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....  to मणिपुर  

Manipur Violence

तुम जिंदा नहीं हो

तुममे 
आदमी होने का दंभ 
खोखला है 
क्योंकि तुम जिंदा नहीं हो 
इतना गिर गए हो 
मुर्दा कहलाने लायक नहीं हो 
यह जो तुमने किया है 
पहली बार नहीं है 
ऐसा तो कब से 
होता आया है 
जगह कौन सी है 
क्या फर्क पड़ता है 
जरा सा शोर है 
फिर सब पहले जैसा हो जाएगा 
वह कोई और नहीं 
मेरी माँ बहन बेटी है 
बस इतनी सी बात समझनी है 
जिसकी पहली शर्त यही है 
हम जिंदा हों 
सोचिए पूरी भीड़ में 
एक भी आदमी 
आदमी नहीं था 
और उनमें कोई 
जिंदा नहीं था
©️Rajhansraju  
*****


पुरुषवादी मानसिकता 
*******
महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा को समझना हो तो वही पुरुषवादी मानसिकता पहले समझनी होगी। जब तक यह विकृत सोच समाज के किसी भी कोने में रहेगी ऐसी घटनाएं होती रहेंगी और हमें ऐसे ही शर्मशार होते रहना पड़ेगा। इस बात का जवाब काफी पहले साहिर लुधियानवी के नज़्म में देखने को मिलती है-

औरत ने जनम दिया मर्दों को,
मर्दों ने उसे बाजार दिया ,
जब जी चाहा मचला कुचला ,
जब जी चाहा दुत्कार दिया,
 ©️साहिर लुधियानवी

आइए जिंदा रहने कि कोशिश करते हैं और यदि जिंदा हैं तो शर्मिंदा होना ही पड़ेगा और हम ऐसे ही इंसानियत के जानाजे में शामिल होते रहेंगे और हममें से कुछ बे-हया लोग, हमेशा कि तरह वह सही हैं इसके लिए कोई और जिम्मेदार है वाला खेल खेलते रहेंगे। ऐसे बिमार लोग सिर्फ सहानुभूति के पात्र हैं। 

मेरे बच्चों हमे माफ मत करना, हमें जो करना चाहिए था हम नहीं कर पाए उसे तुम करना क्योंकि हम तुम्हारे लिए एक बेहतर दुनिया नहीं बना पाए। हमारे सारे दावे झूठे और खोखले निकले और यह हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी थी कि हम मिलके इसे खूबसूरत बनाते, पर हम नाकाम रहे और अब भी हम उतने हिंसक,बर्बर और असभ्य हैं जिसे तुम देख रहे हो, सच तो यह है कि हमारे सफाई देने के लिए शब्द नहीं है
©️Rajhansraju

🌹🌹🌹🌹🌹

लड़ाई 
*****

ऐसा लगा 
उनके आवाज 
और कंधे में दम है 
इंसाफ होकर रहेगा 
भीड़ बढ़ने लगी 
शोर मचाने लगा 
फिर अचानक सब थम गया 
बहुत सारे लोग
सही साबित हो गए 
कुछ नहीं होगा 
यही तो कह रहे थे 
कौन सही कौन गलत 
अब तक कुछ साबित नहीं हुआ 
सब ठीक लगने लगा है 
पहले जैसा चलने लगा है 
जो समझ रहे हैं ना
बात वही है 
सबको अपना अपना हिस्सा 
मिल गया है
©️Rajhansraju 
******


