Hindi poem | World of trees

 दरख़्तों की दुनिया

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गाँव छोड़कर

बहुत दूर चला आया है

आम का पेड़

बहुत याद आता है

वह सोचता है

गाँव वैसा ही होगा

एक दूसरे के लिए

खूब सारा वक्त होगा 

जबकि शहर ने

कोई कसर छोड़ा नहीं है

धीरे-धीरे सब

कांक्रीट में बदल रहा है

शहर के हाथ में

गजब का जादू है

जिसे छू लेता है

वह पत्थर बन जाता है

ए बोनसाई बन जाने में

हम सबने हुनर दिखाया है

अपनी ही दुनिया में 

अनाम होकर

गमलों में 

न जाने क्या लगाया है

©️rajhansraju

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(1)

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जब किसी पौधे को
कहीं और रोपा जाये
वक्त का थोड़ा ध्यान रखा जाये 
कहीं धूप बहुत तेज तो नहीं है
क्योंकि जब किसी को
कहीं से जड़ से उखाड़ा जाता है
तो उस जगह की
मिट्टी पानी से जो नाता है
वह भी तोड़ा जाता है
यह बात किसी को भी
सहज नहीं रहने देता है
क्योंकि वह उनसे
जड़ से जुड़ा होता है
जड़ों से जुड़ने का मतलब 
वजूद से होता है
वह उसी मिट्टी-पानी से बना है
ऐसे में किसी और जगह जाते वक्त
उसकी पत्तियां
देखो कैसे मुरझा जाती हैं
जैसे तैयार नहीं हों
कहीं और जाने को
एकदम बेबस
कुछ कह नहीं पाती
ऐसे में इस बात का
ख्याल रखना जरूरी हो जाता है
जब किसी पौधे को
कहीं और रोपा जाए
उस वक्त
दिन खत्म हो चुका हो
रात ढलने वाली हो
मतलब सांझ का समय हो
तब किसी पौधे को आहिस्ता से
उसकी मिट्टी से जुदा करना चाहिए
और बड़े प्यार से
कहीं और रोप देना चाहिए
क्योंकि रात उसे
पूरा वक्त दे देती है
अकेले रहने का
नई मिट्टी से जुड़ने का,
अंधेरे में अकेलापन
उतना बुरा नहीं लगता
क्योंकि कोई और नजर नहीं आता
अकेले ही खुद से लड़ लेता है
कुछ रो लेता है
आहिस्ता से
जड़ मिट्टी में जमा लेता है
ऐसे में पौधा बड़ी आसानी से
नयी जगह में भी
अपने रिश्ते नाते तलाश लेता है
सुबह देखो तो उसकी पत्तियां
फिर से वैसे ही
अंगड़ाई ले रही होती हैं
जैसे अभी-अभी नींद से जागी हों
कल तो जैसे कुछ हुआ ही नहीं था
ऐसे में इस बात का
ख्याल रखना हम सबके लिए
बड़ा जरूरी है
पौधों को रोपने-काटने के
कुछ तरीके होते हैं
इसमें वक्त का ध्यान रखना है।
रिश्ते टूटते हैं
फिर कहीं और जुड़ते हैं
पर इसमें थोड़ा वक्त लगता है
कई रातें कभी-कभी
यूं ही गुजर जाती है
जब कोई पौधा
नयी मिट्टी से नहीं जुड़ पाता
उसे वहां का खाद पानी नहीं भाता
इस बात का वह
जिक्र भी तो नहीं करता
किसी नये रिश्ते में
वह नहीं बंध सकता
उसका उदास चेहरा
सूखता जिस्म देखो
उसे तुम्हारा खूबसूरत
बोनसाई नहीं बनना है
वह तो पूरा जंगली है
गमलों की दुनिया
उसे रास नहीं आती है
©️Rajhansraju 

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(2)

