Chai

 एक प्याली चाय 

मैंने कितनी बार कहा है
चाय के लिए मत पूछा करो
यही तो एक चीज है
जिसे पीते हैं
बस थोड़ी थोड़ी देर पर
थोड़ी थोड़ी मिलती रहे
तो क्या हर्ज है?
और हर बार जब तुम पूछते हो
तो लगता है
तुम्हें बनाने में दिक्कत है
या पिलाने में परहेज?
पर हम तो ठहरे पूरे चहेड़ी
चाय के लिए बेहया बन जाते हैं
और मुस्कराहट के साथ
पियेंगे
क्यो नहीं पियेंगे
कहके
चाय का जयघोष कर देते हैं

 
फिर कुछ देर में
चाय हाजिर हो जाती है
और जानते हैं
कभी एक चाय
किसी एक के लिए नहीं बनती
मतलब न तो कप
न चाय अकेले होती है
चाय की यही खूबी है
हमेशा साथ में पी जाती है
वह आधी कप हो या पूरी
इससे क्या फर्क पड़ता है
बस चाय पीनी है
इसलिए पीते हैं
क्योंकि हम
कुछ और नहीं पीते
कुछ और पीने का मतलब
तो समझ ही रहे हो
अगर यह चाहते हो
कुछ लोग
कुछ और न पिएं
तो फिर
बस यूँ ही चाय पिलाते रहो

वैसे चाय से आगे
चाय पीने वाले
जा भी नहीं पाते
क्योंकि जो चाय पीते हैं
उनकी हद
चाय तक ही होती है
हाँ कभी-कभी
अच्छी कॉफ़ी मिल जाए तो
अच्छा लगता है
मगर कॉफी में
वह चाय वाली बात
नहीं आती है
जैसे चाय में
काफी वाली नहीं आती
बस एक आदत पड़ जाती है
वही मन को भाने लग जाती है
कभी गौर किया है
चाय बनाना भी
कोई आसान काम नहीं है
अगर उसे मन से न बनाया जाए
तो उसमें स्वाद नहीं आती
चाहे कितने भी
मसाले मिला दिए जाएं
चाय चाय नहीं बन पाती

 
चाय का स्वाद चाय जैसा ही हो
तभी अच्छा लगता है
ना कुछ काम हो
ना कुछ ज्यादा
ज्यादा दूध, ज्यादा चीनी, ज्यादा पत्ती
ज्यादा कुछ भी
जब उसमें हो जाता है
तो चाय का स्वाद
चाय जैसा नहीं रह जाता है
कभी काढ़ा, कभी दवाई
जैसी लगने लग जाती है
तो यकीन मानो चाय
चाय नहीं रह जाती है

 
वैसे भी
चाय बनानी सबको कहाँ आती है
बनाने, पीने और पिलाने में
हमेशा
थोड़ा सा धीरज चाहिए
मद्धम आंच पर
कुछ भी पकाना
आसान काम नहीं है
क्योंकि स्वाद और खुशबू
आहिस्ता से उतरती है
इसके लिए वक्त का लम्हों में
उसके पास ठहरना जरूरी है
उसे बरतन और कप से
एक रिश्ता बनाना है
कुछ वक्त चाहिए
खुद को तैयार करना है
किसी से जुड़ना और बिछड़ना
उसके लिए
इतना आसान तो नहीं है
शायद इसीलिए
कप में
थोड़ी सी चाय रह जाती है
अभी तक बरतन में
चाय कि कसक है
जिससे चाय बनी है
अब भी वहीं मौजूद है
बस उनकी वह कदर नहीं है
चाय को चाय बनाने वालों पर
किसी की नजर नहीं है
फिलहाल हम तो चहेड़ी ठहरे
आओ कुछ नहीं करते
एकदम निठल्ले
कुछ देर साथ बैठते हैं
और चाय पीते हैं
अरे एक और लाना
कफी देर हो गई
हाँ तुम भी पियोगे न
चलो चाय पीते हैं
©️Rajhansraju
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🌹❤️❤️🙏🙏🙏🌹🌹

ए बनने बिगड़ने का 
अंतहीन सिलसिला
जो है उसकी कदर नहीं
परेशान इससे है
उसे क्या नहीं मिला
©️Rajhansraju 
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❤️❤️🙏🙏🙏🌹🌹
कहीं ऐसा न हो
हम टमाटर का मातम मनाते रहें
और आम का मौसम निकल जाए
चौथी पास से 
सारे बेइमान परेशान हैं
क्योंकि जिसे अनपढ़ कहते हैं
वह सच्चा देश भक्त, 
ईमानदार है।
अगर देश में ऐसे कर्मठ हों
जिसके सामने पढ़े लिखे बेकार हो।
तो नहीं चाहिए कुपढ़े ऐसे,
जिनमें निज गौरव न हो,
हीनभावना के शिकार हो। 
❤️❤️🙏🙏🙏🌹🌹

ओशो 
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प्रेम अब तक का ऐसा विषय रहा है जिसके बारे में सबसे ज्यादा लिखा और पढ़ा गया है ,, फिर भी प्रेम क्या है? इस सवाल के संतुलित जबाब का इंतजार आज भी है और शायद हमेशा रहेगा। प्रेम को परिभाषित करने वाले तो अनेक है लेकिन सारे ही असफल क्योंकि प्रेम के हर एक पहलू को समझ पाना एक उम्र में तो संभव नही, चलिए एक असफल प्रयास मैं भी करता हूं,

प्रेम एहसासों ओर जज्बातों का अनूठा संगम है, जिसमे डुबकी लगाना हर किसी की चाहत होती है,,,

,,,प्रेम वास्तविकता के बेहद करीब होकर भी हमारी कल्पना से काफी खूबसूरत है,,

,,,,प्रेम में डूब कर आप खुद को खो देते है और किसी खास की निगाहों में ढूंढने की कोशिश करते है,,,,इसीलिए इसे पागलपन कहना भी गलत नहीं,,

,,, प्रेम उस अवस्था का नाम है जब आपको किसी व्यक्ति विशेष के जिक्र से बैचैनी भी हो और सुकूं भी मिले,,,

,,, प्रेम वह है जो किसी की एक झलक के लिए आपको दिनभर की तपन का एहसास न होने दे,,,

,,,,प्रेम वह है जिसमे आपकी खुशियों की वजह किसी की मुस्कुराहट हो और उस एक मुस्कुराहट के लिए आप अपनी हज़ार मुस्कुराहटें बर्बाद कर दे,,

,,,प्रेम किसी से बिछड़ने पर जीते जी मार जाने का नाम है,,,

,,,,प्रेम किसी की खातिर क़ुर्बान होने का नाम है,,,

,,,प्रेम उन भावनाओ का ही रूप है जिसमे आप उसका नाम सुनते ही मुश्कुरा ऊठे,,

,,,प्रेम वह है जो आपको अपना सारा जीवन बस किसी की उम्मीदों ,सपनो , आकांक्षाओं , को पूरा करने के लिए , समर्पित करने पर मजबूर कर दे,,

,,,,उसकी की आवाज ,,,उसकी की हंसी,,,,उसकी आँखें ,,,उसकी जुल्फ़े,,,उसका दुपट्टा,,,जब हर वक़्त आपकी नज़रो के सामने हो तो वो और कुछ नही एहसास -ए-मोहोब्बत
ओशो
❤️❤️🙏🙏🙏🌹🌹

क्या आप जानते हैं कि रामचरित मानस के सुन्दरकांड में उल्लिखित

 “ ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी” 

का सही अर्थ क्या है….?????