नेतागीरी 
******
उसकी दुकान पुरानी.. 
धंधा पुश्तैनी है 
सारा बाजार उसी का 
वही मालिक है 
अब तक यही देखा... 
यही समझ आया है.. 
जो चाहे खरीदे बेचे 
सब उसके मन का है 
जैसा वह चाहे 
सब 
वैसे ही चलता है.... 
उसकी दुकान पुरानी.... 
धंधा पुश्तैनी है.... 
तभी आया बाजार में 
एक नया खिलाड़ी 
जो नहीं बिका 
नहीं हुआ है 
कैसे हो सकता है 
इस उम्मीद को उसने पर बांधे 
सपनों को दे दिया उड़ान 
नयी दुकान सज गई है 
हर जगह चर्चा में है 
पुश्तैनी परेशान बहुत है
दुकान में ग्राहक नहीं है 
जबकि पुराना सामान बहुत है 
जिनका वक्त पे 
बिकना 
आसान नहीं है 
उसकी दुकान पुरानी.. 
धंधा पुश्तैनी है... 
तभी 
नए सेल्समैन ने 
एक तरकीब निकाली 
पूरे बाजार में 
फ्री और सेल की 
पोस्टर लगवा दी... 
दुकान का नाम बदलकर 
मोहब्बत 
रख दी
उसकी दुकान पुरानी... 
धंधा पुश्तैनी है... 
©️Rajhansraju


दुकानदारी 
******
बाजार की सबसे पुरानी दुकान 
जिसने अबतक खूब कमाई की 
उसमें आजकल ग्राहकों की कमी है 
जबकि उसी बाजार में 
नए दुकानदारों ने 
पुराने सामान कि नई पैकेजिंग की है 
ए भी सच है कि 
किसी के पास कोई सामान 
नया नहीं है 
फिर व्यापार पहले जैसा क्यों नहीं है 
पुरानी दुकान के मालिक ने
खूब सर्वे किया 
नये salesman appoint किया 
अपनी दुकान का नाम 
मोहब्बत 
रख दिया 
बड़े-बड़े अक्षरों में लिखवा दिया 
मकसद  
वही मुनाफा है 
जो खरीदने और बेचने के 
हुनर से आता है। 
जबकि नया दुकानदार 
खुद salesman है 
जो खुदको मालिक नहीं समझता है 
शायद यही वजह है कि 
पुराने से कयी कदम आगे रहता है। 
इस समय बाजार में बड़ी हलचल है
ग्राहकों के लिए
ढ़ेर सारे Free के offer हैं
Sale लगी है
अंधेरे के साथ चमक और भीड़ 
बढ़ती जा रही है
एक भी दुकान खाली नहीं है 
फिर भी दुकानदार खुश नहीं है 
वह अच्छी तरह जानते है 
यह window shopping का जमाना है 
लोग आते हैं परखते है 
कुछ खरीदते नहीं। 
ग्राहक भी दुकानदार के 
रग-रग से वाकिफ है 
उन्हें मालूम है बाजार की हकीकत 
जहाँ जो लिखा है 
वहाँ भी वो चीज मिलती नहीं है 
©️Rajhansraju 
🙏🙏🙏🌹🌹🙏🙏


हमारी हकीकत 
*******
औरत ने जनम दिया मर्दों को, 
मर्दों ने उसे बाजार दिया, 
जब जी चाहा मसला कुचला, 
जब जी चाहत कार दिया, 
तुलती है कहीं दीनारों में, 
बिकती है कहीं बाजारों में, 
नंगी नाचवाई जाती है, 
अय्याशों के दरबारों में, 
ये वो बेइज्जत चीज है, 
जो बंट जाती है इज्जतदारो में, 
मर्दों के लिए हर जुल्म रवा, 
औरतों के लिए रोना भी खता, 
मर्दों के लिए हर ऐश का हक, 
औरत के लिए जीना भी सजा, 
जिन सीनों ने इनको दूध दिया, 
उन सीनों का व्यापार किया, 
जिस कोख में इनका जिस्म ढला, 
उस कोख का कारोबार किया, 
जिस तन में उगे कोंपल बनकर, 
उस तन को जलीलो-ख्वार किया, 
मर्दों ने बनाई जो रस्में, 
उनको हक का फरमान कहा, 
औरत के जिंदा जलने को, 
कुर्बानी और बलिदान कहा, 
इस्मत के बदले रोटी दी, 
और उसको भी अहसान कहा, 
संसार की हरकत बेशर्मी, 
गुर्बत की गोद में पलती है, 
चकलों में ही आकर रूकती है, 
फाको से जो राह निकलती है, 
मर्दों की हवस है, जो अक्सर, 
औरत के पाप में ढलती है, 
औरत संसार की किस्मत है, 
फिर भी तकदीर की हेठी है, 
अवतार, पयंबर जनती है 
फिर भी शैतान की बेटी है 
ये वो बदकिस्मत मां है, 
जो बेटों के सेज पर लेटी है, 
औरत ने जनम दिया मर्दों को, 
मर्दों ने उसे बाजार दिया, 
जब जी चाहा मसला-कुचला, 
जब जी चाहा दुत्कार दिया
©️साहिरलुधियानवी 
*********
🌹❤️❤️🙏🙏🙏🌹🌹

