महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा को समझना हो तो वही पुरुषवादी मानसिकता पहले समझनी होगी। जब तक यह विकृत सोच समाज के किसी भी कोने में रहेगी ऐसी घटनाएं होती रहेंगी और हमें ऐसे ही शर्मशार होते रहना पड़ेगा। इस बात का जवाब काफी पहले साहिर लुधियानवी के नज़्म में देखने को मिलती है-
आइए जिंदा रहने कि कोशिश करते हैं और यदि जिंदा हैं तो शर्मिंदा होना ही पड़ेगा और हम ऐसे ही इंसानियत के जानाजे में शामिल होते रहेंगे और हममें से कुछ बे-हया लोग, हमेशा कि तरह वह सही हैं इसके लिए कोई और जिम्मेदार है वाला खेल खेलते रहेंगे। ऐसे बिमार लोग सिर्फ सहानुभूति के पात्र हैं।
मेरे बच्चों हमे माफ मत करना, हमें जो करना चाहिए था हम नहीं कर पाए उसे तुम करना क्योंकि हम तुम्हारे लिए एक बेहतर दुनिया नहीं बना पाए। हमारे सारे दावे झूठे और खोखले निकले और यह हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी थी कि हम मिलके इसे खूबसूरत बनाते, पर हम नाकाम रहे और अब भी हम उतने हिंसक,बर्बर और असभ्य हैं जिसे तुम देख रहे हो, सच तो यह है कि हमारे सफाई देने के लिए शब्द नहीं है
"मेरे सामने एक कैलेंडर टंगा है| तस्वीर में एक बच्चा फौजी पोशाक पहने बर्फ पर बैठा है। सामने शिवलिंग है और बगल में राइफल संगीन के जरिये बर्फ में गड़ी है। बच्चा हाथ जोड़े बैठा है| स्कूल जाते हुए बच्चे का चित्र नहीं है| पाकिस्तान में भी स्कूल जाते बच्चे का चित्र नहीं मिलेगा| चीन में भी नहीं।
यों ये सभी बच्चे अभागे हैं, दुनिया भर के, जिनके सामने इनके बुजुर्ग राइफल और देवता को रख देते हैं| यह मेरे सामने का बच्चा भी कम अभागा नहीं है। इसके हिस्से का दूध राइफल पी रही है।
बहुत वल्गर है यह चित्र। मगर यह देशभक्ति का चित्र है। मुझे लगता है, दुनिया में कहीं का हो, देशभक्त थोड़ा 'वल्गर' होता ही है"
चार पांच दिन सास ससुर के साथ रही। फिर पति नीरज के साथ जहां उसकी नौकरी थी, चली गई।
दो साल बाद ससुर रिटायर हो गए तो वो और सास भी सुमन और नीरज के साथ जाकर रहने लगे। सुमन पूरा दिन सास ससुर की जरुरतों का ध्यान रखती जैसे उसके मायके में उसकी मां उसकी दादी का ध्यान रखती थी।
पर एक दिन सुमन ने सुना, सासू मां, ससुर जी से कह रही थी, सुमन हमे दूध में पानी मिलाकर देती है।
सुमन ने इसका हल निकाला वो किसी बहाने से सारा दूध का पतीला सासू मां के पास ले जाती और वही उनको डाल कर दे देती।
फिर एक दिन सासू मां फोन पर अपनी बेटी को कह रही थी कि यह सुमन हमें देसी घी बहुत कम डाल कर देती है। बस ऊपर ऊपर दिखावा कर देती है।
सुमन ने अगले ही दिन पूरा देसी घी का डिब्बा सास ससुर के कमरे में रख दिया, यह कहकर कि मैं कई बार घर पर नहीं होती तो आपको ढूंढने में दिक्कत होती है।
