Hindu Jagriti

आजाद परिंदे 

यह आसमान में 

उड़ने वाले आजाद पंछी 

जिंहे देखकर 

हर शख़्स में ख्वाहिश जग जाती है

आसमान की ऊंचाई तो कुछ भी नहीं है 

बस पर चाहिए 

उड़ना आना चाहिए 

आजादी का मुकम्मल मुकाम कहीं है? 

जहां हद की भी कोई हद नहीं है 

उसे ही तो आसमान कहते हैं 

जिन हदों तक परिंदे जा सकते हैं 

उसके आगे भी न जाने कितनी हदें हैं 

आसमान कुछ ऐसे ही बना है

और हम भी 

कुछ इसी तरह की आजादी चाहते हैं 

जहां कोई हद न हो 

सिर्फ आसमान हो 

चिड़ियों को देखकर 

उसी हद की ख्वाहिश में जीते हैं 

जो अनहद है 

यह परिंदे 

जो आसमान के सैलानी है 

जिंहे देखकर हर शख़्स 

उड़ने की चाहत रखता है 

बदकिस्मती देखिए उन इंसानों की 

वह परिंदों को 

पिंजरे में कैद रखना चाहता हैं 

जबकि किसी भी चिड़िया के लिए 

यह तो सजा है 

जिसे एक पंछी बखूबी समझता है 

तेरी फितरत भी तो उसी परिंदे जैसी है 

तूँ आसमान में उड़ना चाहता है 

इसका मतलब तो यही है 

पिंजरे का मतलब तूँ भी समझता है 

चलो अब उड़ान का सच कहते हैं 

चाहे जितनी ऊंचाई तक पहुँच जाएं

पर आसमान में कोई ठहर नहीं सकता 

उसे फिर इसी जमीन पर लौटना पड़ता है 

सांझ को परिंदे लौट आते है 

इसी साख पर 

जहां उसका एक छोटा सा घोसला है 

शायद लौटने की वजह भी यही है 

उसका घोसला 

जो उसका अपना है 

यही उसका घर है 

जिसमें उसका परिवार रहता है। 

तो आसमान की ख्वाहिश 

कोई हर्ज नहीं है 

पर लौटने के बाद 

हमें हमारा घर मिलना चाहिए 

इसके लिए 

पहले 

घर बनाना पड़ता है 

जिसे हम घोसला कहते हैं 

वह पिंजरा नहीं होता 

आसमान छूने की ताकत 

इसी घर से आती है 

गौर से देखो 

आसमान जमीन बनकर 

मेरे घर में बिछ गया है 

मैं एक टुकड़ा सिराहने लगातार 

गहरी नींद में उतर जाता हूँ 

©️Rajhansraju

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हिन्दू जागृति 

जागो हिंदू जागो 

हिंदू होने पर गर्व करो 

धर्म से बड़ी जाति नहीं होती 

कोई जाति 

छोटी बड़ी नहीं होती 

सबका अपना महत्व है 

सबका अपना काम है 

जैसे सूई और तलवार है। 

जागो हिंदू जागो.... 

जो किसी को छोटा माने

उसको हिंदू होने पर धिक्कार है 

बड़ा वही है 

जो थामे सबका हाथ 

लगे अपनों को अपना 

मिल बैठे दो चार घड़ी 

वक्त बांटे अपनों के साथ। 

जागो हिंदू जागो..... 

हिंदू मानस बड़ा आलसी

अपने काम से काम रखे

कुटते पिटते जब तक रहें

तब तक हिंदू होने का 

एहसास रहे

दलित बाभन का नारा 

वोट बैंक की राजनीति है 

कमजोर तुम्हें करके 

सत्ता पाने की नीति है। 

जागो हिंदू जागो... 

कूटना हो इनको 

तो पहले जाति में बांटो 

जाति का झंडा लेकर 

आपस में लड़ जाएंगे 

काम धर्मांतरण का समझो 

आसान हो जाएगा 

जब हिंदू 

खुद कहेगा 

मैं हिन्दू नहीं हूँ 

समझ लेना 

विधर्मियों का मकसद

सफल हो जाएगा। 

जागो हिंदू जागो... 

हजारों साल की गुलामी 

आदत बन गयी है 

तुम्हारा मौन अब 

बीमारी बन गयी है। 

जागो हिंदू जागो... 

