Ravan

 रावण 

अद्भुत रावण ए बताओ
त्रेता से कलयुग तक
कैसा रहा सफर तुम्हारा
मर कर भी तुम मरे नहीं
दसों शीश वैसे ही
बरकरार कैसे रखे
हर साल जलाएं तुमको
जलकर भी तुम जले नहीं
हर बार तरोताजा होकर
वैसे ही हो अड़े
फोटो वीडियो के लिए
तुम सबसे आकर्षक हो
तुम जैसा ही बनना चाहें
सबके आदर्श तुम्हीं हो
इतने सारे सर
कैसे मैनेज करते हो
तेरी ही चर्चा में
खूब मजा आता है
वायरल की दुनिया में
कोई नहीं तुमसा है
तुम ही हो
सब के गुरु
सबके दिल में रहते हो
रावण का जयकार करो
रावण रावण कहते हैं
रावण के दसों शीश
अट्टहास करते हैं
इनके ही चर्चे हैं
खबरों में यही हरदम रहते हैं


तभी एक सर पर नजर पड़ी
पहचान लिया झट से
यह सर तो अफसर का है
भ्रष्टाचार का मसीहा है
लाचार बेबस का ही
सबसे पहले हिस्सा खाता है

अरे अपने नेताजी भी
मौजूद इसी में है
सफेद भेष में रहकर
काम काले करते हैं
यह काम उनका पुश्तैनी है
पूरी रियासत इनकी है

अरे बच्चा ई देखो
अपने मास्टर साहब हैं
प्राइमरी से यूनिवर्सिटी तक
सब जगह रहते हैं
सरकारी सेवा में अच्छी खासी संख्या हैं
जांच लो अपना काम खुद ही
कोई और कहे क्या अच्छा है?

वर्दी वाला मूंछों पर
ताव कैसे दे रहा है
सारी मिल्कियत इसकी है
सही को गलत करे
बस सिक्कों का खेला है
देखो कैसे अकड़ रहा
हाथ में उसके पिस्टल है

अपना ठेकेदार
सबके बीच मौजूद है
संभल के बोलो भइया
बहुतइ हट्टा-कट्टा है
ऊपर से लोकल गुंडा है
आसपास ही रहता है

यह तो अपने परधान जी हैं
मीठी बातें करते हैं
काम कभी कुछ न करें
बस कमीशन का चक्कर हैं

कोटेदार का चेहरा आधा अधूरा है
घट तौली की आदत ऐसी
कुछ भी पूरा मुश्किल है
एक हाथ चेहरे पर
इसीलिए रखे है
चेहरा पूरा न दिख जाए
बहुत सावधान रहते है

यह देखो
अपना फलनवा पार्षद है
कभी-कभी दिखता है
कोई नहीं पहचानता है
यह भी बाकी जैसा है
इनका धंधा चोखा है

तभी चौक कर देखा
एक बच्चे का चेहरा
क्यों रावण के चेहरे में है
यह मासूम
पढ़ने लिखने के सिवा
सारे काम करता है
ए एक ठग का चेहरा था
जो रूप बदलने में माहिर है
बेचारा और बेबस बनकर
सबको ठगता रहता है

दसवां चेहरा बड़ा भयानक
एकदम मेरे जैसा है
छू कर देखा तो मैं ही था
सारे चेहरे मेरे थे
रावण को सही सलामत
मैंने ही रखा है
सारे गुण अवगुण मेरे हैं
रावण कहीं नहीं बाहर है
वह मुझमें ही रहता है
आईना देखो पहले तुम
न दिखे तो अंदर झांको तुम

यह रावण की जो लंका है
हमारी लालच से ही बनता है
जितना है जब कम लगता है
कुछ न पूरा पड़ता है
समझो राज रावण का
तभी शुरू हो जाता है
जब कोई औरों का हक
हड़पने लग जाता है
रावण का मरना
इसलिए आसान नहीं है
वह सबके मन को भाता है
क्योंकि ...
उसकी सोने की लंका है
©️ RajhansRaju