देशभक्ति 
"मेरे सामने एक कैलेंडर टंगा है| तस्वीर में एक बच्चा फौजी पोशाक पहने बर्फ पर बैठा है। सामने शिवलिंग है और बगल में राइफल संगीन के जरिये बर्फ में गड़ी है। बच्चा हाथ जोड़े बैठा है| स्कूल जाते हुए बच्चे का चित्र नहीं है| पाकिस्तान में भी स्कूल जाते बच्चे का चित्र नहीं मिलेगा| चीन में भी नहीं। 
यों ये सभी बच्चे अभागे हैं, दुनिया भर के, जिनके सामने इनके बुजुर्ग राइफल और देवता को रख देते हैं| यह मेरे सामने का बच्चा भी कम अभागा नहीं है। इसके हिस्से का दूध राइफल पी रही है। 
बहुत वल्गर है यह चित्र। मगर यह देशभक्ति का चित्र है। मुझे लगता है, दुनिया में कहीं का हो, देशभक्त थोड़ा 'वल्गर' होता ही है"
~ हरिशंकर परसाई



सनातन शोध 

विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र (ऋषि मुनियों द्वारा किया गया अनुसंधान)

■ काष्ठा = सैकन्ड का  34000 वाँ भाग
■ 1 त्रुटि  = सैकन्ड का 300 वाँ भाग
■ 2 त्रुटि  = 1 लव ,
■ 1 लव = 1 क्षण
■ 30 क्षण = 1 विपल ,
■ 60 विपल = 1 पल
■ 60 पल = 1 घड़ी (24 मिनट ) ,
■ 2.5 घड़ी = 1 होरा (घन्टा )
■3 होरा=1प्रहर व 8 प्रहर 1 दिवस (वार)
■ 24 होरा = 1 दिवस (दिन या वार) ,
■ 7 दिवस = 1 सप्ताह
■ 4 सप्ताह = 1 माह ,
■ 2 माह = 1 ऋतू
■ 6 ऋतू = 1 वर्ष ,
■ 100 वर्ष = 1 शताब्दी
■ 10 शताब्दी = 1 सहस्राब्दी ,
■ 432 सहस्राब्दी = 1 युग
■ 2 युग = 1 द्वापर युग ,
■ 3 युग = 1 त्रैता युग ,
■ 4 युग = सतयुग
■ सतयुग + त्रेतायुग + द्वापरयुग + कलियुग = 1 महायुग
■ 72 महायुग = मनवन्तर ,
■ 1000 महायुग = 1 कल्प
■ 1 नित्य प्रलय = 1 महायुग (धरती पर जीवन अन्त और फिर आरम्भ )
■ 1 नैमितिका प्रलय = 1 कल्प ।(देवों का अन्त और जन्म )
■ महालय  = 730 कल्प ।(ब्राह्मा का अन्त और जन्म )

सम्पूर्ण विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र यहीं है 
जो हमारे देश भारत में बना हुआ है । ये हमारा भारत जिस पर हमे गर्व होना चाहिये l
दो लिंग : नर और नारी ।
दो पक्ष : शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष।
दो पूजा : वैदिकी और तांत्रिकी (पुराणोक्त)।
दो अयन : उत्तरायन और दक्षिणायन।
तीन देव : ब्रह्मा, विष्णु, शंकर।
तीन देवियाँ : महा सरस्वती, महा लक्ष्मी, महा गौरी।
तीन लोक : पृथ्वी, आकाश, पाताल।
तीन गुण : सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण।
तीन स्थिति : ठोस, द्रव, वायु।
तीन स्तर : प्रारंभ, मध्य, अंत।
तीन पड़ाव : बचपन, जवानी, बुढ़ापा।
तीन रचनाएँ : देव, दानव, मानव।
तीन अवस्था : जागृत, मृत, बेहोशी।
तीन काल : भूत, भविष्य, वर्तमान।
तीन नाड़ी : इडा, पिंगला, सुषुम्ना।
तीन संध्या : प्रात:, मध्याह्न, सायं।
तीन शक्ति : इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्ति।