दरअसल…. कुछ लोग इस चौपाई का अपनी बुद्धि और अतिज्ञान के अनुसार ….. विपरीत अर्थ निकालकर तुलसी दास जी और रामचरित मानस पर आक्षेप लगाते हुए अक्सर दिख जाते है….!
यह बेहद ही सामान्य समझ की बात है कि….. अगर तुलसी दास जी स्त्रियो से द्वेष या घृणा करते तो…….

रामचरित मानस में उन्होने स्त्री को देवी समान क्यो बताया…?????

और तो और…. तुलसीदास जी ने तो …

“एक नारिब्रतरत सब झारी। ते मन बच क्रम पतिहितकारी।“
अर्थात, पुरुष के विशेषाधिकारों को न मानकर……… दोनों को समान रूप से एक ही व्रत पालने का आदेश दिया है।

साथ ही …..सीता जी की परम आदर्शवादी महिला एवं उनकी नैतिकता का चित्रण उर्मिला..  के विरह और त्याग का चित्रण……. यहाँ तक कि…. लंका से मंदोदरी और त्रिजटा का चित्रण भी सकारात्मक ही है ….!

सिर्फ इतना ही नहीं….. सुरसा जैसी राक्षसीस को  हनुमान द्वारा माता कहना…….. कैकेई और मंथरा भी तब सहानुभूति का पात्र हो जाती हैं….. जब, उन्हे अपनी ग़लती का पश्चाताप होता है ।

ऐसे में तुलसीदास जी के शब्द का अर्थ……… स्त्री को पीटना अथवा प्रताड़ित करना है……..आसानी से हजम नहीं होता…..!

साथ ही … इस बात का भी ध्यान रखना आवश्यक है कि…. तुलसी दास जी…… शूद्रो के विषय मे तो कदापि ऐसा लिख ही नहीं सकते क्योंकि…. उनके प्रिय राम द्वारा शबरी…..निषाद .. केवट ..  आदि से मिलन के जो उदाहरण है…… वो तो और कुछ ही दर्शाते है ……!

तुलसी दास जीने मानस की रचना अवधी में की है और प्रचलित शब्द ज़्यादा आए हैं, इसलिए “ताड़न” शब्द को संस्कृत से ही जोड़कर नहीं देखा जा सकता…..!

फिर, यह प्रश्न बहुत स्वाभिविक सा है कि…. आखिर इसका भावार्थ है क्या….?????

इसे ठीक से समझाने के लिए…… मैं आप लोगों को एक “”” शब्दों के हेर-फेर से….. वाक्य के भावार्थ बदल जाने का एक उदाहरण देना चाहूँगा …..

मान ले कि ……

एक वाक्य है…… “”” बच्चों को कमरे में बंद रखा गया है “”

दूसरा वाक्य …. “” बच्चों को कमरे में बन्दर खा गया है “”

हालाँकि…. दोनों वाक्यों में … अक्षर हुबहू वही हैं….. लेकिन…. दोनों वाक्यों के भावार्थ पूरी तरह बदल चुके हैं…!

ठीक ऐसा ही रामचरित मानस की इस चौपाई के साथ हुआ है…..

यह ध्यान योग्य बात है कि…. क्षुद्र मानसिकता से ग्रस्त ऐसे लोगो को…….. निंदा के लिए ऐसी पंक्तियाँ दिख जाती है …. परन्तु उन्हें यह नहीं दिखता है कि ….. राजा दशरथ ने स्त्री के वचनो के कारण ही तो अपने प्राण दे दिये….

और श्री राम ने स्त्री की रक्षा के लिए रावण से युद्ध किया ….

साथ ही रामायण  के प्रत्येक पात्र द्वारा…. पूरी रामायण मे स्त्रियो का सम्मान किया गया और उन्हें देवी बताया गया ..!

असल में ये चौपाइयां उस समय कही गई है जब … समुन्द्र द्वारा श्री राम की विनय स्वीकार न करने पर जब श्री राम क्रोधित हो गए…….. और अपने तरकश से बाण निकाला …!

तब समुद्र देव …. श्री राम के चरणो मे आए…. और, श्री राम से क्षमा मांगते हुये अनुनय करते हुए कहने लगे कि….

– हे प्रभु – आपने अच्छा किया जो मुझे शिक्षा दी….. और ये ये लोग विशेष ध्यान रखने यानि …..शिक्षा देने के योग्य होते है …. !

दरअसल….. ताड़ना एक अवधी शब्द है……. जिसका अर्थ …. पहचानना .. परखना या रेकी करना होता है…..!

तुलसीदास जी… के कहने का मंतव्य यह है कि….. अगर हम ढोल के व्यवहार (सुर) को नहीं पहचानते तो, उसे बजाते समय उसकी आवाज कर्कश होगी …..अतः उससे स्वभाव को जानना आवश्यक है ।

इसी तरह गंवार का अर्थ …..किसी का मजाक उड़ाना नहीं …..बल्कि, उनसे है जो अज्ञानी हैं… और प्रकृति या व्यवहार को जाने बिना उसके साथ जीवन सही से नहीं बिताया जा सकता …..।

इसी तरह पशु और नारी के परिप्रेक्ष में भी वही अर्थ है कि….. जब तक हम नारी के स्वभाव को नहीं पहचानते ….. उसके साथ जीवन का निर्वाह अच्छी तरह और सुखपूर्वक नहीं हो सकता…।

इसका सीधा सा भावार्थ यह है कि….. ढोल, गंवार, शूद्र, पशु …. और नारी…. के व्यवहार को ठीक से समझना चाहिए …. और उनके किसी भी बात का बुरा नहीं मानना चाहिए….!

और तुलसीदास जी के इस चौपाई को लोग अपने जीवन में भी उतारते हैं……. परन्तु…. रामचरित मानस को नहीं समझ पाते हैं….

जैसे कि… यह सर्व विदित कि …..जब गाय, भैंस, बकरी आदि पशुओं का दूध दूहा जाता है.. तो, दूध दूहते समय यदि उसे किसी प्रकार का कष्ट हो रहा है अथवा वह शारीरिक रूप से दूध देने की स्थिति में नहीं है …तो वह लात भी मार देते है…. जिसका कभी लोग बुरा नहीं मानते हैं….!

सुन्दर कांड की पूरी चौपाई कुछ इस तरह की है…..

प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्हीं।
मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्हीं॥

ढोल, गंवार, शुद्र, पशु , नारी ।
सकल ताड़ना के अधिकारी॥3॥

भावार्थ:-प्रभु ने अच्छा किया जो मुझे शिक्षा दी.. और, सही रास्ता दिखाया ….. किंतु मर्यादा (जीवों का स्वभाव) भी आपकी ही बनाई हुई है…!

