Nagarjun
बाबा नागार्जुन की बातें
बहुत दिनों बाद
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बाप
हर जगह हर तरफ
छाया बन कर रह ता है
उसके बच्चे इस बात से
बेखबर
जो बच्चों की खासियत है
न जाने कितने चांद सितारे
इसकी गोद में खेला करते हैं
और धरती पर रहने वालों को
अपने वजूद में ही
सब नजर आने लगता है
वह ऊपर नजर उठा कर
देखना नहीं चाहता है
उसे किसी न किसी का
सहारा चाहिए
वह किसी घनी छांव में
घास बनना चाहता है
जो कि मुमकिन नहीं है
वह बीज है बरगद का
अंकुरित हो चुका है
उसे खुलकर खिलकर
हंसने के लिए
आसमान चाहिए
जिसे पत्थर समझता है
वह उसके बाप का सीना है
जिस पर आज भी
सर रखके सोया है
मां की मोहब्बत
बड़ी आसानी से नजर आ जाती है
पर जो चारों तरफ है
बड़ी मुश्किल से नजर आता है
यही बाप की खूबी है
बाप को समझना
इतना मुश्किल भी नहीं है
यह बहुत आसान
तब हो जाता है
जब बेटा बाप बन जाता है।
बच्चे को नींद आ गई है
बाप बुत बन गया
पत्थर सा हो गया है
जब सच में इश्क हो किसी से
तो ऐसे में थकन कहां?
नींद की उसको जरूरत
नहीं रह जाती है
सीने से लग कर बेटा
सुकून से सो रहा है
बूढ़े बाप ने
आहिस्ता से देखा
हमेशा की तरह कुछ कहता नहीं है
मेरे बच्चे तूँ आसमान को
बस देख लिया कर
मैं उसी का हिस्सा हूँ
इस अनंत विस्तार का ही
बहुत छोटा सा किस्सा हूँ
©️Rajhansraju
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Teachings
सीखना औरसिखाने कि अजब कहानी
चल रही है
लोग चिड़िया को उड़ाना
मछली को तैरना
सिखाने लगे हैं
जबकि गुनगुनी धूप हंस रही है
हवा फिजा में खुशबू लिए
कब से दस्तक दे रही है
नदी हमारे इंतजार में
तन्हा बह रही है
और किसी ने
इसके लिए कुछ मांगा नहीं
जो जिंदगी में सबसे कीमती है
उसकी तो कोई कीमत ही नहीं है
हमारे सामने सब कुछ बेशुमार
बिखरा हुआ है
कितनी छोटी बाहें हैं
कुछ भी समेट पाता नहीं हूँ
©️Rajhansraju
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आग ने जब
बुझने की ख्वाहिश की
पानी को प्यास लगने लगी
और समुंदर को गहराई से
ऊब होने लगी
जो जैसा है
उसे वैसा होने में ऐतराज है
अंतहीन सफर के मुसाफिर
जिस चीज की तलाश में
सदियां गुजार दी
वह बाहर कहीं मिलता नहीं।
जो तुझसे जुदा हो
अगर उसकी चाहत हो तो
शायद वह मिल जाए
मगर खुद की तलाश
और खुद से इश्क
कैसे कहीं और
मुकम्मल हो सकती है
मेरी बाहें इतनी सिमट गई है
खुद को
बाजुओं में भर पाता नहीं हूँ
अब तन्हाई में
खुद से मिलने की
कोशिश करते हैं
जो इश्क अधूरा है
चलो उसे
मुकम्मल करते हैं
©️Rajhansraju
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भूल गया
भूलना एक बिमारी जैसी हो गई हैअब इस पर कोई यकीन कैसे करे
मुझे अब उतना याद नहीं रहता
ए उम्र का दोष है या कुछ और
मेरे अपने
मुझसे उम्मीद रखते हैं
बड़ी कोशिश करता हूँ
खरा उतरुँ
अच्छा ए तो बताओ
ए बात
किस बात
पर शुरू हुई थी
©️Rajhansraju
😄😄😄
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स्वादानुसार
हमने तो सच को,
पैमानों में तय कर रखा है,
कब उसे कितना मानना है,
एकदम स्वादानुसार,
शायद! नमक जैसा,
अपनी-अपनी मर्जी से,
तय करते हैं,
किसको, कितना चाहिए,
या फिर वैसे ही जैसे,
कोई ऐसा सामान हो,
जो बड़ी मुश्किल से,
कभी-कभी बिकता हो,
जबकि सब जानते हों,
यह कितना जरूरी है,
पर! बाजार को,
इसकी आदत,
नहीं है
माफिया
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जब बीबी ने कहा
बेटे को बचा लो
उसने कहा शेर का बच्चा
शेर होता है
आज तो बहुत अच्छी नींद आई
उसे लगा
उसकी करतूतों का वारिस मिल गया है
पर यह खुद का पाप
अनगिनत लोगों की हाय से
भला कौन बच पाया है
वही आदमी बेटे के
मारे जाने की खबर सुनकर
खड़ा नहीं रह पाया
होश में रहने की सारी कोशिशें
नाकाम रही
अब उसके पास कहने को
कुछ नहीं है
वह सिर्फ़ जिंदा लाश है
शायद इस वक्त
वह ऐसे
किसी माँ-बाप की तकलीफ
महसूस कर पा रहा हो
जिन घरों को उसने
न जाने कितने
बदतर हालात में पहुँचाया है
©️Rajhansraju
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पर वक्त का भी होश नहीं दीवाने को।
~Ibn-e-Insha
परछाई
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अब शोर इस कदर
हर जगह हाबी हो गया है
नायक-खलनायक का फर्क
मुश्किल हो गया है।
दिन में अंधेरा सा छा गया है
आसमान एकदम साफ है
बादल नहीं है।
ए कैसी परछाई है
जो इतनी बड़ी हो गई है
लोगों ने उजाले की
उम्मीद छोड़ दी है।
कब तक?
कहाँ?
कितना भागेगा?
तनिक हिम्मत कर
ठहर कर देख
परछाई किसकी है।
यह तो महज
चढ़ते उतरते सूरज की देन है
तेरी परछाई भी
किसी से कम नहीं है।
तूँ जब तक डरता है
तभी तक
वह डराता है
रोशनी की तरफ चेहरा कर
खुद को देख
तूँ कौन है
नायक है कि खलनायक
अब यह फैसला तेरा है
तूँ जिससे डर रहा है
वह किसी और कि नहीं
तेरी परछाई है
©️Rajhansraju
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बाबा नागार्जुन की एकदम सरल शब्दों में गहरी बातें
ReplyDeleteनए गगन में नया सूर्य
जो चमक रहा है
विशाल भूखंड
आज जो दमक रहा है
मेरी भी आभा है इसमें
©️बाबा नागार्जुन
आभार
Deleteबूढ़े बाप ने
ReplyDeleteआहिस्ता से देखा
हमेशा की तरह कुछ कहता नहीं है
मेरे बच्चे तूँ आसमान को
बस देख लिया कर
मैं उसी का हिस्सा हूँ
इस अनंत विस्तार का ही
बहुत छोटा सा किस्सा हूँ
©️Rajhansraju
शुक्रिया
Deleteचलो कुछ अच्छा पढ़े
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