Khud ki khoj
किसी रामायण,
बाइबल, कुरान को,
बाइबल, कुरान को,
मन्दिर या मजार को,
लगाए जाने वाले भोग,
लगाए जाने वाले भोग,
बांटे जाने वाले प्रसाद को,
किसी का भगवान त्रिशूल लिए है,
किसी का तलवार।
भूख से मरने वालों की किसे है परवाह,
हर कोई रखता है चाहत,
ताकत, पैसे और शोहरत की,
ताकत, पैसे और शोहरत की,
इसके लिए कोई गुरेज नहीं,
अपने हाथों ख़ुद को बेचना,
अपने हाथों ख़ुद को बेचना,
ख़ुद की दलाली को,
लाचारी और बेबसी कहना,
लाचारी और बेबसी कहना,
फ़िर कुछ देर पछता लेना।
ईश्वर के नाम पर जेहाद,
सब लोग डरे, सहमे,
सब लोग डरे, सहमे,
ख़ुद की पहचान से डरते।
लिए हाथ में खंजर ख़ुद को ढूँढ़ते,
कत्ल किया ख़ुद को कितनी बार,
धर्म और मजहब के नाम।
एक और मसीहा, एक नया दौर,
डर और खून का बढ़ता व्यापार।
हर तरफ़ एक ही रंग, हरा या लाल,
पैसे के लिए खून या खून के लिए पैसा,
फर्क नहीं मालूम पड़ता।
यह दुनिया किसने क्यों बनाई,
लोंगों को एक दूसरे का खून,
बहाना किसने सिखाया।
बहाना किसने सिखाया।
खुदा ने तो केवल इन्सान बनाए थे,
ये हिंदू और मुसलमान कहाँ से आए?
साथ में रामायण और कुरान लाए,
लड़ने का सबसे अच्छा हथियार,
धर्म की आग,
धर्म की आग,
जात की तलवार।
धार्मिक होने का अर्थ क्या सिर्फ़,
मन्दिर जाना, अजान देना,
मन्दिर जाना, अजान देना,
और ख़ुद में इतना खो जाना,
कोई सच दिखाई न दे,
कोई सच दिखाई न दे,
सिर्फ़ मैं के अलावा कुछ सुनाई न दे।
उसने भी सोचा ईश्वर को मंदिरों,
मस्जिदों में ढूँढा जाए,
मस्जिदों में ढूँढा जाए,
मौलवी की दाढ़ी,
पंडित की चोटी खोली जाए।
पंडित की चोटी खोली जाए।
उनके अन्दर के नफ़रत,
तिरस्कार को समझा जाए।
तिरस्कार को समझा जाए।
ऐसे खाओ, ऐसे पहनो, ऐसे बोलो,
ईश्वर को इस भाषा में बुलाना है,
वह बस इसी घर में रहता है,
यहाँ कशी है,वहां काबा है,
स्वर्ग का आरक्षण यहीं होता है,
कहाँ पे चढावा चढाना है,
कहाँ हज जाना है।
कहाँ हज जाना है।
यहाँ तो सभी को गारंटी चाहिए,
कायनात में अपनी सीट,
आरक्षित चाहिए।
आरक्षित चाहिए।
इसके लिए ढेर सारे यज्ञ,
पूजा और तीरथ का व्यापार है,
पूजा और तीरथ का व्यापार है,
धर्म का क्या यही सार है।
ईश्वर बिकता है गलियों में,
दिखता है सिक्कों पर,
दिखता है सिक्कों पर,
अगर थैली भारी हो तो ईश्वर आएगा,
पूड़ी और पकवान खायेगा।
वैभव, ऐश्वर्य, मिथ्या से परिपूर्ण,
पंडित और पादरियों की फौज,
ईश्वर के नाम पर करते मौज,
इन दलालों ने ईश्वर का सौदा किया,
अपनी आत्मा,
अपने संस्कार सब बेंच दिय।
अपने संस्कार सब बेंच दिय।
ईश्वर के नाम पर,
धंधे का विस्तार किया,
धंधे का विस्तार किया,
उसे बेचने के लिए दंगा,
और फसाद किया।
और फसाद किया।
ईश्वर को एक उत्पाद बनाया,
अपने नाम पेटेंट कराया।
अपने नाम पेटेंट कराया।
उससे मिलाने का काम,
इनके बिना नहीं होगा,
इनके बिना नहीं होगा,
बिना चढावा कुछ नहीं होगा।
पर यह क्या?
वह तो रस्ते में तड़पता मिला,
पर यह क्या?
वह तो रस्ते में तड़पता मिला,
जो अस्पताल जाना चाहता था,
यह वही था जो लाठियों से पिटा था,
कई दिनों से भूखा था,
जो मन्दिर की सीढियों पर पड़ा था,
उसका हाथ सबके सामने उठा था,
वह जहाँ भी दिखा बेबस था,
कमजोर था,
कमजोर था,
कुछ कहना चाहता था?