जागो 

गर्व करो खुद पर 

हिंदू हो एहसास करो 

चिंतन मनन ध्यान करो 

खुद जागो जागरुक करो

ज्ञान अस्त्र-शस्त्र तुम्हारा है 

साधो इसको कसकर 

इसका ही विस्तार करो। 

जागो हिंदू जागो... 

हम हिंदू हैं 

यह पहचान हमारी है

कर्तव्य बोध का जो धागा है 

वह जाति हमारी है

वह गुण विशेष का खान है 

जो एक दूजे को पूरा करता है 

ए बरगद की जड़ें हैं 

जिससे मिलकर बरगद बनता हैं 

हर जड़ पूरा बरगद है 

वह बरगद तुम हो 

जिसको सारी दुनिया 

हिंदू कहती हैं। 

जागो हिंदू जागो.. 

छुआछूत न मानेंगे

भेदभाव न रखेंगे 

शूद्र हम सभी जन्मते हैं 

ब्राह्मण बनके मानेंगे 

एक देह मे चारों वर्ण

एक आदमी चारों कर्म

वही तप करके बन जाए ब्रह्म 

फिर बोल उठे मैं ही ब्रह्म। 

जागो हिंदू पहचानो खुद को 

जागो हिंदू जागो हिंदू 

#जयहिंद #जयहिंदू #जयभारत 

#jayhind #jayhindu #jaybharat

🌹❤️❤️🙏🙏🙏🌹🌹

बेटी का ब्याह 

(C/P) एक गांव में दो बुजुर्ग बातें कर रहे थे....

पहला :- मेरी एक पोती है, शादी के लायक है... BA किया है, नौकरी करती है, कद - 5"2 इंच है.. सुंदर है कोई लडका नजर मे हो तो बताइएगा..

दूसरा :- आपकी पोती को किस तरह का परिवार चाहिए...??

पहला :- कुछ खास नही.. बस लडका MA/MTECH किया हो, अपना घर हो, कार हो, घर मे एसी हो, अपने बाग बगीचा हो, अच्छा job, अच्छी सैलरी, कोई लाख रू. तक हो...

दूसरा :- और कुछ...

पहला :- हाँ सबसे जरूरी बात.. अकेला होना चाहिए.. मां-बाप,भाई-बहन नही होने चाहिए.. वो क्या है लडाई झगड़े होते है...

दूसरे बुजुर्ग की आँखें भर आई फिर आँसू पोछते हुए बोला - मेरे एक दोस्त का पोता है उसके भाई-बहन नही है, मां बाप एक दुर्घटना मे चल बसे, अच्छी नौकरी है, डेढ़ लाख सैलरी है, गाड़ी है बंगला है, नौकर-चाकर है..

पहला :- तो करवाओ ना रिश्ता पक्का..

दूसरा :- मगर उस लड़के की भी यही शर्त है की लडकी के भी मां-बाप,भाई-बहन या कोई रिश्तेदार ना हो... कहते कहते उनका गला भर आया..

फिर बोले :- अगर आपका परिवार आत्महत्या कर ले तो बात बन सकती है.. आपकी पोती की शादी उससे हो जाएगी और वो बहुत सुखी रहेगी....

पहला :- ये क्या बकवास है, हमारा परिवार क्यों करे आत्महत्या.. कल को उसकी खुशियों मे, दुःख मे कौन उसके साथ व उसके पास होगा...

दूसरा :- वाह मेरे दोस्त, खुद का परिवार, परिवार है और दूसरे का कुछ नही... मेरे दोस्त अपने बच्चो को परिवार का महत्व समझाओ, घर के बडे ,घर के छोटे सभी अपनो के लिए जरूरी होते है...

वरना इंसान खुशियों का और गम का महत्व ही भूल जाएगा, जिंदगी नीरस बन जाएगी...

पहले वाले बुजुर्ग बेहद शर्मिंदगी के कारण कुछ नही बोल पाए. 

