Nagarjun

बाबा नागार्जुन की बातें


बातें-
हंसी में तली हुई
सौजन्य चंदन में बसी  हुई
बातें-
चितवन में धुली हुई
व्यंग्य बंधन में कसी हुई
बातें
उसांस में झुलसी
रोस की आंच में तली हुई
बातें-
चुहल में हुलसी
नेह-सांचे में ढली हुई
बातें-
विष की फुहार सी
बातें-
अमृत की धार सी
बातें-
मौत की काली डोर सी
बातें-
जीवन के दूधिया हिलोरे सी
बातें-
अचूक वरदान सी
बातें
घृणित नाबदान सी
बातें-
फलद्प्रसू सुशोभन, फल सी
बातें
अमंगल विषगर्भ शूल सी
बातें
क्या करूं मैं इनका ?
मान लूँ कैसे इन्हें तिनका?
बातें
यही अपनी पूंजी यही अपने औजार
यही अपने सोधन यही अपने औजार
बातें
साथ नहीं छोड़ेंगे मेरा
बना लूँ वाहन इन्हें घुटन का घिन का
क्या करूं मैं इनका?
बातें
साथ नहीं छोड़ेंगी मेरा
स्तुति करूं रात की,
जिक्र न करूं दिन का?
क्या करूं मैं इनका?
©️बाबा नागार्जुन
🌹🌹🌹🌹

रहा उनके बीच

रहा उनके बीच मैं
था पतित नीच मैं
दूर जाकर गिरा, 
बेबस उड़ा पतझड़ में,
धंस गया आकंठ कीचड़ में
सड़ी लाशें मिली
उनके मध्य लेटा रहा आंखें मीच मैं
उठा भी तो
झाड़ आया नुक्कड़ों पर स्पीच, मैं
रहा उनके बीच मैं
था पतित मैं, नीच मैं
©️बाबा नागार्जुन
🌹🌹🌹🌹🌹

nagarjun

करुण क्रंदन
अपना ना हो तो
क्रंदन भी
कानों को
भा सकता है
स्वजन-परिजन 
चहेते पशु-पक्षी
निकटवर्ती बगिया के
फूलों पर मंडराते
सु-परचित भ्रमर
किसी का आर्तनाद
दुखा जाता है मेरा दिल..
बरसाती मौसम के निशीथ में
सुने मैंने हाल ही
उस गरीब के चीत्कार
सांप के चरणों में फंसा था वो
कर रहा था
चीत्कार निरंतर
मेढ़क बेचारा...
हमारी पड़ोस वाली
तलइया के किनारे
हाय राम, तुझे-
काल-कवलित होना था यहीं!
©️बाबा नागार्जुन
🌹🌹🌹🌹🌹


मेरी भी आभा है इसमें
*********
नए गगन में
नया सूर्य जो चमक रहा है
यह विशाल भूखंड
आज जो दमक रहा है
मेरी भी आभा है इसमें...
भीनी भीनी खुशबू वाले
रंग-बिरंगे
यह जो इतने फूल खिले हैं
कल इनको मेरे प्राणों ने
नहलाया था
कल इनको मेरे सपनों ने
सहलाया था
पकी सुनहरी फसलों से जो
अबकि यह खलिहान भर गया
मेरी रग रग में के शोणित की बूंदे
इसमें मुसकाती हैं
नए गगन में नया सूर्य
जो चमक रहा है
विशाल भूखंड
आज जो दमक रहा है
मेरी भी आभा है इसमें
©️बाबा नागार्जुन
🌹🌹🌹🌹


फसल
****
एक के नहीं
दो कि नहीं
ढेर सारी नदियों के
पानी का जादू
एक के नहीं
दो के नहीं
लाख-लाख, कोटि-कोटि
हाथों के स्पर्श की गरिमा
एक के नहीं
दो के नहीं
हजार हजार खेतों की
मिट्टी का गुणधर्म
और तो कुछ नहीं है वह
नदियों के पानी का जादू है वह
हाथों के स्पर्श की महिमा है
भूरी-काली-संदली मिट्टी का
गुण धर्म है
रूपांतर है
सूरज की किरणों का
सिमटा हुआ संकोच है
हवा की थिरकन का
©️बाबा नागार्जुन
🌹🌹🌹🌹🌹🌹

