भारत के जोकर ई हमरे भारत के लाल हैं एजेंडा पर सवार हैं टूल किट का कमाल है वैसे तो हैं प्रवक्ता किसी के पर कहते है खुद को निष्पक्ष उदार है सेक्यूलर हैं लोकतंत्र के प्रहरी स्वतंत्र आवाज़ के पैरोकार हैं कलाकार हैं कथित पत्रकार हैं सिनेमाई अंदाज है कहानी कविता का यही इनके आधार है बेंच लेते हैं बढ़िया से अच्छे दुकानदार हैं ई हमरे भारत के लाल हैं जब से नयी सरकार बनी है इनकी मर्जी नहीं चली है जिसको ए चाहते थे जनता ने उसको नहीं चुना है तभी से लोकतंत्र खतरे में है यही गाना गा रहे हैं न जाने किससे आजादी मांग रहे हैं ए सी मंच है फाइव star होटल है गरीब किसान की चिंता वाली यहीं आवाज बुलंद है लाइक view का चक्कर है Social network पर बहुत बड़ा business है बबुआ शातिर है, बबुनी बड़ी माहिर है पैसा कमाने की यहां बड़ी गुंजाइश है बदले ज़माने के साथ सबको बदलना है बाजार की ताकत ऐसे ही समझना है Skill कितना जरूरी है यह बात इन्हीं से सीखनी है जो बिके बाजार में वह खेती करनी है अपनी कीमत तुमको अपने हुनर से तय करनी है ई हमरे भारत के होनहार हैं भारत माता के लाल हैं कुछ दिन आराम किया विदेश यात्रा किया शांत...
दरवाजा जब कहीं किसी जगह दरवाजा लग जाता है वह बाकी लोगों को यह बताता है थोड़ा ठहर जाओ देखो तुमको आगे जाना है कि नहीं जाना है वह खुला हो या बंद बाकी लोगों को उनकी सीमा बताता है उस पर कुंडी या ताला लगा हो तो तुम्हारे लिए यह वक्त बाहर ठहरने का है यह भी समझ लेना चाहिए यह ऐसी जगह नहीं है जहां कोई भी यूं ही चला जाए इसका कोई मालिक है जिस पर उसका हक है वह जब इसको खुला रखेगा आपको आने के लिए कहेगा तभी आपको आना है अन्यथा यहीं बाहर बैठकर इंतजार करना है देखते हैं दरवाजा कब खुलता है दरवाजा अंदर रहने वालों को भी उनकी हद बताता है यहीं तक मैं जिम्मेदार हूंँ यह जगह तुम्हारी है मेरे रहते कोई भी कभी भी नहीं आ सकता जब तुम्हें लगे कुछ देर आराम करना है अकेले रहना है या फिर हंसना, रोना है बस दरवाजे पर अंदर से कुंडी लगा लेना है क्योंकि उसका सार्वजनिक प्रदर्शन नहीं हो सकता इसी का नाम निजता है ऐसे में एक छोटे से दरवाजे की हमें जरूरत होती है जो हमारे लिए सिर्फ दरवाजा नहीं रह जाता हमारा भरोसा हो जाता है अंदर बाहर के सीमाएं इसीके पहरेदारी से तय होती हैं ऐसे में दरवाजे का मतलब समझ आना चाहिए दरवाजे पर पहुंचकर थ...
गिद्ध गिद्ध कई दिनों से परेशान था उसकी भी जिंदगी का सवाल था वह गोश्त खाता है कैसा किसका इससे उसको कोई मतलब नहीं है ना तो कोई फर्क पड़ता है उसका पेट भरना चाहिए अगर गिद्ध यह विचार करने लग जाए गोश्त कैसा है क्या वह कभी खा पाएगा उसका गिद्धपन रह जाएगा गिद्ध के बने रहने की पहली शर्त यही है वह गोश्त खाता रहे कहीं दूर बैठकर यही सोचता रहता है अच्छा गोश्त कहां कैसे मिले हमने कहानी सुनी है कुछ लोगों को अनिष्ट होने पर ही रस मिलता है क्योंकि उनकी रोजी-रोटी उसी से चलती है शमशान में जब भीड़ बढ़ जाती है कुछ चेहरे खिल जाते हैं वहां भी व्यापार होता है लकड़ियों का चिता जलाने का गिद्धों के लिए भी जरूरी है उन्हें कुछ मिलता रहे जो उनको भाता हो जिसे वह चबा चबाकर खाता हो फिर गिद्ध के पीछे गिद्ध धूमधाम से लग जाते हैं गिद्ध गान शुरू हो जाता है पूरा झुंड एक साथ है एक जैसी आवाज में सब सुर मिलाते हैं देखो यहां पर गोश्त है एक दूसरे को बताते हैं गिद्ध को नोचने में बहुत मजा आता है गिद्ध की चोंच बहुत तेज है जिसमें धार कहीं और से आता है हालांकि उनकी संख्या निरंतर कम होती जा रही है मगर जितने हैं गिद्ध होने के...
