Vulture
गिद्ध
गिद्ध कई दिनों से परेशान था
उसकी भी जिंदगी का सवाल था
वह गोश्त खाता है
कैसा किसका इससे उसको
कोई मतलब नहीं है
ना तो कोई फर्क पड़ता है
उसका पेट भरना चाहिए
अगर गिद्ध
यह विचार करने लग जाए
गोश्त कैसा है
क्या वह कभी खा पाएगा
उसका गिद्धपन रह जाएगा
गिद्ध के बने रहने की
पहली शर्त यही है
वह गोश्त खाता रहे
कहीं दूर बैठकर
यही सोचता रहता है
अच्छा गोश्त कहां कैसे मिले
हमने कहानी सुनी है
कुछ लोगों को
अनिष्ट होने पर ही रस मिलता है
क्योंकि उनकी रोजी-रोटी
उसी से चलती है
शमशान में जब भीड़ बढ़ जाती है
कुछ चेहरे खिल जाते हैं
वहां भी व्यापार होता है
लकड़ियों का
चिता जलाने का
गिद्धों के लिए भी जरूरी है
उन्हें कुछ मिलता रहे
जो उनको भाता हो
जिसे वह चबा चबाकर खाता हो
फिर गिद्ध के पीछे गिद्ध
धूमधाम से लग जाते हैं
गिद्ध गान शुरू हो जाता है
पूरा झुंड एक साथ है
एक जैसी आवाज में
सब सुर मिलाते हैं
देखो यहां पर गोश्त है
एक दूसरे को बताते हैं
गिद्ध को नोचने में
बहुत मजा आता है
गिद्ध की चोंच बहुत तेज है
जिसमें धार
कहीं और से आता है
हालांकि उनकी संख्या
निरंतर कम होती जा रही है
मगर जितने हैं
गिद्ध होने के लिए पर्याप्त है
हालांकि वह पुराना पेड़
बहुत तेजी से सूख रहा है
जिस पर मस्ती से गिद्ध रहा करते थे
गिद्ध पेड़ को हरा नहीं कर सकते
वह तो खून पीते हैं
किसी को खाद पानी नहीं देते हैं
यह बात जगजाहिर हो गई है
नये दरख़्त को बोटी खाने वाले
गिद्ध मंजूर नहीं है
गिद्ध लाचार हैं
नये पेड़ पर बैठने की फिराक में है
उस पर नन्हे परिंदों का घोंसला है
गिद्ध की नजर
सिर्फ पेड़ पर नहीं है
चिड़ियों की चहचहाहट
उसे पसंद नहीं है
वह गिद्ध है
©️ RajhansRaju
🌹❤️🙏🙏🌹🌹
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Dear Media
गिद्ध होने से बचिए
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महाकुंभ जैसा अवसर हमारी हर जातीय धार्मिक पहचान को मिटा देता है और प्रत्येक व्यक्ति सिर्फ व्यक्ति रह जाता है और एक दूसरे के साथ खड़ा हो जाता है हम अपने प्रयागराज में इसका दर्शन बड़ी आसानी से कर सकते हैं क्योंकि जब कोई मदद कर रहा होता है तब वह कभी यह नहीं सोचता है कि सामने वाला कौन है बस जो कर सकता है उसे करना होता है और वह उसे करता है अब सोचिए ढेर सारे बड़े बुजुर्ग जो उम्र की एक जो सामान्य स्वस्थ रहने की सीमा है उसके पार जा चुके हैं और शरीर सिर्फ अपने जरूरी काम कर ले उस लायक ही बचा है ऐसे में तीर्थ यात्रा करना और मुक्ति की कामना करना एक स्वाभाविक गुण या जरूरत बन जाता है ।
ऐसे में शहर के सभी लोग बोलें या ना बोलें या फिर इस बात को कैसे कहना है कि हम समझ रहे हैं आपकी भावनाएं, यह कहने का तरीका उन्हें नहीं आता है लेकिन उन बुजुर्गों के साथ वह खड़े रहते हैं और जितना मदद कर सकते हैं, करते हैं, यह तादाद बहुत बड़ी संख्या में होती है लोग अपने घर के दरवाजे खोल देते हैं या फिर जैसी हैसियत है शरीर से, धन से, जगह से, भोजन से, लोगों के लिए जो कर सकते हैं, करते हैं और कहीं कोई न तो अपनी पहचान के बारे में सोचता है ना तो सामने वाले की, बस कुछ कर सकते हैं इसलिए कर रहे हैं और सबसे बड़ा धर्म या फिर यूं कहें पुण्य यही है और हर आदमी इस महाकुंभ में वह कमा लेना चाहता है।