क्योंकि…. ढोल, गँवार, शूद्र, पशु और स्त्री…….. ये सब शिक्षा तथा सही ज्ञान के अधिकारी हैं ॥3॥

अर्थात…. ढोल (एक साज), गंवार(मूर्ख), शूद्र (कर्मचारी), पशु (चाहे जंगली हो या पालतू) और नारी (स्त्री/पत्नी), इन सब को साधना अथवा सिखाना पड़ता है.. और निर्देशित करना पड़ता है…. तथा विशेष ध्यान रखना पड़ता है ॥

इसीलिए….

बिना सोचे-समझे आरोप पर उतारू होना …..मूर्खो का ही कार्य है… और मेरे ख्याल से तो ऐसे लोग भी इस चौपायी के अनुसार….. विशेष साधने तथा शिक्षा देने योग्य ही है …..

जय महाकाल…!!!

आपकी जानकारी हेतु घटना – संवाद का सम्पूर्ण सन्दर्भ यहाँ दे रहा हूँ ।

बिनय न मानत जलधि जड़ गए तीनि दिन बीति।
बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति॥57॥

भावार्थ:-इधर तीन दिन बीत गए, किंतु जड़ समुद्र विनय नहीं मानता। तब श्री रामजी क्रोध सहित बोले- बिना भय के प्रीति नहीं होती!॥57॥

चौपाई :
* लछिमन बान सरासन आनू। सोषौं बारिधि बिसिख कृसानु॥
सठ सन बिनय कुटिल सन प्रीति। सहज कृपन सन सुंदर नीति॥1॥

भावार्थ:-हे लक्ष्मण! धनुष-बाण लाओ, मैं अग्निबाण से समुद्र को सोख डालूँ। मूर्ख से विनय, कुटिल के साथ प्रीति, स्वाभाविक ही कंजूस से सुंदर नीति (उदारता का उपदेश),॥1॥

* ममता रत सन ग्यान कहानी। अति लोभी सन बिरति बखानी॥
क्रोधिहि सम कामिहि हरिकथा। ऊसर बीज बएँ फल जथा॥2॥

भावार्थ:-ममता में फँसे हुए मनुष्य से ज्ञान की कथा, अत्यंत लोभी से वैराग्य का वर्णन, क्रोधी से शम (शांति) की बात और कामी से भगवान्‌ की कथा, इनका वैसा ही फल होता है जैसा ऊसर में बीज बोने से होता है (अर्थात्‌ ऊसर में बीज बोने की भाँति यह सब व्यर्थ जाता है)॥2॥

* अस कहि रघुपति चाप चढ़ावा। यह मत लछिमन के मन भावा॥
संधानेउ प्रभु बिसिख कराला। उठी उदधि उर अंतर ज्वाला॥3॥

भावार्थ:-ऐसा कहकर श्री रघुनाथजी ने धनुष चढ़ाया। यह मत लक्ष्मणजी के मन को बहुत अच्छा लगा। प्रभु ने भयानक (अग्नि) बाण संधान किया, जिससे समुद्र के हृदय के अंदर अग्नि की ज्वाला उठी॥3॥

* मकर उरग झष गन अकुलाने। जरत जंतु जलनिधि जब जाने॥
कनक थार भरि मनि गन नाना। बिप्र रूप आयउ तजि माना॥4॥

भावार्थ:-मगर, साँप तथा मछलियों के समूह व्याकुल हो गए। जब समुद्र ने जीवों को जलते जाना, तब सोने के थाल में अनेक मणियों (रत्नों) को भरकर अभिमान छोड़कर वह ब्राह्मण के रूप में आया॥4॥

दोहा :
* काटेहिं पइ कदरी फरइ कोटि जतन कोउ सींच।
बिनय न मान खगेस सुनु डाटेहिं पइ नव नीच॥58॥

भावार्थ:-(काकभुशुण्डिजी कहते हैं-) हे गरुड़जी! सुनिए, चाहे कोई करोड़ों उपाय करके सींचे, पर केला तो काटने पर ही फलता है। नीच विनय से नहीं मानता, वह डाँटने पर ही झुकता है (रास्ते पर आता है)॥58॥

* सभय सिंधु गहि पद प्रभु केरे। छमहु नाथ सब अवगुन मेरे॥।
गगन समीर अनल जल धरनी। इन्ह कइ नाथ सहज जड़ करनी॥1॥

भावार्थ:-समुद्र ने भयभीत होकर प्रभु के चरण पकड़कर कहा- हे नाथ! मेरे सब अवगुण (दोष) क्षमा कीजिए। हे नाथ! आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी- इन सबकी करनी स्वभाव से ही जड़ है॥1॥

* तव प्रेरित मायाँ उपजाए। सृष्टि हेतु सब ग्रंथनि गाए॥
प्रभु आयसु जेहि कहँ जस अहई। सो तेहि भाँति रहें सुख लहई॥2॥

भावार्थ:-आपकी प्रेरणा से माया ने इन्हें सृष्टि के लिए उत्पन्न किया है, सब ग्रंथों ने यही गाया है। जिसके लिए स्वामी की जैसी आज्ञा है, वह उसी प्रकार से रहने में सुख पाता है॥2॥

* प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्हीं। मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्हीं॥
ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी॥3॥

भावार्थ:-प्रभु ने अच्छा किया जो मुझे शिक्षा (दंड) दी, किंतु मर्यादा (जीवों का स्वभाव) भी आपकी ही बनाई हुई है। ढोल, गँवार, शूद्र, पशु और स्त्री- ये सब शिक्षा के अधिकारी हैं॥3॥

By - Vaibhava Nath Sharma

मुसाफिरत

🌹🌹🌹🌹

इन रास्तों पर
उसकी तलाश में
सदियां गुजर गई
पर मुसाफिरों का सिलसिला
आज भी थमता नहीं।
वह किसे मिला, किस नहीं?
इस बात से
उसे वास्ता नहीं..
वह आज बहुत खुश है
इन रास्तों पर
उसने भी कदम रखा
और कुछ देर चला तो सही
उसकी मुसाफिरत भी,
किसी से कम नहीं...
©️Rajhansraju




