मुखौटा और चेहरा वह जो कह रहा है बड़ा अजीब सा सच्ची बात है लग रहा अजीब सा आईना लिए वह सामने खड़ा रहा कोई सामने से गुजरता क्यों भला सबको मालूम है सच क्यों जाहिर करे क्या है क्या नहीं है वह, हाल ऐसा है यहां सभी का चेहरा नहीं मुखौटा है चेहरा लग रहा है बस जो दावा कर रहा है सच्चा और अच्छा है वह चेहरा बेचने का हुनर जानता है बाजार में खड़ा है कीमत चाहता है न जाने कितने चेहरों से चेहरा ढक लिया है रोज उसका नया चेहरा है वह शख्स दुबारा किसी को मिलता नहीं है बहुत दिन तक यह खेल चलता रहा बहुरूपियों कि कमी कहां थी बाजार में देखते देखते यह कारोबार चल गया और भी लोग आ गए मैदान में सबको मालूम चल गया तूंँ वह नहीं है जैसा सबको दिख रहा सबकी तरह तूंँ भी महज दुकानदार है अब जो कह रहा वह बड़ा अजीब है तूंँ आदमी जैसा है, बस आदमी नहीं है अभी उसने रोना रोया है...
मुनाफाखोरी खेल मुनाफे का बड़ा निराला है दो का चार नहीं कम से कम दस बनाना है घात लगाए बैठा है कुछ तो बेच रहा है सीसी में दवा नहीं जहर भर के रखा है खाने पीने की चीज नकली सिर्फ मुनाफा असली है स्कूल अस्पताल सब साहूकार की डंडी है खेल मुनाफे का भैया बड़ा निराला है बड़े दुखी है वह जो कुछ बेंच नहीं पाते तैयार बैठे हैं बिकने को पर बिक नहीं पाते जिनका पेट है पहले से और भरा वह कहते हैं यह व्यवस्था ठीक नहीं सारा सिस्टम जबकि वही चला रहे दुनिया अपनी उंगली पर जैसा चाहे नचा रहे पर एक दिन ऐसा आया जैसे ख्वाब से जागा हो अपने कद जितना नही कहीं टुकड़ा भी विदा हुआ अकेले बिन माटी बिन कपड़ा ही दुनिया अब भी है कायम तुमने किया कितना ही यह मुनाफा किस काम का जब हाथ लगे न जर्रा भी दुनिया बड़ी गड़बड़ है अब भी कहता ऐसा ही जबकि उसने ही यह हाल बनाके रखा है खेल मुनाफे का भैया बड़ा निराला ऐस...
रावण दहन ******* कुछ लोग बहुत दुखी थे खूब आलोचना कर रहे थे क्या होना चाहिए सबसे यही कह रहे पर आगे बढ़कर किसी को कोई थामता नहीं सब उपदेश देते हैं खुद कुछ करते नहीं अभी जब रास्ते से गुजर रहे थे कोई बीमार था कोई किसी का शिकार था सड़क किनारे बेबस लाचार था कुछ तो कर सकते थे उसके लिए वह किया नहीं अफसोस जताते रहे दुनिया पर इंसानियत मर गई यह भी कहते रहे पर एक क्षण के लिए भी मुड़कर देखा नहीं जो गिरे थे उनको उठाने की कोशिश नहीं की और फिर उपदेश देने लग गए क्या-क्या बुरा है दिन कैसे आ गए इंसानियत पर भरोसा अब किसी का रहा नहीं और अपनी शानदार नई गाड़ी में आगे बढ़ा गए। अनजाने में अनायास ही वह फुटपथ पर सोए लोगों पर चढ़ गई यह भी कोई जगह है सोने के लिए लोगों को अक्ल नहीं है कैसे रहना चाहिए सड़क है चलने के लिए ******** ए नए रईस और उनके बच्चे जिन्हें मालूम ही नहीं...
incomplete इस सूखे पेड़ पर अब भी चिड़ियों का आना-जाना है रिश्ता बरकरार है यह यही बताता है पेड़ सूख गया तो क्या हुआ कभी तो हरा था यहीं पर सबके घोसले थे यह आसमानी फरिश्ते कहीं भी आशियाना बना सकते हैं और यहाँ आने की जरूरत नहीं है जहां हैं वहाँ सब कुछ मिलता है फिर इतने सफर की जरूरत ही क्या है? शायद कुछ यहाँ पर रह गया है जो हर बार पीछे छूट जाता है वह कहीं और जा नहीं पाता है वह यहीं का है जो यहाँ से छूटता नहीं है पर क्या ? मेरा वजूद ? या कुछ और ? खैर इस बूढ़े पेड़ की याद सताती है इससे जुड़ी हम सबकी अपनी कहानी है जिसमे यह पेड़ है उसके फूल, पत्ते और कांटे हैं छाँव है सुकून है वो बरसात की रात याद है जब बहुत तेज आंधी आई थी बड़ी मुश्किल से खुद को संभाला था ऐसे ही न न जाने कितनी बार कम ज्यादा काटा गया अब एक बड़ा हिस्सा सूख गया है मगर उसने खुद से उम्मीद नहीं छोड़ी है उससे अंकुर फूटना बंद नहीं हुआ है जिन परोंदों ने उसे ठी...