कुम्भ डायरी हमारे यहां कुम्भ से जुड़ी कहानियों की भरमार है आजकल तो सोशल नेटवर्क का जमाना है जिसे देखो कहानी कह रहा है 2-3 मिनट से बात चलकर 10 से 15 सेकंड के वीडियो पर आ गई है सब अदभुत अनोखा अनरिस्ट्रिक्टेड है जहां कोई भी कुछ भी कह सकता है और वह कह रहा है सोचिए रेलवे स्टेशन और बस अड्डा से उतर कर कुछ लोगों ने कहा वह 50 किलोमीटर तक पैदल चले जबकि कोई भी स्टेशन संगम से ज्यादा दूर नहीं है अब ऐसे लोगों की बात आती है जो अपने यहां से हजारों किलोमीटर दूरी तय करके आ रहे हैं साधन संपन्न है चीजें खरीद सकते हैं और ऐसे लोगों की अब कोई कमी नहीं है और ना तो उनकी आस्था भक्ति पर संदेह है पर कैसे जब आगे जगह ही नहीं है तो आपकी गाड़ी और आप कैसे आगे बढ़ेंगे कहीं तो रुकना पड़ेगा वही होता है फिर खबरें चलने लगी दक्षिण की तरफ से आने वाले लोगों ने 300 किलोमीटर का जाम लगा दिया यह भी तो हमारी ताकत ही है हम 300 किलोमीटर खड़े रहे संगम आने के लिए प्रयागराज महाकुंभ में शामिल होने के लिए इस तरह हर वह रास्ता जो संगम की तरफ प्रयागराज की तरफ जा रहा था वहां पर ऐसे ही लाखों वाहनों का काफिला था अगल-बगल के जिले दू...
एक प्याली चाय मैंने कितनी बार कहा है चाय के लिए मत पूछा करो यही तो एक चीज है जिसे पीते हैं बस थोड़ी थोड़ी देर पर थोड़ी थोड़ी मिलती रहे तो क्या हर्ज है? और हर बार जब तुम पूछते हो तो लगता है तुम्हें बनाने में दिक्कत है या पिलाने में परहेज? पर हम तो ठहरे पूरे चहेड़ी चाय के लिए बेहया बन जाते हैं और मुस्कराहट के साथ पियेंगे क्यो नहीं पियेंगे कहके चाय का जयघोष कर देते हैं फिर कुछ देर में चाय हाजिर हो जाती है और जानते हैं कभी एक चाय किसी एक के लिए नहीं बनती मतलब न तो कप न चाय अकेले होती है चाय की यही खूबी है हमेशा साथ में पी जाती है वह आधी कप हो या पूरी इससे क्या फर्क पड़ता है बस चाय पीनी है इसलिए पीते हैं क्योंकि हम कुछ और नहीं पीते कुछ और पीने का मतलब तो समझ ही रहे हो अगर यह चाहते हो कुछ लोग कुछ और न पिएं तो फिर बस यूँ ही चाय पिलाते रहो वैसे चाय से आगे चाय पीने वाले जा भी नहीं पाते क्योंकि जो चाय पीते हैं उनकी हद चाय तक ही होती है हाँ कभी-कभी अच्छी कॉफ़ी मिल जाए तो अच्छा लगता है मगर कॉफी में वह चाय वाली बात नहीं आती है जैसे चाय में काफी वाली नहीं आती बस एक आदत पड़ जाती है ...
तालाब ***** गांव के बाहर एक बूढ़ा तालाब था उसके चारों तरफ हरा-भरा बाग था तरह-तरह के पक्षी नजर आ जाते थे तालाब के दक्षिण तरफ जो हिस्सा था जहां कोई जाता नहीं था वहाँ बहुत सारे कंटीले पेड़ थे उधर बच्चों का जाना माना था सबका मानना यही था वहाँ जहरीले सांप रहते हैं उसका यह हिस्सा पथरीला था नागफनी के लिए ही जैसे उसने सहेज रखा था ऐसे ही सबकी अपनी एक निश्चित जगह थी जो तालाब के किस तरफ है इससे उसकी पहचान निर्धारित हो जाया करती थी तालाब के हर तरफ कुछ न कुछ अनोखा था जो अपनी एक जगह रखता था वह जगह उसके लिए खास थी नहीं-नहीं उस जगह की उससे पहचान थी जगह का मतलब समझते हैं अरे वही जमीन यकीन मानिए जो जहां ... जितने में था पूरा था बच्चे बूढ़े तफरी के लिए तालाब किनारे घंटो बैठे रहा करते उसमें कुछ लोग मछली पकड़ने आते कई घंटे कांटे लगाए रहते यह वक्त बिताने का खेल अच्छा था मछली फंस गई तो ठीक नहीं तो बड़े आराम से पूरा दिन गुजर जाता था ऐसे ही तालाब का साथ मिल जाता था बातों के विषय कोई निश्चित नहीं थे रोज बात करना था सब-सब के बारे में सब कुछ जानते थे गांव का एक बड़ा हिस्सा तालाब के पास था तालाब की अपनी एक...