मामूली

एक मामूली शख्स
एक मामूली मजदूर
एक मामूली किसान
एक मामूली सा दिन
एक मामूली सी रात
यह सारी मामूली चीजें
मिलकर बन जाती हैं खास
एक मामूली सी झोपड़ी में
वह चाय बनाता मामूली आदमी
बहुत दूर से एक मामूली राहगीर
इधर से गुजर रहा था
आसपास कुछ नहीं था
इस मामूली सी दुकान के सिवा
उसे मामूली आराम मिला
मामूली सी जरूरतें
उसे अपनी यात्रा के लिए
न जाने कितनी जरूरी थी
जो मामूली है कितना सहज है
कितना उपलब्ध है
कोई कदर ही नहीं है
ए मामूली की आदत
मामूली सी,
इतना मामूली कि
उसके होने का
पता नहीं चलता
उसकी खासियत है
उसे हम तवज्जो नहीं देते
जबकि हमारी पूरी जिंदगी
निर्भर है
इन्हीं मामूली लोगों, चीजों पर
जो बहुत खास है
जिनके बगैर
कुछ होता नहीं है
जबकि गैर जरूरी चीजें
जिनकी बहुत कम जरूरत पड़ती है
वह कितनी खास है हमारे लिए
यह मामूली है
इनकी भी अब कद्र करें
यह धूप हवा पानी
कितना मामूली है
बगैर इनके क्या कुछ हो सकता है
इस मिट्टी का जिक्र
क्या कभी करते हैं
जिसने अनाज पानी
सब हमारे लिए सहेज रखा है
इस धूप की कोई कद्र नहीं है
जो सबका आधार है
कितना मामूली
कितना कीमती है
बस देखना आना चाहिए
जो मामूली है वही खास है
जिसे खास मानते हैं
वह तो किसी काम का नहीं है
बस चमक है
जिसमें अपनी रोशनी नहीं है
जिसे मामूली लोग
गैर मामूली बताते हैं
©️RajhansRaju


शब्द

उसे मालूम है
शब्द की ताकत,
जो है उसके पास
कुछ भी निरर्थक नहीं है
कब कहा जाएगा
कब सुना जाएगा
कब समझा जाएगा
कौन समझेगा?
इससे बेखबर
इसे अमिट बनाए रखती हैं
आने वाली नस्लों को
आज की कहानी सुनानी है
यह सोचकर
शायद ...
किताबें शब्द सहेजती रहती हैं,
©️ RajhansRaju


अपनी-अपनी समझ

बेसुरे की धुन पर गूंगा गाने लगा
लंगड़ा नाच उठा
ए अजब कहानी ऐसे ही चलती रही
गूंगे-बहरे लूले लंगड़े
तय करने में लगे रहे
क्या सही, क्या गलत है
उन्हीं के हिसाब से दुनिया चलने लगी
कुछ पूरा भला कैसे होता
सब कुछ आधा अधूरा
जो जैसे थे जितनी समझ थी
सबने अपनी-अपनी दुनिया
एकदम वैसे ही रची
उसे ही पूरा समझते रहे।
अपने आरम्भ से
पूरा होने की कोशिश में
अंतहीन अनंत यात्रा
कहीं कुछ पूरा कहां हो पाता है
इसी अधूरेपन के साथ
हम अधूरे को पूरा समझने लगे
धीरे-धीरे अधूरे का एहसास
कमतर होता गया
अपनी दुनिया में इस तरह डूबा
डूबता गया
सब पूरा लगने लगा
इसका नाम दुनियादारी रख दिया
अधूरे को पूरा समझने को
समझदारी कहने लगा
©️ RajhansRaju