जब खत्म हो जाएगा तो दूसरा रख दूंगी।
कुछ दिन बाद सासू मां ससुर से कह रही थी, नीरज इतना फल लाता है। हमें तो थोड़ा सा देती है। सारा खुद ही खा जाती होगी।'
सुमन ने सुना और अगले दिन फ्रिज सास ससुर के कमरे में रखवा दिया, कहने लगी, आपको पानी, दूध, फल लेने के लिए इतनी दूर नहीं जाना पड़ेगा।
इस उम्र में आपको वहा तक जाने मे दिक्कत होती है। मैं तो यही से आकर ले जाया करूंगी। '
सुमन के जाने के बाद ससुर बोला, ' अब तो ठीक है। सब कुछ तेरे कमरे में रख दिया सुमन ने।
यह सब तो ठीक है जी, पर मुझे शक है, गड़बड़ तो करती ही होगी- - आखिर बहू है।'
गड़बड़ वह नहीं करती। गड़बड़ तेरे दिमाग में है क्योंकि तू खुद जैसी बहू रही वैसा अपनी बहू के बारे में सोच रही है। वहम का इलाज तो लुकमान हकीम के पास भी नही था-
ससुर बोले जा रहे थे और सासू की अंतरात्मा उससे कह रही थी कि शायद यही सत्य है।
पत्नी के अंतिम संस्कार व तेरहवीं के बाद रिटायर्ड पोस्टमैन मनोहर गाँव छोड़कर मुम्बई में अपने पुत्र सुनील के बड़े से मकान में आये हुए हैं।
सुनील बहुत मनुहार के बाद यहाँ ला पाया है यद्यपि वह पहले भी कई बार प्रयास कर चुका था किंतु मां ही बाबूजी को यह कह कर रोक देती थी कि 'कहाँ वहाँ बेटे बहू की ज़िंदगी में दखल देने चलेंगे यहीं ठीक है
सारी जिंदगी यहीं गुजरी है और जो थोड़ी सी बची है उसे भी यहीं रह कर काट लेंगे ठीक है न'
बस बाबूजी की इच्छा मर जाती पर इस बार कोई साक्षात अवरोध नहीं था और पत्नी की स्मृतियों में बेटे के स्नेह से अधिक ताकत नहीं थी , इसलिए मनोहर बम्बई आ ही गए हैं
सुनील एक बड़ी कंस्ट्रक्शन कम्पनी में इंजीनियर है उसने आलीशान घर व गाड़ी ले रखी है
घर में घुसते ही मनोहर ठिठक कर रुक गए गुदगुदी मैट पर पैर रखे ही नहीं जा रहे हैं उनके दरवाजे पर उन्हें रुका देख कर सुनील बोला - "आइये बाबूजी, अंदर आइये"
"बेटा, मेरे गन्दे पैरों से यह कालीन गन्दी तो नहीं हो जाएगी"
- "बाबूजी, आप उसकी चिंता न करें। आइये यहाँ सोफे पर बैठ जाइए।"
सहमें हुए कदमों में चलते हुए मनोहर जैसे ही सोफे पर बैठे तो उनकी चीख निकल गयी - अरे रे! मर गया रे!
उनके बैठते ही नरम औऱ गुदगुदा सोफा की गद्दी अन्दर तक धँस गयी थी। इससे मनोहर चिहुँक कर चीख पड़े थे।
चाय पीने के बाद सुनील ने मनोहर से कहा - "बाबूजी, आइये आपको घर दिखा दूँ अपना।"
- "जरूर बेटा, चलो।"
- "बाबू जी, यह है लॉबी जहाँ हम लोग चाय पी रहे थे। यहाँ पर कोई भी अतिथि आता है तो चाय नाश्ता और गपशप होती है। यह डाइनिंग हाल है। यहाँ पर हम लोग खाना खाते हैं। बाबूजी, यह रसोई है और इसी से जुड़ा हुआ यह भण्डार घर है। यहाँ रसोई से सम्बंधित सामग्री रखी जाती हैं। यह बच्चों का कमरा है।"
- "तो बच्चे क्या अपने माँ बाप के साथ नहीं रहते?"
