The Door

दरवाजा

 जब कहीं किसी जगह
दरवाजा लग जाता है
वह बाकी लोगों को
यह बताता है
थोड़ा ठहर जाओ देखो
तुमको आगे
जाना है कि नहीं जाना है
वह खुला हो या बंद
बाकी लोगों को
उनकी सीमा बताता है
उस पर कुंडी या ताला लगा हो
तो तुम्हारे लिए
यह वक्त
बाहर ठहरने का है
यह भी समझ लेना चाहिए
यह ऐसी जगह नहीं है
जहां कोई भी
यूं ही चला जाए
इसका कोई मालिक है
जिस पर उसका हक है
वह जब इसको खुला रखेगा
आपको आने के लिए कहेगा
तभी आपको आना है
अन्यथा यहीं बाहर बैठकर
इंतजार करना है
देखते हैं
दरवाजा कब खुलता है
दरवाजा अंदर रहने वालों
को भी उनकी हद बताता है
यहीं तक
मैं जिम्मेदार हूंँ
यह जगह तुम्हारी है
मेरे रहते कोई भी
कभी भी नहीं आ सकता
जब तुम्हें लगे
कुछ देर आराम करना है
अकेले रहना है
या फिर हंसना, रोना है
बस दरवाजे पर अंदर से
कुंडी लगा लेना है
क्योंकि उसका सार्वजनिक
प्रदर्शन नहीं हो सकता
इसी का नाम निजता है
ऐसे में एक छोटे से
दरवाजे की
हमें जरूरत होती है
जो हमारे लिए
सिर्फ दरवाजा नहीं रह जाता
हमारा भरोसा हो जाता है
अंदर बाहर के सीमाएं
इसीके पहरेदारी से तय होती हैं
ऐसे में दरवाजे का मतलब
समझ आना चाहिए
दरवाजे पर पहुंचकर
थोड़ी देर ठहर जाना चाहिए
गौर से दरवाजे को देखना चाहिए
कहीं सांकल चढ़ी तो नहीं है
या फिर अंदर से
अभी अभी
बंद करने की आवाज आई है
वहीं ठहरकर अर्द्ध विराम
पूर्ण विराम
का ख्याल कर लेना
हो सकता है
यह संकेत तुम्हारे लिए हो
अब डेहरी बनाने का
रिवाज नहीं है
क्योंकि आने जाने के तरीके
साधन बदल गए हैं
ऐसे ही अपने घर में डेहरी
जब बाधा लगने लगी
दरवाजे को भी
उससे ठोकर लगती थी
इसकी वजह से
घर के अंदर
एक तरफ खुलता था
अब वह
घर से बाहर निकल जाता है
चौखट की सीमाएं
लांघ जाता है
ऐसे ही अब दरवाजा भी
डेहरी की तरह
खटकने लगा है
वह आने जाने कि आजादी में
रोड़ा लगने लगा है
खैर इसके बाद भी
हमें कुछ सलीका आना चाहिए
किसी भी दरवाजे पर जब पहुंचे
हमें थोड़ी अदब से
झुक जाना चाहिए
भले ही वह कितना ऊंचा हो
क्योंकि चौखट पार करने का
यही तरीका है
फिर यह तो मंदिर की डेहरी है
उस पार इस पार का फर्क
ढूंढना समझना है
समर्पित होकर
इसी चौखट से गुजरना है
हम किस तरफ हैं
यह भी कहां नजर आता है
हम उसके समुंदर में
किसी बूंद की तरह है
उस बूंद का एहसास भी
हमको पूरा नहीं है
©️RajhansRaju

बुनावट

यह बुनने और बनाने की कोशिश
न जाने कब से हो रही है
पूरा कभी कुछ
क्यों नहीं बन पाता
कहीं एक धागा छूट जाता है
कहीं कोई ज़र्रा
कम रह जाता है
उसी कमी के एहसास में
परेशान रहता हूंँ
फिर मुकम्मल नहीं हो पाया
मैं खुद की नजरों में खटकता हूंँ
काश यह न होता तो कैसा होता
वह मुकम्मल होता।

ऐसे ही रोज
कुछ न कुछ करने की कोशिश करता हूंँ
कुछ भी मुझसे मुकम्मल नहीं बनता
उसमें एक कसक रह जाती है
न जाने कब से
यह सिलसिला चल रहा है
कुछ भी मुकम्मल कहां हो पता है
मैं रोज कोशिश करता हूंँ
फिर थक जाता हूंँ
हर सुबह फिर
वैसी ही कोशिशों का सिलसिला है
सब कुछ ऐसे ही
वक्त के साथ बीत जाता है

