महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा को समझना हो तो वही पुरुषवादी मानसिकता पहले समझनी होगी। जब तक यह विकृत सोच समाज के किसी भी कोने में रहेगी ऐसी घटनाएं होती रहेंगी और हमें ऐसे ही शर्मशार होते रहना पड़ेगा। इस बात का जवाब काफी पहले साहिर लुधियानवी के नज़्म में देखने को मिलती है-
आइए जिंदा रहने कि कोशिश करते हैं और यदि जिंदा हैं तो शर्मिंदा होना ही पड़ेगा और हम ऐसे ही इंसानियत के जानाजे में शामिल होते रहेंगे और हममें से कुछ बे-हया लोग, हमेशा कि तरह वह सही हैं इसके लिए कोई और जिम्मेदार है वाला खेल खेलते रहेंगे। ऐसे बिमार लोग सिर्फ सहानुभूति के पात्र हैं।
मेरे बच्चों हमे माफ मत करना, हमें जो करना चाहिए था हम नहीं कर पाए उसे तुम करना क्योंकि हम तुम्हारे लिए एक बेहतर दुनिया नहीं बना पाए। हमारे सारे दावे झूठे और खोखले निकले और यह हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी थी कि हम मिलके इसे खूबसूरत बनाते, पर हम नाकाम रहे और अब भी हम उतने हिंसक,बर्बर और असभ्य हैं जिसे तुम देख रहे हो, सच तो यह है कि हमारे सफाई देने के लिए शब्द नहीं है
"मेरे सामने एक कैलेंडर टंगा है| तस्वीर में एक बच्चा फौजी पोशाक पहने बर्फ पर बैठा है। सामने शिवलिंग है और बगल में राइफल संगीन के जरिये बर्फ में गड़ी है। बच्चा हाथ जोड़े बैठा है| स्कूल जाते हुए बच्चे का चित्र नहीं है| पाकिस्तान में भी स्कूल जाते बच्चे का चित्र नहीं मिलेगा| चीन में भी नहीं।
यों ये सभी बच्चे अभागे हैं, दुनिया भर के, जिनके सामने इनके बुजुर्ग राइफल और देवता को रख देते हैं| यह मेरे सामने का बच्चा भी कम अभागा नहीं है। इसके हिस्से का दूध राइफल पी रही है।
बहुत वल्गर है यह चित्र। मगर यह देशभक्ति का चित्र है। मुझे लगता है, दुनिया में कहीं का हो, देशभक्त थोड़ा 'वल्गर' होता ही है"
चार पांच दिन सास ससुर के साथ रही। फिर पति नीरज के साथ जहां उसकी नौकरी थी, चली गई।
दो साल बाद ससुर रिटायर हो गए तो वो और सास भी सुमन और नीरज के साथ जाकर रहने लगे। सुमन पूरा दिन सास ससुर की जरुरतों का ध्यान रखती जैसे उसके मायके में उसकी मां उसकी दादी का ध्यान रखती थी।
पर एक दिन सुमन ने सुना, सासू मां, ससुर जी से कह रही थी, सुमन हमे दूध में पानी मिलाकर देती है।
सुमन ने इसका हल निकाला वो किसी बहाने से सारा दूध का पतीला सासू मां के पास ले जाती और वही उनको डाल कर दे देती।
फिर एक दिन सासू मां फोन पर अपनी बेटी को कह रही थी कि यह सुमन हमें देसी घी बहुत कम डाल कर देती है। बस ऊपर ऊपर दिखावा कर देती है।
सुमन ने अगले ही दिन पूरा देसी घी का डिब्बा सास ससुर के कमरे में रख दिया, यह कहकर कि मैं कई बार घर पर नहीं होती तो आपको ढूंढने में दिक्कत होती है।