- बाबूजी, यह शहर है और शहरों में मुंबई है। यहाँ बच्चे को जन्म से ही अकेले सोने की आदत डालनी पड़ती है। माँ तो बस समय समय पर उसे दूध पिला देती है और उसके शेष कार्य आया आकर कर जाती है।"
थोड़ा ठहर कर सुनील ने आगे कहा,"बाबूजी यह आपकी बहू और मेरे सोने का कमरा है और इस कोने में यह गेस्ट रूम है। कोई अतिथि आ जाए तो यहीं ठहरता है। यह छोटा सा कमरा पालतू जानवरों के लिए है। कभी कोई कुत्ता आदि पाला गया तो उसके लिए व्यवस्था कर रखी है।"
सीढियां चढ़ कर ऊपर पहुँचे सुनील ने लम्बी चौड़ी छत के एक कोने में बने एक टीन की छत वाले कमरे को खोल कर दिखाते हुए कहा - "बाबूजी यह है घर का कबाड़खाना। घर की सब टूटी फूटी और बेकार वस्तुएं यहीं पर एकत्र कर दी जाती हैं। और दीवाली- होली पर इसकी सफाई कर दी जाती है। ऊपर ही एक बाथरूम और टॉइलट भी बना हुआ है।"
मनोहर ने देखा कि इसी कबाड़ख़ाने के अंदर एक फोल्डिंग चारपाई पर बिस्तर लगा हुआ है और उसी पर उनका झोला रखा हुआ है। मनोहर ने पलट कर सुनील की तरफ देखा किन्तु वह उन्हें वहां अकेला छोड़ सरपट नीचे जा चुका था।
मनोहर उस चारपाई पर बैठकर सोचने लगे कि 'कैसा यह घर है जहाँ पाले जाने वाले जानवरों के लिए अलग कमरे का विधान कर लिया जाता है किंतु बूढ़े माँ बाप के लिए नहीं। इनके लिए तो कबाड़ का कमरा ही उचित आवास मान लिया गया है। नहीं.. अभी मैं कबाड़ नहीं हुआ हूँ। सुनील की माँ की सोच बिल्कुल सही था। मुझे यहाँ नहीं आना चाहिए था।'
अगली सुबह जब सुनील मनोहर के लिए चाय लेकर ऊपर गया तो कक्ष को खाली पाया। बाबू जी का झोला भी नहीं था वहाँ। उसने टॉयलेट व बाथरूम भी देख लिये किन्तु बाबूजी वहाँ भी नहीं थे वह झट से उतर कर नीचे आया तो पाया कि मेन गेट खुला हुआ है उधर मनोहर टिकट लेकर गाँव वापसी के लिए सबेरे वाली गाड़ी में बैठ चुके थे उन्होंने कुर्ते की जेब में हाथ डाल कर देखा कि उनके 'अपने घर' की चाभी मौजूद थी उन्होंने उसे कस कर मुट्ठी में पकड़ लिया चलती हुई गाड़ी में उनके चेहरे को छू रही हवा उनके इस निर्णय को और मजबूत बना रही थी और घर पहुँच कर चैन की सांस ली
💐💐#शिक्षा💐💐
दोस्तों,जीवन मे अपने बुजुर्ग माता पिता का उसी प्रकार ध्यान रखे जिस प्रकार माता पिता बचपन मे आपका ध्यान रखते थे,क्योकि एक उम्र के बाद बचपन फिर से लौट आता है इसलिए उस पड़ाव पर व्यस्त जिंदगी में से समय निकाल कर उन्हें भी थोड़ा समय दीजिये,अच्छा लगेगा।
बचपन से लेकर आज तक हजारों बार इस कहावत को सुना था कि "कहां राजा भोज- कहां गंगू तेली"। आमतौर पर यह ही पढ़ाया और बताया जाता था कि इस कहावत का अर्थ अमीर और गरीब के बीच तुलना करने के लिए है।
पर भोपाल जाकर पता चला कि कहावत का दूर-दूर तक अमीरी- गरीबी से कोई संबंध नहीं है। और ना ही कोई गंगू तेली से संबंध है। आज तक तो सोचते थे कि किसी गंगू नाम के तेली की तुलना राजा भोज से की जा रही है। यह तो सिरे ही गलत है, बल्कि गंगू तेली नामक शख्स तो खुद राजा थे।
जब इस बात का पता चला तो आश्चर्य की सीमा न रही साथ ही यह भी समझ आया यदि घुमक्कड़ी ध्यान से करो तो आपके ज्ञान में सिर्फ वृद्धि ही नहीं होती बल्कि आपको ऐसी बातें पता चलती है जिस तरफ किसी ने ध्यान ही नहीं दिया होता और यह सोचकर हंसी भी आती है यह कहावत हम सब उनके लिए सबक है जो आज तक इसका इस्तेमाल अमीरी गरीबी की तुलना के लिए करते आए हैं।