सामाजिक सच्चाई 

अपराधियों के पक्ष में सिर्फ अपराधी और उनसे लाभ लेने वाले लोग हैं। आमतौर पर उनकी जाति के लोग भी उनका समर्थन नहीं करते बस अपराधियों से कौन उलझे यह सोचकर हमेशा चुप ही रहते हैं।
यहाँ ब्राह्मण की बात हो रही है तो इस समय भाजपा का वोट काटने के लिये अभी से विरोधियों और मीडिया में यह narrative बनाया जा रहा है कि ब्राह्मण भाजपा के नहीं है। जबकि ब्राह्मणों के पास भाजपा का कोई विकल्प नहीं है और एक बात ब्राह्मण सजातीय अपराधियों को भी vote नहीं करता और जो अपराधी सफल होते हैं ज्यादातर अन्य समूहों की मदद से सफल होते हैं क्योंकि ज्यादातर जगहों पर इनकी इतनी संख्या होती ही नहीं, एक बात और जो कहना अच्छा नहीं लगता कि अपनी जाति के सबसे विरोधी लोग इसी जाति में पाए जाते हैं तो इसका कारण शिक्षा है जहाँ हर आदमी अपना हित जानता है जिसे कोई समझा नहीं सकता ऐसे समूह अन्य समूहों की तरह संगठित नहीं होते जैसे कि अन्य जातीय, धार्मिक समूह बल्कि इन्हें ब्राह्मण कहने के बजाय सवर्ण कहना चाहिए क्योंकि इनका व्यवहार एक जैसा है। जैसे OBC SC ST वैसे ही General मतलब सवर्ण ही होता है उसे ब्राह्मण, ठाकुर, बनिया.... ऐसे सम्बोधन राजनीतिक...
बाकी नौटंकी मुफ़्त में प्रचार पाने के लिए होता है
इन लोगों को सम्बोधित करके कुछ कहना उनका प्रचार करना है
©️Rajhansraju 




Converson 

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भारतीय मुसलमानों और ईसाइयों को कुछ इस तरह से सम्बोधित किया जाना चाहिए -
ए ऐसे धर्मांतरित हिन्दू हैं जिन्होंने लालच या फिर डर से अपना धर्म छोड़ दिया और हद तो यह है कि अब ए अपने ही पुर्वजों के खिलाफ खड़े दिखते हैं। जबकि सच यह है कि पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में बिना धर्मांतरण के इतनी बड़ी संख्या में गैर सनातनी(हिंदू) हो ही नहीं सकते। 
एक बात और समझ में नहीं आती कि आज  भी भारतीय मौलवी या पादरी लोगों को धर्मांतरण के लिए कैसे विश्वास में ले लेते है जबकि उनका मुसलमान या ईसाई होना ही  लालच और डर का सबूत है। खैर मुनाफे का धंधा है तो हम भारतीय किसी भी हद तक जा सकते हैं पहले भी लालच और फायदे के चक्कर में लोगों ने यही खेल खेला था और अब भी इसमें कोई कमी नहीं है और बड़ी बेशर्मी से चालाक लोग इस धंधे में लगे हैं।
जबकि हिंदू अब भी हिंदू के खिलाफ ही खड़ा है। अरे भाई अब कब तक सोते रहोगे जागो और जगाओ, अपने लोगों का स्वागत करो, सम्मान करो, मदद करो, जो गैर हिंदू हो गए हैं उनको निरंतर प्यार से प्रेरित करो कि जिस घर को तुम कभी छोड़ आए वह अब भी तुम्हारा स्वागत करेगा लोट आओ। 
यह बात प्रत्येक भारतीय मुसलमान और ईसाई तक बार-बार पहुंचानी चाहिए और उन्हें बिना नाम बदले अपने मूल धर्म में स्वीकार(घर वापसी) किया जाना चाहिए क्योंकि नाम बदलने में बहुत सारी समस्या आती है जो अगली पीढ़ी में स्वतः हो जाएगी। 



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हमारे सिख 

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अपनी अपनी समझ
साथ में कुछ चीजें जरूर बतानी चाहिए
भारत में सिख कभी बेचारा नहीं रहा है।
सोचिए जिसकी महज 2% से भी कम आबादी होने के बाद भी इससे कहीं ज्यादा इनका प्रतिनिधित्व - सेना, पुलिस, प्रशासन, व्यापार या यूँ कहें हर क्षेत्र में आगे फिर भी कुछ लोगों कि व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा सब पर भारी पड़ जाती है सोचिए एक करोड़ सिख पूरे भारत में फैले हुए और जबकि पंजाब में दो करोड़ (लगभग) सिख और एक करोड़ अन्य लोग भी रहते हैं और पंजाब एक landlocked छोटा सा border state है।
अब आइए जनरैल सिंह भिंडरवाले पर आते हैं।
तो इनको खोजने और आगे बढ़ाने का श्रेय इंदिरा गांधी, के पुत्र संजय गांधी और कमलनाथ को जाता है जो शिरोमणि अकाली दल को counter करने के लिए एक चेहरा तैयार करने में लगे थे।
फिर क्या हुआ... 1984..
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी..  हत्याकांड
दंगे... पहली बार पूरे देश में antisikh riot
ऐसे बेगुनाह सिख जिनका खालिस्तान से कुछ लेना देना नहीं था और आज भी नहीं है का कत्लेआम भारत के चालीस शहरों में 17000 सिख मारे गए, इसमें यह बात ध्यान रखिए कि ऐसा इंदिरा जी हत्या के बाद हुआ था। यह बात हर मंच पर बताया जाता है और खूब बताया जाना चाहिए
अब जो नहीं बताया जाता वह भी बताना चाहिए इस दौरान ही बहादुर खालिस्तान समर्थकों ने कैसे बेगुनाह, बेचारे, गरीब, मजदूर, किसानो को मारा और इनकी संख्या 19000  है वह भी पंजाब में और उनकी गलती सिर्फ इतनी थी कि वह हिंदू थे और पहचान पहचान कर इनको मारा गया था।
हमें आज कि पीढ़ी को बिना डरे के बताना चाहिए कि हमारी नंगी सच्चाई यह भी है फिर लोग क्या सही है क्या गलत है सच में सोच पाएंगे इसकी पहली शर्त यही है कि पहले सच बताया जाये।
इसी तरह इतिहास में किसी को हीरो किसी को Villain बनाने के लिए selective truth का इस्तेमाल किया जाता है हमारे यहाँ चाटुकारिता और तुष्टिकरण और वैट बैंक का खेल क्या न कराये
फिलहाल यह भी सुनिए  
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Caste Politics 
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यदुवंशी क्षत्रिय और कुश वंशी क्षत्रिय दोनों मंडल कमीशन के गुणा गणित में पहले पिछड़ा बने और अब शूद्र बनने कि फ़िराक़ में हैं क्योंकि शासन और सत्ता के समीकरण में यही उनके लिए फायदेमंद है और अब साहित्य भी दलित हो गया है और  सोचने कि बात यह है कि रामायण और महाभारत को किस साहित्य के अंतर्गत रखा जाएगा क्योंकि इनके रचनाकार कि जाति भी बतानी पड़ेगी और तब.... 

