बंजारे ने बांध लिया
खुद को जंजीरों में
नाम दिया घर बार उसे
हुआ मस्त मलंग रे
यही कहता फिर रहा
सब मेरे अपने हैं
रिश्ते नातों की डोर बंधी है रे
एक दूजे से
उम्मीदों की जो बढ़ी लड़ी
उतना हीकमजोर हुआ रे
बंजारे ने बांध लिया खुद को जंजीरों में..
मुसाफिर ठहर गया
न गया कहीं तब से
एक छप्पर डाली
खाट बिछाई है उसने जब से
झूमता गाता
कहता है
यह घर उसका है रे...
यही उसकी मंजिल है...
जिसे ढूंढ रहा था वो
बंजारे ने बांध लिया खुद को जंजीरों में....
जिनको अपना कहता है
वह भी तो मुसाफिर है
एक दस्तक से ठहर गए हैं
साथ तेरे रह गए हैं
देखो अब भी चल रहे हैं
जंजीरों से लड़ रहे हैं,
उतने ही दिन के रिश्ते नाते
जितनी देर ठौर यहां रे
बंजारे ने बांध लिया खुद को जंजीरों में....
तूँ भी अपनी गठरी बांधे
हरदम रह तैयार रे
तूँ बंजारा भूल गया बंजारा है रे
जंजीरों को छोड़के
पल में हल्का होले
बंजारा तूँ बिन गठरी के
बैरागी हो ले
चलना तेरा काम है
उठ अब चल दे रे..
बंजारा छोड़के जंजीरो को
हुआ मलंग अब ऐसे ही
बिन गठरी के
छोड़ दिया सब जंजीरें
तोड़के बंधन को...
बंजारे ने ठान लिया
अब बंजारा रहना है
ठहर गये हैं
जो कहीं
उनको लेकर चलना है
बंजारे ने छोड़ दिया
सब जंजीरों को
हुआ मलंग बिन जंजीरों के...
बंजारे ने छोड़ दिया सब जंजीरों को
बंजारे ने तोड़ दिया सब जंजीरों को
वह पेड़ भी बूढ़ा हो गया है पहले कई पेड़ साथ हुआ करते थे आज अकेला हो गया है जब सब साथ थे धूप हवा पानी बांटने में लगे थे आज भी अपने हिस्से से ज्यादा कुछ ले नहीं सकता हैं।
कबिरा खड़ा बज़ार में, लिया लुकाठी हाथ। बन्दा क्या घबराएगा, जनता देगी साथ।। छीन सके तो छीन ले, लूट सके तो लूट। मिल सकती कैसे भला, अन्नचोर को छूट।। आज गहन है भूख का, धुँधला है आकाश। कल अपनी सरकार का, होगा पर्दाफ़ाश।। (नागार्जुन)
कैक्टस जहां पानी कम होता है या फिर नहीं होता उस बंजर जमीन को भी हरा किया जा सकता है बस वहां कैक्टस लगाना होता है और कभी-कभी तो कैक्टस वहां खुद उग आते हैं यह बिरानगी उनसे देखी नहीं जाती अपने कांटों से रेत रोकने लग जाते हैं कोई इस हाल में इतना हरा हो सकता है पानी के अभाव में हरियाली की जिम्मेदारी कैसे ले सकता है इस सहरा में भी वैसे ही सहर होती है एक दिन सुकून की छांव होगी यहां भी पानी होगा यहीं किनारा होगा यहां सब कुछ होगा कैक्टस ने जिम्मेदारी ली है एक घरौंदा बनाने की उसकी अधूरी छांव में अब उतनी धूप नहीं लगती आज कोई अनजाना अंकुर फूटा है न जाने बड़ा पेड़ होगा या धरती का बिछौना मखमली घास होगा खैर कुछ भी हो शुरुआत तो ऐसे ही होती है मेरे सिवा कोई और है मैं अकेला नहीं हूंँ यह काफी है मैं कैक्टस हूंँ मेरा काम आसान नहीं है दूसरे पौधे अपना वजूद बनाने लगे हैं म...
