Fakir। a seeker

फकीर 

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फकीर के हँसने का सिलसिला, 
कठघरे में भी चलता रहा, 
लोग उसको पागल कहने लगे, 
जबकि शहर में हर तरफ, 
उसी का चर्चा है, 
भला फकीर से किसको खतरा है, 
उसके पास तो कोई झोली भी नहीं है, 
जिसमें कुछ रखा हो, 
या भरके ले जाता। 
वह तो एक दम खाली हाथ, 
फक्कड़, बेपरवाह, लगभग अवारा है, 
फिर वह गिरफ्तार क्यों हो गया, 
कहीं कोई और बात तो नहीं है? 
ए फकीर हो सकता है बहुरूपिया हो, 
नहीं  तो भला, 
सरकार का उससे क्या वास्ता है, 
सड़क की खाक छानने वालों की
कोई कमी तो नहीं  है, 
रोजी-रोटी की जंग तो वैसे ही जारी है। 
सुनने में तो ए आ रहा है 
फकीर की बदजुबानी से, 
शहर का काजी, 
सबसे ज्यादा परेशान था, 
सवाल ए भी है, 
वो भागा क्यों नहीं? 
जब यहाँ पर उसकी होने की, 
कोई वाजिब वजह नहीं है, 
वो तो कहीं भी किसी भी, 
खानकाह का हो लेता, 
पर उसने ऐसा नहीं किया, 
उसके सामने भी सिक्के बरसते, 
बस इतना करना था, 
आँख, कान बंद रखना था, 
और कभी सच नहीं कहना था, 
शहर का काजी बनने की, 
सिर्फ़ यही मामुली शर्त थी। 
सभी रहनुमा उसके सच से परेशान हैं, 
न जाने किसको, कब बेपर्दा कर दे, 
वो तो फकीर ठहरा
हंसते-हंसते न जाने क्या कह दे, 
जरूरी है ऐसे बंदो का कैद रहना, 
न जाने कब? 
आवाम इनकी, 
आवाज सुन ले। 
©️Rajhans Raju
😍😍😍
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(2)

शून्य 

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मै शून्य से बना हूँ, 
शून्य बन जाऊँगा, 
अनंत के दामन में, 
विलीन हो जाऊँगा, 
ये शून्य की यात्रा है, 
जो शून्य ही रहता है, 
अनंत का विस्तार, 
शून्य ही गढ़ता है, 
मै शून्य हूँ
सदा, 
शून्य ही रहता हूँ 
©️Rajhans Raju
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(3)

चांद और मैं

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आज चांद फिर से देखा,
वह अब भी वहीं रहता है,
कई साल बीत हो गए थे,
आसमान देखें,
खुले में बैठने,
कुछ करने की जरूरत,
अब नहीं पड़ती,
आदमी जहाँ भी रहता है,
उसके ऊपर,
एक छत साये की तरह,
रहता है,
वह इस जद्दोजहद में खोया है
उसके ऊपर कोई आसमान है,
यह पता नहीं चलता है,
न जाने क्या?
आज कुछ ऐसा हुआ,
आसमान की तरफ,
रात के अंधेरे में देखने लगा,
काफी दिनों बाद,
यह वक्त आया था,
जब आसमान देखना हुआ,
नहीं तो उसी छत को देखता,
जिस में कभी कोई रंग नहीं बदलता,
हर आदमी सिर्फ अपनी,
कल्पना के कुछ रंग,
भर सकता है,
मगर यह एहसास,
हरदम बैठा रहता है,
ए हकीकत नहीं है,
आखिर सच तो, सच ही होता है,
उसके होने का,
भला कौन इनकार कर सकता है,
वह आज भी ऐसे ही,
ठहरा हुआ सा दिखता है,
जैसे किसी के इंतजार में,
न जाने कब से,
हर एक लम्हा जी रहा हो,
बहुत पहले इसी तरह अपनी छत से,
नहीं तो कभी खेत की पगडंडी से,
इस चांद को देखा करता था,
वह तब भी वैसा ही था,
जैसे कि आज है
उसके चारों तरफ,
ढ़ेर सारे सितारे,
मानो कोई गीत गा रहे हो,
बच्चे अपनी ही मस्ती में,
कोई खेल खेल रहे हों
और किसी बात पर,
अनायास ही खिलखिला पड़े हों
©️rajhansraju
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(4)

वह कहाँ है? 

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वह रोशनी के पीछे,
अंधेरा देखता है,
सामने होकर,
किसी को क्यों?
दिखाई नहीं देता है,
जैसे कोई साया,
बिना पैर चलता रहता है,
न जाने किस-किस की,
उंगली थामे रहता है,
कौन है जो इस तरह,
हर जगह समाया रहता है
है सबमें,
फिर आँख वालों को क्यों?
नहीं दिखाई देता है,
वह कहता तो कुछ नहीं,
तब भी बहरों को सुनाई देता है,
आज वह एक फकीर,
का लबादा पहनकर,
किसी की पैरोकारी कर रहा है,
कोई कहानी, एकदम किताबी,
बात कर रहा है,
न खत्म होने वाले,
फसाने कहता है,
लोग हंस रहे हैं,
अजीब पागल है,
इस पर भी कोई हंसता है
जबकि सब रो रहे हैं,
वह सफर की बात कह रहा है,
मुसाफिर है कब तक ठहरेगा,
थोड़ी सी तैयारी,
हर आदमी को,
रखनी है,
कब से यही कह रहा है,
जिसे लोग पागल समझ रहे हैं,
वह तो सफर का साक्षी है,
रास्ता, मुसाफिर दोनों देखता है,
बहुत जिद्दी है,
हर मोड़ पर एक निशान,
लेकर रहता है,
लोग उस पर यकीन कैसे करें,
भला बंद आँख से,
कौन देखता है,
जबकि वह हर समय,
रूहानी, आसमानी बातें करता है,
लोगों की अजीब शक्ल देखता है,
नासमझी की लकीरें,
हर चेहरे पर नजर आती हैं,
पहले मुस्कराता है,
फिर जोर-जोर,
हंसने लग जाता है
उस फकीर ने,
अपना लबादा और चेहरा,
वहीं रख दिया,
अब उसके न रहने पर,
उसकी तलाश,
हर आदमी करता है,
©️rajhansraju
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⬅️(37) Kitab
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➡️(35) Rahnuma
रहनुमा : दावे बहुत करता है 
क्यों उस पर यकीन, कोई नहीं करता है
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Comments

  1. चलो यूँ ही किसी अनजानी राह पर चलते हैं
    कहाँ जाना है यह तय नहीं करते हैं

    ReplyDelete

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