चार धाम : बद्रीनाथ, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम्, द्वारका।
चार मुनि : सनत, सनातन, सनंद, सनत कुमार।
चार वर्ण : ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र।
चार निति : साम, दाम, दंड, भेद।
चार वेद : सामवेद, ॠग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद।
चार स्त्री : माता, पत्नी, बहन, पुत्री।
चार युग : सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग, कलयुग।
चार समय : सुबह, शाम, दिन, रात।
चार अप्सरा : उर्वशी, रंभा, मेनका, तिलोत्तमा।
चार गुरु : माता, पिता, शिक्षक, आध्यात्मिक गुरु।
चार प्राणी : जलचर, थलचर, नभचर, उभयचर।
चार जीव : अण्डज, पिंडज, स्वेदज, उद्भिज।
चार वाणी : ओम्कार्, अकार्, उकार, मकार्।
चार आश्रम : ब्रह्मचर्य, ग्राहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास।
चार भोज्य : खाद्य, पेय, लेह्य, चोष्य।
चार पुरुषार्थ : धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष।
चार वाद्य : तत्, सुषिर, अवनद्व, घन।

पाँच तत्व : पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल, वायु।
पाँच देवता : गणेश, दुर्गा, विष्णु, शंकर, सुर्य।
पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा।
पाँच कर्म : रस, रुप, गंध, स्पर्श, ध्वनि।
पाँच  उंगलियां : अँगूठा, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा।
पाँच पूजा उपचार : गंध, पुष्प, धुप, दीप, नैवेद्य।
पाँच अमृत : दूध, दही, घी, शहद, शक्कर।
पाँच प्रेत : भूत, पिशाच, वैताल, कुष्मांड, ब्रह्मराक्षस।
पाँच स्वाद : मीठा, चर्खा, खट्टा, खारा, कड़वा।
पाँच वायु : प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान।
पाँच इन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा, मन।
पाँच वटवृक्ष : सिद्धवट (उज्जैन), अक्षयवट (Prayagraj), 
बोधिवट (बोधगया), वंशीवट (वृंदावन), साक्षीवट (गया)।

पाँच पत्ते : आम, पीपल, बरगद, गुलर, अशोक।
पाँच कन्या : अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती, द्रौपदी।

छ: ॠतु : शीत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, बसंत, शिशिर।
छ: ज्ञान के अंग : शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष।
छ: कर्म : देवपूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, दान।
छ: दोष : काम, क्रोध, मद (घमंड), लोभ (लालच),  मोह, आलस्य।

सात छंद : गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप, वृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप, जगती।
सात स्वर : सा, रे, ग, म, प, ध, नि।
सात सुर : षडज्, ॠषभ्, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद।
सात चक्र : सहस्त्रार, आज्ञा, विशुद्ध, अनाहत, मणिपुर, 
स्वाधिष्ठान, मुलाधार।
सात वार : रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि।
सात मिट्टी : गौशाला, घुड़साल, हाथीसाल, राजद्वार, 
बाम्बी की मिट्टी, नदी संगम, तालाब।
सात महाद्वीप : जम्बुद्वीप (एशिया), प्लक्षद्वीप, शाल्मलीद्वीप, 
कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप, पुष्करद्वीप।


कविता 

पेड़ों के लिए लिखी कविता-
काग़ज़ तक पहुँचती है,
पेड़ों तक नहीं।
शोषितों के लिए लिखी कविता-
गोष्ठियों तक पहुँचती है, 
शोषितों तक नहीं।
ईश्वर के लिए लिखी कविता-
फ़साद तक पहुँचती है, 
ईश्वर तक नहीं।
प्रेयस के लिए लिखी कविता-
ईश्वर तक पहुँचती है, 
प्रेयस तक नहीं।
(बाबुषा कोहली)



एक बाज की कहानी 

"बाज लगभग 70 वर्ष जीता है ....