पर चुप था।
पर चुप था।
उसका मजहब- रोटी,
उसकी जात- पानी,
उसकी जात- पानी,
उसका सपना- पेट भरना,
उसकी उपलब्द्धियां- जिन्दा रहना,
गलियों में रहना, गलियों में चलना,
अचानक बिना किसी बात के,
फ़िर दंगे हुए,
फ़िर दंगे हुए,
किसी ने उसे अपने धर्म,
जात का नहीं माना।
जात का नहीं माना।
उसे अपनी ताकत का,
एहसास कराया,
इस बेघर को लूटा,
एहसास कराया,
इस बेघर को लूटा,
उसकी गलियों को आग लगाया,
उसका तो हर घर अपना था,
उसका तो हर घर अपना था,
जहाँ से उसे,
बचा-खुचा मिल जाता था,
बचा-खुचा मिल जाता था,
यही घर उसके मन्दिर थे।
वह राम का है या रहमान का,
उसे नहीं मालूम,
उसे नहीं मालूम,
अजानों, घंटियों में क्या गूंजता है?
नहीं समझ पाया,
नहीं समझ पाया,
मंदिर और मजार में,
कौन रहता है?
नहीं देख पाया।
कौन रहता है?
नहीं देख पाया।
उसने तो सिर्फ़ रोटी पहचानी,
जो गोल होती है,
जो गोल होती है,
सौंधी लगाती है,
वह सोचता है?
ताज़ी कैसी लगाती होगी?
वह सोचता है?
ताज़ी कैसी लगाती होगी?
उसे इन मजहबों से क्या लेना,
कुरान ने क्या कहा है,
रामायण में क्या छुपा है,
रामायण में क्या छुपा है,
राम क्यों वनवास गए,
उसे नहीं मालूम
उसे नहीं मालूम
उसे तो भूख लगती है,
प्यास लगती है,
प्यास लगती है,
उसकी रोटी ही उसका राम है,
जो उसे जिन्दा रखती है,
उसे पाना उसकी जरूरत है।
उसे पाना उसकी जरूरत है।
सुबह सूरज जरूर उगता,
पर भूख उसे जगाती है,
यह रोटी उसे सुलाती है,
यह रोटी उसे सुलाती है,
वह कोई भाषा नहीं जानता,
जिसमे उसे बुलाना है,
जिसमे उसे बुलाना है,
उसका राम हर भाषा समझता है,
हर आंसू देखता है,
हर आंसू देखता है,
सड़क पर तडपता है और मरता है,
वह हमेशा उसके साथ होता है,
वह चाहे या न चाहे,
माने या न माने,
माने या न माने,
उसकी हर साँस,
उसकी हर आह, उसी की है।
उसकी हर आह, उसी की है।
उसे मन्दिर या मजार नहीं चाहिए।
उसे जब भूख लगे रोटी चाहिए,
प्यास लगे पानी चाहिए,
वह कहाँ से आया,
क्या फर्क पड़ता है।
क्या फर्क पड़ता है।
ईश्वर कहाँ रहता है?
अब तक क्या कोई जान पाया,
अब तक क्या कोई जान पाया,
या यह शब्द, सिर्फ़ एक शब्द है,
जो हर वक्त कहीं अन्तः में,
गूंजता रहता है।
गूंजता रहता है।
जो किसी मन्दिर,
या मस्जिद में नहीं होता,
या मस्जिद में नहीं होता,
एक छोटी सी हँसी,
एक छोटी सी खुशी बिना रंग,
एक छोटी सी खुशी बिना रंग,
बिना जात के,
हर किसी के साथ,
हर किसी के साथ,
बस एहसास कराने की बात।
बिना किसी नाम,
बिना किसी पहचान के।
©️rajhansraju
************************
बिना किसी पहचान के।
©️rajhansraju
************************
अयोध्या
*****************
नाज करेगा ?
इंसानों के क़त्ल को माफ़ करेगा?
राम बिना मर्यादा रह पाएँगे?
इंसानों में अंतर कर पाएँगे?
यह हिन्दू, वह मुसलमान,
कौन बताएगा?
कौन बताएगा?
उनकी रक्षा को लड़ते हैं,
कैसे समझाएगा?
राम को मंदिर,
अल्लाह को मस्जिद,
हम बनाएगे.
अल्लाह को मस्जिद,
हम बनाएगे.
वह कहाँ है यह बताएँगे,
बस यह नहीं जान पाए,
वह कहाँ नहीं है?
वह कहाँ नहीं है?
बना सके न एक घर,
खुद की खातिर,
खुद की खातिर,
मंदिर-मस्जिद हम चिल्लाएँगे.
मरते भूख से बच्चे खुद के,
पर मूरत को भोग लगाएँगे.
दाता को किया भिखारी,
मंदिर बना बने ब्यापारी.