सूखा दरख़्त हर किसी के लिए, एक मियाद तय है, जिसके दरमियाँ सब होता है, किसी बाग में, आज एक दरख्त सूख गया, हलांकि अब भी, उस पर चिड़ियों का घोसला है, शायद उसके हरा होने की उम्मीद, अब भी कहीं जिंदा है, मगर इस दुनियादारी से बेवाकिफ, इन आसमानी फरिश्तों को, कौन समझाए? अपनी उम्र पार करने के बाद, भला कौन ठहरता है? किसी बगीचे में, पौधे की कदर तभी तक है, जब तक वह हरा है, उसके सूखते ही, उसको उसकी जगह से, रुखसत करने की, तैयारी होने लगती है ऐसे ही उस पर, कुल्हाड़ियां पड़ने लगी, बेजान सूखा दरख्त, आहिस्ता-आहिस्ता बिखरने लगा, वह किसका दरख्त है, अब यह सवाल कोई नहीं पूछता, क्योंकि सूखी लकड़ियां, किस पेड़ की हैं, इस बात से कोई मतलब नहीं है, बस उन्हें ठीक से जलना चाहिए, जबकि हर दरख़्त की, एक जैसी दास्तान है, वह अपने लिए, कभी कु...
भारत के जोकर ई हमरे भारत के लाल हैं एजेंडा पर सवार हैं टूल किट का कमाल है वैसे तो हैं प्रवक्ता किसी के पर कहते है खुद को निष्पक्ष उदार है सेक्यूलर हैं लोकतंत्र के प्रहरी स्वतंत्र आवाज़ के पैरोकार हैं कलाकार हैं कथित पत्रकार हैं सिनेमाई अंदाज है कहानी कविता का यही इनके आधार है बेंच लेते हैं बढ़िया से अच्छे दुकानदार हैं ई हमरे भारत के लाल हैं जब से नयी सरकार बनी है इनकी मर्जी नहीं चली है जिसको ए चाहते थे जनता ने उसको नहीं चुना है तभी से लोकतंत्र खतरे में है यही गाना गा रहे हैं न जाने किससे आजादी मांग रहे हैं ए सी मंच है फाइव star होटल है गरीब किसान की चिंता वाली यहीं आवाज बुलंद है लाइक view का चक्कर है Social network पर बहुत बड़ा business है बबुआ शातिर है, बबुनी बड़ी माहिर है पैसा कमाने की यहां बड़ी गुंजाइश है बदले ज़माने के साथ सबको बदलना है बाजार की ताकत ऐसे ही समझना है Skill कितना जरूरी है यह बात इन्हीं से सीखनी है जो बिके बाजार में वह खेती करनी है अपनी कीमत तुमको अपने हुनर से तय करनी है ई हमरे भारत के होनहार हैं भारत माता के लाल हैं कुछ दिन आराम किया विदेश यात्रा किया शांत...
परिंदा ********* किसमें उसकी बेहतरी है फैसले का ऐलान कर दिया उसके चारों तरफ हर चीज सुनहरा शानदार कर दिया। वह समझता है, दिलोजान से मरता है, यही कहता रहा, सबसे उसके बारे में। जरूरत की हर चीज, बेशुमार भर दिया, हर कोने में, बस एक शर्त है, इस मुहब्बत में, उसे बोलनी है, कोई और जुबान। शुरू में थोड़ी तकलीफ हुई, पर! वक्त के साथ सीख लिया, कहे हुए को दुहराना बार-बार, सभी खुश होते हैं, सुनकर उसकी आवाज, जबकि उसे मालूम नहीं है, वह क्या कह रहा है, जिसे सुनकर खुश हो रहे हैं, इतना लोग आज, परिंदे से प्यार जताने का, ए नायाब तरीका है उसके लिए छोटा सा, खूबसूरत पिंजरा बनाना है, बस इसकी छोटी सी कीमत है, जो परिंदा चुकाता है, उससे अनंत आकाश, छूट जाता है, और सदा के लिए, पिंजरे का हो जाता है, जहाँ परिंदा होने का एहसास, धीरे...
इच्छाधारी ********* इच्छाधारी नाग-नागिन की कहानियाँ, तो हम सबने सुनी है, जिसमें वो कोई भी रूप धारण कर लेते, बचपन! अगर गाँव में बीता हो तो, सिनेमा वाला दृश्य, हर जगह मौजूद होता है, बस कल्पना को, डर वाली कहानियों के रंग से भरना है, ऐसे ही साँप से डरने पूजने, और मौका मिलते ही, मार देने का, अजब व्यवहार करते रहे, इसमें किसी के लिए कुछ भी गलत नहीं, हर आदमी, अपनी आस्था और कहानी गढ़ता है, पर साँप का जहर? बड़ा अजीब है, जो उसकी पहचान है इंसान उसी से डरता है, इसी डर से, तमाम विषहीन साँपो, की जान खतरे में पड़ जाती है, क्यों कि हमको पता नहीं चलता, किसमे जहर नहीं है, अक्सर इस अफरा तफरी में, बिना जहर वालों की जान चली जाती है, उनका सांप होना, उनके लिए सजा बन जाती है। खैर! अब तो शहर का जमाना है पर साँप के होने पर संदेह नहीं करना, आस-पास हमारे, अब सिर्फ, इच्छाधारी रहते हैं, जो हर वक्त रंग बदलते हैं, हमारे ही आस्तीनों में रहते हैं, जो खुद बीन बजाता है, दूध पूरा पी जाता है। उन सीधे साधे साँपो को, नाहक ...
