शिकायतनामा | shikayatnama

 लुहार 

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कोई उसे जिंदगी के
फलसफे समझा रहा था
यह कितनी कठोर, जालिम है
बता रहा था
सब कुछ कैसे पिस रहा है
उनके हाथ में कुछ नहीं है
जो हो रहा है
उसकी मर्जी है
वह बेफिक्र
अपने काम में लगा रहा
लोहा तपकर
एक दम लाल हो चुका है
उसे मनमाफिक आकार देना है
लोहार को अपना काम आता है
वह तो उसे गढ़ कर
जो चाहता है
वह बना देता है
©️Rajhansraju
🌹🌹❤️❤️🌹🌹
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सोचता हूँ,
थोड़ा,
बदल जाऊँ,
पर!
मैं ?
खुद के,
आडे आ जाता हूँ।
©️Rajhansraju
🌹🌹🌹🌹
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अगर जरूरत कम कर ली जाए
तो कुछ कम नहीं होता
जो है
बहुत है
इसे और भी बांटा जा सकता है
कोई मेरे आसपास है
जो भूखा है
फिर मेरे
होने का मतलब क्या है
कितना कुछ हासिल किया है
सब मेरा है
इस बात पर जोर बहुत देता है
जबकि
छूट जाता है सब यहीं पर
कोई सामान इस सफर में
ले जा सकता नहीं है
फिर इतने गठ्ठर और बोझ की
जरूरत क्या है
यह बात
हम कब से
कहते सुनते आ रहे हैं
जितना कम सामान होगा
सफर
उतना ही आसान होगा
©️Rajhansraju
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कहते तो यही हैं,
वह कहीं ठहरता नहीं है,
जबकि वक्त लम्हों का,
सिलसिला है,
वह लम्हों को अपने पीछे,
छोड़ता चला जाता है,
चाहे तो पलटकर देख लें,
बचपन अब भी,
वहीं ठहरा हुआ है,
हर लम्हा जेहन में,
वैसे ही बैठा हुआ है,
वह कहीं गया नहीं है,
वह पुराने पन्ने पर,
वैसे ही किसी इंतजार में,
ठहरा हुआ है
©️Rajhansraju
🌹🌹🌹❤️🌹🌹🌹
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श्री राम भजन 

मन के अंधियारे
अब तो भागे
भोर भई मेरे राम जगाये
देखो राम पधारे हैं
ऐसे ही अब का सोचे
मीच आंख दर्शन कर ले
प्रभु आज यहां पधारे हैं
तेरे जैसा रूप धरा है
जो तेरे मन को भाए है
आंगन में देखो कान्हा
कैसे खेल रहा है
हाथ में जिसके जग है सारा
आंचल में वो छुप रहा है
जिद पर अपने अड़ा पड़ा है
बच्चों की मनुहार यही है
घर जिससे सज जाता है
एक खिलौना मिलते ही
चेहरा खिल जाता है
चंदा आ गया हाथों में
देख उसको लगता है
राम समाए कड़कड़ में
हर तिनका पूरा लगता है
मन का अंधियारा मिट जाए
सब राम-राम हो जाए
आंख खुले राम हो सामने
देखें अपने राम को
राम राम कहते कहते
यात्री हैं हम राम के
राह मेरी मंजिल मेरी
सब में राम बसते हैं
मुझमें राम तुझमें राम
जग सारा है राम का
जो भटके और अटके हैं
यह मर्जी है राम की
रावण से
परिचय जरूरी है संसार का
जब तेरे मन में सिंहासन पर
बैठा रावण है