इस कहावत का संबंध मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल और उसके जिला धार से है। भोपाल का पुराना नाम भोजपाल हुआ करता था। भोजपाल, नाम धार के राजा भोजपाल से मिला।
समय के साथ इस नाम में से "ज" शब्द गायब हो गया और नाम भोपाल बन गया।
अब बात करते हैं कहावत की! कहते हैं, कलचुरी के राजा गांगेय (अर्थात गंगू) और चालुक्य राजा तेलंग (अर्थात तेली) ने एक बार राजा भोज के राज्य पर हमला कर दिया। इस युद्ध में राजा भोज ने इन दोनों राजाओं को हरा दिया।
उसी के बाद व्यंग्य के तौर पर यह कहावत प्रसिद्ध हुई "कहां राजा भोज-कहां गंगू तेली"।
भारत के जोकर ई हमरे भारत के लाल हैं एजेंडा पर सवार हैं टूल किट का कमाल है वैसे तो हैं प्रवक्ता किसी के पर कहते है खुद को निष्पक्ष उदार है सेक्यूलर हैं लोकतंत्र के प्रहरी स्वतंत्र आवाज़ के पैरोकार हैं कलाकार हैं कथित पत्रकार हैं सिनेमाई अंदाज है कहानी कविता का यही इनके आधार है बेंच लेते हैं बढ़िया से अच्छे दुकानदार हैं ई हमरे भारत के लाल हैं जब से नयी सरकार बनी है इनकी मर्जी नहीं चली है जिसको ए चाहते थे जनता ने उसको नहीं चुना है तभी से लोकतंत्र खतरे में है यही गाना गा रहे हैं न जाने किससे आजादी मांग रहे हैं ए सी मंच है फाइव star होटल है गरीब किसान की चिंता वाली यहीं आवाज बुलंद है लाइक view का चक्कर है Social network पर बहुत बड़ा business है बबुआ शातिर है, बबुनी बड़ी माहिर है पैसा कमाने की यहां बड़ी गुंजाइश है बदले ज़माने के साथ सबको बदलना है बाजार की ताकत ऐसे ही समझना है Skill कितना जरूरी है यह बात इन्हीं से सीखनी है जो बिके बाजार में वह खेती करनी है अपनी कीमत तुमको अपने हुनर से तय करनी है ई हमरे भारत के होनहार हैं भारत माता के लाल हैं कुछ दिन आराम किया विदेश यात्रा किया शांत...
दरवाजा जब कहीं किसी जगह दरवाजा लग जाता है वह बाकी लोगों को यह बताता है थोड़ा ठहर जाओ देखो तुमको आगे जाना है कि नहीं जाना है वह खुला हो या बंद बाकी लोगों को उनकी सीमा बताता है उस पर कुंडी या ताला लगा हो तो तुम्हारे लिए यह वक्त बाहर ठहरने का है यह भी समझ लेना चाहिए यह ऐसी जगह नहीं है जहां कोई भी यूं ही चला जाए इसका कोई मालिक है जिस पर उसका हक है वह जब इसको खुला रखेगा आपको आने के लिए कहेगा तभी आपको आना है अन्यथा यहीं बाहर बैठकर इंतजार करना है देखते हैं दरवाजा कब खुलता है दरवाजा अंदर रहने वालों को भी उनकी हद बताता है यहीं तक मैं जिम्मेदार हूंँ यह जगह तुम्हारी है मेरे रहते कोई भी कभी भी नहीं आ सकता जब तुम्हें लगे कुछ देर आराम करना है अकेले रहना है या फिर हंसना, रोना है बस दरवाजे पर अंदर से कुंडी लगा लेना है क्योंकि उसका सार्वजनिक प्रदर्शन नहीं हो सकता इसी का नाम निजता है ऐसे में एक छोटे से दरवाजे की हमें जरूरत होती है जो हमारे लिए सिर्फ दरवाजा नहीं रह जाता हमारा भरोसा हो जाता है अंदर बाहर के सीमाएं इसीके पहरेदारी से तय होती हैं ऐसे में दरवाजे का मतलब समझ आना चाहिए दरवाजे पर पहुंचकर थ...