चलिए कुछ और बात करते हैं 
इन सारी बातों का अर्थ यही है कि बारहवीं शताब्दी से लेकर अब तक अर्थात इस्लामिक राज ( तुर्क, अफगान, मुगल) , इसाई राज ( अंग्रेज, French, पुर्तगाली) और संविधान लागू होने के बाद भी सब ब्राह्मणों का किया धरा है और आज भी सब उन्हीं के हाथ में हैं।
सब व्यर्थ मतलब ए सब करने धरने का कोई मतलब नहीं है। जब ऐसी बर्बरता के बीच भी इन लोगों ने अपनी पहचान बचा के रखी और आज के नव ब्राह्मण जो दलित होने पर ज्यादा जोर दे रहे हैं वह भी एक तरह का ब्राह्मण वाद ही है जो लोकतंत्र में संख्या बल को ध्यान में रखकर गढ़ा जा रहा है। 
खैर सबको अपना एजेंडा चलाने का अधिकार है 
बस हिम्मत करिए सच बताइए पर अफसोस इससे वोट नहीं मिलेगा जिसके लिए खेल चल रहा है अब किसको किसका शिकार होना है यह हम खुद तय कर सकते हैं। 
अच्छा यह तो कर ही सकते हैं - 
खुद पढ़िये और दूसरे पक्ष को भी, देखिये सुनिए 
बस समस्या एक ही है थोड़ी मेहनत करनी पड़ती है 
एक सलाह ए है कि कृपा करके ब्राह्मणों का गुणगान करना बंद करिये क्योंकि दलित विमर्श में जो लगातार कहा जाता है उसका मतलब तो यही निकलता है कि देखो इतने सबके बाद भी ब्राह्मण कितना ताकतवर है जो इस्लाम और ईसाइयों के बर्बर शासन में भी मजबूती से डटा रहा और आजादी के बाद संविधान लागू होने के बाद भी वह अपनी वैसी ही स्थिति बरकरार किये हुए है सोचने कि बात है कि वह कितना कबिल है... 
या फिर यह दलित, पिछड़ा, ब्राह्मणवाद, मनुवाद वाला narrative ही गलत है मतलब ऐसी चीज से लड़ाई लड़ी जा रही है जो है ही नहीं इसी वजह से उससे कोई जीत नहीं पा रहा है क्योंकि यह वंचित और वर्चस्ववाद के बीच लड़ाई है और यह सभी जगह और लोगों के बीच है जहाँ हर आदमी ब्राह्मण बनने के लिए इन नारों का इस्तेमाल कर रहा है और ब्राह्मण बनते (कहीं, किसी जगह, कोई भी व्यक्ति पदस्थ होते) ही उसका लक्ष्य पूरा हो जाता है और एक ऐसे समाजवाद का निर्माण करता है जहाँ सारा साधन और सत्ता सिर्फ उसके परिवार में निहित रहे और इसके लिए नारों कि बहुत अहमियत जो गुलामों को निरंतर गुलाम बनाए रखती है 
©️Rajhansraju 


"वेदों के चार महावाक्य"
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वेद की चार घोषणाएं हैं- 'प्रज्ञानाम ब्रह्मा' अर्थात् ब्रह्मन परम चेतना है, यह ऋग्वेद का कथन है। यजुर्वेद का सार है 'अहम् ब्रह्मास्मि' अर्थात् मैं ब्रह्म हूं। सामवेद का कथन है 'तत्वमसि' अर्थात् वह तुम हो। अथर्ववेद का सारतत्व कहता है 'अयम आत्म ब्रह्म' अर्थात् यह आत्मा ब्रह्म है।
सर्वं खल्विदं ब्रह्म' - छान्दोग्य उपनिषद में आए इस सूत्र का अर्थ है सारा जगत ब्रह्म है। ब्रह्म जगत का कारण है, उसी में जगत उत्पन्न होता है और उसी में लीन होता है।
वेदों के चार महावाक्य...

वेदों के चार महावाक्य...
१) प्रज्ञानं ब्रह्म - (ऐतरेय उपनिषद) - ऋगवेद
प्रज्ञा रूप (उपाधिवाला) आत्मा ब्रह्म है...
[ Consciousness is Brahman... Aitareya Upnishad... Rigveda...]

२) अहम् ब्रह्मास्मि - (ब्रिह्दारन्यक उपनिषद) - यजुर्वेद
मैं ब्रह्म हू...
[ I am Brahman... Brahadaranyak Upnishad... Yajurveda...]

३) तत्वमसि [तत त्वम असि] - (छान्दोग्य उपनिषद्) - सामवेद
वह पूर्ण ब्रह्म तू है...
[You are That... Chhandogya Upnishad... Saamveda...]

४) अयं आत्म्ब्रह्म - (मांडूक्य उपनिषद) - अथर्व-वेद
यह (सर्वानुभाव सिद्ध अपरोक्ष) आत्मा ब्रह्म है...
[This Self(Aatma) is Brahman... Maandukya Upnishad... Atharv-veda...]


अशोकचिह्न 
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२६ जनवरी १९५०  को  भारत के जनतन्त्रात्मक-गणराज्य की प्रतिष्ठा हुई ! हमने अशोकचिह्न को राष्ट्र के प्रतीक के रूप में स्वीकार किया !

 वह भारत का महिमामय अध्याय था, जब   सम्राट अशोक के समय में भारत के सांस्कृतिक-राजदूत शान्ति और सद्भाव का संदेश लेकर  कभी समुद्र पार करके तो कभी पदयात्रा करके धरती के विभिन्न अंचलों में  गये थे , उन देशों में उस संदेश की गूँज अभी भी विद्यमान है ! 

अशोकचिह्न वास्तव में  उसी संदेश का ज्वलन्त प्रतीक है !  अशोकचिह्न  में चार दिशाओं के चार सिंह हैं , 32 अरों वाला चक्र है ! एक हाथी है और एक दौड़ता हुआ घोड़ा है , एक वृषभ है  और नीचे ''सत्यमेव जयते '' लिखा हुआ है !

इस अशोकचिह्न को सारनाथ सिंहशीर्ष भी कहा जाता है ! 

शाक्य प्राचीन भारत का एक जनपद था।महात्मा बुद्ध  को शाक्यसिंह कहा गया है और   उनके क्षत्रियकुल  को शाक्यकुल  के रूप में जाना जाता था  ,  उनके कुल और  वंशजों  का गणचिह्न भी सिंह ही था ! 

सिंह शाक्यसिंह है और चारों दिशाओं में उनका मुख है , जो उस संदेश को चारों दिशाओं में प्रतिष्ठित करने का संदेश दे रहा है !  चार आर्य सत्य !  चार मानवमूल्य मैत्री , करुणा , मुदिता और उपेक्षा !

 पालि -गाथाओं में बुद्ध के पर्यायवाची शब्दों में शाक्यसिंह  है  |बुद्ध द्वारा उपदिष्ट   धम्मचक्कप्पवत्तन -सुत्त को बुद्ध की सिंहगर्जना कहा गया है |ये दहाड़ते हुए सिंह धम्म -चक्कप्पवत्तन के रूप में  हैं | बुद्ध ने वर्षावास समाप्ति पर भिक्खुओं को चारों दिशाओं में जाकर लोक कल्याण हेतु बहुजन हिताय बहुजन सुखाय का आदेश दिया था |

वृषभ , श्वेतहाथी और घोड़ा वास्तव में बुद्ध के जीवन की प्रतीक-कथा है !

 श्वेतहाथी वह स्वप्न है , जो गर्भधारण के समय मायादेवी ने देखा था !   वृषभलग्न में सिद्धार्थ का जन्म हुआ था !
 घोड़ा  , वह युद्धाश्व कंथक है , जिस पर सवार होकर राजकुमार सिद्धार्थ  ने कपिलवस्तु का त्याग किया था !