जब खत्म हो जाएगा तो दूसरा रख दूंगी।
कुछ दिन बाद सासू मां ससुर से कह रही थी, नीरज इतना फल लाता है। हमें तो थोड़ा सा देती है। सारा खुद ही खा जाती होगी।'
सुमन ने सुना और अगले दिन फ्रिज सास ससुर के कमरे में रखवा दिया, कहने लगी, आपको पानी, दूध, फल लेने के लिए इतनी दूर नहीं जाना पड़ेगा।
इस उम्र में आपको वहा तक जाने मे दिक्कत होती है। मैं तो यही से आकर ले जाया करूंगी। '
सुमन के जाने के बाद ससुर बोला, ' अब तो ठीक है। सब कुछ तेरे कमरे में रख दिया सुमन ने।
यह सब तो ठीक है जी, पर मुझे शक है, गड़बड़ तो करती ही होगी- - आखिर बहू है।'
गड़बड़ वह नहीं करती। गड़बड़ तेरे दिमाग में है क्योंकि तू खुद जैसी बहू रही वैसा अपनी बहू के बारे में सोच रही है। वहम का इलाज तो लुकमान हकीम के पास भी नही था-
ससुर बोले जा रहे थे और सासू की अंतरात्मा उससे कह रही थी कि शायद यही सत्य है।
पत्नी के अंतिम संस्कार व तेरहवीं के बाद रिटायर्ड पोस्टमैन मनोहर गाँव छोड़कर मुम्बई में अपने पुत्र सुनील के बड़े से मकान में आये हुए हैं।
सुनील बहुत मनुहार के बाद यहाँ ला पाया है यद्यपि वह पहले भी कई बार प्रयास कर चुका था किंतु मां ही बाबूजी को यह कह कर रोक देती थी कि 'कहाँ वहाँ बेटे बहू की ज़िंदगी में दखल देने चलेंगे यहीं ठीक है
सारी जिंदगी यहीं गुजरी है और जो थोड़ी सी बची है उसे भी यहीं रह कर काट लेंगे ठीक है न'
बस बाबूजी की इच्छा मर जाती पर इस बार कोई साक्षात अवरोध नहीं था और पत्नी की स्मृतियों में बेटे के स्नेह से अधिक ताकत नहीं थी , इसलिए मनोहर बम्बई आ ही गए हैं
सुनील एक बड़ी कंस्ट्रक्शन कम्पनी में इंजीनियर है उसने आलीशान घर व गाड़ी ले रखी है
घर में घुसते ही मनोहर ठिठक कर रुक गए गुदगुदी मैट पर पैर रखे ही नहीं जा रहे हैं उनके दरवाजे पर उन्हें रुका देख कर सुनील बोला - "आइये बाबूजी, अंदर आइये"
"बेटा, मेरे गन्दे पैरों से यह कालीन गन्दी तो नहीं हो जाएगी"
- "बाबूजी, आप उसकी चिंता न करें। आइये यहाँ सोफे पर बैठ जाइए।"
सहमें हुए कदमों में चलते हुए मनोहर जैसे ही सोफे पर बैठे तो उनकी चीख निकल गयी - अरे रे! मर गया रे!
उनके बैठते ही नरम औऱ गुदगुदा सोफा की गद्दी अन्दर तक धँस गयी थी। इससे मनोहर चिहुँक कर चीख पड़े थे।
चाय पीने के बाद सुनील ने मनोहर से कहा - "बाबूजी, आइये आपको घर दिखा दूँ अपना।"
- "जरूर बेटा, चलो।"
- "बाबू जी, यह है लॉबी जहाँ हम लोग चाय पी रहे थे। यहाँ पर कोई भी अतिथि आता है तो चाय नाश्ता और गपशप होती है। यह डाइनिंग हाल है। यहाँ पर हम लोग खाना खाते हैं। बाबूजी, यह रसोई है और इसी से जुड़ा हुआ यह भण्डार घर है। यहाँ रसोई से सम्बंधित सामग्री रखी जाती हैं। यह बच्चों का कमरा है।"
- "तो बच्चे क्या अपने माँ बाप के साथ नहीं रहते?"
