Gadariya

गडरिया

गडरिया बेपरवाह दिखता है 

उसके पास भेड़ बकरियों की 

अच्छी खासी तादाद है 

उसके हाथ में 

एक लंबी सी लठ्ठ है 

जिससे उनको हांकता है

बकरियों को 

लठ्ठ और गडरिए की आदत हो गई है 

वह कोई आवाज निकालता है 

बकरियां उसका मायने समझ जाती है 

जिधर जा रही थी 

अब वह रास्ता बदल देती हैं 

गडरिया एकदम शांत 

किसी छांव में बैठ जाता है 

भेड़-बकरियां निश्चिंत 

अपने काम में लग गई हैं

इस तपती दुपहरी में  

कुछ न कुछ  खाने को मिल जाता है 

गडरिया दूर से उन पर 

नजर गड़ाए रखता है 

किसी अनचाहे जगह पर 

जाने से उन्हें रोकना है 

इनकी समझ बड़ी अनोखी है 

कोई एक जिस तरफ चल दे

तो बाकी भी उसके पीछे चल देती हैं 

इसलिए बस उसी एक को 

राह भटकने से 

उसे रोकना है 

यह जिम्मेदारी गडरिया की रहती है 

इसके लिए उसके पास 

उसका लठ्ठ जरूरी है 

हम भी इन्हीं भेड़ों की तरह 

अपने काम में लगे हैं 

दूर गडरिया हम पर 

नजर गड़ाए बैठा हैं 

वह हमें 

न जाने कहां-कहां लेकर जाता है

वह अपनी लठ्ठ से हमको हांकता रहता है 

©️Rajhansraju

🌹🌹🌹🌹

अस्तित्व 

मेरा होना उसका होना है 

यह खुद की खुद तक यात्रा है 

मेरा नाम उसका है 

मैंने आवाज़ लगाई 

कोई कहीं दूर तक 

नजर नहीं आता है 

मेरे सिवा कौन यहाँ है 

जो मुझको देखता-सुनता है 

मैंने अपने जैसों से पूछा 

क्या उन्हें भी ऐसा लगता है

दूर कहीं से 

कोई आवाज आती सुनाई देती है

जो हरदम गूंजा करती हैं 

मेरे सन्नाटे तोड़ 

मुझे पागल करती रहती है 

वहीं नदी किनारे 

सामने एक बावला बैठा था 

जो अपने में खोया था 

बड़े ध्यान से सुन रहा था 

मेरी तरफ पलटकर देखा था

जोर-जोर हंसने लगा 

मुझसे कहने लगा 

तुझे अब भी खुद पर यकीन नहीं है 

यह आवाज तेरी है 

जो तुझ तक आना चाहती है 

वही गूंज रही है

बस थोड़ा सा ठहर 

यहीं किसी किनारे बैठ जा 

धीरे-धीरे 

एकदम साफ सुनाई देगी

फिर दोनों बैठेंगे ऐसे ही 

दुनिया 

पागल समझेगी

©️Rajhansraju

🌹🌹🌹

मौन 

जब शब्द 

अपनी सीमा तय कर लेते हैं

 तब सिर्फ 

मौन रह जाता है 

यह शब्दों से 

कहीं ज्यादा गूंजता है 

हर तरफ 

उसके मौन के चर्चे हैं 

जिसे अब भी 

तुम सुन नहीं रहे हो 

क्योंकि तुम 

लगातार बोल रहे हो 

बहुत कह लिया 

तनिक तुम भी 

बे-शब्द हो जाओ 

अब 

कुछ नहीं कहते हैं 

चलो मौन होकर 

एक दूसरे का मौन सुनते है

©️Rajhansraju


बुद्ध एक यात्रा

***************

उसने कहा था

एक दिन वक्त ठहर जाएगा

मैं हंसता रहा

यह कैसे हो सकता है

अगर कुछ चलायमान है

तो वह वक्त ही है

जो किसी के लिए नहीं रुकता

तब उसने कुछ नहीं कहा

सिर्फ मौन धारण कर लिया था

मुझे लगा उसके पास

कोई जवाब नहीं है,

ठीक उसी तरह

जब ढेर सारे सवाल पूछे जाते

तो बहुत से प्रश्नों के,

जवाब नहीं देता

बस मौन हो जाता

ऐसे में लगता,

उसके पास कोई उत्तर नहीं है

अक्सर प्रश्न पूछने वाला

अपने आप को श्रेष्ठ समझने लग जाता

यहीं वह सबसे बड़ी भूल कर बैठता।

क्यों कोई बुद्ध नहीं बन पाता

जबकि बुद्ध बनना तो एक निरंतरता है

यह कोई एक बुद्ध की बात नहीं है

कभी किसी बुद्ध ने,

आखरी बार जन्म लिया था

जो अब जन्म नहीं लेगा

ऐसा नहीं है

यह तो एक परंपरा,

खोज का नाम है

जो सदा से होता रहा है

बुद्ध बनने का अर्थ ही है

मौन हो जाना

जिन प्रश्नों के उत्तर नहीं दिए थे

आज भी न जाने कितनी बार,

रोज पूछे जाते हैं

बुद्ध के ज्ञान पर

उंगलियां उठाई जाती हैं

जबकि हकीकत यह है

जो पूछा जा रहा है

वास्तव में

वह सवाल ही नहीं है

मतलब जिनके जवाब ढूंढ रहे हैं

उनका कोई अस्तित्व नहीं है

हम जब गलत सवाल करते हैं

उसके जवाब भला कैसे मिल सकते हैं