बहुत दिनों बाद

बहुत दिनों बाद
अब की मैंने जी-भरकर देखी
पकी - सुनहली
फसलों की मुस्कान
बहुत दिनों के बाद
अब की मैं
जी-भरकर सुन पाया
धान कूटती किशोरियों की
कोकिल कंठ तान
बहुत दिनों के बाद
अब की मैंने जी-भर सूंघे
मौलसिरी के
ढेर-ढेर से ताजे टटके फूल
बहुत दिनों के बाद
अब की मैं जी-भर छू पाया
अपनी गंवई पगडंडी की
चंदनवर्णी धूल
बहुत दिनों के बाद
अब की मैंने तालमखाना खाया
गन्ने चूसे जी भर
बहुत दिनों बाद
अब की मैंने
जी भर भोगे
गंध-रूप-रस-शब्द-स्पर्श
सब साथ-साथ इस भू पर
बहुत दिनों बाद
©️बाबा नागार्जुन 

🌹🌹🌹🌹

बाप 

यह आसमान बाप की तरह 
हर जगह हर तरफ 
छाया बन कर रह ता है 
उसके बच्चे इस बात से
बेखबर 
जो बच्चों की खासियत है 
न जाने कितने चांद सितारे 
इसकी गोद में खेला करते हैं 
और धरती पर रहने वालों को 
अपने वजूद में ही 
सब नजर आने लगता है 
वह ऊपर नजर उठा कर 
देखना नहीं चाहता है 
उसे किसी न किसी का 
सहारा चाहिए 
वह किसी घनी छांव में 
घास बनना चाहता है 
जो कि मुमकिन नहीं है 
वह बीज है बरगद का 
अंकुरित हो चुका है 
उसे खुलकर खिलकर 
हंसने के लिए 
आसमान चाहिए 
जिसे पत्थर समझता है 
वह उसके बाप का सीना है 
जिस पर आज भी 
सर रखके सोया है 
मां की मोहब्बत 
बड़ी आसानी से नजर आ जाती है 
पर जो चारों तरफ है 
बड़ी मुश्किल से नजर आता है 
यही बाप की खूबी है 
बाप को समझना
इतना मुश्किल भी नहीं है 
यह बहुत आसान 
तब हो जाता है 
जब बेटा बाप बन जाता है। 
बच्चे को नींद आ गई है 
बाप बुत बन गया 
पत्थर सा हो गया है 
जब सच में इश्क हो किसी से 
तो ऐसे में थकन कहां? 
नींद की उसको जरूरत 
नहीं रह जाती है 
सीने से लग कर बेटा 
सुकून से सो रहा है 
बूढ़े बाप ने 
आहिस्ता से देखा 
हमेशा की तरह कुछ कहता नहीं है 
मेरे बच्चे तूँ आसमान को 
बस देख लिया कर 
मैं उसी का हिस्सा हूँ 
इस अनंत विस्तार का ही 
बहुत छोटा सा किस्सा हूँ
©️Rajhansraju 
🌹🌹🌹🌹🌹

Teachings 

सीखना और
सिखाने कि अजब कहानी 
चल रही है 
लोग चिड़िया को उड़ाना 
मछली को तैरना 
सिखाने लगे हैं 
जबकि गुनगुनी धूप हंस रही है 
हवा फिजा में खुशबू लिए 
कब से दस्तक दे रही है 
नदी हमारे इंतजार में 
तन्हा बह रही है 
और किसी ने 
इसके लिए कुछ मांगा नहीं 
जो जिंदगी में सबसे कीमती है
उसकी तो कोई कीमत ही नहीं है 
हमारे सामने सब कुछ बेशुमार 
बिखरा हुआ है 
कितनी छोटी बाहें हैं 
कुछ भी समेट पाता नहीं हूँ 
©️Rajhansraju
🌷🌷🌹🌹🌹🌷🌷


चरित्र 
आग ने जब 
बुझने की ख्वाहिश की 
पानी को प्यास लगने लगी 
और समुंदर को गहराई से 
ऊब होने लगी 
जो जैसा है
उसे वैसा होने में ऐतराज है 
अंतहीन सफर के मुसाफिर 
जिस चीज की तलाश में 
सदियां गुजार दी 
वह बाहर कहीं मिलता नहीं। 
जो तुझसे जुदा हो 
अगर उसकी चाहत हो तो 
शायद वह मिल जाए 
मगर खुद की तलाश 
और खुद से इश्क 
कैसे कहीं और 
मुकम्मल हो सकती है
मेरी बाहें इतनी सिमट गई है
खुद को 
बाजुओं में भर पाता नहीं हूँ 
अब तन्हाई में 
खुद से मिलने की 
कोशिश करते हैं 
जो इश्क अधूरा है 
चलो उसे 
मुकम्मल करते हैं
©️Rajhansraju
🌹🌹🌹🌹🌹

