हिन्दी काव्य | Protest and democracy

 लोकतंत्र है भाई


लोकतंत्र में, 

चुनकर आने वाला, 

बादशाह बनकर रहता है?

हलांकि हर पांच साल पर, 

इम्तिहान होता है,

खुद ही तो चुना है, 

फिर क्यों इतना, 

बेकरार होता है 

चुनाव आने वाला है 

जो भी चुना जाएगा 

उसे भी कोई न कोई गरियाएगा, 

कोई जाप करेगा 

कोई तानाशाह कहेगा 

अपना तो हाल 

अब भी वही है 

जिस पार्टी का झंडा लेकर

जिस नेता के पीछे चले थे, 

उसने बस यह काम किया 

एक मौका मिलते ही 

अच्छा सौदा कर लिया 

जिसे हमने वोट दिया था 

वह पार्टी भी अब नहीं रही। 

अभी-अभी एकदम, 

नया नेता मार्केट में आया है 

हर तरह का डर दिखाता है 

मोटा असामी लगता है 

खूब खाता और खिलाता है 

धरम-जाति वाला, 

इमोशनल कार्ड भी रखता है 

जयकारा लग रहा है 

नेता आगे बढ़ रहा है 

उस पर कोई सवाल नहीं है 

नेता जी की संपत्ति चौतरफा बढ़ रही है।

आँख मूंद कर जनता जिंदाबाद कर रही है 

नेता अपना बड़ा शातिर है 

पूरी भीड़ में उसके घर का कोई नहीं है, 

बेटा-बेटी विदेश में है

इसी चंदे से पल रहे हैं 

युवा महीनों से आंदोलित हैं 

स्कूल कॉलेज बंद पड़े हैं 

बच्चों के भी बड़े मजे हैं।

डंडा लेकर निकल पड़े हैं 

किसी भी चौक चौराहे पर 

जितने चाहे पत्थर मारो

जिसको चाहे गाली दो

न पढ़ना है न लिखना है 

सही-गलत गलत कौन समझे

हम तो नेता जी की फौज है

अक्ल भला लगाएं क्यों? 

हाथ में अपने लठ्ठ है 

जहाँ कहो गाढ दे

झंडा अपना टांग दे

तभी एक बे-अक्ल ने सवाल पूछा 

शायद कुछ पढ़ता लिखता है 

रैली का नहीं हिस्सा है 

जब इतना जनसमर्थन है 

लोकतंत्र है भाई

चुनाव होने वाला है 

फिर इस बंद की क्या जरूरत है 

चुनाव लड़िए सरकार बदलिए 

एक नया विधान आप भी गढ़िए

बस इतना सा काम करिए

बच्चों से स्कूल-किताब मत छीनिए

जो सरकार चल रही है 

वह भी चुनकर आई है 

देश अपना है संविधान अपना है

अब वह अंग्रेजी सरकार नहीं है 

हम तब गुलाम थे 

बाहर उनको करके ही 

अपना देश गढ़ना था 

अब वह हो चुका है 

हम अपनी सरकार चुनते हैं। 

हम इनसे भी और उनसे भी 

असहमत हो सकते हैं 

देश अपना है 

लोकतंत्र है 

बस धीरज से चुनाव का, 

इंतजार करना है 

अपने एक वोट से 

सरकार बदलना है 

जो ठीक लगे मन को भाए

उसको चुनना है 

©️Rajhansraju

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 (2)

