Cactus

कैक्टस 

 जहां पानी कम होता है 

या फिर नहीं होता 

उस बंजर जमीन को भी 

हरा किया जा सकता है 

बस वहां 

कैक्टस लगाना होता है 

और कभी-कभी तो कैक्टस 

वहां खुद उग आते हैं 

यह बिरानगी उनसे 

देखी नहीं जाती 

अपने कांटों से 

रेत रोकने लग जाते हैं 

कोई इस हाल में 

इतना हरा हो सकता है 

पानी के अभाव में 

हरियाली की जिम्मेदारी 

कैसे ले सकता है 

इस सहरा में भी 

वैसे ही सहर होती है 

एक दिन सुकून की छांव होगी 

यहां भी पानी होगा 

यहीं किनारा होगा 

यहां सब कुछ होगा 

कैक्टस ने जिम्मेदारी ली है 

एक घरौंदा बनाने की

उसकी अधूरी छांव में 

अब उतनी धूप नहीं लगती

आज 

कोई अनजाना अंकुर फूटा है 

न जाने बड़ा पेड़ होगा 

या धरती का बिछौना 

मखमली घास होगा

खैर कुछ भी हो 

शुरुआत तो ऐसे ही होती है 

मेरे सिवा कोई और है 

मैं अकेला नहीं हूंँ

यह काफी है 

मैं कैक्टस हूंँ 

मेरा काम 

आसान नहीं है 

दूसरे पौधे अपना वजूद 

बनाने लगे हैं 

मेरी छाया काम आई है 

जड़ तो खुद जमाना पड़ता है 

स्थिर रहना आसान नहीं है 

बहुत से थपेड़े सहने पड़ते हैं 

यहां रात में सर्दी बहुत होती है 

बर्दाश्त करने की कोई हद नहीं है 

यह मौसम और खुद से लड़ाई है 

अब चलो गुनगुनाते हैं 

अब मैं अकेला नहीं हूं 

तुम्हें कुछ सुनाते हैं

तुम भी सुनाओ

मैं तो कैक्टस हूं 

अपने बारे में बताओ

ऐसे ही धीरे-धीरे रेत में 

बहुत कुछ हरा नजर आने लगा 

कैक्टस के कांटे 

कैक्टस के वह पत्ते हैं 

जो पानी बचाना जानते हैं 

उनके पास पास जो नमी है 

उसको सहेज कर रखते हैं 

खुद के लिए

औरों के लिए क्या कितना जरूरी है 

यह समझते हैं 

और जब चारों तरफ 

हरियाली नजर आने लगती है 

कैक्टस के कांटे 

लोगों को खटकने लग जाते हैं 

कैक्टस अब भी हरा है 

उसके एक तरफ सहरा है 

दूसरी तरफ उपवन है

©️ RajhansRaju



मेरी आकाशगंगा


अब मैं तुम्हें नहीं पहचानता 

सदियां गुजर गई 

हमें अलग हुए 

न जाने कौन-कौन सी कहानी 

अब भी हमारे बारे में कही जाती हैं 

लोग तो यह भी कहते हैं  

यह चांद 

इसी धरती से टूट कर बना है 

आकाशगंगाओं की श्रृंखला है 

हमने भी 

अपनी आकाशगंगा का एक नाम रखा है 


सब कुछ इतना दूर है 

अनंत की गहराइयों में खोया हुआ है 

मैं कितना सच जानता हूंँ

यह कह पाना बहुत मुश्किल है 

जब कुछ भी बहुत दूर हो 

तब उसके बारे में 

कुछ भी कहा जा सकता है

और कुछ नहीं भी 

कल्पना आकार लेती रहती है 

हम अपनी आकाशगंगा रचने लग जाते हैं 

ऐसा कोई साधन नहीं है  

हम एक आकाशगंगा से 

दूसरी आकाशगंगा में पहुंच जाए 

यह गति की समस्या 

न जाने हमें 

कितने दिन दूर रखेगी 

और हम उस 

आकाशगंगा में नहीं जा पाएंगे 

समय के बंधन में हम बंधे हुए हैं 

जो हमें एक सीमा से आगे नहीं जाने देती  

यह समय 

हमारे देह की मियाद पूरी होते ही 

न जाने कौन सी यात्रा पर 

हमें ले जाता है 

हम उस वक्त 

हम रहते भी हैं कि नहीं 

यह भी तो नहीं मालूम है 

शायद सब कुछ कहने सुनने की 

कथा मात्र है 

इससे आगे भी बहुत कुछ है 

पर इसका दावा कैसे करें 


मैं तुम्हारी आकाशगंगा से बहुत दूर हूंँ 

यह भी तो सही है 

क्या तुम उस आकाशगंगा में हो 

यह भी कैसे मान लूंँ

तुम वहांँ हो कि नहीं 