(C/P)

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श्री हनुमान प्रसाद पौद्दार
***(C/P)***
ये वो हनुमान थे जिसने  कलयुग में सनातन धर्म की जड़ो को फिर से  सींचने का काम किया।
स्व. श्री हनुमान प्रसाद पौद्दार जी जिन्होंने #गीता_प्रेस गोरखपुर की स्थापना की ओर कलयुग में सनातन हिन्दुओ के घर घर मे वैदिक धर्म ग्रंथों, शास्त्रौ को पहुचाने का काम किया। आज हिन्दुओ के घर मे जो सनातन शास्त्र पहुच रहे है वो स्व श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार जी की देन है। वास्तव में हनुमान प्रसाद पोद्दार जी हनुमान ही थे जब हिन्दू समाज अपने ज्ञान , विज्ञान, गौरव को भुल अंग्रेजी सभ्यता का दास बन रहा था, तब इन्होंने हनुमान की भांति संजीवनी रुपी #गीता_प्रेस गोरखपुर   (सनातन शक्तिपुंज) की स्थापना कर जो सनातनियों को जड़ से जोड़े रखने का भगीरथी प्रयास किया । उसके लिए हिन्दू समाज हमेशा इनका ऋणी रहेगा।  

ऐसे धर्मरक्षक महावीरो को नई पीढ़ी द्वारा भूलना सिर्फ गलती नही महापाप होगा। इन लोगो ने अभावो में रहकर भी कैसे  संस्थान खड़े किए होंगे जो  सम्पूर्ण विश्व मे वैदिक धर्म ग्रंथ शास्त्र पहुचाने वाले सबसे बडे हिन्दू संस्थान बनकर उभरे।
न पैसा न संसाधन फिर भी हिंदू समाज की आने वाली पीढ़ियों तक शास्त्रो का अमर ज्ञान पहुचाने के लिए अपना सबकुछ वार दिया।
🙏🏼🙏🏼🙏🏼😊

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समझौता : हरिशंकर परसाई
(C/P) अगर दो साइकिल सवार सड़क पर एक-दूसरे से टकराकर गिर पड़े तो उनके लिए यह लाजिमी हो जाता है कि वे उठकर सबसे पहले लड़ें, फिर धूल झाड़ें। यह पद्धति इतनी मान्‍यता प्राप्‍त कर चुकी हैं कि गिरकर न लड़ने वाला साइकिल सवार बुजदिल माना जाता है, क्षमाशील संत नहीं।

एक दिन दो साइकिलें बीच सड़क पर भिड़ गईं। उनके सवार जब उठे तो एक-दूसरे को ललकारा, 'अंधा है क्‍या? दिखता भी नहीं।'

दूसरे ने जवाब दिया, 'साले, गलत 'साइड' से चलेंगे और आँखें दिखाएँगे।'

पहले ने गाली का बदला उससे बड़ी गाली से चुकाकर ललकारा, 'जबान सँभालकर बोलना, अभी खोपड़ी फोड़ दूँगा।'

दूसरे ने सिर को और ऊँचा करके जवाब दिया, 'अरे, तू क्‍या खोपड़ा फोड़ेगा मैं एक हाथ दूँगा तो कनपटा फूट जायगा।'

और वे दोनों एक-दूसरे का सिर फोड़ने के लिए उलझने ही वाले थे कि अचानक एक आदमी उन दोनों के बीच में आ गया और बोला, 'अरे देखो भाई, मेरी एक बात सुन लो, फिर लड़ लेना। देखो, तुम इसका सिर फोड़ना चाहते हो, और तुम इसका! मतलब कुल मिलाकर इतना ही हुआ कि दोनों के सिर फूट जाएँ तो दोनों को संतोष हो जाए। तो ऐसा करो भैया, दोनों जाकर उस बिजली के खंभे से सिर फोड़ लो और लड़ाई बंद कर दो।'

बात कुछ ऐसा असर कर गई कि भीड़ हँस दी और वे दोनों ही हँसी रोक नहीं पाए। उनका समझौता संपन्‍न हो गया।
©️हरिशंकरपरसाई
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 वो तन्हा क्यूँ है ?