- बाबूजी, यह शहर है और शहरों में मुंबई है। यहाँ बच्चे को जन्म से ही अकेले सोने की आदत डालनी पड़ती है। माँ तो बस समय समय पर उसे दूध पिला देती है और उसके शेष कार्य आया आकर कर जाती है।"
थोड़ा ठहर कर सुनील ने आगे कहा,"बाबूजी यह आपकी बहू और मेरे सोने का कमरा है और इस कोने में यह गेस्ट रूम है। कोई अतिथि आ जाए तो यहीं ठहरता है। यह छोटा सा कमरा पालतू जानवरों के लिए है। कभी कोई कुत्ता आदि पाला गया तो उसके लिए व्यवस्था कर रखी है।"
सीढियां चढ़ कर ऊपर पहुँचे सुनील ने लम्बी चौड़ी छत के एक कोने में बने एक टीन की छत वाले कमरे को खोल कर दिखाते हुए कहा - "बाबूजी यह है घर का कबाड़खाना। घर की सब टूटी फूटी और बेकार वस्तुएं यहीं पर एकत्र कर दी जाती हैं। और दीवाली- होली पर इसकी सफाई कर दी जाती है। ऊपर ही एक बाथरूम और टॉइलट भी बना हुआ है।"
मनोहर ने देखा कि इसी कबाड़ख़ाने के अंदर एक फोल्डिंग चारपाई पर बिस्तर लगा हुआ है और उसी पर उनका झोला रखा हुआ है। मनोहर ने पलट कर सुनील की तरफ देखा किन्तु वह उन्हें वहां अकेला छोड़ सरपट नीचे जा चुका था।
मनोहर उस चारपाई पर बैठकर सोचने लगे कि 'कैसा यह घर है जहाँ पाले जाने वाले जानवरों के लिए अलग कमरे का विधान कर लिया जाता है किंतु बूढ़े माँ बाप के लिए नहीं। इनके लिए तो कबाड़ का कमरा ही उचित आवास मान लिया गया है। नहीं.. अभी मैं कबाड़ नहीं हुआ हूँ। सुनील की माँ की सोच बिल्कुल सही था। मुझे यहाँ नहीं आना चाहिए था।'
अगली सुबह जब सुनील मनोहर के लिए चाय लेकर ऊपर गया तो कक्ष को खाली पाया। बाबू जी का झोला भी नहीं था वहाँ। उसने टॉयलेट व बाथरूम भी देख लिये किन्तु बाबूजी वहाँ भी नहीं थे वह झट से उतर कर नीचे आया तो पाया कि मेन गेट खुला हुआ है उधर मनोहर टिकट लेकर गाँव वापसी के लिए सबेरे वाली गाड़ी में बैठ चुके थे उन्होंने कुर्ते की जेब में हाथ डाल कर देखा कि उनके 'अपने घर' की चाभी मौजूद थी उन्होंने उसे कस कर मुट्ठी में पकड़ लिया चलती हुई गाड़ी में उनके चेहरे को छू रही हवा उनके इस निर्णय को और मजबूत बना रही थी और घर पहुँच कर चैन की सांस ली
💐💐#शिक्षा💐💐
दोस्तों,जीवन मे अपने बुजुर्ग माता पिता का उसी प्रकार ध्यान रखे जिस प्रकार माता पिता बचपन मे आपका ध्यान रखते थे,क्योकि एक उम्र के बाद बचपन फिर से लौट आता है इसलिए उस पड़ाव पर व्यस्त जिंदगी में से समय निकाल कर उन्हें भी थोड़ा समय दीजिये,अच्छा लगेगा।
बचपन से लेकर आज तक हजारों बार इस कहावत को सुना था कि "कहां राजा भोज- कहां गंगू तेली"। आमतौर पर यह ही पढ़ाया और बताया जाता था कि इस कहावत का अर्थ अमीर और गरीब के बीच तुलना करने के लिए है।
पर भोपाल जाकर पता चला कि कहावत का दूर-दूर तक अमीरी- गरीबी से कोई संबंध नहीं है। और ना ही कोई गंगू तेली से संबंध है। आज तक तो सोचते थे कि किसी गंगू नाम के तेली की तुलना राजा भोज से की जा रही है। यह तो सिरे ही गलत है, बल्कि गंगू तेली नामक शख्स तो खुद राजा थे।
जब इस बात का पता चला तो आश्चर्य की सीमा न रही साथ ही यह भी समझ आया यदि घुमक्कड़ी ध्यान से करो तो आपके ज्ञान में सिर्फ वृद्धि ही नहीं होती बल्कि आपको ऐसी बातें पता चलती है जिस तरफ किसी ने ध्यान ही नहीं दिया होता और यह सोचकर हंसी भी आती है यह कहावत हम सब उनके लिए सबक है जो आज तक इसका इस्तेमाल अमीरी गरीबी की तुलना के लिए करते आए हैं।