यह दावा तो नहीं कर सकता 

मैं अपनी आकाशगंगा में कहां पर हूंँ

यह भी नहीं कह सकता 

बस मैं हूंँ

इतना जानता हूंँ 

मैं तुम्हें 

जहां तुम्हारे होने की संभावना होगी 

वहांँ ढूंढ़ने जरूर जाऊंगा 

देश काल से परे

कहीं कुछ जरूर होगा 

जहां वक्त ठहर जाता होगा 


सब स्थिर 

गति से परे 

शायद अगति होगी

जहां हर एक पल 

सदा के लिए स्थिर होगा 

उसे कहीं और नहीं जाना होगा 

उस मुकम्मल पल कि तलाश में 

मैं हर आकाशगंगा के छोर तक जाऊंगा 

©️ RajhansRaju



एक बात कहूंँ 

राज ही रखना 

न कहना किसी से 

सब ने ऐसा ही किया 

राज रखने को कहा 

और 

बात पहुंच गई 

सभी तक

अब राज ऐसे ही कायम है 

यह एक मौन विज्ञापन है 

©️ RajhansRaju 

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इस किनारे उस किनारे के बीच नदी बहती है 

जो किनारों को जोड़कर रखती है 

किनारे नदी बगैर नहीं हो सकते 

जहां नदी नहीं होती 

वहां इस किनारे से 

उस किनारे कोई आता जाता नहीं 

बस यहां वहां भटकता रहता है 

©️ RajhansRaju 


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यूंँ ही बेवजह हंसते हैं 

एक दूसरे की 

उंगली थामकर रखते हैं 

तेरे बिन 

मैं कहांँ कुछ हूंँ

मेरा वजूद तूंँ है 

मैं तुझसे हूंँ

ऐ जिन्दगी ..

कोई गिला नहीं तुझसे 

कितना कुछ दिया मुझको 

मैं हूंँ ..

इस बात का शुक्रिया तुझको 

©️ RajhansRaju 

कुछ लोग 

अपनी कुंठा छिपा नहीं पाते हैं 

दु:खी रहने से बाज़ नहीं आते हैं 

पता नहीं क्यों 

कुछ अच्छा देख नहीं पाते हैं 

ए कुछ दिन से अजब हाल है 

सब ठीक है 

यह सह नहीं पाते हैं 

©️ RajhansRaju 

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 उसने अपना नाम पुकारा 

हांँ ! यह वही है, 

जिसने सुना ..

मुस्कराया 😄😄 

पलटकर देखा 

कहीं कोई और नहीं है 

वह है 

ऐसे ही खुद को बताता है 

©️ RajhansRaju 


🌹❤️🙏🙏🌹🌹

आइने को 

खुद से शिकायत है 

पहले जिंहें देखता था 

नजर नहीं आते 

सब एक जैसे लगने लगे हैं 

कहीं वह भी 

चेहरा तो नहीं बन गया 

बाजार का दस्तूर 

निभाने लग गया हो 

सदा आइना बने रहना 

आसान तो नहीं है 

©️ RajhansRaju 

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Comments

  1. जहां पानी कम होता है
    या फिर नहीं होता
    उस बंजर जमीन को भी
    हरा किया जा सकता है
    बस वहां
    कैक्टस लगाना होता है

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  2. यह भी तो नहीं मालूम है
    शायद सब कुछ कहने सुनने की
    कथा मात्र है
    इससे आगे भी बहुत कुछ है
    पर इसका दावा कैसे करें

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  3. सदा आइना बने रहना
    आसान तो नहीं है

    ReplyDelete
  4. इस किनारे उस किनारे के बीच नदी बहती है
    जो किनारों को जोड़कर रखती है
    किनारे नदी बगैर नहीं हो सकते
    जहां नदी नहीं होती
    वहां इस किनारे से
    उस किनारे कोई आता जाता नहीं
    बस यहां वहां भटकता रहता है

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  5. सदा आइना बने रहना
    आसान तो नहीं है
    ©️ RajhansRaju

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