32 अरों    वाला   चक्र भगवान बुद्ध के 32 महापुरुष -लक्षणों   का प्रतीक है   |

चक्र की अवधारणा भारत में अत्यन्त प्राचीन है !  चक्र हमारी सांस्कृतिक-प्रणाली में रमा हुआ है।आयुध के रूप में चक्र विष्णु , शिव , शक्ति , कृष्ण और अन्य देवताओं के भी ध्यान में आता है।

शाक्तों में श्रीचक्र है।बौद्धों में धर्मचक्र है। योगियों में षट्चक्र है।जैनसंस्कृति में भी सिद्धचक्रपूजा विधान है |

 हमारी चिन्तन-प्रणाली में ऋतुचक्र, कालचक्र, भाग्यचक्र, जीवनचक्र,   कथा -चक्र ,संवत्सर- चक्र, श्रीचक्र ब्रह्मांड्चक्र ,सृष्टिचक्र ,  देहचक्र  मन: परम कारणमामनन्ति संसारचक्रं परिवर्तयेद्यत जैसी अनेक अवधारणायें हैं ।

तिरंगे का अशोकचक्र मूलरूप में धर्मचक्र ही है! संसदभवन के हाल में अंकित है > धर्मचक्रप्रवर्तनाय !

सत्यमेव जयते।अब सवाल यह है कि यह धर्म क्या है ? 

सत्य से बड़ा कोई धर्म नहीं है और सत्य से बड़ी कोई पंथ-निरपेक्षता नहीं है !

यदि लोकतंत्र की आत्मा लोकचेतना है,तो भारत के संविधान की आत्मा है >सत्य।

आजादी के आंदोलन में गांधी जी ने जनता को अपने साथ लिया ,सत्य का अहिंसात्मक-आग्रह,सविनय-अवज्ञा्।

बापू और जनता के बीच विश्वास का सूत्र था>सत्य।
यदि हम >सत्यमेव जयते <को संविधान से अलग कर दें तो संविधान अन्यथा सिद्ध हो जायेगा।

प्रत्येक राष्ट्रपति,प्रधानमंत्री,न्यायाधीश आदि शपथ लेते हैं,यह सत्य के प्रति निष्ठा और विश्वास का ही आयोजन है।


पंजाब की कहानी 
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पंजाब के लोग चावल तो खाते नहीं, फिर वो चावल की खेती पर इतना जोर क्यों देते हैं?यहां एक महत्वपूर्ण सवाल ये पैदा होता है???जवाब है, न्यूनतम समर्थन मूल्य की अर्थनीति। पंजाब का किसान अपने खाने के लिए कुछ भी पैदा नहीं करता। वो अपने लिए गेहूं मध्य प्रदेश से और थोड़ा बहुत अन्य अनाज झारखंड, बिहार, बंगाल से मंगवाता है।

पंजाब के किसान धान की फसल के लिए प्रति एकड़ 75 से 100 किलो फर्टिलाइजर इस्तेमाल करते हैं जो कि राष्ट्रीय औसत 10 किलो से दस गुना अधिक है। इसी तरह आलू की फसल के लिए प्रति एकड़ औसत फर्टिलाइजर उपयोग 15 से 20 किलो है तो पंजाब में 200 किलो है।

2013 में भाभा एटॉमिक रिसर्च सेन्टर ने पंजाब के मालवा रीजन में फर्टिलाइजर के उपयोग पर एक अध्ययन किया था और अध्ययन में पाया गया कि यहां की मिट्टी में यूरेनियम की मात्रा तय सीमा से बहुत ज्यादा है। ऐसा अत्यधिक डीएपी खाद के प्रयोग के कारण पाया गया था।

पंजाब में जहरीली खेती का ये चलन हरित क्रांति और एमएसपी की नीति लेकर आयी। पंजाब परपंरागत रूप से न तो गेहूं पैदा करता था और न ही चावल। मक्का, ज्वार, बाजरा, चना आदि पंजाब की परंपरागत खेती थी लेकिन हरित क्रांति का सबसे ज्यादा जोर पंजाब में चला जहां खेती को नकदी से जोड़ दिया गया।

पंजाब के अलावा हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गेंहू, चावल, गन्ने की खेती का जोर इसलिए बढा क्योंकि इन्हे कैश क्रॉप के तौर पर किया जाता था। सरकार यहां के उत्पादन को खरीदती है और फिर उसी गेहूं चावल को जन वितरण प्रणाली के माध्यम से पूरे देश में वितरित करती है।

मिनिमम सपोर्ट प्राइज (एमएसपी) इसी व्यवस्था से जुड़ी हुई है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों के लिए लंबे समय तक महेन्द्र सिंह टिकैत इसलिए नेता बने रहे क्योंकि धरना, आंदोलन और प्रदर्शन करवाकर वो लगातार फसलों की एमएसपी बढ़वाते रहते थे। 

अब पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एमएसपी आर्थिक और राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल होता है। इसका दोहरा नुकसान है। एक, इन इलाकों में खेत और पानी पूरी तरह से प्रदूषित हो गये हैं जिसके कारण फसलों के साथ साथ कैंसर की पैदावार भी बढी है तो दूसरा नुकसान ये है कि यही दूषित अन्न राशन कार्ड व्यवस्था के तहत पूरे देश में वितरित किया जाता है।

ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या अगर कोई भूखा है तो अपनी भूख मिटाने के लिए उसे जहर खिला देना चाहिए? नहीं। बिल्कुल नहीं। लेकिन भारत सरकार यही काम करती आयी है। खेत में कंपनियों को घुसाने के लिए ही सही नरेन्द्र मोदी सरकार ने इस व्यवस्था में छेड़छाड़ कर दिया है।

सरकारी तौर पर एमएसपी तो अभी भी जारी रहेगी लेकिन किसान इस दायरे से बाहर जाकर भी अपना अनाज निजी कंपनी, आढ़ती को बेच सकते हैं। पंजाब के किसान मांग कर रहे हैं कि उनका उत्पादन सिर्फ एमएसपी पद्धति से ही खरीदा जाए, इसलिए लांग मार्च करके दिल्ली तक पहुंच गये हैं।

राजनीतिक आरोप प्रत्यारोप के इतर इस मामले का एक पक्ष ये भी है कि संभवत: वहां के किसान समझ गये हैं कि अगर निजी कंपनियों के लिए खेती करेंगे तो फिर वो अत्यधिक उत्पादन नहीं कर पायेंगे क्योंकि कंपनियां ऐसा अनाज क्यों खरीदेंगी जिसकी बाजार में मांग ही न हो?

इसलिए वो सरकारी एमएसपी पर ही जोर दे रही हैं। लेकिन समय आ गया है कि जब पंजाब की खेती को बचाने के लिए पहल किया जाए ताकि पंजाब भी बचे और उसका अनाज खाकर लोगों की जान पर भी न बन आये।

इसके लिए जैविक खेती को भी पंजाब में बढावा देना पड़ेगा और फर्टिलाइजर के उपयोग को हतोत्साहित करना पड़ेगा। तभी पांच नदियों का पंजाब बचेगा और पंजाब की खेती भी, वरना एमएसपी की राजनीति अबोहर से चलनेवाली कैंसर एक्सप्रेस को पंजाब के जिले जिले तक पहुंचा देगा।
Vimla pande  from the wall of Sohanlal Dhetrwal

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सामाजिक चेतावनी- 
ये किसी के साथ भी हो सकता है!

