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Showing posts from November, 2022

astha mishra

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   आस्था की आकृति   आप इस पन्ने पर जिन अनुभूतियों से गुजरने वाले हैं। उसकी कलमकार हैं "आस्था मिश्रा" (Astha Mishra) जो कि  University of Allahabad, Prayagraj से MSc in Zoology हैं। एक बात और आस्था बिना खुशी के पूरी नहीं होती 🌷🌷 👇👇 Diary लिखना खुद को संजोने का एक बेहतरीन तरीका है और वह कुछ कविता जैसा बन पड़े तो, उसके क्या कहने। जब किसी शख़्स को इस कारीगरी में अपनी अनुभूति होने लगती है तब हर पन्ने पर बिखरे, प्रत्येक शब्द से खुद से जोड़ लेता है, उसी वक्त वह रचना जीवंत हो उठती है। वैसे भी जीवन की विडंबनाएं तो एक जैसी होती हैं सिर्फ़ आदमी बदलता है। एक कलमकार उन्हीं विडम्बनाओं को हसीन शब्दों में पिरो देता है। तो आइये "आस्था की कलम से" जो कलमकारी हुई है उसी से परिचित होते हैं.. 🌹🌹🌹🌹❤️❤️🌹🌹🌹 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 "सच्चाई" *********** जन्म कहीं दुख,  कहीं सुख का माहौल,  लेकर आया था,, किसी ने महीनों इंतजार के बाद,  अपना अंश पाया था, तो कहीं दुनिया के भेद ने,  अपना मुंह दिखाया था, कुछ बड़े होते ही,  दुनिया के दर्द ने,  मेरी तरफ अपना,  पहला कदम बढ़ाया था,, वह दर

sahi aur galat

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    सही और गलत   कल तक था जो सही अब उसकी जरूरत नहीं रही फिर कहने को कहते हो पर क्या कहना है पहले से तय रखते हो ऐसे में कोई कहे भला क्या अपना-अपना सबका सच है जबकि सच पास ही कोने में बैठा है पर नजर भला डाले कौन आईने में शक्ल निहारे कौन?? ©️Rajhansraju 🌹🌹🌹🌹❤️❤️🌹🌹🌹🌹 सफर  आज इस जगह जो हम इस तरह मिले हैं कुछ चाहा सा अनचाहे हो गया है एक पुराना बरगद अल्पविराम सा राह में आ गया है हम सदा से अधूरे तुम भी कहां मुकम्मल थे...... आज इस जगह जो हम इस तरह मिले हैं यह सफर दर सफर मुसाफिरत आदत हो गई है कहीं एक जगह ठहरने की रवायत खो गई है छांव के मायने बरगद गुनगुना रहा है एक बुजुर्ग थककर रोने लगा है बरगद में चिड़ियों का अब भी घोसला है आसमान में उड़ने वालों का घर यही है....... आज इस जगह जो हम इस तरह मिले हैं मुद्दतो बाद खुलकर हंसे हैं चलो अब चांद पर चलते हैं हाथ बढ़ाया तो हंसने लगा रोते-रोते कहने लगा बड़ी मुश्किल से अभी कल ही वहां से लौटे हैं चांद की अजब आदत हो गई थी वह मिलता नहीं किसी को मगर सबका लगता है मुझे लगा एकदम करीब हूँ पा लिया उसको तभी वह एकदम दूर हो गया और जहां से चला था वहीं रह गया इस कोशि