(C/P)
कोई ये कैसे बताए कि वो तन्हा क्यूँ है 
वो जो अपना था वही और किसी का क्यूँ है 
यही दुनिया है तो फिर ऐसी ये दुनिया क्यूँ है 
यही होता है तो आख़िर यही होता क्यूँ है 
इक ज़रा हाथ बढ़ा दें तो पकड़ लें दामन 
उन के सीने में समा जाए हमारी धड़कन 
इतनी क़ुर्बत है तो फिर फ़ासला इतना क्यूँ है 
दिल-ए-बर्बाद से निकला नहीं अब तक कोई 
इस लुटे घर पे दिया करता है दस्तक कोई 
आस जो टूट गई फिर से बंधाता क्यूँ है 
तुम मसर्रत का कहो या इसे ग़म का रिश्ता 
कहते हैं प्यार का रिश्ता है जनम का रिश्ता 
है जनम का जो ये रिश्ता तो बदलता क्यूँ है
©️कैफीआज़मी 
🌹🌹🌹🌹🌹

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धीरे-धीरे

(C/P)
बनाया है मैंने ये घर धीरे-धीरे,
खुले मेरे ख़्वाबों के पर धीरे-धीरे 
किसी को गिराया न ख़ुद को उछाला,
कटा ज़िंदगी का सफ़र धीरे-धीरे 
जहां आप पहुंचे छ्लांगे लगाकर,
वहां मैं भी पहुंचा मगर धीरे-धीरे...
©️ रामदरश मिश्र


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बेरोजगारी बहुत है

मेमसाहब : हेलो हेलो ! नल की टोंटी लीक कर रही है प्लम्बर भैया इसे बदल दो आकर प्लीज।
प्लम्बर : जी मेम ठीक है पर अभी समय नहीं है परसों बदल जाऊंगा।
परसों। मेमसाहब : भैया तुम आये नहीं आज टोंटी बदलने को कहा था तुमने।
प्लम्बर : मेम आ रहा हूँ शाम तक आपका काम हो जाएगा।
शाम को प्लम्बर : मेम, आज नहीं आ पा रहा कल अवश्य आऊंगा।
कल। प्लम्बर : ये लो मेम हो गया आपका काम।
मेमसाहब : ठीक है भैया। थैंक्स। कितने देने हैं।
प्लम्बर: 280 की टोंटी, 20 का टेप, 300, और लेबर के 400 रुपये। टोटल 700 दीजिये मेम।
मेमसाहब : अरे भैया, 700 तो बहुत ज्यादा हैं। और आधे घंटे के 400 रु लेबर कुछ ज्यादा नहीं लगा रहे आप?
प्लम्बर : नहीं मेम दूसरी जगह चलता काम छोड़ कर आया हूँ। घिस घिस मत करो 700 निकालो जल्दी। दूसरी जगह जाना है। पहले पूछ लिया करो। आदमी हैं नहीं, अकेला काम करना पड़ता है।
मेमसाहब* : ठीक है ये लो भैया। पर तुम्हारे रेट बहुत ज्यादा हैं।
*प्लम्बर* : अरे मेम आपको क्या पता मरने की फुरसत नहीं है। नमस्ते।
आपने देखा, एक प्लम्बर का किस्सा।
आदमी हैं नहीं और बेरोजगारी बहुत है, समझे!!!
*अब और देखिए*-
*ज्योति* : आंटी कल से बहु और बच्चे की मालिश के 300 रु घंटा लुंगी।
*आंटी* : क्यों ज्योति, अभी तक तो 200 लेती है।
*ज्योति* : आंटी, फुरसत नहीं है दो घर और भी जाना पड़ेगा कल से।
*आंटी* : तो दो घर जाने से रुपये बढ़ाने का क्या मतलब है? बल्कि तुझे तो 200 के हिसाब से और 400 मिलेंगे।