युद्ध नया नहीं है
अंदर का संघर्ष है
राम को वनवास दिया है
रावण को लंका सोने की
मन के अंदर सजी है लंका
अवध का कोई नाम नहीं
खोए हैं दसकंधर में
अपने शीश की परवाह नहीं
रावण गान करने वालों की
कमी नहीं है संसार में
अब आज भी उसके कुछ महारथी
हम में ही मौजूद हैं
जो रावण को बेचारा विक्टिम
साबित करते हैं
चलो माना तुम रावण दल से हो
लोकतंत्र है
और तुमको भी अपने मत का
पूरा हक है
एक गुजारिश है
कथा पूरी कहा करो
राम को क्यों आना पड़ा
यह भी बता दिया करो
नहीं तो रामदल की भी
कुछ बात सुन लिया करो
खैर यह रावण भी तो
अपना ही है
हम सब ने
इसको खूब पाला-पोसा है
तभी तो आज तक वह
हम सब में यह जिंदा है
हर साल जलाते हैं
पर अंदर जिंदा रखते हैं
वह भला मरेगा कैसे?
जिसने अमृत पी रखा है 
उसका अंत
सिर्फ राम कर सकते हैं
जिन्हें तुमने वनवास दिया है
जो हर पल दस्तक देते हैं
और तुम नजरअंदाज करते रहते हो
सोचो जब भी कुछ गलत करते हो
एक आवाज जोर से आती है
अनसुना करके
तुम लंका चल देते हो
तुम्हें सोने का सिंहासन चाहिए
रावण ही तो बनना है
फिर शिकायत क्यों करते हो
यह दुनिया बहुत बुरी है
जबकि इस को काला करने में
तेरा भी तो हिस्सा है
काश दस्तक सुन पाते
उस आवाज पर
वहीं ठहर जाते
पता नहीं
तुम कितना राम बन पाते
पर रावण तो हरगिज़ नहीं रहते
अब जग जाओ
यह दिन वही है
रावण को मरना है

रामलीला में
आज
इसी की प्रतीक्षा है
जबकि सबके अंदर रावण है
असल में वही समस्या है
अब पुतला उसका जल रहा है
राम राम गूंज रहा है
अंदर रावण हंस रहा है
वह भी तो राम राम ही कहता है
सबसे ज्यादा अधरों पर उसके
यही शब्द रहता है
मुक्ति की खोज में
कब से भटक रहा है
अमृत पीकर ने मरने को
अभिशापित है
रामदुलारे जा बैठे हैं
रावण के दल में
जबकि राम दूत बनकर उनको
लंका दहन करना है
तुम ही राम हो यह जानो
आंख खोलो खुद को पहचानो
यह रावण भी तुम ही हो
जिससे तुमको लड़ना है
अब राम नाम की जय बोलो
सब राम राम हो जाओ
जय सियाराम
जय जय सियाराम
©️Rajhansraju
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❤️❤️🌹🌹🌹🌹❤️❤️
चंद सिक्कों की खनक
क्या से क्या बना देती है?
किसी को खारख्वां
तो किसी को
बेईमा बना देती है,
मैं.. मेरा क्या कहूँ?
कौन हूँ मैं?
जो मिला जब मिला
मुझे अपने जैसा बना देती है
शायद कुछ पन्ने
खाली होना जरूरी है
बस वही है
जो..
जीना सिखा देती
©️AvinashSingh "Deep"
🌹🌹🌹🌹
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अब उसकी बातों पर
बहुत कम लोग यकीन करते हैं
भला ऐसा कहां होता है
कहानी अच्छी है
एकदम सफेद बाल
बड़े अच्छे लगते हैं
यह सच है 
कोई अंतिम मुकाम होता नहीं है
कहीं पर पहुंचकर
कुछ देर ठहर जाना
फिर पलट कर देखना
कहां से चला था
कैसे यहां तक आया
अब उसके किस्से का
हिस्सा बन गया है
और कहानी कहना
उसकी आदत हो गई है
यूं ही चलते चलते थक जाता है
कहीं भी पड़ाव रख देता है
वह जगह कौन सी है
पता नहीं चलता
एकदम अंधेरा है
एक ही रंग है वह काला है
अभी नहीं आगे जाने की तैयारी है
बस सुबह होने से
थोड़ा सा पहले
सराय छोड़ दी
उसने यह जानने की कोशिश नहीं की
यह कौन सी जगह है
इसका नाम क्या है
वह सिर्फ मुसाफिर है
जिसके पास कहानियां है
उन्हीं की तलाश में
अहर्निश यात्रा जारी है
वह किसी
एक नाम और पहचान से
जुड़ना नहीं चाहता
उसके शब्द हर जगह
यूँ बिखर जायें
जिसके पास पहुंचे
वह उसके हो जायें
वह अनाम यात्री
जिसकी यात्रा कभी खत्म नहीं होती
अभी उसी की कोई बात चली है
अरे नहीं यह क्या कह रहे हो
यह तो मैंने जिया है
यह तो मेरे शब्द हैं
बिल्कुल ऐसा ही तो हुआ था
मैंने यही तो कहा था
यह तो मेरे यात्रा की कहानी
©️Rajhansraju
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कोई कहीं भी
कितनी भी
ऊंचाई पर
पहुँच जाये
जड़ के बगैर
वहाँ बने रहना
नामुमकिन है
क्योंकि जमीन से
जो मिलता है
उसे लेने की
सामर्थ्य
सिर्फ़ जड़ में होती है
©️Rajhansraju
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ऐसे ही हुआ
जो होना था वही हुआ
हम क्या कहें बस चुप रहे
लोगों को लगा बोलता नहीं
जबकि न जाने
क्या क्या  संभालना था
पर कैसे
आज तक
यह समझ नहीं पाया
उसे रिश्ते बचाने का
यही तरीका आता है
वह अक्सर चुप हो जाता है
और कुछ न कहना
यूँ ही ना समझ बने रहना
बस मुस्करा देना
जैसे कुछ जानता ही नहीं
थोड़ा सा मुस्कराया
अच्छा क्या खाओगे
अब ए बताओ
©️Rajhansraju
❤️❤️❤️🌹🌹🌹
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यह तरस खाने का रिवाज,
सदियो से चलता रहा है,
मुफलिसी की कहानियां,
बड़ी चार्मिंग होती हैं
कोई भी आदमी,
बड़ी आसानी से
इनके फरेब में आ जाता है
एक सफल लेखक,
तभी सफल है,
जिसे पढ़कर,
लोग उफ और आह,
में उसको पढ़ें,
©️Rajhansraju
🌹🌹🌹🌹🌹🌹