बाजार

जब से पता चला
वह भी कुछ खरीद सकता है
उसकी कद्र बढ़ गई है
तारीफ हो रही है
वह खुद को नया लगने लगा है
ए तो वही लोग हैं
जो पहचानते नहीं थे
अब इस कदर बिछ गये हैं
जैसे बिना रीढ़ के हैं
जान भी नहीं है
वह मुस्कराकर देखता है
रहने दो जानता हूंँ तुम्हें
कहने को कुछ बचा नहीं है
ए सिक्कों की खनक
कितनी अजब है
जो तय करते हैं
तुम्हारी जगह
कब
कहां पर है
कहां पर नहीं है
©️ RajhansRaju
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वक्त नहीं है

शायद रिश्तो की
अपनी एक स्वाभाविक
उम्र या फिर मियाद होती है
इसी वजह से
वक्त के साथ
यह पहले जैसे नहीं रह जाते
या फिर जरूरत और सहूलियत
तय करते हैं इनको
कितना खाद पानी दिया जाए
कितना हरा रखा जाए
सबसे बड़ी बात यह हैं कि
इसमें किसी का दोष नहीं होता
कोई जिम्मेदार नहीं होता
सब लोग सही होते हैं
बस अपनी जगह होते हैं
यही इसके दरकने
कमजोर पड़ने की
सबसे बड़ी वजह है
क्योंकि इन्हें निभाना पड़ता है
जो भी पास में है
खर्च करना पड़ता है
सबसे कीमती "वक्त"
जिसकी कद्र नहीं
बेकार, निर्मूल्य लगता है
जो कि अमूल्य है
जो बेवक्त बिना सवाल
हमारे लिए
अपना कीमती वक्त लगाता है
खुद को खपाता है
उसे भुला देना बहुत जरूरी है
इतना बोझ भला कौन रखें
यह तो इसकी आदत है
कौन सा बड़ा काम है
बस कहीं मौजूद रहना
सोचिए मां-बाप भी
इसी श्रेणी में आते हैं
उन्हें भी भुला दिया जाता है
यह पीड़ा
मां-बाप बनकर ही
समझ आती है
जब वह उसी उम्र के
पड़ाव में गुजरता है
अब कहने को कुछ नहीं है
उसके पास
अब वो लोग नहीं हैं
जिनके साथ
वह उस वक्त हो सकता था
मेरी तरह वह भी अपने सफर में
बहुत दूर निकाल चुके हैं
©️ RajhansRaju
**********

हमारे परदादे एक हैं
*****
बटेंगे तो काटेंगे
एक रहेंगे नेक रहेंगे

सर से ऊंँची छाती नहीं होती
धर्म से ऊंँची जाती नहीं होती

पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश
बस इनको देख लो
और सोचो हम कहां तक थे, कितने थे
हम वहां भी थे और सब हमारा था
अब वहां जो भी हैं वह हमारे नहीं
हम उनके नहीं
यह उसी बंटने फिर कटने का नतीजा है
डर और लालच से वह कुछ और हो गए
जो बदले नहीं मारे गए, भगाए गए,
काटे गए, लूटे गए और हम असहाय बंटे रहे,
उस जगह का नाम कुछ भी रहा
जो हमारा था जहां हम थे
अब किसी और का कब्जा है
कारण हम एक नहीं थे
और अब भी हम जगने को तैयार नहीं है
ऐसा ही रहा तो सोचो क्या होगा
बांटो राज करो का
सिलसिला चलता रहेगा

भला कब तक चलेगा
बच निकलने का बहाना
कोई और जले मेरे लिए
इस प्रतीक्षा से कुछ नहीं होगा
बचे रहना है तो
अलख जगानी होगी
खुद मशाल बनना होगा

जो अपना अतीत
अपने पूर्वज भूल गए हैं
उन्हें भी साथ
हमें ही लाना होगा
तुम आज यह क्यों हो
यह बताना होगा,
आगे बढ़कर उन्हें गले लगाना होगा,
घर वापस आ जाओ
मेरे बिछड़े भाइयों
तुम राम के वंशज हो
हमारा लहू एक है
तुम झांक कर देखो
मिलेंगे शिव और कृष्ण तुम्हीं में