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न जाने कहाँ-कहाँ 
वह दस्तक देता है
चुप बैठा
कुछ सुनता रहता है 
तिनका-तिनका जोड़े
कड़ी धूप में छांव तलाशे
चलता है चलने को
कोई मुकाम नहीं 
कुछ और तलाशे
हर तिनके की अपनी बानी
कहता है  
एक नई कहानी 
कैसे बिछड़ा साख से अपने 
कैसे छूटे रिश्ते नाते 
कब से बिछड़े 
कहाँ मिले
यह भी तो अब खबर नहीं है। 
हर तिनके ने कुछ नया कहा है 
जीवन में कुछ और भरा है 
जो ताजा-ताजा बिछड़े हैं 
उसमें पेड़ की 
अब भी खुशबू है 
चेहरा एकदम नम है 
कुछ कह नहीं पाते 
अक्सर चुप रहते हैं 
किसी अनजानी वजह से 
वह शाख छोड़कर 
आया था 
काफ़ी समय तक
उस दरख़्त और शाख को 
तकता रहा 
इस उम्मीद में 
बरगद थोड़ा सा छुककर
उसे थाम लेगा 
मगर दरख्तों की दुनिया 
बड़े पक्के वसूलों पर चलती है 
एक बार उनसे 
जब कोई छूट जाता है 
उसके लौटकर आने की 
कोई गुंजाइश नहीं रहती 
हर तिनका किसी 
दरख़्त से बिछड़ा है 
अब भी उसमें 
वही दरख़्त बसता है 
ऐसे में सबके पास 
कहने को बहुत कुछ है 
कमबख्त कोई सुनता नहीं है 
बहुत कहने वाले 
धीरे-धीरे कोई बात नहीं करते 
किसी से कोई सवाल नहीं करते 
जो तिनका-तिनका जोड़ रहा है 
वह भी एक तिनका है 
उम्र के कितने पडाव गुजर गये 
वह कहता नहीं है। 
कोई तिनका अकेला न पड़े 
इसी कोशिश में 
वह तिनके को तिनके से जोड़ता है 
मौन भी अपना 
शोर भी अपना है 
वह जो शाख से जुड़े हैं
काफ़ी हरे-भरे हैं 
सब जानते हैं 
एक दिन तिनका हो जाना है 
सफर माटी का है 
माटी ही बनना है 
©️Rajhansraju
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(3)
*******
उसने कभी किसी से 

कोई शिकायत नहीं की
और देने के सिवा
कुछ किया भी तो नहीं
फल दिया हरियाली दी
परिंदों को रहने के लिए
घोसले भी दिए दिए
हालांकि कि घोसले तो
उन्होेंने ही बनाए थे
पर उनके लिए
एक जगह
और छाए की जरूरत थी
जो उसने ही दिया था
कभी कुछ नहीं कहा किसी से
बस जब अंतिम समय आया
तो एक गुजारिश की
जब मैं गिरने लगूँ
मुझसे थोड़ा परे हट जाना
क्योंकि इस बड़े आकार को
मैं संभाल नहीं पाऊंगा
मुझसे थोड़ा दूर ही रहना
©️Rajhansraju

 
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(4)

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जब वक्त
अपनी यात्रा के
एक पड़ाव पर आता है,
सूरज कुछ मद्धम सा,
होता दिखाई पड़ता है,
जैसे नदी की आगोशी में,
सोना चाहता है,
घोसले वालों ने भी,
अपना दामन,
उसकी तरफ बढ़ाया है।
वक्त के सफर में
रात भी आती है
धीरे-धीरे
वह भी गुजर जाती है
हर पल
उसके लिये
एक नया प्रस्थान है
वक्त..
अब तक
ठहरना
नहीं सीख पाया है
©️Rajhansraju
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https://www.facebook.com/joawajde/

(5)

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न जाने कब से
मैं अज्ञान के अंधेरे से
लड़ता रहा हूँ
ज्ञान का प्रकाश
मुझ पर भी पड़ जाये
इसी कोशिश में
सदियों से
परिक्रमा करता रहा हूँ
एक न एक दिन
मेरे अंदर का अंधकार
तुम हर लोगे
यह सोचकर
यह मानकर
तुम्हारी परिधि में
घूमता रहता हूँ
©️Rajhansraju 

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(6)

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हर पल अंत: में
एक सवेरा होता है
किसी लम्हे की उंगली थामे
वह वक्त के दरिया में
कश्ती लेकर निकला है
सूरज आंखे मीचकर
उसको तकता रहता है
हिम्मत उसकी देखकर
अभिनंदन करता रहता है
©️Rajhansraju

 
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(7)

********'
मेरी तन्हाई
तूँ देखता नहीं है
मैं खाली हूँ
फिर भी भरता नहीं 
ए आसमान
और भी नीला हुआ जाता है
बादल की चादर हटाता रहता है
तेरे सफर का साक्षी,
होना चाहता है
अब तूँ जहाँ भी है
आ जा...
मुझे आगोश में ले ले
पूरा बना दे
बहुत हुआ...
अब उस पार जाना है
साथ चल दे
कमबख्त....
तेरा इसमें जाता क्या है
©️Rajhansraju

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(8)