कुम्भ डायरी हमारे यहां कुम्भ से जुड़ी कहानियों की भरमार है आजकल तो सोशल नेटवर्क का जमाना है जिसे देखो कहानी कह रहा है 2-3 मिनट से बात चलकर 10 से 15 सेकंड के वीडियो पर आ गई है सब अदभुत अनोखा अनरिस्ट्रिक्टेड है जहां कोई भी कुछ भी कह सकता है और वह कह रहा है सोचिए रेलवे स्टेशन और बस अड्डा से उतर कर कुछ लोगों ने कहा वह 50 किलोमीटर तक पैदल चले जबकि कोई भी स्टेशन संगम से ज्यादा दूर नहीं है अब ऐसे लोगों की बात आती है जो अपने यहां से हजारों किलोमीटर दूरी तय करके आ रहे हैं साधन संपन्न है चीजें खरीद सकते हैं और ऐसे लोगों की अब कोई कमी नहीं है और ना तो उनकी आस्था भक्ति पर संदेह है पर कैसे जब आगे जगह ही नहीं है तो आपकी गाड़ी और आप कैसे आगे बढ़ेंगे कहीं तो रुकना पड़ेगा वही होता है फिर खबरें चलने लगी दक्षिण की तरफ से आने वाले लोगों ने 300 किलोमीटर का जाम लगा दिया यह भी तो हमारी ताकत ही है हम 300 किलोमीटर खड़े रहे संगम आने के लिए प्रयागराज महाकुंभ में शामिल होने के लिए इस तरह हर वह रास्ता जो संगम की तरफ प्रयागराज की तरफ जा रहा था वहां पर ऐसे ही लाखों वाहनों का काफिला था अगल-बगल के जिले दू...
गिद्ध गिद्ध कई दिनों से परेशान था उसकी भी जिंदगी का सवाल था वह गोश्त खाता है कैसा किसका इससे उसको कोई मतलब नहीं है ना तो कोई फर्क पड़ता है उसका पेट भरना चाहिए अगर गिद्ध यह विचार करने लग जाए गोश्त कैसा है क्या वह कभी खा पाएगा उसका गिद्धपन रह जाएगा गिद्ध के बने रहने की पहली शर्त यही है वह गोश्त खाता रहे कहीं दूर बैठकर यही सोचता रहता है अच्छा गोश्त कहां कैसे मिले हमने कहानी सुनी है कुछ लोगों को अनिष्ट होने पर ही रस मिलता है क्योंकि उनकी रोजी-रोटी उसी से चलती है शमशान में जब भीड़ बढ़ जाती है कुछ चेहरे खिल जाते हैं वहां भी व्यापार होता है लकड़ियों का चिता जलाने का गिद्धों के लिए भी जरूरी है उन्हें कुछ मिलता रहे जो उनको भाता हो जिसे वह चबा चबाकर खाता हो फिर गिद्ध के पीछे गिद्ध धूमधाम से लग जाते हैं गिद्ध गान शुरू हो जाता है पूरा झुंड एक साथ है एक जैसी आवाज में सब सुर मिलाते हैं देखो यहां पर गोश्त है एक दूसरे को बताते हैं गिद्ध को नोचने में बहुत मजा आता है गिद्ध की चोंच बहुत तेज है जिसमें धार कहीं और से आता है हालांकि उनकी संख्या निरंतर कम होती जा रही है मगर जितने हैं गिद्ध होने के...