फकीर ********* फकीर के हँसने का सिलसिला, कठघरे में भी चलता रहा, लोग उसको पागल कहने लगे, जबकि शहर में हर तरफ, उसी का चर्चा है, भला फकीर से किसको खतरा है, उसके पास तो कोई झोली भी नहीं है, जिसमें कुछ रखा हो, या भरके ले जाता। वह तो एक दम खाली हाथ, फक्कड़, बेपरवाह, लगभग अवारा है, फिर वह गिरफ्तार क्यों हो गया, कहीं कोई और बात तो नहीं है? ए फकीर हो सकता है बहुरूपिया हो, नहीं तो भला, सरकार का उससे क्या वास्ता है, सड़क की खाक छानने वालों की कोई कमी तो नहीं है, रोजी-रोटी की जंग तो वैसे ही जारी है। सुनने में तो ए आ रहा है फकीर की बदजुबानी से, शहर का काजी, सबसे ज्यादा परेशान था, सवाल ए भी है, वो भागा क्यों नहीं? जब यहाँ पर उसकी होने की, कोई वाजिब वजह नहीं है, वो तो कहीं भी किसी भी, खानकाह का हो लेता, पर उसने ऐसा नहीं किया, उसके सामने भी ...
आस्था की आकृति आप इस पन्ने पर जिन अनुभूतियों से गुजरने वाले हैं। उसकी कलमकार हैं "आस्था मिश्रा" (Astha Mishra) जो कि University of Allahabad, Prayagraj से MSc in Zoology हैं। एक बात और आस्था बिना खुशी के पूरी नहीं होती 🌷🌷 👇👇 Diary लिखना खुद को संजोने का एक बेहतरीन तरीका है और वह कुछ कविता जैसा बन पड़े तो, उसके क्या कहने। जब किसी शख़्स को इस कारीगरी में अपनी अनुभूति होने लगती है तब हर पन्ने पर बिखरे, प्रत्येक शब्द से खुद से जोड़ लेता है, उसी वक्त वह रचना जीवंत हो उठती है। वैसे भी जीवन की विडंबनाएं तो एक जैसी होती हैं सिर्फ़ आदमी बदलता है। एक कलमकार उन्हीं विडम्बनाओं को हसीन शब्दों में पिरो देता है। तो आइये "आस्था की कलम से" जो कलमकारी हुई है उसी से परिचित होते हैं.. 🌹🌹🌹🌹❤️❤️🌹🌹🌹 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 "सच्चाई" *********** जन्म कहीं दुख, कहीं सुख का माहौल, लेकर आया था,, किसी ने महीनों इंतजार के बाद, अपना अंश पाया था, तो कहीं दुनिया के भेद ने, अपना मुंह दिखाया था, कुछ बड़े होते ही, दुनिया के दर्द ने, मेरी तरफ अपना, पह...
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ReplyDeleteमेरी पहचान मेरी स्मृतियों से है
ReplyDeleteवह पेड़ भी बूढ़ा हो गया है
ReplyDeleteपहले कई पेड़
साथ हुआ करते थे
आज अकेला हो गया है
जब सब साथ थे
धूप हवा पानी बांटने में लगे थे
आज भी अपने हिस्से से ज्यादा
कुछ ले नहीं सकता हैं।
दुनिया के रंग देखो भइया
Deleteकितनी रंग बिरंगी है
शातिर है यह खेल उसी का
और वही खिलाड़ी है
कबिरा खड़ा बज़ार में, लिया लुकाठी हाथ।
ReplyDeleteबन्दा क्या घबराएगा, जनता देगी साथ।।
छीन सके तो छीन ले, लूट सके तो लूट।
मिल सकती कैसे भला, अन्नचोर को छूट।।
आज गहन है भूख का, धुँधला है आकाश।
कल अपनी सरकार का, होगा पर्दाफ़ाश।।
(नागार्जुन)