*18 लाख का पैकेज यानी डेढ़ लाख महीना..दोनों बच्चे DPS(Indias No. 1,One of The Very Costly School) में पढ़ते थे..Work from Home की सुविधा थी तो काम के साथ शेयर बाजार में ट्रेडिंग का भी धंधा..पिछले महीने नौकरी गई..और इस महीने पूरे परिवार की खुदकुशी..जबकि मां को पेंशन मिलती थी..ससुराल वालों की भी आर्थिक स्थिति अच्छी थी...जब से ये खबर पढ़ी है..मन व्यथित है..इसी पर कुछ विचार..*

इकोनॉमी की जैसी हालत है..अभी और हज़ारों-लाखों लोगों की नौकरी जाएगी..कल को मेरी नौकरी भी जा सकती है..वैसे भी जैसे-जैसे उम्र और सैलरी बढ़ती जाती है..पुरानी नौकरी जाने की संभावना उतनी ही ज़्यादा और नई नौकरी मिलने की संभावना उतनी ही कम रहती है..तो फिर क्या करें ?

1- *बचत*...आज भी इसका कोई विकल्प नहीं है..आपकी सैलरी 2,00,000 हो या 20,000 की। *एक निश्चित रकम हमेशा बचाएं। कम से कम 6 महीने का बफर स्टॉक तो रखें।*

अगर आप डेढ़ लाख महीना कमाने के बावजूद नौकरी जाने के महज एक महीने के भीतर आत्महत्या कर लें..आपका डेबिट और क्रेडिट कार्ड खाली हो तो ये मानिए कहीं ना कहीं गलती आपकी भी रही होगी।

2- शौक के हिसाब से नहीं ज़रूरत के हिसाब से रहें.. *आदत मत पालिए* ...ब्रांडेड कपड़े पहनना, रेस्तरां में खाना, मॉल और मल्टीप्लेक्स में जाना अच्छा लगता है लेकिन इनके बगैर ज़िंदगी नहीं रुकती..अगर इस मद में कटौती की जाए तब भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

3- *मां-बाप आज भी पैसों से ज़्यादा आपको चाहते हैं।* क्या हो गया अगर आप बड़े हो गए ? अगर आप अपने माता-पिता को अपनी आर्थिक स्थिति) की सही जानकारी देंगे तो आपको आर्थिक और भावनात्मक दोनों तरह की मदद मिलेगी..उनसे मदद मांगकर आप छोटे नहीं हो जाएंगे..आत्मसम्मान बाहर वालों के लिए होता है.. घर वालों से मदद मांगने में नाक छोटी नहीं हो जाएगी..इंदौर वाले केस में भी मां को पेंशन मिलती थी..ससुराल वाले भी मदद कर सकते थे लेकिन मदद मांगी तो होती। *बॉस की गाली खा सकते हैं तो अपनों से मदद मांगने में क्या बुराई है ?*

4- *खानदानी प्रॉपर्टी*..आप भले ही मूर्ख हों और बचत नहीं करते हों लेकिन आपके माता-पिता और दादा-दादी ऐसे नहीं थे..उन्होंने अपनी सीमित कमाई के बावजूद बचत कर कुछ प्रॉपर्टी जोड़ी होती है..गांव में कुछ ज़मीन ज़रूर होती है...तो याद रखिए कोई भी प्रॉपर्टी या ज़मीन-जायदाद ज़िंदगी से बड़ी नहीं है..मुसीबत के वक्त उसे बेचने में कोई बुराई नहीं है।

5- *धैर्य और धीरज-* आपकी कंपनी के गेट पर जो सिक्योरिटी गार्ड तैनात रहता हैं उनमें से ज़्यादातर की सैलरी 10 से 20 हज़ार के बीच रहती है..देश में आज भी ज़्यादातर लोग 20 हज़ार रूपये महीने से कम ही कमाते हैं..कभी सुना है किसी कम सैलरी वाले को आर्थिक वजह से आत्महत्या करते हुवे ? खुदकुशी के रास्ता अमूमन ज़्यादा सैलरी वाले लोग और व्यापारी ही चुनते हैं. *पैसा जितना ज्यादा आता है। ज़िंदगी की जंग लड़ने की ताकत उसी अनुपात में कम होती जाती है।पैसा कमाइए लेकिन जीवटता को भी जिंदा रखिए। इमरजेंसी में काम आएगी।*

6- *हालात का सामना करें-* इसमें कोई शक नहीं कि बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने का फैशन है लेकिन सरकारी स्कूल अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुवे हैं..याद रखिए आपमें से कई लोग सरकारी स्कूल में पढ़कर ही यहां तक पहुंचे हैं..अब भी कई लोग हैं जो सरकारी स्कूल में पढ़कर UPSC Crack कर रहे हैं..इसलिए अगर नौकरी ना रहे तो बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ने को बेइज़्ज़ती मत समझिए..हो सकता है शुरू में बच्चों को अजीब लगे लेकिन बाद में वो भी समझ जाएंगे।

7- *Be Reasonable (लचीलापन रखिए)*...अगर आपको पिछली नौकरी में 75 हज़ार या एक लाख रुपये सैलरी मिलती थी तो ज़रूरी नहीं कि नई भी इतनी की ही मिले... मार्केट में नौकरी का घोर संकट है..और इस गलतफहमी में मत रहिए कि आप बहुत टैलेंटेड हैं। *टैलेंट बहुत हद तक मालिक और बॉस के भरोसे पर रहता है मालिक या बॉस ने मान लिया कि आप टैलेंटेड हैं तो फिर हैं। एक बार रोड पर आ गए तो टैलेंट धरा का धरा रह जाएगा।* आपसे टैलेंटेड लोग मार्केट में खाली घूम रहे हैं।

8- *असफलता का स्वाद*- यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है, इसको हम सभी को पूरा करना चाहिए। हमारे जीवन में सफलता का जितना महत्व है उतना ही असफलता का भी होना चाहिए। हमें अपने आप को, अपने बच्चों को और परिवार को यह बताना चाहिए कि हमें किसी भी कार्य में, परीक्षा में, बिजनेस में, खेल में, कृषि में असफलता भी मिल सकती हैं। *असफलता का स्वाद हमें हमारे बच्चों को बचपन में ही सिखा देना चाहिए। अगर आप बच्चे के साथ कोई गेम खेल रहे हैं, कुश्ती लड़ रहे हैं, तो उस गेम में हमेशा उसको जीताए नहीं, उसे हराए और उसे हार का सामना करना भी सिखाएं। उसे बताएं कि सिक्के के दो पहलू होते हैं- कभी एक ऊपर रहता है, कभी दूसरा ऊपर रहता है अर्थात समय हमेशा एक सा नहीं रहता है।*

अगर वह हमेशा जीतेगा या आप उसे जिताएंगे तो उसे यह कभी पता ही नहीं चलेगा कि जीवन में असफलता भी मिलती है और भगवान ना करें बड़ा होने पर उसे कोई असफलता मिलती है 
*तो वह उसका सामना ही ना कर पाएं और हिम्मत हार जाएं।*
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इसे साकारात्मक ले, लेकिन कोरोनावायरस के चलते हुए लाकडाउन ने जो सिखाया उसके बारे में हमलोग कभी सोचा भी नहीं था, लेकिन जीवन का आनंद इसी में है कि ब्यक्ति हर विपरित परिस्थितियों मे भी मुस्करा कर आगे बढ़ें
ये ज़िन्दगी बहुत रुलाएगी
ये ज़िन्दगी बहुत सताएगी
ये ज़िन्दगी बहुत हंसाएगी, लेकिन आपको साकारात्मक ही रहना होगा। So plz start saving today... Kahi der n ho jaye....