जो दूर कहीं से आए हैं संगम में डुबकी लगाने के लिए, उन्हें जो पुण्य मिलेगा वह तो वही जाने पर यहां जो सेवा भाव से कर रहे हैं उन्हें निश्चित रूप से कुछ तो मिलता होगा और शायद उस चीज का नाम संतोष है। दूसरी तरफ हमारे यहां गिद्ध मीडिया और कुछ लोग कुछ खास तरह के एजेंडे और बातों पर लगातार खुद को फोकस रखते हैं और शायद उनके व्यापार का यही तरीका है या यूं कहें सिर्फ मार्केटिंग और बाजार से कुछ कमा लेने की जो कोशिश है उसकी वजह से अजीबोगरीब हरकतें करते रहते हैं ।
सरकारें आएंगी जाएंगे व्यवस्था आज कोई और देख रहा है कल कोई और देखेगा हम भी आज हैं कल नहीं रहेंगे और चीजें जैसी चल रही है उससे कुछ बेहतर होगी या फिर बदतर होंगी लेकिन हम क्या कर रहे हैं, हमारा उसमें क्या योगदान है? हम किस तरफ हैं ? कुछ अच्छा करने की तरफ या सब बर्बाद करने की तरफ, हमारा परसेप्शन कुछ भी हो सकता है लेकिन अपनी तरफ से बेहतर करने की कोशिश हर समय निरंतर करते रहना है। अब सोचिए समाचारों को रील की तरह आजकल कैसे बनाया जाता है कुछ मिनट कुछ सेकेंड के वीडियो कैसे समाज में फैल जाते हैं और कोई भी ऐरा-गैरा तुरंत सेलिब्रिटी बन जाता है और उसपर पैसों की बरसात होने लगती है ।
कोई बेवकूफी भरा वक्तव्य, वेशभूषा, कुछ भी बोल देने कि उनकी मूर्खता भरी क्षमता जो लगभग गाली गलौज जैसी ही होती है, वही उनका गुण बन गया है और जो वास्तव में सब कुछ गोबर बना देता है। जबकि मेला प्रशासन से जुड़े लोग जिसमें सभी जाति धर्म वाले होते हैं और वह अथक परिश्रम करते हैं कि किसी तरीके से मेला संपन्न हो जाए। सोचिए जब हमारे घर चंद मेहमान आ जाते हैं और गांव या आसपास कोई छोटा-मोटा मेला होता है। उसको हम लोग कैसे निपटाते हैं या फिर कितनी दिक्कत होती है और जब एक बड़ी व्यवस्था और पूरा सिस्टम कहीं लगा हुआ है और लाखों लाख लोग चले आ रहे हैं यह संख्या कितने करोड़ तक पहुंच जाएगी बस अनुमान लगाया जाता है अगर अनुमान सहज बना रह जाता है और सब कुछ इस अनुमान के अंदर रहता है तब चीजें व्यवस्थित कर ली जाती हैं और जब अनुमान ध्वस्त होने लगते हैं तब कितना मुश्किल हो जाता है काम करना। सोचिए हम जहां खड़े हैं हमारे आगे पीछे कितने लोग हैं या यूं कहें कितने लाख लोग हैं इसका भी अनुमान हम नहीं लगा सकते हैं ऐसे में धैर्य, अनुशासन की बहुत ज्यादा जरूरत होती है और फिर अब सबके हाथ में मोबाइल है हर आदमी फोटो वीडियो बना रहा है तो क्या लोड करना है क्या बताना है क्या दिखाना है इसकी भी जिम्मेदारी समझ में आ जाती तो कितना अच्छा होता।
यह देखो फला जाति, फला धर्म के लोगों ने अपने दरवाजे खोल दिए, क्या बकवास कर रहे हो? इसमें कौन सी अनोखी बात है, ऐसा तो किया ही जाता है, सभी लोग करते हैं यह खास जाति और धर्म का होने की वजह से नहीं किया जा रहा है, वह आदमी भावुक है ऐसा करता ही है वह जहां भी मौजूद होता है वह यही करता है अगर नहीं करता है जो लोग इस श्रेणी में नहीं आते करने वालों के, तब गलत होता है, उसे बात की भरपूर आलोचना होनी चाहिए निंदा होनी चाहिए, क्योंकि करना तो सामान्य माना जाना चाहिए, मंदिर हो, मस्जिद हो सब इंसानों के लिए ही तो बने हैं। अगर उनके दरवाजे, उनके कपट नहीं खुलते हैं तब बुरा है।
जो लोग भी सरकारी सेवा में हैं या फिर किसी तरह की भी सेवा कर रहे हैं और अपने कर्तव्य से विमुख होते हैं और उसमें कोताही बरतते हैं तब बड़ा दुर्भाग्य होता है, काम करना बड़ी बात नहीं है काम तो करना ही चाहिए और आप इसीलिए हैं। जब आप काम करते हैं तब कोई बड़ी बात नहीं करते हैं लेकिन जब नहीं करते हैं तब आप गलत करते हैं तो ऐसे ही जो हमारा सोशल मीडिया है और जो लोग चंद सेकंड में वायरल होने की खोज में लगे हैं यह लोग अब गिद्ध की भूमिका में आ गए हैं जो लगातार सेंसेशन क्रिएट करने में लगे रहते हैं यह देखो ...