इस कहावत का संबंध मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल और उसके जिला धार से है। भोपाल का पुराना नाम भोजपाल हुआ करता था। भोजपाल, नाम धार के राजा भोजपाल से मिला।
समय के साथ इस नाम में से "ज" शब्द गायब हो गया और नाम भोपाल बन गया।
अब बात करते हैं कहावत की! कहते हैं, कलचुरी के राजा गांगेय (अर्थात गंगू) और चालुक्य राजा तेलंग (अर्थात तेली) ने एक बार राजा भोज के राज्य पर हमला कर दिया। इस युद्ध में राजा भोज ने इन दोनों राजाओं को हरा दिया।
उसी के बाद व्यंग्य के तौर पर यह कहावत प्रसिद्ध हुई "कहां राजा भोज-कहां गंगू तेली"।
तालाब ***** गांव के बाहर एक बूढ़ा तालाब था उसके चारों तरफ हरा-भरा बाग था तरह-तरह के पक्षी नजर आ जाते थे तालाब के दक्षिण तरफ जो हिस्सा था जहां कोई जाता नहीं था वहाँ बहुत सारे कंटीले पेड़ थे उधर बच्चों का जाना माना था सबका मानना यही था वहाँ जहरीले सांप रहते हैं उसका यह हिस्सा पथरीला था नागफनी के लिए ही जैसे उसने सहेज रखा था ऐसे ही सबकी अपनी एक निश्चित जगह थी जो तालाब के किस तरफ है इससे उसकी पहचान निर्धारित हो जाया करती थी तालाब के हर तरफ कुछ न कुछ अनोखा था जो अपनी एक जगह रखता था वह जगह उसके लिए खास थी नहीं-नहीं उस जगह की उससे पहचान थी जगह का मतलब समझते हैं अरे वही जमीन यकीन मानिए जो जहां ... जितने में था पूरा था बच्चे बूढ़े तफरी के लिए तालाब किनारे घंटो बैठे रहा करते उसमें कुछ लोग मछली पकड़ने आते कई घंटे कांटे लगाए रहते यह वक्त बिताने का खेल अच्छा था मछली फंस गई तो ठीक नहीं तो बड़े आराम से पूरा दिन गुजर जाता था ऐसे ही तालाब का साथ मिल जाता था बातों के विषय कोई निश्चित नहीं थे रोज बात करना था सब-सब के बारे में सब कुछ जानते थे गांव का एक बड़ा हिस्सा तालाब के पास था तालाब की अपनी एक...
अधूरा एक बात कहूंँ मैं कभी मुकम्मल नहीं होना चाहता क्योंकि मेरा अधूरापन ही मुझे तुम्हारे साथ बनाए रखता है खुदा बनने की चाहत पत्थर बना देगी सुख-दुख का फर्क मिटा देगी मैं हंसना चाहता हूंँ रोना चाहता हूंँ मुझे झगड़ना है उलाहने देना हैं पीठ पीछे उसके बारे में तमाम बातें करनी हैं यही ढ़ेर सारी कमियां मुझे इंसान बनाए रखती हैं फिर मैं क्यों बन जाऊं खुदा जब जिंदगी में जिंदादिली इसी से आती है मैं अपनी नाकामियों का बोझ भी उठाना चाहता हूंँ जरा जरा सी बात पर मुस्कुराना चाहता हूं यह अधूरेपन के बिना संभव नहीं है मैं क्यों पहुंच जाऊं सबसे ऊंची जगह जहां मेरे सिवा कोई नहीं हो मैं अपनों के साथ रहना चाहता हूंँ यह ताकत और ऊंचाई अकेला कर देती है कभी-कभी अधिक समझदारी भी वहीं पर ले जाती है जहां कुछ भी कहने को बचता नहीं है फिर अपनों के साथ रहकर भी मौन पसर जाता है क्योंकि सब समझदार है सब जानते हैं एक दूसरे को समझाने की जरूरत कहांँ रह जाती है? सबकी अपनी दुनिया है उसमें खोए हुए हैं यह जिंदगी कितनी बेहतर है बेहतरीन ढंग से चल रही है वही अपने-अपने रास्ते इसके सिवा कुछ भी नहीं है सबने अपने नजरिए से एक दूसरे को ...
