Corona Pandemic। The pain and agony

Kumar Vishwas

 "जवाब मांगेंगे" 

ये लोग एक दिन जवाब माँगेंगे!!
शहर की रौशनी में छूटा हुआ, टूटा  हुआ
सड़क के रास्ते से गाँव जा रहा है गाँव...
बिन छठ, ईद, दिवाली या ब्याह-कारज के
बिलखते बच्चों को वापस बुला रहा है गाँव...

रात के तीन बज रहे हैं और दीवाना मैं
अपने सुख के कवच में मौन की शर-शय्या पर
अनसुनी सिसकियों के बोझ तले, रोता हुआ
जाने क्यूँ जागता हूँ, जबकि दुनिया सोती है...

मुझको आवाज़ सी आती है कि मुझ से कुछ दूर
जिसके दुर्योधन हैं सत्ता में वो भारत माता
रेल की पटरियों पे बिखरी हुई ख़ून सनी
रोटियों से लिपट के ज़ार-ज़ार रोती हैं

वो जिनके महके पसीने को गिरवी रखकर ही
तुम्हारी सोच की पगडंडी राजमार्ग बनी
लोक सड़कों पे था और लोकशाह बंगले में?
कभी तो लौट कर वो ये हिसाब माँगेंगे 

ये रोती माँएँ, बिलखते हुए बच्चे, बूढ़े 
बड़ी हवेलियो, ख़ुशहाल मोहल्ले वालो
कटे अंगूठों की नीवों पे खड़े हस्तिनापुर!
ये लोग एक दिन तुझसे जवाब माँगेंगे.. 
©️Dr. Kumar Vishwas
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Corona warriors 

बड़ा होने का एहसास किया, 
सबसे आगे होने का प्रयास किया, 
यह सोचकर आगे बढ़ता रहा, 
हरदम ऊँचा चढ़ता रहा, 
एकदम अकेला रह गया, 
जब भूख लगी, 
प्यास लगी, 
बहुत दूर थी जमीन, 
दाना-पानी जहाँ पर था, 
रिश्ता उसका,
वहाँ नहीं था,
खूब शोहरत है,
दौलत भी,
हर जगह उसी की फोटो है,
उसी के चर्चे सब में है
पर जहाँ भी है,
वह तन्हा है,
भूखा है,
प्यासा है।
दूर टूटे छप्पर में,
चार जने जो बैठे हैं, 
वो भी भूखे-प्यासे हैं,
पर बातें आपस में करते हैं,
एक दूजे का यकीन हैं,
हाथ थाम कर बैठे हैं, 
कभी जी भरकर हंसते हैं, 
जब मन भर जाता है, 
खूब रो लेते हैं।
बड़ा आदमी तन्हा है,
न हंसता है, न रोता है,
एकदम चुप परेशान है,
इस दौलत से क्या होना है,
अब जरूरत सिर्फ इतनी है,
कैसे जिंदा रहना है,
भूख-प्यास के मतलब,
सब जगह एक जैसे रहते हैं,
किसके पास कितनी दौलत है,
यह गिनके क्या करना है,
चंद टुकड़े रोटी के,
मिल जाएं,
बस दिन कटना है।
जो बहुत ताकतवर थे,
वो भी एकदम निर्बल जैसे हैं,
जो शत्रु है,
वह कुछ ऐसा है,
नजर नहीं आता 
पर हमला,
भयानक करता है।
इनसे लड़ने वाले योद्धा,
मौन रहा करते हैं,
जान हथेली पर रखकर,
जीवन रक्षा करते हैं,
वो परजीवी जो जीवन में,
घुस आया है,
चुपके से जीवन खा जाता है,
भेद नहीं करता वो,
कोई भी कैसा भी हो,
दौलतमंद या बे-दौलत हो,
ग्रास बना लेता है,
अब इसके और हमारे बीच,
एक लकीर खींचकर,
कई मौन सिपाही हैं खड़े,
सफेद, खाकी, हरी, पीली,
वर्दी में हैं डटे
एक हाथ में झाडू है,
एक हाथ छड़ी,
सफेद कपड़े ने ले रखी है,
जिम्मेदारी सबसे बड़ी,
दिन-रात वो दुश्मन से लड़ता है,
अपनी परवाह नहीं करता है,
घर से अपने दूर है वो,
अस्पताल में रहता है,
इस जंग का हर योद्धा,
अपनों के आस-पास तो रहता है,
इस लड़ाई के ए शर्त है
वह उनसे मनमाफिक ढंग से,
मिल नहीं सकता है,
उसको इस जंग के खतरे मालूम हैं
क्योंकि सबसे आगे रहना है,
अपनी परवाह किए बिना,
न जाने कितनों की जान बचानी है,
हे अनाम शूरवीरों
शत-शत नमन तुम्हें,
आजीवन नतमस्तक रहना है,
हमको जो भी करना है, 
घर में रहकर करना है
घर में ही रहना है 
🌹🌹🌹❤️❤️❤️❤️🙏🙏🙏🌹❤️❤️🌹🌹

 








ए आइना ही है जो कभी थकता नहीं
ए बताने म़े कि तूँ कितना हँसी है।






















































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