परन्तु अपने जीवन के 40वें वर्ष में आते-आते उसे एक महत्वपूर्ण निर्णय लेना पड़ता है ।

उस अवस्था में उसके शरीर के 3 प्रमुख अंग निष्प्रभावी होने लगते हैं .....

पंजे लम्बे और लचीले हो जाते है,तथा शिकार पर पकड़ बनाने में अक्षम होने लगते हैं ।

चोंच आगे की ओर मुड़ जाती है और भोजन में व्यवधान उत्पन्न करने लगती है ।

पंख भारी हो जाते हैं और सीने से चिपकने के कारण पूर्णरूप से खुलनहीं पाते हैं जोकि उसकी उड़ान को सीमित कर देते हैं ।

भोजन ढूँढ़ना, भोजन पकड़ना और भोजन खाना ..

तीनों प्रक्रियायें अपनी धार खोने लगती हैं ।

उसके पास तीन ही विकल्प बचते हैं....

1. देह त्याग दे,

2. अपनी प्रवृत्ति छोड़ गिद्ध की तरह त्यक्त भोजन पर निर्वाह करे !!

3. या फिर "स्वयं को पुनर्स्थापित करे" !!

आकाश के निर्द्वन्द एकाधिपति के रूप में, जहाँ पहले दो विकल्प सरल और त्वरित हैं और अंत में बचता है तीसरा लम्बा और अत्यन्त पीड़ादायी रास्ता ।

बाज चुनता है तीसरा रास्ता ..

और स्वयं को पुनर्स्थापित करता है ।

वह किसी ऊँचे पहाड़ पर जाता है, एकान्त में अपना घोंसला बनाता है ..

और तब स्वयं को पुनर्स्थापित करने की प्रक्रिया प्रारम्भ करता है !!

सबसे पहले वह अपनी चोंच चट्टान पर मार-मार कर तोड़ देता है,चोंच तोड़ने से अधिक पीड़ादायक कुछ भी नहीं है पक्षीराज के लिये !

और वह प्रतीक्षा करता है चोंच के पुनः उग आने का ।

उसके बाद वह अपने पंजे भी उसी प्रकार तोड़ देता है,और प्रतीक्षा करता है ..पंजों के पुनः उग आने का ।

नयी चोंच और पंजे आने के बाद वह अपने भारी पंखों को एक-एक कर नोंच कर निकालता है !

और प्रतीक्षा करता है ..

पंखों के पुनः उग आने का ।

150 दिन की पीड़ा और प्रतीक्षा के बाद ...

मिलती है वही भव्य और ऊँची उड़ान पहले जैसी....

इस पुनर्स्थापना के बाद वह 30 साल और जीता है ....ऊर्जा, सम्मान और गरिमा के साथ ।

इसी प्रकार इच्छा, सक्रियता और कल्पना, तीनों निर्बल पड़ने लगते हैं हम इंसानों में भी !

हमें भी भूतकाल में जकड़े अस्तित्व के भारीपन को त्याग कर कल्पना की उन्मुक्त उड़ाने भरनी होंगी ।

150 दिन न सही.....60 दिन ही बिताया जाये स्वयं को पुनर्स्थापित करने में !

जो शरीर और मन से चिपका हुआ है,उसे तोड़ने और नोंचने में पीड़ा तो होगी ही !!

और फिर जब बाज की तरह उड़ानें भरने को तैयार होंगे ..

इस बार उड़ानें और ऊँची होंगी,अनुभवी होंगी, अनन्तगामी होंगी ।

हर दिन कुछ चिंतन किया जाए और आप ही वो व्यक्ति हे जो खुद को दूसरों से बेहतर जानते है ।

सिर्फ इतना निवेदन की निष्पक्षता के साथ छोटी-छोटी शुरुआत करें परिवर्तन करने की ।

विचार कर जीवन में आत्मसात कर लेने वाला है यह संदेश.....!

