Hindu Dharm
सत्य सनातन
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हम सनातनी हैं
हिंदू हैं
जो सबको पूजते हैं
और किसी को नहीं पूजते
जहाँ कोई शर्त नहीं है
किसे कैसे पूजना है
चाहे तो वह कुछ न माने
बन जाए चार्वाक
बनाए अपने नियम
अपनी सुविधा के अनुसार
जहाँ किसी को बंधन में
बांधा नहीं जाता
उसे किसी खास ढांचे में
ढ़ाला नहीं जाता
क्योंकि यह तो अपनी-अपनी
समझ और खोज का नाम है
जो जितना खुद को खोज ले
जितने गहरे उतर सके उतर ले
अपनी सामर्थ्य-समझ के अनुसार
अपना इश्ट चुन ले
या फिर गढ़ ले
गुरु शरणागत होकर
तत्वमसि से
अहम् ब्रह्मास्मि की यात्रा
उसे ही करनी है
या फिर उसका नाम जपकर ही
भवसागर पार हो ले
या फिर वह कुछ नहीं माने
लड़ता रहे
और मंदिर में जाकर कहे
ईश्वर नहीं है इस संसार में
और तुम सदैव ऐसा कहते रहो
जिस पर किसी को आपत्ति ना है
आओ तुम्हारा स्वागत है
बैठ कर बात करते हैं
उसी को हम शास्त्रार्थ कहते हैं
बस तनिक ठहरो
प्रसाद सबको देना है
तुम महज आहार समझ लेना
मेरे लिए तुम्हारा ऐसा होना
उसी की मर्जी है
मुझे तुम ऐसे ही स्वीकार्य हो
ऐसे ही रहो
जब तक रह सकते हो
अपने ज्ञान
अज्ञान के साथ
क्योंकि उसकी सत्ता पर
कोई फर्क नहीं पड़ता
वह है कि नहीं है
मेरे मानने या फिर
मेरे ना मानने से
यह तो खुद की
खुद में खोज है
अनंत में किसे पता
कहां आरंभ है
कहां अंत है
यही सत्य है
यही सनातन है
©️Rajhansraju
🌹🌹🌹🌹🌹
खोज
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यह मुसाफिरत भी
कुछ लोगों को
लत जैसी लग जाती है
ऐसे लोग कहीं पहुंचते नहीं
सिर्फ चलते रहते हैं
शायद इसी वजह से
कोई डगर
खाली नजर नहीं आती
सुबह शाम रात दिन
कोई भी पहर हो
वह चलता रहता है
जैसे इसके सिवा
कुछ आता ही नहीं
न कोई थकन न कोई शिकन
एक अरसा हो गया
कहां से कहां के लिए चले थे
यह भी याद नहीं
किसी ने किसी शहर में पूछा
कौन हो तुम?
वह सोचने लगा
इतना कठिन सवाल
अब क्या कहूँ?
मैं कौन हूँ
उसी की तलाश में
न जाने कब से
इस अनंत यात्रा पर निकला हूँ
©️Rajhansraju
❤️❤️❤️🌹🌹🌹❤️❤️❤️
मुखौटा
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एक दूसरे को
बड़ी आसानी से
पहचान जाते
मगर हमने
मुखौटे
बहुत जल्दी बदल लिए
बच्चे ने जब पूछा
कैसा लग रहा हूँ?
मुखौटा चेहरा अलग है
अब भी
यह देख रहा हूँ
©️Rajhansraju
🌹🌹🌹🌹🙏🙏🌹🌹
पिंजरा
खींच के रखना
पास ही रखना
अपनी-अपनी डोर
छूट गई तो वैसे ही
फिर ना जुड़ती है
पड़ जाती है गांठ
बहुत नाजुक कमजोर बहुत है
जानते हैं सब लोग
जतन बहुत करते हैं इसकी
पर आता नहीं कभी कुछ भी काम
एकदम पंछी पिंजरे का रिश्ता है
जिस में कैद किया चिड़िया को
उसको कहता है प्यार
जबकि पंछी का रिश्ता अंबर से है
डोर है उसकी सतरंगी
फिर वह कैसे कह दे
पिंजरा उसका है
गीत गा रहा वह यादों का
जिसमें पेड़ पहाड़ समंदर
खुश है सुनने वाले
उसकी बोली पर
शब्द अपने रखकर
उससे अपना नाता जोड़ कर
जबकि कोई डोर नहीं है
पंछी मतलब आजाद हो पंख
नभ है जिसकी दुनिया सारी
खींच ली कस ली उसने डोरी
जाल फेंक दिया सातिर शिकारी
मनमाफिक को चुन लेगा
बाकी का जाने क्या होगा
वह भी रिश्ते जोड़ रहा है
अपनी कहानी कह रहा है
चिड़िया की अपनी भाषा है
उसके रोने करुण स्वर को
लोग गीत समझ रहे हैं
भूख प्यास के कारण कुछ दिन में
कुछ ढ़ल जाता है
भ्रम हो कोई रिश्ते का तो
पिंजरा खोल के देखो
जिसे तुम सुख सुविधा कहते हो
एक घड़ी में देखो
कैसे सब छोड़के उड़ जाता है
लौट के कोई पिंजरे में
कभी नहीं आता है
डोर की ताकत और मजबूती
खंड खंड हो जाती है
बहुत नाजुक है डोर हमारी
पिंजरा ना हो तो अच्छा है
पर यह तो नामुमकिन है
बगैर पिंजरे के
कोई उम्मीद करे कैसे
इस दुनियादारी को वह समझे कैसे
इसका यही तरीका है
चलो अपने को ही छलते हैं
झूठे आश्वासन देते हैं
डोर मेरी मजबूत बहुत है
मैंने इसको परखा है
अच्छा है
ए सच मेरा
मुझ तक ही रहने दो
है छलावा मेरा
यह भ्रम बना रहने दो।
जब जरूरत हो सच की
तो बस इतना करना है
जहाँ कहीं पिंजरा हो
उस पर ताला नहीं लगा हो
खुद को समझाने का
शायद यही तरीका है
देखें कोई लौट के आता है
या फिर सारे उड़ जाते है
©️Rajhansraju
🌹🌹🌹🌹❤️❤️🌹🌹
अपनी होली
एक गलती से हम बचें
जब रंगों का चयन करें
जो ज्यादे चटख लाल नहीं हैं
बड़ी दुकानों कि शान नहीं है
उनका तनिक सा ध्यान करें
बस उनसे कुछ ले लें..
बाकी फिक्र किसे है
सच से तो हम सब वाकिफ हैं
मनमाफिक को चुन लेगा
बाकी का जाने क्या होगा
©️Rajhansraju
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आइये खुद कि तलाश करते हैं
ReplyDeleteइस दुनिया को,
ReplyDeleteआबाद रखने की यही शर्त है,
इसका खारापन सोखने को,
हमारे पास,
एक समुंदर हो।
नए गगन में नया सूर्य
ReplyDeleteजो चमक रहा है
विशाल भूखंड
आज जो दमक रहा है
मेरी भी आभा है इसमें
©️बाबा नागार्जुन
बूढ़े बाप ने
ReplyDeleteआहिस्ता से देखा
हमेशा की तरह कुछ कहता नहीं है
मेरे बच्चे तूँ आसमान को
बस देख लिया कर
मैं उसी का हिस्सा हूँ
इस अनंत विस्तार का ही
बहुत छोटा सा किस्सा हूँ
©️Rajhansraju