तालाब ***** गांव के बाहर एक बूढ़ा तालाब था उसके चारों तरफ हरा-भरा बाग था तरह-तरह के पक्षी नजर आ जाते थे तालाब के दक्षिण तरफ जो हिस्सा था जहां कोई जाता नहीं था वहाँ बहुत सारे कंटीले पेड़ थे उधर बच्चों का जाना माना था सबका मानना यही था वहाँ जहरीले सांप रहते हैं उसका यह हिस्सा पथरीला था नागफनी के लिए ही जैसे उसने सहेज रखा था ऐसे ही सबकी अपनी एक निश्चित जगह थी जो तालाब के किस तरफ है इससे उसकी पहचान निर्धारित हो जाया करती थी तालाब के हर तरफ कुछ न कुछ अनोखा था जो अपनी एक जगह रखता था वह जगह उसके लिए खास थी नहीं-नहीं उस जगह की उससे पहचान थी जगह का मतलब समझते हैं अरे वही जमीन यकीन मानिए जो जहां ... जितने में था पूरा था बच्चे बूढ़े तफरी के लिए तालाब किनारे घंटो बैठे रहा करते उसमें कुछ लोग मछली पकड़ने आते कई घंटे कांटे लगाए रहते यह वक्त बिताने का खेल अच्छा था मछली फंस गई तो ठीक नहीं तो बड़े आराम से पूरा दिन गुजर जाता था ऐसे ही तालाब का साथ मिल जाता था बातों के विषय कोई निश्चित नहीं थे रोज बात करना था सब-सब के बारे में सब कुछ जानते थे गांव का एक बड़ा हिस्सा तालाब के पास था तालाब की अपनी एक...
एक प्याली चाय मैंने कितनी बार कहा है चाय के लिए मत पूछा करो यही तो एक चीज है जिसे पीते हैं बस थोड़ी थोड़ी देर पर थोड़ी थोड़ी मिलती रहे तो क्या हर्ज है? और हर बार जब तुम पूछते हो तो लगता है तुम्हें बनाने में दिक्कत है या पिलाने में परहेज? पर हम तो ठहरे पूरे चहेड़ी चाय के लिए बेहया बन जाते हैं और मुस्कराहट के साथ पियेंगे क्यो नहीं पियेंगे कहके चाय का जयघोष कर देते हैं फिर कुछ देर में चाय हाजिर हो जाती है और जानते हैं कभी एक चाय किसी एक के लिए नहीं बनती मतलब न तो कप न चाय अकेले होती है चाय की यही खूबी है हमेशा साथ में पी जाती है वह आधी कप हो या पूरी इससे क्या फर्क पड़ता है बस चाय पीनी है इसलिए पीते हैं क्योंकि हम कुछ और नहीं पीते कुछ और पीने का मतलब तो समझ ही रहे हो अगर यह चाहते हो कुछ लोग कुछ और न पिएं तो फिर बस यूँ ही चाय पिलाते रहो वैसे चाय से आगे चाय पीने वाले जा भी नहीं पाते क्योंकि जो चाय पीते हैं उनकी हद चाय तक ही होती है हाँ कभी-कभी अच्छी कॉफ़ी मिल जाए तो अच्छा लगता है मगर कॉफी में वह चाय वाली बात नहीं आती है जैसे चाय में काफी वाली नहीं आती बस एक आदत पड़ जाती है ...
इच्छाधारी ********* इच्छाधारी नाग-नागिन की कहानियाँ, तो हम सबने सुनी है, जिसमें वो कोई भी रूप धारण कर लेते, बचपन! अगर गाँव में बीता हो तो, सिनेमा वाला दृश्य, हर जगह मौजूद होता है, बस कल्पना को, डर वाली कहानियों के रंग से भरना है, ऐसे ही साँप से डरने पूजने, और मौका मिलते ही, मार देने का, अजब व्यवहार करते रहे, इसमें किसी के लिए कुछ भी गलत नहीं, हर आदमी, अपनी आस्था और कहानी गढ़ता है, पर साँप का जहर? बड़ा अजीब है, जो उसकी पहचान है इंसान उसी से डरता है, इसी डर से, तमाम विषहीन साँपो, की जान खतरे में पड़ जाती है, क्यों कि हमको पता नहीं चलता, किसमे जहर नहीं है, अक्सर इस अफरा तफरी में, बिना जहर वालों की जान चली जाती है, उनका सांप होना, उनके लिए सजा बन जाती है। खैर! अब तो शहर का जमाना है पर साँप के होने पर संदेह नहीं करना, आस-पास हमारे, अब सिर्फ, इच्छाधारी रहते हैं, जो हर वक्त रंग बदलते हैं, हमारे ही आस्तीनों में रहते हैं, जो खुद बीन बजाता है, दूध पूरा पी जाता है। उन सीधे साधे साँपो को, नाहक ...