और सेंसेशन कहां से आता है मौत की खबरों से, बुरी खबरों से उनके फोटो वीडियो से, तो अगर आप इंसान हैं तो साबित करिए कि जिंदा भी हैं और आप में भावनाएं हैं तो उसका यही तरीका है, सभी तरह के फोटो वीडियो लोड करने से बचें और अपनी सामाजिक जिम्मेदारी को समझिए।
गिद्ध होने से बचने की जिम्मेदारी हम सब की है आप चाहे जिसके समर्थक-विरोधी हो, चाहे जो एजेंडा चला रहे हों आपनी मूर्खता और व्यापार के चक्कर में समाज की समरसता को मत बिगाड़िए और जैसे चल रहा है चलने दीजिए बेहतर नहीं कर सकते हैं तो उसे खराब और ध्वस्त मत करिए, आपका इतना योगदान काफी होगा
©️RajhansRaju
महाकुम्भ में गिद्ध
कुछ लोग पीपा पुल और रास्ता खोलने बंद करने को लेकर ज्ञान दे रहे हैं जबकि उन्हें ढंग से कुछ भी पता नहीं होता अब सोचिए पीपा पुल या रास्ता बंद करना जरूरी क्यों होता है तो सीधा सा जवाब है जिससे इस तरफ की भीड़ दूसरी तरफ कि भीड़ से अलग रहे क्योंकि हर तरफ भीड़ होती है और सब लोग संगम कि तरफ न जाएं इसलिए बंद किया जाता है जो जिस तरफ हैं वहीं नहाकर उसी तरफ से लौट लें और जरूरत के हिसाब से उन्हें खोला बंद किया जाता है ।
इसी शहर और जिले में भी व्यवस्था का संचालन किया जाता है और जो लोग जहां पर फंसे होते हैं उन्हें सिर्फ अपने आसपास का हिस्सा ही दिखाई पड़ता है जबकि प्रशासन हर जगह की movement के हिसाब से निर्णय लेता है और उसी हिसाब से कभी बिलकुल कहीं नहीं रोका जाता तो कभी कुछ किलोमीटर से लेकर शहर और जिले के border पर भी लोगों को रोकना पड़ जाता है और ऐसे में जो जहां फंसे होते हैं उनकी परेशानी समझी जा सकती पर लोगों का सुरक्षित रहना ज्यादा जरूरी है ऐसे कुछ घंटे की परेशानी सहने के लिए अनुशासन और संयम के साथ तैयार रहना चाहिए।
एक बात और मुख्य स्नान के दौरान कोई VIP movement नहीं रहता बाकी समय जब रहता है तो DPS नैनी में Helipad बना है वहां से VIP घाट (अरैल) पर बिना किसी और को बाधित किए आया-जाया जाता है और प्रशासन के लिए 30 पीपा पुल में से दो से चार जरूरत के हिसाब से आरक्षित रखा जाता है emergency services के लिए और VIP के लिए भी ... जिससे आम लोगों का लेना-देना नहीं होता कि कौन कहां आया गया। यह सिर्फ TV और social network पर ही चलता है। जहां गिद्ध अपने काम में लगे रहते हैं
🌹❤️🙏🙏🌹🌹
कृपया सभी लोग अपनी जिम्मेदारी समझें
कुछ भी बताने दिखाने की होड़ न लगाएं अर्थात
सबसे पहले सबसे तेज होने से बचना होगा
🙏🙏🙏
अफवाहों से बचिए धैर्य रखिए
ए महाकुम्भ है अर्थ समझिए
यहांँ जन आस्था का महासमुद्र है
कुछ भी सामान्य नहीं है
सबकी परीक्षा है
आस्था भक्ति
पुलिस प्रशासन
आम खास
हम सबके
कर्तव्य की
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social media में महाकुम्भ
कुछ लोग अपने एजेंडे और मूर्खता कि वजह से Social network पर कुछ भी share करते रहते हैं। ऐसे लोगों का वास्तविकता, समझ और जिम्मेदारी से कुछ लेना-देना नहीं होता कि इससे क्या हो सकता है। अक्सर इनके selective truth और एजेंडे में आम लोग फंस जाते हैं। ऐसे विघ्न संतोषी लोगों से सावधान रहने कि आवश्यकता है और इन्हें भी ईश्वर सद् बुद्धि दे ...