उत्तर उन्हीं चीजों के मिलते हैं

जो वास्तव में हो

अर्थात वह सवाल बन सकते हों

ठीक वैसे ही,

जब हम यात्रा पर निकलते हैं

तमाम जाना-अनजाना,

डर समाया रहता है

कुछ खोने-पाने की,

आशंका बनी रहती है

परन्तु यात्रा की निरंतरता से

अकस्मात बहुत सारे प्रश्न

अपने आप खत्म होने लगते हैं

हम न जाने कब

एक अहर्निश यात्री बन जाते हैं

प्रश्नों का खत्म हो जाना ही

बुद्ध बनना है

बुद्ध बनने की

कोई एक पद्धति नहीं है

बेवज़ह उसको पंथ और मजहब में

बांटने की कोशिश का,

कोई मतलब नहीं है

उसे एक खास नाम,

दिया जाने लगता है

बुद्ध को समझने का दावा भी,

किया जाने लगता है

पर! यह कैसे मुमकिन है

तुम सांस लेते हो

अभी अपनी सांस को,

तुम क्या नाम देना चाहते हो

यह तो तुम्हारे ऊपर है

बस तुम्हारा सांस लेना जरूरी है

यह एहसास,

तुम्हारे जिंदा रहने के लिए है

तुम महसूस करते रहो कि तुम हो

सवाल-जवाब के मायने,

कोई अर्थ नहीं रखते

तुम सवाल करो या ना करो

इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता,

क्योंकि तुम जब तटस्थ भाव से,

देखने लगते हो

कुछ-कुछ बुद्ध जैसा होने लगते हो,

उसका नाम अब तुम,

कुछ भी रख सकते हो

तुम्हारी मर्जी,

उसको हवा कहो ना कहो,

क्या फर्क पड़ता है

किस तरह का ढांचा-सांचा बनाओगे,

इससे उसकी सत्ता पर

कोई फर्क नहीं पड़ता

उसको महसूस करना,

तुम्हारे ऊपर है, तुम्हारी मर्जी

वह तुम्हें,

तुम्हारे ऊपर छोड़ देता है

तुम उसे जैसा चाहो

वैसा मानो

या फिर न मानो

बस निरंतर चलते रहो

और अपनी खोज करते रहो

इस यात्रा का नाम ही,

बुद्ध होना है

वक्त का ठहरना

या फिर चलते रहना

जैसा कुछ होता है कि नहीं

यह कौन तय करेगा

वह जो देश-काल से परे चला गया है

वह तो कुछ कहता ही नहीं

उसके चारों तरफ

मौन पसर जाता है

सिर्फ यात्री रह जाता है

हर तरफ सिर्फ अनंत राह है

©️Rajhansraju

***********************


माँ-बाप 

उनका क्या दोष है, 
जो सिर्फ माँ-बाप है,
हर बार उनके हारने की,
रश्म चल पडी है
पिछली बार भी,
जो जनाज़ा निकला था,
वह उन्ही के बेटे का था,
और इस बार भी,
न जाने यह दौर,
कितना और लम्बा चलेगा,
फिर मरने वाले का,
कोई मज़हब तो रहेगा ही,
लोग ऐसे ही उसका तमाषा बना देंगे,
अगली लाश?
कहीं किसी और की होगी,
कोई फौज़ी होगा, कोई काफिर होगा,
कैसा भी होगा?
इसी मिट्टी का बना होगा,
वही गम होगा, वही आँसू होंगें,
वैसा ही घर सूना होगा,
फिर कौन?
किसका इंतज़ार करेगा?
इन हारे माँ-बाप को,
भला कौन?
याद रखेगा..
©️rajhansraju

स्मृति 

न उसमें पंख है
न पहिया
वह चल रहा है
ऐसा लगता भी नहीं
बस अपनी मियाद तक
सब लोग
कुछ दूर
उसके साथ चलते हैं
न जाने कितने लोग कब से
ऐसा करते रहे हैं
उसने लेखा-जोखा
कभी रखा ही नहीं
उसे कोई फर्क नहीं पड़ता
कितने कब आए गए
जनाब वक्त है
कोई भी पल
अगले पल में
वही पल नहीं रह जाता
किसी का भी नामुमकिन है
एक पल से दूसरे पल में जाना
हर पल में जो है
वह उसी की अमानत है
अगले पल में सब नया है
पिछला कुछ नहीं है
जो लगता है अब भी
वैसे ही मौजूद है
सब ठहरा हुआ है
यकीन मानो
सिवाय स्मृति के
कुछ भी नहीं है
©️Rajhansraju


भला कौन
रोक पाया है
इन गुजरते लम्हों को
स्मृति-सपने
संजोते बुनते
मैं
अतीत और भविष्य
की पगडंडी पर
यूँ ही हमेशा
बरकरार रहता
©️Rajhansraju


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Comments

  1. उनका क्या दोष है,
    जो सिर्फ माँ-बाप है,
    हर बार उनके हारने की,
    रश्म चल पडी है
    पिछली बार भी,
    जो जनाज़ा निकला था,
    वह उन्ही के बेटे का था,
    और इस बार भी,

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