C/P (from social network) 








सास-बहू 
******
सुमन की नई  नई शादी हुई ।

चार पांच दिन सास ससुर के साथ रही। फिर पति नीरज के साथ जहां उसकी नौकरी थी, चली गई।

दो साल बाद ससुर रिटायर हो गए तो वो और सास भी सुमन और नीरज के साथ जाकर रहने लगे। सुमन पूरा दिन सास  ससुर की जरुरतों का ध्यान रखती जैसे उसके मायके में उसकी मां उसकी दादी का ध्यान रखती थी।
पर एक दिन सुमन ने सुना, सासू मां, ससुर जी से कह रही थी,  सुमन हमे दूध में पानी मिलाकर देती है।
सुमन ने इसका हल निकाला वो किसी बहाने से सारा दूध का पतीला सासू मां के पास ले जाती और वही उनको डाल कर दे देती।

 फिर एक दिन सासू मां फोन पर अपनी बेटी को कह रही थी कि  यह सुमन हमें देसी घी बहुत कम डाल कर देती है। बस ऊपर  ऊपर दिखावा कर देती है।

सुमन ने अगले ही दिन पूरा देसी घी का डिब्बा सास ससुर के कमरे में रख दिया, यह कहकर कि मैं कई बार घर पर नहीं होती तो आपको ढूंढने में दिक्कत होती है।
जब खत्म हो जाएगा तो दूसरा रख दूंगी।

कुछ दिन बाद सासू मां ससुर से कह रही थी,   नीरज इतना फल लाता है। हमें तो थोड़ा सा देती है। सारा खुद ही खा जाती होगी।'

सुमन ने सुना और अगले दिन फ्रिज सास ससुर के कमरे में रखवा दिया, कहने लगी, आपको पानी, दूध, फल लेने के लिए इतनी दूर नहीं जाना पड़ेगा।
इस उम्र में आपको वहा तक जाने मे दिक्कत होती है। मैं तो यही से आकर ले जाया करूंगी। '

सुमन के जाने के बाद ससुर बोला, ' अब तो ठीक है। सब कुछ तेरे कमरे में रख दिया सुमन ने।
यह सब तो ठीक है जी, पर मुझे शक है, गड़बड़ तो करती ही होगी- - आखिर बहू है।'

गड़बड़ वह नहीं करती। गड़बड़ तेरे दिमाग में है क्योंकि तू खुद जैसी बहू रही वैसा अपनी बहू के बारे में सोच रही है। वहम का इलाज तो लुकमान हकीम के पास भी नही था- 

ससुर बोले जा रहे थे और सासू की अंतरात्मा उससे कह रही थी कि शायद यही सत्य है।
(C/P)



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Retirement

*****

पत्नी के अंतिम संस्कार व तेरहवीं के बाद रिटायर्ड पोस्टमैन मनोहर गाँव छोड़कर मुम्बई में अपने पुत्र सुनील के बड़े से मकान में आये हुए हैं।

सुनील बहुत मनुहार के बाद यहाँ ला पाया है यद्यपि वह पहले भी कई बार प्रयास कर चुका था किंतु मां ही बाबूजी को यह कह कर रोक देती थी कि 'कहाँ वहाँ बेटे बहू की ज़िंदगी में दखल देने चलेंगे यहीं ठीक है 

सारी जिंदगी यहीं गुजरी है और जो थोड़ी सी बची है उसे भी यहीं रह कर काट लेंगे ठीक है न' 

बस बाबूजी की इच्छा मर जाती पर इस बार कोई साक्षात अवरोध नहीं था और पत्नी की स्मृतियों में बेटे के स्नेह से अधिक ताकत नहीं थी , इसलिए मनोहर बम्बई आ ही गए हैं

सुनील एक बड़ी कंस्ट्रक्शन कम्पनी में इंजीनियर है उसने आलीशान घर व गाड़ी ले रखी है

घर में घुसते ही मनोहर ठिठक कर रुक गए गुदगुदी मैट पर पैर रखे ही नहीं जा रहे हैं उनके दरवाजे पर उन्हें रुका देख कर सुनील बोला - "आइये बाबूजी, अंदर आइये"
"बेटा, मेरे गन्दे पैरों से यह कालीन गन्दी तो नहीं हो जाएगी"

- "बाबूजी, आप उसकी चिंता न करें। आइये यहाँ सोफे पर बैठ जाइए।"

सहमें हुए कदमों में चलते हुए मनोहर जैसे ही सोफे पर बैठे तो उनकी चीख निकल गयी - अरे रे! मर गया रे!