परिंदा ********* किसमें उसकी बेहतरी है फैसले का ऐलान कर दिया उसके चारों तरफ हर चीज सुनहरा शानदार कर दिया। वह समझता है, दिलोजान से मरता है, यही कहता रहा, सबसे उसके बारे में। जरूरत की हर चीज, बेशुमार भर दिया, हर कोने में, बस एक शर्त है, इस मुहब्बत में, उसे बोलनी है, कोई और जुबान। शुरू में थोड़ी तकलीफ हुई, पर! वक्त के साथ सीख लिया, कहे हुए को दुहराना बार-बार, सभी खुश होते हैं, सुनकर उसकी आवाज, जबकि उसे मालूम नहीं है, वह क्या कह रहा है, जिसे सुनकर खुश हो रहे हैं, इतना लोग आज, परिंदे से प्यार जताने का, ए नायाब तरीका है उसके लिए छोटा सा, खूबसूरत पिंजरा बनाना है, बस इसकी छोटी सी कीमत है, जो परिंदा चुकाता है, उससे अनंत आकाश, छूट जाता है, और सदा के लिए, पिंजरे का हो जाता है, जहाँ परिंदा होने का एहसास, धीरे...
बे-चेहरा ********** हलाँकि, उसे यही लगता है, उसने मुझे, ऐसो आराम का हर सामान दिया है, मुझे महफूज रखने की सारी व्यवस्था की है, और लोगों से, मुझे समझने का दावा करता है, ए लिबास और दीवार, मेरे लिए तो है, देखो कितनी खूबसूरत है, ए जंजीर सोने की है, इसमें हसीन पत्थर जड़े हैं, सब कुछ बहुत कीमती है, मुझको सर से पाँव तक, हर तरह की रंगीन बेडियों से जकड़ा है, जिसे कभी कोई लिबास, जेवर, या कुछ और कह देता है, उसका दावा अब भी यही है, वह, मेरे सहूलियत, मेरे हक की बात करता है, ए और है कि उसने कभी, मेरी आवाज नहीं सुनी, मुझे सिर्फ बुत समझते रहे, और मै, बिना किसी पहचान के, हरदम बेचेहरा रही, rajhansraju ************************* (२) मेरे ख्याल से ********* बहुत कुछ कहने, सुनने कि ख़्वाइश़, सभी को है, पर कहाँ? किससे और क्यों कहें? यह सोचकर अक्सर, चुप रह जाते हैं, जबकि अंदर, रह रहकर कुछ गूँजता है, जबकि बाहर न जाने, कब से? मौन पसरा है, सबको सब, नजर कहाँ आता है? कभी गौर से सुनना, चुप रह...
बनारस ********** बनारस की पचपन गलियां ****** (1) इन पचपन गलियों को जब भी जहाँ से देखता हूँ ऐसा लगता है हर गली से मैं गुजरा हूँ या फिर ए गलियां मुझमें गुजर रही हैं उस गली में जो जलेबी की दुकान है बहुत मीठी है लाख कोशिशों के बाद भी जिंदगी सीधी सड़क जैसी नहीं होती, वह इन्हीं किसी गली में रह-रह के ठहर जाती है अभी इस गली के मोड़ से थोड़ी सी मुलाकात कर लें, पता नहीं लौटकर आना कब हो? हर गली का एक नाम और नंबर है एकदम उम्र की तरह जिसकी मियाद है फिर आगे बढ़ जाना है जो गली पीछे छूट गई वहां मेरा बचपन अभी वैसे ही ठहरा हुआ है बगैर चश्मे के भी उसे देख लेता हूँ मैं कितना शरारती था सोचकर हंस देता हूं यही वजह है नाती पोतों को डाटता नहीं हूँ यही उस गली को जीने का वक्त है गलियों के चक्कर लगाने हैं इश्क किसी चौखट पर न जाने कब दस्तक देने लगे हर पल एक जगह वह ठहरने लगे किसी शायर को खूब पढ़ता है गुलाब संभाल कर किताबो...
शुक्ल जी ने अपनी डायरी के पानने हमसे साझा किया इसके लिए धन्यवाद
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