किसान का बेटा किसान का बेटा थानेदार बन गया बड़ा रौबदार हो गया अकड़ कर चलता है चले भी क्यों नहीं सरकारी अफसर है हाथ में पिस्टल है ऐसे ही थाने में एक दिन एक केस आया किसी मजदूर के बेटे पर चोरी का इल्जाम था पुलिस में भर्ती होने वाले सभी लोग बेहद साधारण घर से आते हैं गांव के लोग ही होते हैं खैर बात शहर के मजदूर की हो रही है जो शायद खलिहान छोड़कर आया हो उसी का बेटा है जिसकी उम्र छोटी है मांँ-बाप किसी सेठ के यहां काम करते हैं इतना कमा लेते हैं बस काम चल जाता है बेटा भी हाथ बटाता तो और बेहतर होता खैर मां-बाप के साथ वह भी मालिक के यहां आता जाता था कभी कभी छोटे मोटे कुछ काम भी कर लेता था फिर एक दिन कुछ सामान उसे पसंद आ गया उसने हाथ साफ कर दिया अक्सर ऐसा होता है चोरी की जो आदत है शायद कहीं किसी कमतरी के एहसास से जन्म लेता है उसी से शुरू होता है ए वाला सामान मेरे पास क्यों नहीं है हम इसे खरीद नहीं सकते यह हमारे पास तभी हो सकता है मतलब इसका आसान तरीका यही है चोरी उस वक्त बात आई गई हो गई बच्चे की उम्र को देखते हुए उसे समझाया गया बाल मन ने पूरी बात अपने ढंग से लिया उसे यह करना सामान्य लगा जो उस...
हमारा सिनेमा और समाज हमारी फिल्मों की जो यात्रा है वह आमतौर पर कथित या घोषित तौर पर खुद को सस्ता, हिंसक, अश्लील बिकाऊ साहित्य का अपडेटेड वर्जन बनाना भर है जो इंटरनेट की वजह से एक हो चुकी दुनिया में ग्लोबल मार्केट से पैसा कमाने की अपार संभावना में खुद के लिए पर्याप्त हिस्सा हासिल करने की कोशिश भर लगती है जहां असीमित अपार धन कमाया जा सकता है। इनका मकसद किसी की दशा सुधारना या कोई दिशा दिखाना नहीं है। वैसे समाज में सभी चीजें एक साथ चलती रहती है और साहित्य, सिनेमा में भी एक साथ सभी के लिए कुछ ना कुछ उपलब्ध होता है। किसी के लिए भी दर्शक, श्रोता, पाठक कभी कम नहीं होते और न वहां पैसों की कमी होती है बस अपनी बात, अपने कंटेंट को सही ढंग से परोसना आना चाहिए अखबार और किताब अभी भी छप रहे हैं। जापान हो या अमेरिका सभी जगह उनकी छपाई और गुणवत्ता निरंतर बेहतर हुई है या यूं कहें कि पहले से ज्यादा काम हो रहा है क्योंकि कागज और स्याही की खुशबू लोगों को कागज के करीब ले आती है इसमें कोई संदेह नहीं है जहां वह कुछ लिखता-पढ़ता, हाँ सबसे बड़ी बात वह छुअन महसूस कर...
ए रूआँसा कर जाने वाली खबरें
ReplyDeleteअच्छी नहीं लगती
हम ऐसे हैं
यह देखकर बहुत दुख होता है
ऐसा ही है
Deleteऔरत ने जनम दिया मर्दों को,
Deleteमर्दों ने उसे बाजार दिया ,
जब जी चाहा मचला कुचला ,
जब जी चाहा दुत्कार दिया,
©️साहिर लुधियानवी
औरत ने जनम दिया मर्दों को,
ReplyDeleteमर्दों ने उसे बाजार दिया ,
जब जी चाहा मचला कुचला ,
जब जी चाहा दुत्कार दिया,
©️साहिर लुधियानवी