उनके बैठते ही नरम औऱ गुदगुदा सोफा की गद्दी अन्दर तक धँस गयी थी। इससे मनोहर चिहुँक कर चीख पड़े थे।

चाय पीने के बाद सुनील ने मनोहर से कहा - "बाबूजी, आइये आपको घर दिखा दूँ अपना।"

- "जरूर बेटा, चलो।"

- "बाबू जी, यह है लॉबी जहाँ हम लोग चाय पी रहे थे। यहाँ पर कोई भी अतिथि आता है तो चाय नाश्ता और गपशप होती है। यह डाइनिंग हाल है। यहाँ पर हम लोग खाना खाते हैं। बाबूजी, यह रसोई है और इसी से जुड़ा हुआ यह भण्डार घर है। यहाँ रसोई से सम्बंधित सामग्री रखी जाती हैं। यह बच्चों का कमरा है।"

- "तो बच्चे क्या अपने माँ बाप के साथ नहीं रहते?"

- बाबूजी, यह शहर है और शहरों में मुंबई है। यहाँ बच्चे को जन्म से ही अकेले सोने की आदत डालनी पड़ती है। माँ तो बस समय समय पर उसे दूध पिला देती है और उसके शेष कार्य आया आकर कर जाती है।"

थोड़ा ठहर कर सुनील ने आगे कहा,"बाबूजी यह आपकी बहू और मेरे सोने का कमरा है और इस कोने में यह गेस्ट रूम है। कोई अतिथि आ जाए तो यहीं ठहरता है। यह छोटा सा कमरा पालतू जानवरों के लिए है। कभी कोई कुत्ता आदि पाला गया तो उसके लिए व्यवस्था कर रखी है।"

सीढियां चढ़ कर ऊपर पहुँचे सुनील ने लम्बी चौड़ी छत के एक कोने में बने एक टीन की छत वाले कमरे को खोल कर दिखाते हुए कहा - "बाबूजी यह है घर का कबाड़खाना। घर की सब टूटी फूटी और बेकार वस्तुएं यहीं पर एकत्र कर दी जाती हैं। और दीवाली- होली पर इसकी सफाई कर दी जाती है। ऊपर ही एक बाथरूम और टॉइलट भी बना हुआ है।"

मनोहर ने देखा कि इसी कबाड़ख़ाने के अंदर एक फोल्डिंग चारपाई पर बिस्तर लगा हुआ है और उसी पर उनका झोला रखा हुआ है। मनोहर ने पलट कर सुनील की तरफ देखा किन्तु वह उन्हें वहां अकेला छोड़ सरपट नीचे जा चुका था। 

मनोहर उस चारपाई पर बैठकर सोचने लगे कि 'कैसा यह घर है जहाँ पाले जाने वाले जानवरों के लिए अलग कमरे का विधान कर लिया जाता है किंतु बूढ़े माँ बाप के लिए नहीं। इनके लिए तो कबाड़ का कमरा ही उचित आवास मान लिया गया है। नहीं.. अभी मैं कबाड़ नहीं हुआ हूँ। सुनील की माँ की सोच बिल्कुल सही था। मुझे यहाँ नहीं आना चाहिए था।'

