Rahnuma

रहनुमा 

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क्या कहें और किसे दोष दें, 
जिन्हें मंजर बदलना है, 
वो अब भी सोए हैं, 
उन्हें यकीन है, 
कोई रहनुमा आएगा, 
यह सोचकर 
वो अपनी चादर खींच लेते है, 
हालांकि.. 
वो पूरे जिस्म को ढकती नहीं, 
पैरों को सीने से लगाकर, 
खुद को समेट लेते हैं, 
खुदा ऐसे बंदो के लिए, 
करता भी क्या? 
जिनके अक्ल पर पर्दा हो, 
जिस्म जैसे, 
उसी टूटी खाट का हिस्सा हो, 
वर्षों से कुछ और उसने देखा नहीं, 
रोशनी का सामना भला कैसे करेगा, 
जो एक पुरानी मैली  सी चादर, 
हटा सकता नहीं, 
जिसमें लगे पैबंद की गिनती, 
करना अब आसान नहीं है, 
छेद इतने हैं कि उसका, 
अपना कोई वजूद है, 
यह भी लगता नहीं, 
शायद! 
कमाल उस खटिया में है, 
जिसने अपने धागों में, 
कोई उम्मीद बांध रखी है। 
मै उस आदमी के पास से, 
आँख बंद करके गुजर जाता हूँ, 
मै क्यों कह दूँ रहनुमा हूँ तेरा, 
खुद को तेरे हवाले यूँ ही कर दूँ, 
जब खेल कुर्सी का है, 
तेरी डोर कसके पकड़नी है, 
तूँ बस जिंदा रहे इतनी ढील देनी है, 
पर ए सच है जब, 
हर बार मै अपने गिरेबान में झांकता हूँ, 
फिर जो कुछ जैसा भी है, 
उसकी वजह मै खुद को पाता हूँ, 
तेरा रोशनी से दूर जाना मेरी ताकत है, 
इसीलिए हर बार जब मैं तुझसे मिलता हूँ, 
तुझे एक नये रंग की, 
चादर दे देता हूँ.. 
Rajhans raju
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(2)

सब एक जैसे हैं 

सोचता हूँ
रहने दूँ दफ्न उनको
या पड़ा रहूँ अपनी कब्र में
मगर क्या करूँ?
एक एहसास कायम है
यह भी लगता है
अभी तक जिंदा हूँ
और उसकी भी साँस
चल रही है
rajhansraju
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(३)

हम चुप हैं 

कोई लडता है,कोई मरता है,
तो मेरा क्या जाता है?
वह सच सिर्फ उसका था,
बेवज़ह थाशोर था,
सारे समझदार चुप थे,
अब भी वही खामोशी कायम है,
चुपचाप हादसों के पास से गुज़रते है,
दूर से ही देखने की आदत,
वैसे भी न कुछ सुनता है,
न देख पाता है,
चलो इस बार भी मै बच गया,
खामोशी ओढ़कर, 
फिर आगे बढ गया,
क्या हुआ?
कुछ भी नहीं,
वह सिर्फ हमारे लिए,
लड़ते-लडते मर गया।
©️rajhansraju 
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(४)

रहनुमा 

कत्ल किसी और से कराके, 
कातिल बच निकलता है,
हमारा रहनुमा, 
यूँ ही,
बेदाग रह जाता है,
बच्चों के हाथ में,
वह कभी चुपके से,
कभी मज़ाक में, 
कोई हथियार,
थमा जाता है
©️rajhansraju 
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(5)

फसाद 

फसाद करना भी,
लोगों का काम हो जाता है,
कुर्सी पाने का,
जरिया हो जाता है, 
तब किसी का, 
अफ़सोस करना भी, 
उन्हें, 
 साज़िस का हिस्सा नज़र आता है। 
जिन्होंने,
न मालूम कितने,
 बेगुनाहों का खून बहाया, 
वही रहनुमा बन जाता है 
किसे अच्छा कहूं, किसे बुरा कहूं,
जब हर किसी ने  
अपने पहलू में तेज़ धार वाला,
खंजर रक्खा है,
अभी वह चुप है, 
शायद,
घात लगाकर बैठा है,
ऐसे ही अपने,
मौके का, 
इंतजार करता है...
©️Rajhansraju 
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(६)