भूल गया 

भूलना एक बिमारी जैसी हो गई है
अब इस पर कोई यकीन कैसे करे
मुझे अब उतना याद नहीं रहता 
ए उम्र का दोष है या कुछ और
मेरे अपने 
मुझसे उम्मीद रखते हैं
बड़ी कोशिश करता हूँ
खरा उतरुँ
अच्छा ए तो बताओ
ए बात
किस बात
पर शुरू हुई थी
©️Rajhansraju 
😄😄😄
🌹🌹🌹🌹


स्वादानुसार 
*******
हमने तो सच को, 
पैमानों में तय कर रखा है, 
कब उसे कितना मानना है,
एकदम स्वादानुसार,
शायद! नमक जैसा, 
अपनी-अपनी मर्जी से, 
तय करते हैं,
किसको, कितना चाहिए, 
या फिर वैसे ही जैसे, 
कोई ऐसा सामान हो,
जो बड़ी मुश्किल से, 
कभी-कभी बिकता हो,
जबकि सब जानते हों,
यह कितना जरूरी है,
पर! बाजार को,
इसकी आदत, 
नहीं है
©️Rajhansraju 
🌹❤️❤️🙏🙏🙏🌹🌹
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माफिया
*******
जब बीबी ने कहा
बेटे को बचा लो
उसने कहा शेर का बच्चा
शेर होता है
आज तो बहुत अच्छी नींद आई
उसे लगा
उसकी करतूतों का वारिस मिल गया है
पर यह खुद का पाप
अनगिनत लोगों की हाय से
भला कौन बच पाया है
वही आदमी बेटे के
मारे जाने की खबर सुनकर
खड़ा नहीं रह पाया
होश में रहने की सारी कोशिशें
नाकाम रही
अब उसके पास कहने को
कुछ नहीं है
वह सिर्फ़ जिंदा लाश है
शायद इस वक्त
वह ऐसे
किसी माँ-बाप की तकलीफ
महसूस कर पा रहा हो
जिन घरों को उसने
न जाने कितने
बदतर हालात में पहुँचाया है
©️Rajhansraju
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹



एक साल गया एक नया है आने को,
पर वक्त का भी होश नहीं दीवाने को।
~Ibn-e-Insha


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परछाई
********
अब शोर इस कदर
हर जगह हाबी हो गया है
नायक-खलनायक का फर्क
मुश्किल हो गया है।
दिन में अंधेरा सा छा गया है
आसमान एकदम साफ है
बादल नहीं है।
ए कैसी परछाई है
जो इतनी बड़ी हो गई है
लोगों ने उजाले की
उम्मीद छोड़ दी है।
कब तक?
कहाँ?
कितना भागेगा?
तनिक हिम्मत कर
ठहर कर देख
परछाई किसकी है।
यह तो महज
चढ़ते उतरते सूरज की देन है
तेरी परछाई भी
किसी से कम नहीं है।
तूँ जब तक डरता है
तभी तक
वह डराता है
रोशनी की तरफ चेहरा कर
खुद को देख
तूँ कौन है
नायक है कि खलनायक
अब यह फैसला तेरा है
तूँ जिससे डर रहा है
वह किसी और कि नहीं
तेरी परछाई है
©️Rajhansraju 

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Comments

  1. बाबा नागार्जुन की एकदम सरल शब्दों में गहरी बातें
    नए गगन में नया सूर्य
    जो चमक रहा है
    विशाल भूखंड
    आज जो दमक रहा है
    मेरी भी आभा है इसमें
    ©️बाबा नागार्जुन

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  2. बूढ़े बाप ने
    आहिस्ता से देखा
    हमेशा की तरह कुछ कहता नहीं है
    मेरे बच्चे तूँ आसमान को
    बस देख लिया कर
    मैं उसी का हिस्सा हूँ
    इस अनंत विस्तार का ही
    बहुत छोटा सा किस्सा हूँ
    ©️Rajhansraju

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