अगली सुबह जब सुनील मनोहर के लिए चाय लेकर ऊपर गया तो कक्ष को खाली पाया। बाबू जी का झोला भी नहीं था वहाँ। उसने टॉयलेट व बाथरूम भी देख लिये किन्तु बाबूजी वहाँ भी नहीं थे वह झट से उतर कर नीचे आया तो पाया कि मेन गेट खुला हुआ है उधर मनोहर टिकट लेकर गाँव वापसी के लिए सबेरे वाली गाड़ी में बैठ चुके थे उन्होंने कुर्ते की जेब में हाथ डाल कर देखा कि उनके 'अपने घर' की चाभी मौजूद थी उन्होंने उसे कस कर मुट्ठी में पकड़ लिया चलती हुई गाड़ी में उनके चेहरे को छू रही हवा उनके इस निर्णय को और मजबूत बना रही थी और घर पहुँच कर चैन की सांस ली

💐💐#शिक्षा💐💐

दोस्तों,जीवन मे अपने बुजुर्ग माता पिता का उसी प्रकार ध्यान रखे जिस प्रकार माता पिता बचपन मे आपका ध्यान रखते थे,क्योकि एक उम्र के बाद बचपन फिर से लौट आता है इसलिए उस पड़ाव पर व्यस्त जिंदगी में से समय निकाल कर उन्हें भी थोड़ा समय दीजिये,अच्छा लगेगा।

सदैव प्रसन्न रहिये 
जो प्राप्त है, पर्याप्त है.
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कहां राजा भोज- कहां गंगू तेली 

यह कहावत क्यों बनी ? 

बचपन से लेकर आज तक हजारों बार इस कहावत को सुना था कि "कहां राजा भोज- कहां गंगू तेली"। आमतौर पर यह ही  पढ़ाया और बताया जाता था कि इस कहावत का अर्थ अमीर और गरीब के बीच तुलना करने के लिए है।

पर भोपाल जाकर पता चला कि कहावत का दूर-दूर तक अमीरी- गरीबी से कोई संबंध नहीं है। और ना ही कोई गंगू तेली से संबंध है। आज तक तो सोचते थे कि किसी गंगू नाम के तेली की तुलना राजा भोज से की जा रही है। यह तो सिरे ही गलत है, बल्कि गंगू तेली नामक शख्स तो खुद राजा थे। 

जब इस बात का पता चला तो आश्चर्य की सीमा न रही साथ ही यह भी समझ आया यदि घुमक्कड़ी ध्यान से करो तो आपके ज्ञान में सिर्फ वृद्धि ही नहीं होती बल्कि आपको ऐसी बातें पता चलती है जिस तरफ किसी ने ध्यान ही नहीं दिया होता और यह सोचकर हंसी भी आती है यह कहावत हम सब उनके लिए सबक है जो आज तक इसका इस्तेमाल अमीरी गरीबी की तुलना के लिए करते आए हैं।

इस कहावत का संबंध मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल और उसके जिला धार से है। भोपाल का पुराना नाम भोजपाल हुआ करता था। भोजपाल,‌ नाम धार के राजा भोजपाल से मिला। 

समय के साथ इस नाम में से "ज" शब्द गायब हो गया और नाम भोपाल बन गया। 

अब बात करते हैं कहावत की! कहते हैं, कलचुरी के राजा गांगेय (अर्थात गंगू) और चालुक्य राजा तेलंग (अर्थात तेली) ने एक बार राजा भोज के राज्य पर हमला कर दिया। इस युद्ध में राजा भोज ने इन दोनों राजाओं को हरा दिया।

उसी के बाद व्यंग्य के तौर पर यह कहावत प्रसिद्ध हुई "कहां राजा भोज-कहां गंगू तेली"। 

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Comments

  1. ए रूआँसा कर जाने वाली खबरें
    अच्छी नहीं लगती
    हम ऐसे हैं
    यह देखकर बहुत दुख होता है

    ReplyDelete
    Replies
    1. औरत ने जनम दिया मर्दों को,
      मर्दों ने उसे बाजार दिया ,
      जब जी चाहा मचला कुचला ,
      जब जी चाहा दुत्कार दिया,
      ©️साहिर लुधियानवी

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  2. औरत ने जनम दिया मर्दों को,
    मर्दों ने उसे बाजार दिया ,
    जब जी चाहा मचला कुचला ,
    जब जी चाहा दुत्कार दिया,
    ©️साहिर लुधियानवी

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