तुम्हें देख कर याद आते हैं
परदादे मेरे
कितना मजबूर होकर
छोड़ा होगा धर्म को अपने
जब बेटी पर संकट आया
और गाय काटी गई
आंख से आंसू नहीं खून निकले थे
कुछ कट मरे, मार कर अपनों को
इज्जत प्यारी थी करते भी क्या
कुछ मजबूर इतने थे
बेबस और लाचार भी
ऐसा कुछ
वह अपने हाथ
कर न सके

तुम्हारी शक्ल
मेरे हारे हुए परदादे से मिलती है
तुम्हारे चेहरे पर आज भी
बेबसी की वही निशानियां हैं
तुम कुछ भी कहते हो
किसी गुलाम की बात लगती है
क्योंकि जो तुम दावा कर रहे हो
उसमें तुम्हारा कुछ भी नहीं है
तुम इसी माटी से बने हो
कहीं और के नहीं हो

अब लौट आओ
घर अपने बहुत हुआ
हम एक हैं
एक ही परदादा हमारे
एक ही घर है
एक हैं हम
तुम अलग रहो
इसमें भला क्या फायदा है
एक रहेंगे नेक रहेंगे
नहीं बटेंगे नहीं कटेंगे
यही कहेंगे यही कहेंगे
जय श्री राम जय श्री राम
©️ RajhansRaju

अतिरिक्त नहीं

कितना बहुत है
परंतु अतिरिक्त एक भी नहीं
एक पेड़ में कितनी सारी पत्तियाँ
अतिरिक्त एक पत्ती नहीं
एक कोंपल नहीं अतिरिक्त
एक नक्षत्र अनगिन होने के बाद।
अतिरिक्त नहीं है
गंगा अकेली एक होने के बाद—
न उसका एक कलश गंगाजल,
बाढ़ से भरी एक ब्रह्मपुत्र
न उसका एक अंजुलि जल
और इतना सारा एक आकाश
न उसकी एक छोटी अंतहीन झलक।
कितनी कमी है
तुम ही नहीं हो केवल बंधु
सब ही
परंतु अतिरिक्त एक बंधु नहीं।
©️विनोद कुमार शुक्ल


नहीं दिख रहा

लगता है मैं कुछ दिख नहीं रहा
शुरुआत घर से हुई
धीरे-धीरे इस तरह तक हुई कि मैं
घर पर हूंँ पर हूंँ नहीं

सच में मैं नहीं दिख रहा हूंँ
और कहीं छुपा नहीं
घर की खिड़की से फिर बाहर निकल कर
पड़ोसियों को आते जाते देखता हूंँ

नहीं दिखने के खेल का जादू
यह बचपन की इच्छा
गायब होने का जादू
बुढ़ापे में मिला
©️ विनोद कुमार शुक्ल

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Comments

  1. आइए अपनी समझ और बेहतर करे और उसका एक ही तरीका है पढ़ना, तो पढिए

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  2. दसवां चेहरा बड़ा भयानक
    एकदम मेरे जैसा है
    छू कर देखा तो मैं ही था
    सारे चेहरे मेरे थे
    रावण को सही सलामत
    मैंने ही रखा है
    सारे गुण अवगुण मेरे हैं
    रावण कहीं नहीं बाहर है
    वह मुझमें ही रहता है
    आईना देखो पहले तुम
    न दिखे तो अंदर झांको तुम

    ReplyDelete
  3. अद्भुत रावण ए बताओ
    त्रेता से कलयुग तक
    कैसा रहा सफर तुम्हारा
    मर कर भी तुम मरे नहीं
    दसों शीश वैसे ही
    बरकरार कैसे रखे

    ReplyDelete

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