आओ धरने पर बैठे 

हड़ताल करें

लोकतंत्र है क्या कहें

रेल सड़क जाम करें 

अरे भइया लोकतंत्र है 

चुनी सरकार है 

चुनाव तक धीरज रखो

जनता के बीच काम करो

सच्चे मन से जाओगे 

सच्ची बात करोगे 

जनता ही जनार्दन है 

जाहे जिस तरफ के हो

ज्यादा बरगला नहीं पाओगे 

लोकतंत्र है भाई

सही-गलत सब परख लेंगे 

अपनी फिकर करो तुम

जो सही है 

उसको चुन लेंगे

चुनाव में 

इनसे भी 

उनसे भी निपट लेंगे 

©️Rajhansraju 

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(3)
*******

उसने कभी किसी से
कोई शिकायत नहीं की
और देने के सिवा
कुछ किया भी तो नहीं
फल दिया हरियाली दी
परिंदों को रहने के लिए
घोसले भी दिए दिए
हालांकि कि घोसले तो
उन्होेंने ही बनाए थे
पर उनके लिए
एक जगह
और छाए की जरूरत थी
जो उसने ही दिया था
कभी कुछ नहीं कहा किसी से
बस जब अंतिम समय आया
तो एक गुजारिश की
जब मैं गिरने लगूँ
मुझसे थोड़ा परे हट जाना
क्योंकि इस बड़े आकार को
मैं संभाल नहीं पाऊंगा
मुझसे थोड़ा दूर ही रहना
©️Rajhansraju
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(4)
********
जब वक्त
अपनी यात्रा के
एक पड़ाव पर आता है,
सूरज कुछ मद्धम सा,
होता दिखाई पड़ता है,
जैसे नदी की आगोशी में,
सोना चाहता है,
घोसले वालों ने भी,
अपना दामन,
उसकी तरफ बढ़ाया है।
वक्त के सफर में
रात भी आती है
धीरे-धीरे
वह भी गुजर जाती है
हर पल
उसके लिये
एक नया प्रस्थान है
वक्त..
अब तक
ठहरना
नहीं सीख पाया है
©️Rajhansraju

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(5)
*******
न जाने कब से
मैं अज्ञान के अंधेरे से
लड़ता रहा हूँ
ज्ञान का प्रकाश
मुझ पर भी पड़ जाये
इसी कोशिश में
सदियों से
परिक्रमा करता रहा हूँ
एक न एक दिन
मेरे अंदर का अंधकार
तुम हर लोगे
यह सोचकर
यह मानकर
तुम्हारी परिधि में
घूमता रहता हूँ
©️Rajhansraju 
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(६)

********

जब तपिश से सहरा मिटने लगे

आग हर तरफ बढ़ने लगे

जिधर देखो रेत का समंदर हो

एक शख्स जो सवाली है

तलाश में न जाने किसके भटकता है

रास्ता भूल जाना उसकी फितरत है

वह हंसता है, खिलखिलाता है

नागफनी के साये में सो जाता है

कुदरत का ए करिश्मा है

इन पौधों की भी जरूरत है

जो पानी सहेज के रखते हैं 

बस एक ऐब नजर आता है 

अपने चारों तरफ़, 

कांटा लगा के रखते हैं

दूर देश से आए बेघर पंछियों को, 

इनसे शिकायत नहीं है, 

उन्हें तो सब कुछ मिल जाता है 

इन कटीली झाड़ियों से 

वह आदमी भी कैक्टस के साथ रहता है 

उसे मालूम है, 

इनमें कभी-कभी सिर्फ एक बार, 

न जाने कब बहुत खूबसूरत, 

फूल खिलते हैं, 

©️Rajhansraju

 

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(७)

********

एक ख्वाब 

अधूरा लेकर निकला हूँ 

जागते जागते रात कटी है 

आंख लगी 

कब आंख खुली है 

ख्वाब हाथ में थामे 

फिर पगडंडी पर

तेज चला हूँ  

डगमग डग 

तेज चला हूँ 

अभी गिरा मैं अभी गिरा

ए सोच कर 

हंसते हैं जग वाले 

देखो कैसे चल रहा हूँ 

हाथ खाली दिखता 

इनको

जबकि इनमें ख्वाब भरे हैं 

ऐसे ही चलना सीख रहा हूँ 

©️Rajhansraju 


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(8)

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आदत इसकी ऐसी है 

कभी चुप नहीं रहता है 

करना चाहो कछ भी

डरा सहमा सा लगता है 

सही-गलत उसके, 

बड़े निराले रहते हैं 

अपना देकर 

मर्जी से खोकर

मस्त मगन है जाता है 

पर शोर मचाते दिल की, 

बेहद कम ही सुनते हैं 

वह मलंग बना फिरता है 

फकीरी के रस्ते चल देता है 

आगे बढ़कर ऐसे ही, 

हाथ थाम लेता है, 

उसके कदमों पर जो चल देते, 

कुछ उसके जैसे हो जाते हैं, 

दिल की सुनने वालों की, 

अपनी ही एक दुनिया है, 

जहाँ देने का दस्तूर है, 

वह तो लोगों की, 

कुछ मुश्किल कम करता रहता है 

©️Rajhansraju 

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(9)

********

ख्वाबों की तरह 

कब चलती है दुनिया 

जग कर देखें 

आँख मीचकर

अपनी भूल सुधारे

काश ऐसा हो पाता

Edit, delete के बटन

जीवन में मिल जाते

जो चाहे लिखता 

जब चाहे मिटाता 

पीछे जाकर लम्हों को

मनमाफिक edit कर लेता 

दुःख और गम सदा के लिए 

Delete कर देता 

©️Rajhansraju

********

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(10)

********

ओ नेताजी.. 

समझो नेताजी... 

कुछ करो नेताजी.... 

रैली का टाइम जब यूं ही

बढ़ता जाता है 

सिर्फ मजदूरी पर 

अब कोई.. 