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कौन कुबूल करता है
हद उसकी कितनी है
सरहद कितने पर तय करना है
जज्बाती हों जब रिश्ते उसके
कहाँ वो तब रुकता है
चल पड़ते हैं आँखों से
बांध कहाँ पाता है
ए भीगा-भीगा मौसम
कुछ ऐसे ही बनते हैं
उससे कोई पूछे तो
कुबूल नहीं करता है
कोशिश करके
यूँ ही मुस्करा देता है
©️Rajhansraju 

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(9)

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किताबों की दोस्ती, 

बेहतरीन होती है, 

बिना शिकायत हर बात होती है, 

वह शब्द जो उस जगह बैठा है, 

अपनी अहमियत से अर्थ गढ़ता है, 

पूरी किताब शब्दों का गुलदस्ता है, 

न जाने कितनी कहानियां, 

समेट कर रखता है, 

कोई आदमी एक बार में, 

एक ही जिंदगी जी पाता है,

जबकि किताब हमको, 

अनगिनत जिन्दगियों की, 

दास्तान यूँ ही दे जाता है 

इस तरह उसका दोस्त,

बहुत जानकर बन जाता है

©️Rajhansraju 

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(10)

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कहते तो यही हैं, 

वह कहीं ठहरता नहीं है, 

जबकि वक्त लम्हों का, 

सिलसिला है, 

वह लम्हों को अपने पीछे, 

छोड़ता चला जाता है, 

चाहे तो पलटकर देख लें, 

बचपन अब भी, 

वहीं ठहरा हुआ है, 

हर लम्हा जेहन में,

वैसे ही बैठा हुआ है,

वह कहीं गया नहीं है,

वह पुराने पन्ने पर,

वैसे ही किसी इंतजार में,

ठहरा हुआ है

©️Rajhansraju 

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(11)

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यह तरस खाने का रिवाज, 

सदियो से चलता रहा है, 

मुफलिसी की कहानियां, 

बड़ी चार्मिंग होती हैं 

कोई भी आदमी, 

बड़ी आसानी से 

इनके फरेब में आ जाता है 

एक सफल लेखक, 

तभी सफल है, 

जिसे पढ़कर, 

लोग उफ और आह, 

में उसको पढ़ें, 

©️Rajhansraju 

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(12)

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खुदा से इश्क है उसको,

हरदम ए कहता रहता है,

पर! उसे खुद पर भरोसा नहीं है,

कि वह सच में,

जिससे इश्क करता है,

वो सिर्फ एक नाम है,

कि कहीं रहता भी है?

जो थोड़ी दुश्वारियोंं से,

परेशान हो जाता है,

जबकि सच ए है कि,

लोगों कि दुनिया बहुत छोटी है,

जिसमें न तो खुदा की जगह है,

और न इश्क की गुंजाइश है,

तो जो इश्क करते हैं,

उन्हें खुद पर यकीं करना होगा,

उसकी बनाई दुनिया में,

थोड़ी सी जगह ,

इश्क की खातिर रखना होगा,

जो हो रहा है,

अभी उतना बुरा नहीं है,

अच्छा होने की बहुत गुंजाइश है,

थोड़ा सा वक्त दे, धीरज रख,

क्योंकि ए काम भी,

जो इश्क करते हैं,

उन्हें ही करना है,

यकीं रख खुद पर,

नहीं तो इश्क पर,

वो खुदा तेरा है,

तूँ उससे जुदा नहीं है

©️Rajhansraju 

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(13)

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ए दर्द भी अच्छा है, 

ए गम भी सच्चा है, 

वो सुर्ख गुलाब की चाहत में, 

हर्ज ही क्या है? 

पर! इस मौसम पर 

इख्तियार किसका है?  

कुछ दरख्त ऐसे हैं, 

जो सिर्फ बरसात में हरे होते हैं, 

ए शबनम से इश्क करने वाले, 

पत्तियों से नाराज रहते हैं, 

जो उनके माशूक का दर है, 

वहाँ हर वक्त, 

कोई और क्यों रहता है? 

जबकि उससे मिलने का, 

बस एक छोटा सा वक्त मुकर्रर है, 

किसी पौधे के पास, 

आहिस्ता नंगे पाँव, 

नरम धूप के आने से थोड़ा पहले, 

खुदको समेट कर, 

नि:शब्द हो जाना पड़ता है। 

अब थोड़ा सा गौर से देखो

तेरे हर तरफ शबनम है 

और तूँ, 

अपनी बाँहों की हद देख, 

जितना चाहे समेट ले, 

वो तो आसमान है, 

समुंदर है, 

©️RajhansRaju 

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Comments

  1. भटकते हुए कहाँ से काहाँ आ गया
    कहाँ जाना था अब तो ए याद भी नहीं

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