kisan
किसान का बेटा
थानेदार बन गया
बड़ा रौबदार हो गया
अकड़ कर चलता है
चले भी क्यों नहीं
सरकारी अफसर है
हाथ में पिस्टल है
ऐसे ही थाने में एक दिन
एक केस आया
किसी मजदूर के बेटे पर
चोरी का इल्जाम था
पुलिस में
भर्ती होने वाले सभी लोग
बेहद साधारण घर से आते हैं
गांव के लोग ही होते हैं
खैर बात शहर के
मजदूर की हो रही है
जो शायद
खलिहान छोड़कर आया हो
उसी का बेटा है
जिसकी उम्र छोटी है
मांँ-बाप
किसी सेठ के यहां
काम करते हैं
इतना कमा लेते हैं
बस काम चल जाता है
बेटा भी हाथ बटाता तो
और बेहतर होता
खैर
मां-बाप के साथ
वह भी मालिक के यहां
आता जाता था
कभी कभी छोटे मोटे
कुछ काम भी कर लेता था
फिर एक दिन
कुछ सामान उसे
पसंद आ गया
उसने हाथ साफ कर दिया
अक्सर ऐसा होता है
चोरी की जो आदत है
शायद कहीं किसी
कमतरी के एहसास से
जन्म लेता है
उसी से शुरू होता है
ए वाला सामान
मेरे पास क्यों नहीं है
हम इसे खरीद नहीं सकते
यह हमारे पास तभी हो सकता है
मतलब इसका आसान
तरीका यही है
चोरी
उस वक्त
बात आई गई हो गई
बच्चे की उम्र को देखते हुए
उसे समझाया गया
बाल मन ने पूरी बात
अपने ढंग से लिया
उसे यह करना सामान्य लगा
जो उसके लिए ठीक नहीं था
उसकी गलतियों पर
ऐसे ही पर्दा पड़ गया
उसके मम्मी पापा हैं
समझौता आगे भी
हो जाया करेगा
उसने यह समझ लिया
उम्र बढ़ती गई
कुछ और बड़ा हुआ
पढ़ने लिखने में मन नहीं लगा
पास ही की दुकान में
काम करने लगा
अब तक चोरी की
आदत लग चुकी थी
छोटी-मोटी वारदात
कर लिया करता था
ऐसे ही आईं गई बात होती रही
उम्र के साथ
उसके जैसे ही दोस्त बनते गए
और एक दिन
ठीक-ठाक काम कर गये
पुलिस आई
दुकान के मालिक ने
कुछ पैसे खर्च किए
तीन-चार दिनों तक
मामला चलता रहा
बच्चों को चोरी का
बहुत अनुभव नहीं था
कैसे माल पचाया जाता है
यह उन्हें पता नहीं था
दरअसल इस काम में
उस दुकान का जो मालिक था
उसके घर का
एक सदस्य शामिल था
उन्हीं का हम उम्र था
धीरे-धीरे काफी सामान
दुकान से ठिकाने लगा चुका था
यह बात पता चल गई
मगर दुकान मालिक के
इज्जत का सवाल था
उसके घर का आदमी
चोर साबित हो जाए
यह उसकी दुकान
उसके लिए ठीक नहीं था
वैसे भी घटतौली
टैक्स की बड़ी चोरियां
आम बात है
इसे हुनर और काबिलियत में
गिना जाता है
किसान का बेटा
मजदूर का बेटा
दोनों आमने-सामने थे
एक को नई नई वर्दी मिली है
एक उम्र के जज्बात से गुजर रहा है
बहुत मेहनती नहीं है
उसमें पढ़ाई करने की
इच्छा भी नहीं है
उसका बाप मजदूरी करता है
मजदूरी से
ख्वाहिश पूरी नहीं हो सकती
उस दिन
जब यह वाकया हुआ
मतलब चोरी की बात पता चली
पूरे मुहल्ले में
हल्ला मच गया
घर के बगल वही पड़ोसी
जो बड़ा नेक दिखता है
उसके बड़े लोगों से
अच्छे संबंध हैं
पता नहीं कौन सा काम करता है
पर बड़े ठाट से रहता है