नहीं आता है 

बेकार लफंगों ने 

यूनियन बना ली है

चंद दिनों की संगत में 

पारंगत हो गए हैं 

धरना प्रदर्शन का रेट... 

सार्वजनिक हो गया है 

घंटे और भत्ते का पूरा... 

चार्ट भेजा है 

ओ नेताजी.... 

समझो नेताजी... 

कुछ करो नेताजी.... 

पद चिन्हों पे 

आपके ही चल रहे हैं 

आपको अपना नेता 

अब भी 

कह रहे हैं 

शर्त केवल इतना है

बांट के हिस्सा खाना है 

बजट बढ़ाओ रैली का 

पहली मांग यही है 

बेकार लफंगो ने 

इतना सीख लिया है 

यही काम एक ऐसा है 

न पढ़ना है 

न लिखना है 

जाम करो सड़क 

और खूब हल्ला करना है 

ऐसा ही करके 

हमको नेता बनना है 

हां हां नेताजी.... 

समझो नेताजी..... 

न रहेंगे बेकार... 

देखेंगे 

कैसे कोई कहे लफंगा 

मंत्री पद के दावेदार 

जाति का अपने 

बजे डंका

धरम यही है समझे अपना 

ना सही न गलत का फंडा 

हाथ अपने जो है झंडा 

उसमें है मजबूत डंडा 

ये नेता जी..... 

कुछ करो नेताजी..... 

अब रैली का खेल समझो प्यारे 

जाम के रश्ते बनते नेता 

काम यह पुश्तैनी है 

देखो बेटी बेटे क्या रैली में हैं 

वैसे भी कुछ बोल नहीं पाते 

फिर भी कुर्सी तो उनकी ही है 

वाह नेताजी..... 

वाह वाह नेताजी ...... 

अब जरा खुद की हालत देखो 

रैली में क्या करते हो

तनिक रुको कुछ सोचो

अपनी भी हैसियत देखो 

नारे लगाओ... 

भीड़ बढ़ाओ... 

मुफ्तखोरी की आदत डालो 

स्कूल से भागो.. 

बंद बंद तुम चिल्लाओ 

ऐसा करते करते 

कीमती वक्त गुजर जाता है 

हाथ में केवल झंडा रह जाता है 

अनपढ़ जाहिल बनकर तूँ

इसी काम आता है 

ऐसे ही मुफ्त में उल्लू बन जाता है 

ओ उल्लू जी.... 

ओ लल्लू जी.... 

थोड़ा धीरज और रखो 

बात अभी बाकी है 

नेताजी अपने 

जिस दल के विरोधी थे 

अब देखो कैसे तन के 

उसी में मिनिस्टर है 

वाह नेताजी... 

वाह वाह नेताजी... 

कुछ समझो लल्लू जी 

कुछ सीखो लल्लू जी 

ओ जनता जी 

सुनो जनता जी 

समझो जनता जी

©️Rajhansraju 

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(11)
हमारे यहां मातम भी 
जश्न जैसा होता है 
देखो कैसे हर आदमी 
अपना अभिनय कर रहा है 
सुना है वह शातिर 
शतरंज का खिलाड़ी है
दोनों तरफ प्यादे 
सबसे आगे रहते हैं 
जिनकी मौत 
कोई मायने नहीं रखती 
वह तो महज 
आगे बढ़ने और अगली चाल की 
मोहरे हैं 
जिनके मरने से ही 
एक नया रास्ता 
खुलता है 
खैर 
उसके मरने की खबर सच्ची है 
और खबरों का सिलसिला 
इस तरह चला कि 
धीरे-धीरे सब को यकीन हो गया 
जिसका कत्ल हुआ है 
वही कातिल है 
अगर ऐसा नहीं होता तो 
कातिल पकड़े जाते हैं 
उन्हें सजा होती 
हमारे यहां 
नारों का अजब चलन है 
जो यह जाति धर्म वाला झंडा है 
एक बड़े से खंजर में 
लटकता है 
जो हमें नजर नहीं आता 
जिसे हमने कसके पकड़ रखा है 
हम एक दूसरे से कम नहीं है 
मातम के जश्न में 
हम भी शामिल हैं 
नया झंडा 
एक मजबूत डंडे में आया है 
खिलाड़ी ने दरबार सजाया है 
जय कारे लग रहे हैं 
एकदम आगे 
प्यादे चल रहे हैं 
उनके हाथ में झंडा है 
इन्हें कुछ सुनाई नहीं देता 
सब की आंख पर 
एक मजबूत काली पट्टी है
©️Rajhansraju
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Comments

  1. अति हर जगह संसस्या का कारण होती है और हमारे लोकतंत्र के साथ भी यही है

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