*ज्योति* : देख लो आंटी उन से भी 300 के हिसाब से तय हुए हैं।
आपको करानी है तो ठीक नहीं तो कल 1 तारीख है मैं नहीं आऊंगी। किसी और से करा लेना।
*आंटी*: अरे अब बीच में किसे ढूंढूंगी? तू ही आ जो कहेगी देंगे।
*ज्योति*: ठीक है। अब तक का हिसाब कर दो। कल से नया 300 के हिसाब से चालू हो जाएगा।
दुखी मन से आंटी : "ये ले 4 दिनके बाकी 800। कल टाइम से आना:।
आपने देखा एक घंटे के 300। पांच जगह भी गयी तो 1500।
मतलब 1500x25 दिन = 37,500रु. महीना।
*बेरोजगारी बहुत है।*
पर है कहाँ ये बेरोजगारी?
अब आप ही बताइये बेरोजगारी कहाँ है?
मुझे दो स्टाफ चाहिए आफिस के लिए।
अरोरा जी को एक लड़का चाहिए दुकान के लिए।
गुप्ताजी को बाई चाहिए। मधु भाभी को झाड़ू पोंछे वाली चाहिए।
विकास को एक कारपेंटर चाहिए। प्रमोद को स्टील का गेट बनवाना है।
शर्मा को टाइल लगवानी हैं दुकान पर!!!
क्या करें - कहाँ जाएं 2, 3 महीने से सब लोग ढूंढ रहे हैं आदमी।
पर सुनने में आता है, बेरोजगारी बहुत है।
भैया किधर है ये? कौन है बेरोजगार? हमें दिखाओ तो।
*हाँ मैं दिखाता हूँ। देखिए।*
आओ मोहन, दुकान पर काम करोगे?
*मोहन* : जी करूंगा बाबू जी।
*बाबूजी* : तो आओ कल से सुबह 9 बजे।
*मोहन*: न बाबूजी सुबह 9 नहीं साढ़े दस तक आ पाऊंगा।
*बाबूजी* : ठीक है, मैं खोल लूंगा दुकान तुम साढ़े दस आओ।
*मोहन* : बाबूजी, पगार कितनी दोगे?
*बाबूजी* : अरे पहले जो लड़का था उसे 9000 देता था। वही दे दूंगा। या जो तू कहेगा।
*मोहन* : बाबूजी रुपये लूंगा 15 हजार।
*बाबू जी* : क्यों कहीं और मिल रहे हैं क्या?
*मोहन* : नहीं अभी तो कोई नहीं पर ढूंढ लूंगा।
*बाबूजी* : लेकिन तुमने तो अभी बताया 4 महीने से घर बैठे हो कोई नौकरी नहीं मिली।
*मोहन* : हाँ बाबूजी। पर 8-9 हजार में आज होता क्या है? इसलिए काम जोड़ा नहीं अभी तक।
देखूंगा जब अच्छी पगार वाली मिलेगी तब करूंगा नौकरी।
समझ गए आप
बेरोजगारी कहाँ है?
9 की करनी नहीं 15 की मिल नहीं रही।
*सरकार है न*
राशन *फ्री*
बिजली पानी *फ्री*
खाने के लिए छेत्तर बहुत हैं
इलाज *फ्री*
कन्या विवाह के लिए *राशि*
बच्चा पैदा हो तो *राशि।* आदि आदि।
*यहां है बेरोजगारी!!!*
काम वालों को आदमी नहीं और आदमियों को काम नहीं।
सोचिएगा अवश्य।
दो शब्द लिखिये या शेयर कीजिये ताकि समाज जागरूक हो!
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वीर सावरकर
एक कल्पना कीजिए... तीस वर्ष का पति जेल की सलाखों के भीतर खड़ा है और बाहर उसकी वह युवा पत्नी खड़ी है, जिसका बच्चा हाल ही में मृत हुआ है...