रावण अद्भुत रावण ए बताओ त्रेता से कलयुग तक कैसा रहा सफर तुम्हारा मर कर भी तुम मरे नहीं दसों शीश वैसे ही बरकरार कैसे रखे हर साल जलाएं तुमको जलकर भी तुम जले नहीं हर बार तरोताजा होकर वैसे ही हो अड़े फोटो वीडियो के लिए तुम सबसे आकर्षक हो तुम जैसा ही बनना चाहें सबके आदर्श तुम्हीं हो इतने सारे सर कैसे मैनेज करते हो तेरी ही चर्चा में खूब मजा आता है वायरल की दुनिया में कोई नहीं तुमसा है तुम ही हो सब के गुरु सबके दिल में रहते हो रावण का जयकार करो रावण रावण कहते हैं रावण के दसों शीश अट्टहास करते हैं इनके ही चर्चे हैं खबरों में यही हरदम रहते हैं तभी एक सर पर नजर पड़ी पहचान लिया झट से यह सर तो अफसर का है भ्रष्टाचार का मसीहा है लाचार बेबस का ही सबसे पहले हिस्सा खाता है अरे अपने नेताजी भी मौजूद इसी में है सफेद भेष में रहकर काम काले करते हैं यह काम उनका पुश्तैनी है पूरी रियासत इनकी है अरे बच्चा ई देखो अपने मास्टर साहब हैं प्राइमरी से यूनिवर्सिटी तक सब जगह रहते हैं सरकारी सेवा में अच्छी खासी संख्या हैं जांच लो अपना काम खुद ही कोई और कहे क्या अच्छा है? वर्दी वाला मूंछों पर ताव कैसे दे रहा है...
सूखा दरख़्त हर किसी के लिए, एक मियाद तय है, जिसके दरमियाँ सब होता है, किसी बाग में, आज एक दरख्त सूख गया, हलांकि अब भी, उस पर चिड़ियों का घोसला है, शायद उसके हरा होने की उम्मीद, अब भी कहीं जिंदा है, मगर इस दुनियादारी से बेवाकिफ, इन आसमानी फरिश्तों को, कौन समझाए? अपनी उम्र पार करने के बाद, भला कौन ठहरता है? किसी बगीचे में, पौधे की कदर तभी तक है, जब तक वह हरा है, उसके सूखते ही, उसको उसकी जगह से, रुखसत करने की, तैयारी होने लगती है ऐसे ही उस पर, कुल्हाड़ियां पड़ने लगी, बेजान सूखा दरख्त, आहिस्ता-आहिस्ता बिखरने लगा, वह किसका दरख्त है, अब यह सवाल कोई नहीं पूछता, क्योंकि सूखी लकड़ियां, किस पेड़ की हैं, इस बात से कोई मतलब नहीं है, बस उन्हें ठीक से जलना चाहिए, जबकि हर दरख़्त की, एक जैसी दास्तान है, वह अपने लिए, कभी कु...