तीर्थों का राजा - प्रयागराज
एक समसामयिक प्रसंग -सभी तीर्थों में प्रयागराज को क्यों कहा गया ""तीर्थराज"
प्रयाग तीर्थों के नायक हैं, तीर्थों के राजा हैं और मोक्ष देने वाली सातों पुरियां उनकी रानियां हैं। इनमें पटरानी का गौरव काशी को प्राप्त है। काशी तीर्थराज को सबसे ज्यादा प्रिय है। प्रयाग ने उन्हें मुक्ति देने का अबाध और अनंत अधिकार सौंप रखा है। पुराणकाल में उनके लिए कहा गया है- "मुक्तिदाने नियुक्ता"। वे मुक्ति देने के लिए नियुक्त की गई हैं।
महाभारत के एक प्रसंग में मार्कंडेय ऋषि धर्मराज युधिष्ठिर से कहते हैं कि राजन् प्रयाग तीर्थ सब पापों को नाश करने वाला है। जो भी व्यक्ति प्रयाग में एक महीना, इंद्रियों को वश में करके स्नान-ध्यान और कल्पवास करता है, उसके लिए स्वर्ग का स्थान सुरक्षित हो जाता है। इसी तरह शताध्यायी के संदर्भों में त्रिवेणी और प्रयाग- अनेक पौराणिक आख्यानों के अनुसार प्रयाग को तीर्थराज के रूप में महिमामण्डित किया गया है। तीर्थराज प्रयाग में सभी तीर्थों और क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले मठ और आश्रम हैं।
त्रिदेवों की पुण्यस्थली तीर्थराज प्रयाग को पुराणों में विष्णुप्रजापति और हरिहर क्षेत्र कहा गया है। सृष्टि रचना से पहले यहीं प्रजापिता ब्रह्मा ने दशाश्वमेध यज्ञ किया था। तीर्थराज प्रयाग की श्रेष्ठता के संबंध में पुराणों में अनेक कथाएं मिलती हैं।
एक कथा के अनुसार शेष भगवान के निर्देश से ब्रह्मा ने सभी तीर्थों की पुण्य गरिमा को तराजू पर तौला था। फिर इन सभी तीर्थों, सात समुद्रों सात महाद्वीपों को तराजू के एक पलड़े पर रखा गया। दूसरे पलड़े पर तीर्थराज प्रयाग को रखा गया तो बाकी तीर्थों वाला पलड़ा ध्रुवमण्डल को छूने लगा, लेकिन जिस पलड़े पर तीर्थराज प्रयाग थे, उसने धरती नहीं छोड़ी।
इस पौराणिक उल्लेख के जरिये तीर्थराज प्रयाग की श्रेष्ठता सिद्ध करने का प्रयास किया गया है। कहा गया है ब्रह्माण्ड से जगत की उत्पत्ति होती है, जगत से ब्रह्माण्ड की नहीं। इसी प्रकार प्रयाग से सारे तीर्थ उत्पन्न हुए हैं। किसी तीर्थ से प्रयाग का जन्म होना असम्भव है।
प्रयाग तीर्थों के नायक हैं, तीर्थों के राजा हैं और मोक्ष देने वाली सातों पुरियां उनकी रानियां हैं। इनमें पटरानी का गौरव काशी को प्राप्त है। काशी तीर्थराज को सबसे ज्यादा प्रिय है। प्रयाग ने उन्हें मुक्ति देने का अबाध और अनंत अधिकार सौंप रखा है। पुराणकाल में उनके लिए कहा गया है- "मुक्तिदाने नियुक्ता"। वे मुक्ति देने के लिए नियुक्त की गई हैं।
महाभारत के एक प्रसंग में मार्कंडेय ऋषि धर्मराज युधिष्ठिर से कहते हैं कि राजन् प्रयाग तीर्थ सब पापों को नाश करने वाला है। जो भी व्यक्ति प्रयाग में एक महीना, इंद्रियों को वश में करके स्नान-ध्यान और कल्पवास करता है, उसके लिए स्वर्ग का स्थान सुरक्षित हो जाता है। इसी तरह शताध्यायी के संदर्भों में त्रिवेणी और प्रयाग- अनेक पौराणिक आख्यानों के अनुसार प्रयाग को तीर्थराज के रूप में महिमामण्डित किया गया है। तीर्थराज प्रयाग में सभी तीर्थों और क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले मठ और आश्रम हैं।