अब पता चला
वह तो सरकारी दलाल है
और पुलिस के काम में माहिर है
उसने कहा चलो
"मैं हूंँ ना"
मेरा तो रोज का यही काम है
पुलिस से कैसे सलटा जाता है
उसे अच्छी तरह मालूम है
उसका पार्षद, विधायक से भी
अच्छा संबंध है
मतलब काम हो जाएगा
मजदूर को
समझ में नहीं आ रहा था
बेटे को जेल भेजें या फिर
बड़े दलालों, चोर,
डकैतों से संपर्क साधे
फिलहाल कुछ भी हो
उसको एक बात
समझ में आ गई
चोर होना उतना बुरा नहीं है
बस सही से चोरी आनी चाहिए
औकात होनी चाहिए
आपके पास ज्यादा
काबिलियत होनी चाहिए
किसी न किसी तरह की
एक वर्दी हो तो
अच्छा होगा
सरकारी हो तो
काम
और आसान होगा
वह किसान का बेटा थाने में
पैर ऊपर करके बैठा है
अब वह बेचारा नहीं है
उसे सबसे बदला लेना है
पर किस किससे
उसकी जो ताकत है
भला किसके
काम आ सकती है
वह भी तो
अब व्यवस्था का हिस्सा है
तभी फोन की घंटी बजी
नाम देखा
चौक कर उठा
घबराते हुए जय हिंद कहा
निष्पक्ष होने कि कसम खाई है
गांव और खेत समझता है
किसान का बेटा है
सारे कष्ट सह कर आया है
पर सिस्टम का हिस्सा है
फोन पर कुछ बातें हुई
पसीना पोछते हुए
बड़े सलीके से बैठ गया
एक लम्बी सांस ली
चलो बला टली
फिर मजदूर के बेटे से
अकड़ कर बोला
साले चोरी करता है
अभी बताता हूंँ
तुम लोगों ने पूरे समाज को
खराब कर रखा है
तुझे तेरी औकात दिखाता हूंँ
सारा गुस्सा उसी पर उतारा
वह तो मां बाप के साथ
हाजिर होने आया था
अपनी सारी गलती मान रहा था
कहां किसको सामान दिया
पहले ही बता चुका था
तेजी से काम हुआ
सारा सामान बरामद हो गया
बच्चे काम में कच्चे थे
चोरी में तजुर्बे की कमी थी
कानून व्यवस्था का सवाल
कई दिन से उठ रहा है
अपराधी पकड़ा गया है
सुबह अखबार में खबर छपेगी
पुलिस का गुड वर्क
लिखा जाएगा
फिर आपस में कुछ बात हुई
इससे किसको क्या मिलेगा
लड़के के बाप और सेठ से
पुलिस ने
बात करने के लिए
अपने उसी आदमी को
अकेले में भेजा
मामला यहीं खत्म करने का
रास्ता बताया
सारा काम चौकी पर ही
बखूबी हो गया
सब ने मिलकर न जाने किसको
किस बात की चेतावनी दी
चोरी में पकड़ा गया लड़का
बड़ी दुविधा में है
उसे यह काम आगे करना है
कि नहीं यही सोच रहा है
खैर दरोगा जी के घर में
नया सामान आया है
घर वाले बड़े खुश हैं
बेटा कमाकर लाया है
सेठ जी को लगा
चलो इतने से ही छूटे
क्योंकि सबसे बड़ा हिस्सा
उन्हीं के पास है
मजदूर का कर्ज
कुछ और बढ़ गया है
सेठ जी को मालूम है
आदमी बड़ी मुश्किल से मिलते हैं
यह कर्ज उन्होंने ही दिया है
मामला रफा-दफा हो गया
वह लड़का फिर
उसी दुकान में काम कर रहा है
मजदूर के घर वाले खुश हैं
सबसे यही कह रहे हैं
सेठ अच्छा आदमी है
©️ RajhansRaju
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रोटी और छत का संघर्ष