इस बात की पूरी संभावना है कि अब शायद इस जन्म में इन पति-पत्नी की भेंट न हो. ऐसे कठिन समय पर इन दोनों ने क्या बातचीत की होगी. कल्पना मात्र से आप सिहर उठे ना?? जी हाँ!!! मैं बात कर रहा हूँ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे चमकते सितारे विनायक दामोदर सावरकर की. यह परिस्थिति उनके जीवन में आई थी, जब अंग्रेजों ने उन्हें कालापानी  (Andaman Cellular Jail) की कठोरतम सजा के लिए अंडमान जेल भेजने का निर्णय लिया और उनकी पत्नी उनसे मिलने जेल में आईं.

मजबूत ह्रदय वाले वीर सावरकर (Vinayak Damodar Savarkar) ने अपनी पत्नी से एक ही बात कही... – “तिनके-तीलियाँ बीनना और बटोरना तथा उससे एक घर बनाकर उसमें बाल-बच्चों का पालन-पोषण करना... यदि इसी को परिवार और कर्तव्य कहते हैं तो ऐसा संसार तो कौए और चिड़िया भी बसाते हैं. अपने घर-परिवार-बच्चों के लिए तो सभी काम करते हैं. मैंने अपने देश को अपना परिवार माना है, इसका गर्व कीजिए. इस दुनिया में कुछ भी बोए बिना कुछ उगता नहीं है. धरती से ज्वार की फसल उगानी हो तो उसके कुछ दानों को जमीन में गड़ना ही होता है. वह बीच जमीन में, खेत में जाकर मिलते हैं तभी अगली ज्वार की फसल आती है. यदि हिन्दुस्तान में अच्छे घर निर्माण करना है तो हमें अपना घर कुर्बान करना चाहिए. कोई न कोई मकान ध्वस्त होकर मिट्टी में न मिलेगा, तब तक नए मकान का नवनिर्माण कैसे होगा...”. कल्पना करो कि हमने अपने ही हाथों अपने घर के चूल्हे फोड़ दिए हैं, अपने घर में आग लगा दी है. परन्तु आज का यही धुआँ कल भारत के प्रत्येक घर से स्वर्ण का धुआँ बनकर निकलेगा. यमुनाबाई, बुरा न मानें, मैंने तुम्हें एक ही जन्म में इतना कष्ट दिया है कि “यही पति मुझे जन्म-जन्मांतर तक मिले” ऐसा कैसे कह सकती हो...” यदि अगला जन्म मिला, तो हमारी भेंट होगी... अन्यथा यहीं से विदा लेता हूँ.... (उन दिनों यही माना जाता था, कि जिसे कालापानी की भयंकर सजा मिली वह वहाँ से जीवित वापस नहीं आएगा).

अब सोचिये, इस भीषण परिस्थिति में मात्र 25-26 वर्ष की उस युवा स्त्री ने अपने पति यानी वीर सावरकर से क्या कहा होगा?? यमुनाबाई (अर्थात भाऊराव चिपलूनकर की पुत्री) धीरे से नीचे बैठीं, और जाली में से अपने हाथ अंदर करके उन्होंने सावरकर के पैरों को स्पर्श किया. उन चरणों की धूल अपने मस्तक पर लगाई. सावरकर भी चौंक गए, अंदर से हिल गए... उन्होंने पूछा.... ये क्या करती हो?? अमर क्रांतिकारी की पत्नी ने कहा... “मैं यह चरण अपनी आँखों में बसा लेना चाहती हूँ, ताकि अगले जन्म में कहीं मुझसे चूक न हो जाए. अपने परिवार का पोषण और चिंता करने वाले मैंने बहुत देखे हैं, लेकिन समूचे भारतवर्ष को अपना परिवार मानने वाला व्यक्ति मेरा पति है... इसमें बुरा मानने वाली बात ही क्या है. यदि आप सत्यवान हैं, तो मैं सावित्री हूँ. मेरी तपस्या में इतना बल है, कि मैं यमराज से आपको वापस छीन लाऊँगी. आप चिंता न करें... अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें... हम इसी स्थान पर आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं...”.

क्या जबरदस्त ताकत है... उस युवावस्था में पति को कालापानी की सजा पर ले जाते समय, कितना हिम्मत भरा वार्तालाप है... सचमुच, क्रान्ति की भावना कुछ स्वर्ग से तय होती है, कुछ संस्कारों से. यह हर किसी को नहीं मिलती.

आज उन्हें श्रद्धापूर्वक कोटिशः नमन 
🙏❤️



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🌹❤️🙏🙏🌹🌹
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Comments

  1. यह परिंदे
    जो आसमान के सैलानी है
    जिंहे देखकर हर शख़्स
    उड़ने की चाहत रखता है
    बदकिस्मती देखिए उन इंसानों की
    वह परिंदों को
    पिंजरे में कैद रखना चाहता हैं

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  2. ऐसे धर्मरक्षक महावीरो को नई पीढ़ी द्वारा भूलना सिर्फ गलती नही महापाप होगा। इन लोगो ने अभावो में रहकर भी कैसे संस्थान खड़े किए होंगे जो सम्पूर्ण विश्व मे वैदिक धर्म ग्रंथ शास्त्र पहुचाने वाले सबसे बडे हिन्दू संस्थान बनकर उभरे।
    न पैसा न संसाधन फिर भी हिंदू समाज की आने वाली पीढ़ियों तक शास्त्रो का अमर ज्ञान पहुचाने के लिए अपना सबकुछ वार दिया

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  3. शूद्र हम सभी जन्मते हैं
    ब्राह्मण बनके मानेंगे
    एक देह मे चारों वर्ण
    एक आदमी चारों कर्म
    वही तप करके बन जाए ब्रह्म
    फिर बोल उठे मैं ही ब्रह्म।
    जागो हिंदू पहचानो खुद को
    जागो हिंदू जागो हिंदू

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