एक कथा के अनुसार शेष भगवान के निर्देश से ब्रह्मा ने सभी तीर्थों की पुण्य गरिमा को तराजू पर तौला था। फिर इन सभी तीर्थों, सात समुद्रों सात महाद्वीपों को तराजू के एक पलड़े पर रखा गया। दूसरे पलड़े पर तीर्थराज प्रयाग को रखा गया तो बाकी तीर्थों वाला पलड़ा ध्रुवमण्डल को छूने लगा, लेकिन जिस पलड़े पर तीर्थराज प्रयाग थे, उसने धरती नहीं छोड़ी।
इस पौराणिक उल्लेख के जरिये तीर्थराज प्रयाग की श्रेष्ठता सिद्ध करने का प्रयास किया गया है। कहा गया है ब्रह्माण्ड से जगत की उत्पत्ति होती है, जगत से ब्रह्माण्ड की नहीं। इसी प्रकार प्रयाग से सारे तीर्थ उत्पन्न हुए हैं। किसी तीर्थ से प्रयाग का जन्म होना असम्भव है।
एक अन्य कथा के अनुसार तीर्थराज की पहचान होने के बाद काशी विश्वनाथ स्वयं आकर प्रयाग में रहने लगे। उन्होंने महाविष्णु रूप भगवान वेणी माधव के दर्शन किए। वेणी माधव, अक्षयवट के पत्ते पर बालमुकुन्द रूप धारण कर अपनी महिमा का विस्तार करने के बारे में सोच रहे थे, तभी शूलपाणि शिव अक्षयवट की रक्षा करने को वहीं उपस्थित थे।
पद्मपुराण के अनुसार भगवान वेणी माधव को शिव अत्यंत प्रिय हैं। वही शिव अवंतिका में महाकालेश्वर के रूप में विराजमान हैं, वहीं शिव कांची की पुण्य गरिमा के कारण हैं। उनका प्रयाग में निरन्तर निवास करना शैव और वैष्णव धर्म के समन्वय का प्रमाण है।
पद्मपुराण के अनुसार भगवान वेणी माधव को शिव अत्यंत प्रिय हैं। वही शिव अवंतिका में महाकालेश्वर के रूप में विराजमान हैं, वहीं शिव कांची की पुण्य गरिमा के कारण हैं। उनका प्रयाग में निरन्तर निवास करना शैव और वैष्णव धर्म के समन्वय का प्रमाण है।
c/p
जय सत्य सनातन। जय भारत।
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जय सत्य सनातन। जय भारत।
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हम सबको गिद्धों से सावधान रहने की जरूरत है और अपना काम ईमानदारी से करना है
ReplyDeleteअफवाहों से बचिए धैर्य रखिए
ReplyDeleteए महाकुम्भ है अर्थ समझिए
यहांँ जन आस्था का महासमुद्र है
कुछ भी सामान्य नहीं है
सबकी परीक्षा है
आस्था भक्ति
पुलिस प्रशासन
आम खास
हम सबके
कर्तव्य की
सारा खेल भाव का है
ReplyDeleteजब भाव आ जाता है
तब अभाव
अपने आप नष्ट हो जाता है
मैं कौन हूंँ
यह सवाल
अब नहीं रह जाता है
आभार 🙏🙏❤️❤️
ReplyDeleteहमारी मीडिया का व्यवहार गिद्ध की तरह ही है
ReplyDeleteहम सब को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी
ReplyDeleteBahut sundar
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