एक दिन किसी किनारे पर
जब मैं यूंँ ही
अनाजाने सफर में था
मेरे आस पास कोई नहीं था
एक शख्स आधा अधूरा
न जाने किस बात पर
खिलखिला रहा था
उससे पूछने लायक
मेरे पास कोई सवाल नहीं था
वह जितना था पूरा था
उसको इस बात पर पूरा यकीं था

मेरे हर तरफ
अब एक ही मंजर था
कुछ भी कहीं अधूरा नहीं था
सब कुछ मुकम्मल था
मैं नाहक परेशान था
कमी का खटकना भी
अपने में मुकम्मल है
वही उसकी पहचान है
जो उसके पूरा होने पर नहीं होता
यह खटकना
इंसान होने कि निशानी है

मेरी कमियां मेरी नाकामियां ही
मुझे मुकम्मल बनती हैं
मैं इंसान हूंँ
मेरी हदें बताती हैं
उसकी भी तो
मेरे लिए कुछ मर्जी है
उसकी जिम्मेदारियां
हमें थोड़ी निभानी है
©️RajhansRaju

मैं चुप रहता हूँ

मैं किरदार
मैं कहानी
मैं कहूंँ
मैं ही सुनूंँ
मैं न जाने कब
खुद से
अक्सर
नाराज हो जाता हूंँ
नहीं सुनूंगा बात खुदकी
बहुत हो चुकी मनमानी
ऐसा भी कह लेता हूंँ

पर कैसे
मैं खुद को
अनसुना कर पाऊंँ
कान नहीं मेरे हैं
शब्द नहीं मेरे हैं
बिन शब्दों के सुन लेता हूंँ
मैं खुद से
हर वक्त कहता रहता हूंँ
न चाहूंँ तब भी
मैं सुनता रहता हूंँ
फिर यह भी कहता रहता हूंँ
मैंने तो कुछ कहा नहीं
भला मैं
कब चुप रहता हूंँ
ऐसे ही
कुछ न कुछ कहता राहत हूँ
©️RajhansRaju



एक मामूली शख्स
एक मामूली मजदूर
एक मामूली किसान
एक मामूली सा दिन
एक मामूली सी रात
यह सारी मामूली चीजें
मिलकर बन जाती हैं खास
एक मामूली सी झोपड़ी में
वह चाय बनाता मामूली आदमी
बहुत दूर से एक मामूली राहगीर
इधर से गुजर रहा था
आसपास कुछ नहीं था
इस मामूली सी दुकान के सिवा
उसे मामूली आराम मिला


मामूली सी जरूरतें
उसे अपनी यात्रा के लिए
न जाने कितनी जरूरी थी
जो मामूली है कितना सहज है
कितना उपलब्ध है
कोई कदर ही नहीं है
ए मामूली की आदत
मामूली सी,
इतना मामूली कि
उसके होने का
पता नहीं चलता
उसकी खासियत है
उसे हम तवज्जो नहीं देते
जबकि हमारी पूरी जिंदगी
निर्भर है

इन्हीं मामूली लोगों, चीजों पर
जो बहुत खास है
जिनके बगैर
कुछ होता नहीं है
जबकि गैर जरूरी चीजें
जिनकी बहुत कम जरूरत पड़ती है
वह कितनी खास है हमारे लिए
यह मामूली है
इनकी भी अब कद्र करें
यह धूप हवा पानी
कितना मामूली है
बगैर इनके क्या कुछ हो सकता है

इस मिट्टी का जिक्र
क्या कभी करते हैं
जिसने अनाज पानी
सब हमारे लिए सहेज रखा है
इस धूप की कोई कद्र नहीं है
जो सबका आधार है
कितना मामूली
कितना कीमती है
बस देखना आना चाहिए

जो मामूली है वही खास है
जिसे खास मानते हैं
वह तो किसी काम का नहीं है
बस चमक है
जिसमें अपनी रोशनी नहीं है
जिसे मामूली लोग
गैर मामूली बताते हैं
©️RajhansRaju

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Comments

  1. दरवाजे को हमेशा ठीक से देखना चाहिए
    हो सकता है हमरे लिए ही बंद किया हो
    तनिक ठहर के सोचना चाहिए

    ReplyDelete
  2. दरावजा हमारी जरूरत है
    हमारे लिए अंकुश है
    हमारा पहरेदार है

    ReplyDelete
  3. जो मामूली है वही खास है
    जिसे खास मानते हैं
    वह तो किसी काम का नहीं है
    बस चमक है
    जिसमें अपनी रोशनी नहीं है
    जिसे मामूली लोग
    गैर मामूली बताते हैं
    ©️RajhansRaju

    ReplyDelete
  4. जनता के बीच
    बिना मुखौटा जाएगा
    तूंँ पहले सच्चा बन जा
    फिर
    और नहीं कुछ करना है
    बात बड़ी छोटी सी है
    बगैर मुखौटा रहना है

    ReplyDelete

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