हमारा सिनेमा और समाज हमारी फिल्मों की जो यात्रा है वह आमतौर पर कथित या घोषित तौर पर खुद को सस्ता, हिंसक, अश्लील बिकाऊ साहित्य का अपडेटेड वर्जन बनाना भर है जो इंटरनेट की वजह से एक हो चुकी दुनिया में ग्लोबल मार्केट से पैसा कमाने की अपार संभावना में खुद के लिए पर्याप्त हिस्सा हासिल करने की कोशिश भर लगती है जहां असीमित अपार धन कमाया जा सकता है। इनका मकसद किसी की दशा सुधारना या कोई दिशा दिखाना नहीं है। वैसे समाज में सभी चीजें एक साथ चलती रहती है और साहित्य, सिनेमा में भी एक साथ सभी के लिए कुछ ना कुछ उपलब्ध होता है। किसी के लिए भी दर्शक, श्रोता, पाठक कभी कम नहीं होते और न वहां पैसों की कमी होती है बस अपनी बात, अपने कंटेंट को सही ढंग से परोसना आना चाहिए अखबार और किताब अभी भी छप रहे हैं। जापान हो या अमेरिका सभी जगह उनकी छपाई और गुणवत्ता निरंतर बेहतर हुई है या यूं कहें कि पहले से ज्यादा काम हो रहा है क्योंकि कागज और स्याही की खुशबू लोगों को कागज के करीब ले आती है इसमें कोई संदेह नहीं है जहां वह कुछ लिखता-पढ़ता, हाँ सबसे बड़ी बात वह छुअन महसूस कर...
इच्छाधारी ********* इच्छाधारी नाग-नागिन की कहानियाँ, तो हम सबने सुनी है, जिसमें वो कोई भी रूप धारण कर लेते, बचपन! अगर गाँव में बीता हो तो, सिनेमा वाला दृश्य, हर जगह मौजूद होता है, बस कल्पना को, डर वाली कहानियों के रंग से भरना है, ऐसे ही साँप से डरने पूजने, और मौका मिलते ही, मार देने का, अजब व्यवहार करते रहे, इसमें किसी के लिए कुछ भी गलत नहीं, हर आदमी, अपनी आस्था और कहानी गढ़ता है, पर साँप का जहर? बड़ा अजीब है, जो उसकी पहचान है इंसान उसी से डरता है, इसी डर से, तमाम विषहीन साँपो, की जान खतरे में पड़ जाती है, क्यों कि हमको पता नहीं चलता, किसमे जहर नहीं है, अक्सर इस अफरा तफरी में, बिना जहर वालों की जान चली जाती है, उनका सांप होना, उनके लिए सजा बन जाती है। खैर! अब तो शहर का जमाना है पर साँप के होने पर संदेह नहीं करना, आस-पास हमारे, अब सिर्फ, इच्छाधारी रहते हैं, जो हर वक्त रंग बदलते हैं, हमारे ही आस्तीनों में रहते हैं, जो खुद बीन बजाता है, दूध पूरा पी जाता है। उन सीधे साधे साँपो को, नाहक ...
अलविदा ******** स्मृतियों में वह, इस तरह बरकरार रहता है, हर वक्त साथ में है, यही तो लगता है, यह आने-जाने का सिलसिला, यूँ ही चलता रहता है, भीतर जो ठहर गया है, अपना सा लगता है, वह जो दूर जाता दिखाई देता है, कुछ और नहीं है, रोशनी का सफर है, जो परछाई को, छोटा-बड़ा कर देता है, जबकि बड़े होते आकार, देखकर वह हंसता है, दोनों हाथ उठाकर, कुछ और बड़ा हो जाता है, फिर दोपहर, रोज की तरह, उसे कदमों में ला देता है, खुद को इस तरह, एक जगह में सिमटा देखकर, मुस्करा देता है, तभी अपने अंदर मौजूद, कुछ सुनने लग जाता है, फिर कैसे अलविदा कह दे, वह अब भी यहीं मौजूद है, कोई, कहीं आता-जाता नहीं है। बुलंदी पर पहुँचने की ख्वाहिश में, क्या कुछ करता रहता है, लम्बे सफर पर, बिना ठौर के चलता रहता है, उसके जैसा बनने की, हसरत लिए, सब चल पड़े हैं, जबकि स...
शुक्ल जी ने अपनी डायरी के पानने हमसे साझा किया इसके लिए धन्यवाद
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