सबसे बड़ा होता है
जहां बाकी
और आगे बढ़ने की लड़ाई है
वहीं रोटी और छत
जिंदा रहने की
सबसे बड़ी जरूरत है
मतलब बचे होने के लिए
जो चाहिए इसकी
पहली शर्त है
उसके बाद
बाकी चीजें आती हैं
यह रोटी, कपड़ा, मकान
वाला नारा पुराना है
उसके बाद तो बहुत कुछ है
जिसका अंत नहीं है
अगर छत है
रोटी है
तो बाकी संघर्ष आसानी से
किया जा सकता है
ठीक उसी तरह
जैसे घर बनाने के लिए
नींव बनानी पड़ती है
वह पत्थर
जो नींव में लग जाते हैं
कभी किसी को नजर नहीं आते
जो पूरे मकान का आधार है
जिस पर आलीशान इमारत बनती है
देखो कितनी ऊंची बिल्डिंग है
पर नींव किसी को
क्या नजर आती है
असल में इसके लिए
थोड़ी सी अक्ल चाहिए
नींव को याद करना
आना भी तो चाहिए
काम तो बहुत आसान है
सोचो जहां खड़े हो
जमीन है कि आसमान है
तुम्हारा क्या आधार है
नींव की बस
इतनी छोटी पहचान है
बहुत बड़ा भंडारा चल रहा है
लोग एक दूसरे को
ठीक से जानते नहीं
मेला हैं
मेले की यही पहचान है
जहां सब कुछ बेशुमार है
दौलत, शोहरत, आडंबर
वहां भला किस तरह का
संघर्ष होगा ?
सबकुछ है
दुकान की भरमार है
देखो कैसे खर्च कर रहा है
क्या क्या बांट रहा है
वहां की परेशानी कुछ और है
लोग कम आए
शोहरत और चर्चे के लिए
कहीं कुछ कमी तो नहीं रह गई
अपना विज्ञापन
उसे खुद ही करना है
वह आदमी नहीं
पोस्टर बन चुका है
यही उसके लिए जरूरी है
वह सफल व्यापारी हैं
बाजार में पैसे लगाता है
क्योंकि उसके लिए
ग्राहक ही भगवान है
दो का चार करना आता है
यह हुनर सबसे जरूरी है
दुनियादारी
बगैर खनक के नहीं होती
जिस चीज का अभाव होता है
उसकी कीमत बेशुमार होती है
सोचो घर में
जब एक ही रोटी हो
उसे चार लोगों में बांटना हो
वह रोटी किसी एक ने कमाई हो
उससे किसी एक का भी पेट
नहीं भर सकता हो
तब देने
बांटकर खाने का
मतलब पता चलता है
वह चाहता तो पूरी रोटी
खा सकता था
लेकिन उसने चार हिस्से किये
सबसे छोटा उसने लिया
सबके पेट में
थोड़ा-थोड़ा कुछ गया
क्योंकि जिंदा रहने की
पहली शर्त रोटी है
एक के बजाय चार लोगों की
जिंदगी ऐसे ही चलती रही
फिर वही छोटा सा छप्पर
और ऐसे ही यह चौथाई,
आधी रोटी खाने की
आदत पड़ गई
यह एक रोटी कैसे आती है
इसका एहसास ही नहीं रह गया
एक रोटी बनाना पकाना
चार लोगों में बांटना
सामान्य बात लगने लगी
जिंदगी की सबसे बड़ी लड़ाई
जैसे जैसे खुराक मिलने लगी
पेट भरने लगा
शिकायत में बदलने लगी
अब खाने में क्या नहीं मिला
इसका जिक्र करके परेशान है
जबकि जिंदा रहना ही
उपलब्धि थी
एक रोटी ने
बस इतना ही किया
सबको किसी तरह
बचा कर रखा
खैर अब सबकी थाली में
मनपसंद खाना है
क्योंकि सब
उस मुकाम तक पहुंच चुके हैं
जहां रोटी पता नहीं
किस नंबर पर आती है
हालांकि जिंदा रहने के लिए
खाना जरूरी है
पर जब एक ऊंचाई पर पहुंच जाते हैं