कमजोर किया ईश्वर को,
इंसानों पर किया है आश्रित,
सर्वशक्तिमान को दीवारों में कैद किया,
नाम उसका लेकर दंगा-फसाद किया.
राम-रहीम को बेवजह बदनाम किया,
कभी तीरथ,
कभी ब्रत का नाम कर दिया.
कभी ब्रत का नाम कर दिया.
पर मरते बेबस लोगों की,
फ़िक्र कितनी बार किया ?
कशी और काबा पर,
न्योछावर क्या न किया,
न्योछावर क्या न किया,
रोते नंगे बच्चों को,
हरदम दुत्कार दिया.
हरदम दुत्कार दिया.
कायनात की ख्वाइश में,
मंदिर-मस्जिद का निर्माण किया.
खुद की खातिर लोगों को,
खुद की खातिर लोगों को,
बेघर कितनी बार किया...?
rajhansraju
************************
*****************rajhansraju
************************
Gandhi
*******'****
गाँधी एक बार फिर,
किसी चौक पर दिखे,
किसी चौक पर दिखे,
चुप-चाप, अडिग,
अपनी आत्म शक्ति के साथ,
अपनी आत्म शक्ति के साथ,
मै हारूँगा नहीं, लडूंगा,
पीछे नहीं हटूंगा,
पीछे नहीं हटूंगा,
मै कभी अकेला नहीं होता,
हजारों हाथ मेरे हैं,
हजारों का बल मुझ में है.
हजारों का बल मुझ में है.
सारे निर्बल जब एक हो जाते हैं,
बड़ी ताकत बन जाते हैं.
वह यही कह रह थे,
खुद पर भरोसा रखो.
तुम्हारा दुश्मन खुद हार जाएगा,
उसके सामने,
सीना तान के खड़े रहो,
सीना तान के खड़े रहो,
कोई हथियार नहीं चाहिए,
वह तुम्हारे सच होने की ताकत से,
कुछ देर में टूट जाएगा.
थोडा परेशान होगा,
चीखेगा, चिल्लाएगा,
चीखेगा, चिल्लाएगा,
कुछ देर डराएगा.
लेकिन तुम्हारी निर्भीकता से,
लड़ नहीं पाएगा,
लड़ नहीं पाएगा,
गांधी हर चौक, चौराहे पर मौन,
अपनी सहनशक्ति,
निर्भीकता पर अडिग हैं.
निर्भीकता पर अडिग हैं.
हथियारों का मुकाबला,
हथियारों से कब तक होगा ?
हथियारों से कब तक होगा ?
रोज़ नए बनाने होंगे,
अविश्वास, धोका हर वक़्त होगा,
मरने-मारने से किसी समस्या का,
अंत नहीं होगा.
अंत नहीं होगा.
यह नए रूप में आएगी,
भयानक परिणाम दिखाएगी.
भयानक परिणाम दिखाएगी.
गाँधी अब भी मौन,
अपने पथ पर,
अपने पथ पर,
हमारा इंतजार कर रहें हैं,
आओ मेरे काफिले में,
शामिल हो जाओ,
शामिल हो जाओ,
निर्बल की ताकत देखो,
कैसे एक साथ मिलकर,
पूरी दुनिया बदल देते हैं.
पूरी दुनिया बदल देते हैं.
तुम अपना हाथ,
बढ़ाकर देखो,
बढ़ाकर देखो,
तुम्हारा एक हाथ,
कितने हाथ बन जाता है,
कितने हाथ बन जाता है,
अब तो शिकवा-शिकायत,
अपनों से है.
अपनों से है.
किसका? कौन?
कितने दिन खून बहाएगा?
कितने दिन खून बहाएगा?
जब हर बार खुद ही मरना है,
तो इस खून खराबे से क्या पाएगा?
आओ मिलके, गाँधी के साथ,
गाँधी की राह चलते हैं,
एक छोटी सी शुरुआत ,
खुद से करते हैं.
rajhansraju
rajhansraju
🌹🌹🌹❤️❤️❤️❤️🙏🙏🙏🌹❤️❤️🌹🌹
**********************************************************
*********************************
my You Tube channels
**********************
👇👇👇
**************************
my Bloggs
************************
👇👇👇👇👇
*******************************************
**********************
⬅️(6) Yatharth**************
➡️ (4) काल चक्र
कहते हैं कब्र में सुकून की नींद आती है
ReplyDeleteअब मजे की बात ए है की ए बात भी
जिंदा लोगों ने काही है
जिंदगी कभी भी
ReplyDeleteकिसी एक जगह रूकती नहीं है,
हस सफर पर निकले हैं
मुसाफिर हैं
मुसाफिरत भी बुरी नहीं है
©️Rajhansraju
दुनिया के रंग देखो भइया
ReplyDeleteकितनी रंग बिरंगी है
शातिर है यह खेल उसी का
और वही खिलाड़ी है