समुंदर जो तुम्हारी हद और पहुंच में नहीं है उसे बांधने की कोशिश नाहक कर रहे हो सोच लो समुंदर बांधने निकले हो जिसकी कोई पैमाइश नहीं है समुंदर सच है यह जान लो सपने देखने में कोई बुराई नहीं है जागती आंखों को उजाले की आदत पड़ने दो दिन की हकीकत से दो चार होने दो रात आएगी और नींद भी हसीन सपनों को वहीं रहने दो ********** 👇👇👇 click Images ************ उन सपनों कि याद सुबह तक बची रह जाए तो हंसना है भूल जाए तो अच्छा है कौन रोज याद रखे इस खयाली दुनिया को सच से रूबरू हो जा सफर लम्बा है चल अब कहीं और चलें जब तुम नदी के किनारे बैठकर सिर्फ दुनिया की सोचते हो उसकी तलहटी में जा नहीं सकते नदी दूर से कितनी समझ आएगी जिसे सिर्फ देखकर समझा नहीं जा सकता उसकी अपनी एक दुनिया है जिसे नदी ने बनाया संभाल रखा है जिसने जिंदगी में कभी समुंदर देखा नहीं है किसी ने कोई कहानी सुना दी है समुद्र की तुम्हें लगता है तुम बांध लोगे उसे ...
फकीर ********* फकीर के हँसने का सिलसिला, कठघरे में भी चलता रहा, लोग उसको पागल कहने लगे, जबकि शहर में हर तरफ, उसी का चर्चा है, भला फकीर से किसको खतरा है, उसके पास तो कोई झोली भी नहीं है, जिसमें कुछ रखा हो, या भरके ले जाता। वह तो एक दम खाली हाथ, फक्कड़, बेपरवाह, लगभग अवारा है, फिर वह गिरफ्तार क्यों हो गया, कहीं कोई और बात तो नहीं है? ए फकीर हो सकता है बहुरूपिया हो, नहीं तो भला, सरकार का उससे क्या वास्ता है, सड़क की खाक छानने वालों की कोई कमी तो नहीं है, रोजी-रोटी की जंग तो वैसे ही जारी है। सुनने में तो ए आ रहा है फकीर की बदजुबानी से, शहर का काजी, सबसे ज्यादा परेशान था, सवाल ए भी है, वो भागा क्यों नहीं? जब यहाँ पर उसकी होने की, कोई वाजिब वजह नहीं है, वो तो कहीं भी किसी भी, खानकाह का हो लेता, पर उसने ऐसा नहीं किया, उसके सामने भी ...
गडरिया गडरिया बेपरवाह दिखता है उसके पास भेड़ बकरियों की अच्छी खासी तादाद है उसके हाथ में एक लंबी सी लठ्ठ है जिससे उनको हांकता है बकरियों को लठ्ठ और गडरिए की आदत हो गई है वह कोई आवाज निकालता है बकरियां उसका मायने समझ जाती है जिधर जा रही थी अब वह रास्ता बदल देती हैं गडरिया एकदम शांत किसी छांव में बैठ जाता है भेड़-बकरियां निश्चिंत अपने काम में लग गई हैं इस तपती दुपहरी में कुछ न कुछ खाने को मिल जाता है गडरिया दूर से उन पर नजर गड़ाए रखता है किसी अनचाहे जगह पर जाने से उन्हें रोकना है इनकी समझ बड़ी अनोखी है कोई एक जिस तरफ चल दे तो बाकी भी उसके पीछे चल देती हैं इसलिए बस उसी एक को राह भटकने से उसे रोकना है यह जिम्मेदारी गडरिया की रहती है इसके लिए उसके पास उसका लठ्ठ जरूरी है हम भी इन्हीं भेड़ों की तरह अपने काम में लगे हैं दूर गडरिया हम पर नजर गड़ाए बैठा हैं वह हमें न जाने कहां-कहां लेकर जात...
ए रूआँसा कर जाने वाली खबरें
ReplyDeleteअच्छी नहीं लगती
हम ऐसे हैं
यह देखकर बहुत दुख होता है
ऐसा ही है
Deleteऔरत ने जनम दिया मर्दों को,
Deleteमर्दों ने उसे बाजार दिया ,
जब जी चाहा मचला कुचला ,
जब जी चाहा दुत्कार दिया,
©️साहिर लुधियानवी
औरत ने जनम दिया मर्दों को,
ReplyDeleteमर्दों ने उसे बाजार दिया ,
जब जी चाहा मचला कुचला ,
जब जी चाहा दुत्कार दिया,
©️साहिर लुधियानवी