आदत

********
ए कहने की आदत, 
बड़ी अजीब है, 
कोई सुनता नहीं, 
तब भी कहता रहता है, 
आज ऐसा हुआ, 
वह शहर के एकदम, 
करीब वाले गाँव से, 
गुजर रहा था। 
लोगों को देखकर, 
कुछ आगे बढ़ा, 
फिर कुछ सोचकर ठहर गया, 
लौटकर आया, 
ढ़ेर सारी, 
बिन मांगी सीख देने लगा, 
जबकि वहाँ कोई भूखा था, 
किसी के तन पर, 
पूरा कपड़ा नहीं था। 
शायद! 
वह कोई समाजवादी था, 
किसी मार्क्स की बात कर रहा था, 
अरे! नहीं वो धर्म धुरंधर है, 
ईश्वर को बचाने को कह रहा है, 
नजदीक गया तो लगा नास्तिक  है, 
लोगों से उनका भगवान् छीन रहा है, 
कुछ देर में उसने सब कह दिया, 
थक कर जोर-जोर सांस लेने लगा, 
किसी ने बिना कुछ पूछे, 
एक गिलास पानी, 
उसकी तरफ बढ़ा दिया, 
पता चला उसे हर चीज़ से चिढ़ है, 
वह बहुत नाराज है, 
उसे देश, समाज की बड़ी फिक्र है, 
अब जाकर उसका एजेंडा पता चला, 
उसे भी चुनाव लड़ना है, 
वह फला पार्टी का सदस्य है, 
जिसका नारा कट्टर उदारवाद है, 
जिसमें समझौते की कोई गुंजाइश नहीं है, 
उसकी पहली शर्त यही है, 
सिर्फ वह बोलेगा, 
किसी और को कुछ कहने की, 
इजाजत नहीं है, 
तो जो इस खांचे में फिट होते हों, 
चुपचाप झंडा लेकर चल देते हों, 
जिन्हें कुछ न दिखाई देता हो, 
बहरे हों तो, और अच्छा है, 
गूंगो का इस्तकबाल, यहाँ होता है, 
हर वो शख्स, 
जो थोड़ा सा बिमार है, 
आँख पर! 
किसी रंग की पट्टी बांध रखा है, 
यानी उसे रंगो से कोई ऐतराज न हो, 
तो हमारा वाला झंडा लो, 
इस रंग की पट्टी बांध लो, 
अब ए नारा चलेगा, 
ऐसे ही, 
"आवाज" 
जो सुनाई  देती है, 
सिर्फ नारे रह जाते हैं। 
वो जो गाँव की पगडंडी पर, 
पता नहीं! 
किस वाद की बात कर रहा था, 
वही कुर्सी पर तन कर बैठा है, 
उस तक अब कोई पहुँचता नहीं, 
उसके नाम के नारे लगते हैं।  
यह देखकर सोचता हूँ, 
कहूँ  कुछ, 
पर! 
मौन रह जाता हूँ, 
क्योंकि हर कहने वाले का, 
अपना एजेंडा है, 
निशाना कुर्सी पर है, 
हाथ में झंडा है।।
©️rajhansraju
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(७)

mobile

कहता तो यही है कि वो "है" 
पर पता नहीं चलता,
हलाकि उनके पास आँख है,
पर देखना नहीं आता,
एकदम कैमरा,
बस click click.
सुना है कान भी है,
पर जो सुनना चाहिए,
वो सुनाई नहीं देता।
smart तो बहुत है,
एक ही कमी है
अपनी अक्ल नहीं है।
अरे वो आदमी नहीं,
पूरा मोबाइल है।
©️rajhansraju
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(8)

कुछ नहीं चाहिए

कौन यहाँ कुछ माँगता है,
तुम सब अपना, 
अपने पास रखो,
बस हमारा जो है, 
उसे हमारे पास छोड दो,
हमारा दुःख, 
हमारी गरीबी, 
हमारे साथ रहने दो,
तुम्हारा नफरत, 
तुम्हारा तिरस्कार,
मुझे टुकडों में बाँटता है,
तुम्हें पता है?
मै अपने टूटे मकान में,
दुबारा ईंट नहीं लगा पाऊँगा,
मेरे बच्चे अभी तक घर नहीं लौटे,
मै बेचैन होता हूँ, इस देरी से,
मेरा विश्वास? 
न जाने कहाँ ठहर गया,
वह आस-पास नज़र नहीं आता,
         यूँ लगता है तुम्हारे साथ ही रह गया,         
अब तक तो, 
यह मुहल्ला, मेरा था,
पडो‌स के बच्चों  में,
जात-धर्म के सवाल?
तुमने ही तो उस दिन,
रंग और झंडे‌ की बात की थी,
तभी से कपडो‌ से परहेज़ होने लगा था,
मै अपनों के बीच डरने लगा,
मुझे मत बाँटो, 
अपनों के साथ रहने दो,
अच्छा होगा तुम कुछ मत करो,
मेरी आँखों में जो बेवजह ही सही,
किसी के लिए यूँ ही आ जाते है,
उन दो बूँदो को बचे रहने दो,
मै नासमझ, बेकार हूँ,
हँसता हूँ, रोता हूँ,
पर अपनों के साथ हूँ,
खुश हूँ कि अब भी जिंदा हूँ,
तुम सब रख लो,
मंदिर, मज़ार, रामायन, कुरान
मुझे कुछ नहीं चाहिए।
बस जब घर लौटूँ, 
दरवाजा घरवाले खोले,
और मै मुस्करा दूँ...
©️rajhansraju 
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Comments

  1. हर बार मै अपने गिरेबान में झांकता हूँ,
    फिर जो कुछ जैसा भी है,
    उसकी वजह मै खुद को पाता हूँ,
    तेरा रोशनी से दूर जाना मेरी ताकत है,
    इसीलिए हर बार जब मैं तुझसे मिलता हूँ,
    तुझे एक नये रंग की,
    चादर दे देता हूँ..

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  2. ऐसे ही सब चलता राहत है

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