rajhansraju
*******************
दो दूनी चार
*********
©️rajhansraju
*********************
*********************************©️rajhansraju
*******************
दो दूनी चार
*********
दो का चार तो हो जाता,
पर किसी का हक,
मारा जाता है,
चोरी करना क़ाबलियत बन गयी,
मज़हब दलालों का अखाडा बन गया,
पैसे का ही सब तमाशा हो गया.
उसे कैसे भी पाना इमान है ,
बेइमानी भी आज भगवान है ,
यह नया दौर आया है,
व्यापारियों को खूब भाया है,
"डर" का कारोबार बढाया है,
इंसानों को बेचकर,
खूब माल कमाया है,
खूब माल कमाया है,
ऐसे में,
रोज़ जीने वालों का क्या होगा?
जब घर से निकलना ही मुश्किल होगा!
जानें कहाँ कब धमाका हो जाए,
इंतजार में बच्चे,
बिना खाए सो जाएँ .
बिना खाए सो जाएँ .
कोई पिता सड़क पर बिखरा होगा,
घर में खाने को कुछ नहीं होगा ,
मातम भी कैसे मनाएगे,
जो बिखरा है,
उसका पता कौन बताएगा ?
फिर दो का चार करने में ,
कितनों का हक मारा जाएगा ,
एक दिन खुद बिखर जाएँगे तो ,
कोई नहीं उठाएगा. ©️rajhansraju
*********************
पथिक
*********
जो हरदम भरा रहता था,
वो खाली है एकदम,
जिससे धार बहा करती थी,
वो चुप है क्यों?
अब भी लोग गुजरते हैं,
जब पास इसके होकर,
एक नजर देख लेते हैं,
घड़ा है निश्चय ही,
इसमें भरा होगा जल,
कुछ खिन्न भाव से लौट गए,
कहा नहीं एक भी शब्द,
पथिक हैं,
बस चलते जाना है,
पर!
कहीं भी खाली घट,
देखकर अच्छा नहीं लगता है,
खुद को बोझ समझता है,
वो राही तब,
जब किसी शहर से गुजरता है,
चलते-चलते शायद,
थोड़ा सा थक जाता है,
करने को आराम कुछ पल,
तनिक ठहर जाता है,
प्यास बुझाने को तब वह,
आसपास नजर दौडाता है,
पानी से भरा घड़ा,
घर की याद दिलाता है,
यहाँ भी उसके खातिर,
जैसे कोई इंतजार में बैठा है,
ए शहर भी अपना लेगा,
उसको यही लगता है,
पर कहाँ हुआ ऐसा कुछ,
घड़ा तो पूरा खाली है,
सबको यहाँ जल्दी है,
पानी भरने की,
कहाँ किसी को फुर्सत है,
जबकि सब प्यासे हैं,
दूर शहर में आए हैं,
आते-जाते जिसको देखो,
सब उसके जैसे हैं,
हर घर खुद का लगता है,
वैसे ही दरवाजा भी खुलता है,
फिर लौट कर वापस कोई जाता है,
जिसको होना था चौखट पर,
जब वह नहीं होता है,
ऐसे ही अपना कोई,
इंतजार करता है,
कब आओगे,
जल्दी आना,
रास्ते में कुछ खा-पी लेना,
थोड़ा संभल कर रहना,
अपनी खबर करते रहना,
पर! रस्ते में जब,
खाली घड़ा मिलता है,
उस जगह को वह,
कहाँ अपना पाता है?
ऐसे ही निरंतर,
एक शहर से दूजे को,
वह बस चलता,
रह जाता है
©️rajhansraju
********************
किशोर कुमार जी का गाया हुआ
बेहतरीन गीत "ए जीवन है"
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⬅️(51)-Smriti
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➡️(49)Corona warriors
सलाम उन तमाम योद्धाओं को
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किशोर कुमार जी का गाया हुआ
बेहतरीन गीत "ए जीवन है"
⬅️(51)-Smriti
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➡️(49)Corona warriors
सलाम उन तमाम योद्धाओं को
🌹🌹🌹❤️❤️❤️❤️🙏🙏🙏🌹❤️❤️🌹🌹
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हम सफर की कहानी कहते रहे और अब तक कहीं पहुँचे नहीं
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Deleteपगडंडियों से आया मुसाफिर,
ReplyDeleteसफर की जिद में बैठा है ,
उसको घर जाना है,
यही कहता रहता है,
जबकि पतझड़ का मौसम है,
ठहरने के लिये छांव,
बड़ी मुश्किल से मिलता है,