Written by
Adv Pradeep Pandey
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Smart Phone 
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जिस दिन से कोई भी आदमी smart phone connectivity के साथ इस्तेमाल करने लगता है। उसकी privacy, mobile और app company के हाथ में चली जाती है।
सरकार के स्तर पर होने वाले हर काम में समर्थक और विरोधी वाली नौटंकी शुरू हो जाती है।
जबकि किसी भी सरकारी काम चाहे वह app  ही हो वह निश्चित नियमों से ही संचालित होता है जिसमें कोई भी गड़बड़ी होने पर सरकार जवाब देह होती है। जबकि सबसे ज्यादा गैर सरकारी app इस्तेमाल हो रहे हैं और उनका data क्या हो रहा है किसी को पता ही नहीं चलता।। कोई भी सरकारी app बाकी से ज्यादा सुरक्षित रहता है।
अब तो यह open source हो चुका है। ज्यादा जानकारी थोड़ा तकनीक समझिये और नहीं तो google करिए। बाकी अगर सरकारी सेवा में नहीं है सरकारी साधनों से यात्रा नहीं कर रहे हैं या फ़िर किसी भी वजह सरकारी महकमें से वास्ता नहीं पड़ता तो.... 


कोरोना का सामाजिक विमर्श 


कोरोना हमारे अंदर और बाहर के संघर्ष को सबके सामने ला दिया है और अब आपको बताना कुछ नहीं है क्योंकि सब खुद ही पता चल जा रहा है। दुनिया भर की सरकारों की पोल खुल रही है और नागरिकों की स्वार्थपरता और संवेदनहीनता की रोज नयी तश्वीर हमारे सामने आ रही है। हलांकि दु:ख और परेशानियां शाश्वत हैं और उनका जीवन पर्यंत बने रहना। जिंदगी क्या है? शायद! यही बताने के लिए होता है।
  इसी घोर निराशा के बीच कुछ जज्बाती लोगों की बातें सामने आती हैं और आमतौर पर यह कम अक्ल लोग होते हैं जो अपनी परवाह थोड़ी कम करते हैं। किसी की भी तकलीफ नहीं देख पाते और गुमनाम रहकर थोड़ा सा कुछ कर गुजरते हैं। बस यूँ ही किसी की जिंदगी में कुछ बेहतर हो जाता है और वह गुमनाम ही बना रहता है। 
    एक बुजुर्ग जिसके पास पैसे की कोई कमी नहीं है वह अपने आलीशान मकान में एकदम अकेला है। उसके घर के लोग अलग-अलग शहरों और मुल्कों में रहते हैं। अब पैसे का क्या करें? जब बाजार ही बंद हो क्योंकि पैसे का महत्व तो बाजार से है और आप बड़े आदमी तभी हैं जब आप लगातार खरीदारी कर रहे हों। अब हर तरह की बिकने वाली चीज, खरीद बिक्री से दूर हो गयी है। ऐसे में बड़ा आदमी भी आम आदमी की तरह सामान्य जरूरतों पर ठहर जाता है और बाजार के खुलने का इंतजार करने लगता है। 
       आम आदमी आज भी पहले जैसी बेकदरी लिए काफी फोटो जेनिक है, फोटो, वीडियो और कहानी के लिए बेहतरीन मौका है। कुछ सही, कुछ गलत, मतलब फिल्म और कहानियों के दृश्य पुनर्जीवित करने का बेहतरीन अवसर है। 
      मोबाइल ने तो हर आदमी को पत्रकार बना ही दिया है और अब तो सोशल नेटवर्क पर वायरल का जमाना है जहाँ हर आदमी शेयर, फारवर्ड करके अपने को सबसे ज्यादा दु:खी यानी कि संवेदनशील होने का ढिंढोरा आसानी से पीट सकता है। हर समय संवेदना का स्टेटस अपडेट हो रहा है हलांकि सब्ज़ी वाले को एक लम्बा प्रवचन दिया गया है जबकि उसके साथ दो छोटे बच्चे भी उसका हाथ बंटा रहे हैं। 
    हर आदमी अपनी स्थिति और हैसियत के हिसाब से जीवन बचाने और चलाने के तरीके और संसाधन तलाश रहा है या फिर जो है उसी का उपयोग कर रहा है। जिनके पास खुद के आवागमन के साधन नहीं हैं। वह कैसे दूरियां तय करे और यही लोग भीड़ की शक्ल में सड़कों पर निकल पड़ते हैं। सोचिए सब कुछ अच्छा होता, सही होता तो लौटते क्यों? फिर यहाँ पर तो कुछ भी ठीक नहीं था तभी तो इतनी दूर घर छोड़कर गए थे। 
     जिस मंजिल के लिए चले हैं वहाँ क्या, कैसा मिलेगा? इसका कोई भरोसा नहीं है। अच्छा भी हो सकता है और बुरा भी.. 
ए सारी कवायद सफर की है जो कहीं भी पहुँचने की पहली शर्त है। इसके बगैर कोई मंजिल नहीं है। हमारे यहाँ तरस खाने का बड़ा शानदार रिवाज है। जहाँ जिस आदमी को जो काम करना चाहिए वह उसे इस तरह करता है जैसे कोई एहसान कर रहा हो। अरे भाई आप इसी काम के लिये इस जगह पर हो जब आप काम नहीं करते तभी आप से सवाल पूछा जाना चाहिए। जब आप काम करते हो तो वो सामान्य बात है कि आपको करना ही चाहिए। 
        ऐसे ही समाज के दानवीर हैं जो फोटो खिंचवाने के लिए ही सारा प्रयास कर रहे होते हैं और दूसरे अपने काम को इतनी खूबसूरती से छिपाते हैं कि हर जगह वायरल हो जाते हैं। बेचारे दानवीर... इसके बाद हर जगह इंटरव्यू में यही सफाई देते रहते हैं..... 


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Comments

  1. ए बनने बिगड़ने का
    अंतहीन सिलसिला
    जो है उसकी कदर नहीं
    परेशान इससे है
    उसे क्या नहीं मिला
    ©️Rajhansraju

    ReplyDelete
  2. मगर कॉफी में
    वह चाय वाली बात
    नहीं आती है
    जैसे चाय में
    काफी वाली नहीं आती

    ReplyDelete
    Replies
    1. अपनी पहचान बनाए रखनी चाहिए

      Delete

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