तब रोटी सबसे सस्ती हो जाती है
रोटी की लड़ाई भूल जाती है
वही एक रोटी
जिसने सबको बनाया है
उस रोटी में
कमियों का खयाल आने लगा है
क्योंकि उस रोटी से
पेट तो भरता नहीं था
इसलिए सारे लोग नाराज हैं
क्यों उन्हें एक चौथाई रोटी
मिला करती थी
खैर भूल जाना बहुत जरूरी है
हो सकता उन्हें मालूम ही न हो
घर में एक ही रोटी थी
जिसमें सबका हिस्सा था
बांटकर खाना था
ऐसे ही जिंदगी में
बहुत सारी चीज़ें होती रहती हैं
बनती रहती हैं बिगड़ती रहती हैं
सब अपनी कहानी कहते रहते हैं
जिन्हें आधी, चौथाई रोटी मिली
उस अफसोस
दर्द के किस्से सुनाते रहते हैं
जबकि उनको
आधी चौथाई रोटी खिलाने में
कुछ लोग भूखे रह गये
उन्हें इसका एहसास ही नहीं
शायद कभी जानने की
कोशिश नहीं की
एक फटा कंबल
पुराने कपड़े, टूटी छप्पर
जो अब लगता है कुछ खास नहीं था
पर ए होना
उस वक्त आसान नहीं था
ऐसा तो सबके साथ था
सबका लगभग यही हाल था
घर में जब कुछ था ही नहीं
बस जितना था
वह सब का था
उसी में सब हो जाता था
किसी तरह बस काम चल जाता था
जैसे सब बदलता है
वैसे ही वक्त ने करवट लिया
अपने हिसाब से
जो जिसके लिए ठीक है
पूरी कहानी में से
कुछ हिस्सा चुन लिया
बस वही याद करते हैं
उसी को कहते रहते हैं
इसके लिए
कुछ किया भी नहीं जा सकता
कहानी उनकी है
उनको आधी चौथाई रोटी
बेस्वाद खाने को याद रखना है
या फिर एक रोटी
कैसे सब में बांट दिया
यह कहना है
अपने पास कुछ नहीं है
वह न तो सेठ थे
न उसके पास कोई बड़ा स्रोत था
जो हर ख्वाहिश पूरी होती
चौथाई अधूरा से आगे
वह भला कहां बढ़ पाए
वैसे भी नींव के पत्थर
भुला दिए जाते हैं
लोगों को सिर्फ
इमारत दिखाई देती है
जिन्होंने नींव बनते देखा है
उन्हें ही नींव के पत्थर याद रहते हैं
अब यह उनकी मर्जी है
नींव किस ऊंँचाई तक ले जाएं
लाख कोशिश कर लें
इससे मुक्ति नहीं हो सकते
वह बगैर नींव के हैं
यह कह भी नहीं सकते
वैसे तो चलन यही है
दुनिया का
होना भी चाहिए
नींव के पत्थर को भुला देना चाहिए
बस एक बात समझ आनी चाहिए
पेड़ कितना भी बड़ा हो
जड़ के बगैर
हरा नहीं रह सकता
नींव के बगैर
कुछ खड़ा नहीं हो सकता
©️ राजहंस राजू
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जीवन में कुछ भी आसान नहीं है
ReplyDeleteऔर कुछ बग़ी आसानी से नहीं मिलता
नींव के पत्थर को भुला देना चाहिए
ReplyDeleteबस एक बात समझ आनी चाहिए
पेड़ कितना भी बड़ा हो
जड़ के बगैर
हरा नहीं रह सकता
नींव के बगैर
कुछ खड़ा नहीं हो सकता
यह एक रोटी कैसे आती है
ReplyDeleteइसका एहसास ही नहीं रह गया
एक रोटी बनाना पकाना
चार लोगों में बांटना
सामान्य बात लगने लगी
पहचान का जो संघर्ष और उसको बताने दिखने का भी अब संघर्ष होने लगा है
ReplyDeleteआइए सत्य विमर्श आगे बढ़ाएं
ReplyDelete