The Boat

पानी की नाव

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(1)
वो जो कभी मिलता नहीं,
बस तलाश रहती है,
नाम उसका कुछ भी नहीं,
जिसकी आश रहती है,
सफर दर सफर,
लोग कम होते रहे,
कुछ ने,
कुछ तो पाया,
चलो अच्छा हुआ,
कश्ती में सफर करने वाले,
अपने-अपने किनारे उतरते रहे,
वो भी क्या करते ?
जितना समझना था,
समझ लिया..
थक कर,
नदी को समुंदर
कहने लगे,
जबकि वो कुछ ही दूर था, 

बेसब्र लहरें आवाज दे रही थी,
फासला चंद कदमों का था,
शायद!
वह नाव और नदी से,
थक गया था,
तभी किनारे पर,
नर्म घास दिखी,
बहुत दिनों से,
सोया नहीं था,
उसके सामने हरी वादियां थी,
अब नदी बेकार लगने लगी,
उसके होने का मतलब नहीं था,
अब यही हरे घास का मैदान
उसके लिए सारा जहाँ था।
सफर ऐसा ही है,
जिंदगी का,
सबने थककर,
कहीं न कहीं लंगर डाल दिया है,
जबकि नदी अब भी,
समुंदर को मीठा करने का,
खाब देखती है,
ए नाव भी बड़ी अजीब है,
जो पानी से बनी है,
जिसे बहने के सिवा,
कुछ आता ही नहीं है।
Rajhans Raju
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(2)

पानी ही है

दरिया, सागर, 
बादल, बारिस, 
आँख से जो बहता है,
आँसू जिसको कहते हैं,
पानी है, 
सब पानी ही है,
एक बेकाबू नदी,
जो किनारे के बाहर, 
चली गयी है, 
लगता है जैसे किसी, 
अपने की तलाश में, 
रास्ता भटक गयी है,
कई दिनों तक 
भटकने के बाद, 
आखिर किनारों ने, 
उसे अपने आगोशी में, 
समेट लिया, 
वह कई दिनों से, 
कहीं एक पल ठहरी नहीं थी, 
थकान और रास्ता भटकने का भय, 
कितना मुश्किल होता है, 
किनारों को छोड़कर, 
अंतहीन राहों पर सफर करना, 
जहाँ सारे मोड़ एक जैसे होते हैं, 
इस सफर में सिर्फ, 
दाएँ-बाएँ, 
मुड़ना होता है, 
पर! कितना कठिन होता है, 
यह तय करना, 
किस वक्त कब मुड़ना है, 
किनारों के बीच, 
रहने का यही फायदा है, 
कहाँ बहना है, 
यह फैसला, 
नदी का नहीं होता, 
उसे तो बहना है, 
इसी यकीन में नदी, 
खामोशी से, 
बहती रहती है, 
जबकि किनारों का कहना है, 
उन्हें तो, 
नदी गढ़ती है, 
ऐसे ही, 
खूबसूरत गलतफहमियां, 
जरूरी हैं जिंदगी के लिए, 
जहाँ नदी और किनारे को, 
एक दूसरे पर यकीन है, 
मेरे वजूद की वजह, 
तुम हो
 ©️rajhansraju
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(३)

उस पार चलें

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बाढ़ का समय है, 
बरसात.. 
कुछ देर पहले आयी थी, 
उसने आसमान को धुल दिया, 
अब वह एकदम,  
साफ नजर आने लगा है। 
नाव ने उस पार,  
जाने से मना कर दिया, 
इस तरफ के किनारे से मिले, 
कितना दिन हो गया था, 
अक्सर पानी होता ही नहीं, 
बिना पानी वाली,  
नदी के किनारे सिमट जाते हैं,  
और तब मुझे लेकर,  
कोई उस पार नहीं जाता। 
अच्छा है कुछ ठहर कर.. 
आज मै चलूँ..
फिर जी भरके, 
उस पार के किनारे से,  
इस पार की बात करूँ
©️rajhansraju
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(४)

तूँ कैसा है 

रंग तेरा आसमनी है
हमको लगता है
दिन-रात के साथ तूँ बदलता है
चटख लाल, काला भी दिखता है
बेरंग रहकर रंगों को रचता है।
चलो हम भी एक काम करते हैं
उसकी बनायी दुनिया में
खूबसूरत रंग भरते हैं
थोड़ा नाराज होकर साथ चलते हैं
अच्छा होता है बेवजह मुस्करा लेना
रंग से सरोबार होकर
चेहरों को भुला देना
किसकी शक्ल कैसी है
परेशाँ क्यों है?
वैसे भी तूँ
न तो पानी है
न आइना है।
थोड़ा सा रंग हाथों में लेकर
सबसे पहले अपना चेहरा भुला दे
फिर धुलकर देखना क्या मिलता है
पहले जैसा कुछ बचता है?
या वही बेरंग चेहरा है
जिस पर कोई रंग चढ़ता नहीं है
rajhansraju
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(५)

अक्श

कुछ कहूं अपनी,
कुछ सुनूं आपकी,
यही सोच कर मैं यहाँ पर हूँ, 
पर! क्या कहूं, क्या सुनूं,
कुछ नया नहीं है, 
सबकी एक ही दासता,
जो मैंने महसूस की, 
वही सबने की है, 
कुछ शब्द बदल जाते हैं,
बात वही रह जाती है, 
मैंने भी सोचा, किसी चहरे को,
नजदीक से पढ़ा जाए,
कुछ दिल की बात की जाए,
वह चेहरा जो दूर से,
काफी अच्छा लग रह था.
नजदीक गया तो,
मेरे जैसा ही था,
थोड़ी रोशनी हुई तो, 
पता चला, 
मेरा ही अक्स था,
 ©️rajhansraju 
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(६)

शब्द 

*****
कहीं कुछ भी तो नहीं है
जो तुझसे जुदा हो
यहाँ वहाँ जो भी बिखरा है
या हाथ में
सिमटा है,
जिसे अपना,
या किसी और का,
कहता है।
ए सिर्फ दायरा है
जो बताता है
कौन कितना समझता है।
पर उमने जो बनाया है
वह किसी एक का तो नहीं है,
और सिर्फ लेना ही?
मेरा काम तो नहीं है
शायद! हकीकत कुछ और है
जिसे हम देखना नहीं जानते,
जबकि मै भी उसी की रचना हूँ
जिसमें वह व्यक्त होता है
जैसे नदी और पहाड़ वह गढ़ता है
फिर हमारी आँखों से सब देखता है
कुदरत में सारे रंग भरता है,
उसके आगे दुनिया में,
कोई नहीं जा पाता है।
तब भी,
कुछ लोग,
अपनी समझ का दावा करते हैं,
किस से क्या जुदा है,
ए बताते फिरते हैं,
जबकि हकीकत ए है,
कौन किससे बना है,
और कितना गहरा है,
कभी पता,
चलता नहीं है।
©️rajhansraju
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