राही मासूम रज़ा :
 ढलता सूरज, घटता चाँद, बूढ़ा पेड़
जब भी मैं तुझको याद आऊँ 
तू ये सोच के दिल मत छोटा करना 
मेरे-तेरे बीच न जाने कितना 
ज़ुबानों के दरिया हैं 
कितनी तहज़ीबों के समंदर 
धूप की झीलें 
छाँव के जंगल 
तू इस दूरी से मत घबरा 
क़ुर्बत का मौसम तो वही है, 
देख तो दिल के अंदर! 
दूरी चाहे जितनी भी हो 
मैं तो तुझसे दूर नहीं हूँ 
ढलता सूरज बनकर 
तेरे घर में आख़िर कौन आता है 
घटते चाँद का भेस बदल कर 
तेरी खिड़की पर मैं ही दस्तक देता हूँ 
और वो बूढ़ा पेड़ भी मैं हूँ 
जिसका साया 
झुक कर तेरे सर का बोसा लेता है 
जब 
जब भी मैं तुझको याद आऊँ 
मरियम तू बस 
ढलते सूरज, 
घटते चाँद की जानिब यूँ ही देख लिया कर 
और उस पेड़ की मीठी छाँव से 
अपने आँसू पोंछ के 
आगे बढ़ जाया कर।
🌹🌹❤️❤️

आज सारे दिन बाहर घूमता रहा
और कोई दुर्घटना नहीं हुई
आज सारे दिन लोगों से मिलता रहा
और कहीं अपमानित नहीं हुआ
और सारे दिन सच बोलता रहा।
और किसी ने बुरा न माना
आज सब का यकीन किया
और कहीं धोखा नहीं खाया
और सबसे बड़ा चमत्कार तो यह
कि घर लौटकर मैंने किसी और को नहीं
अपने ही को लौटा हुआ पाया
©️कुँवर नारायण
❤️❤️🌹🌹❤️❤️❤️

गोपालदास 'नीरज' की कविता-
"मैं तुम्हें अपना बनाना चाहता हूँ"
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अजनबी यह देश,
अनजानी यहां की हर डगर है,
बात मेरी क्या-
यहां हर एक खुद से बेखबर है
किस तरह मुझको बना ले
सेज का सिंदूर कोई
जबकि मुझको ही नहीं पहचानती
मेरी नजर है,
आंख में इसे बसाकर
मोहिनी मूरत तुम्हारी
मैं सदा को ही स्वयं को
भूल जाना चाहता हूँ
मैं तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं॥
दीप को अपना बनाने को
पतंगा जल रहा है,
बूंद बनने को समुन्दर का
हिमालय गल रहा है,
प्यार पाने को धरा का
मेघ है व्याकुल गगन में,
चूमने को मृत्यु
निशि-दिन, श्वांस-पंथी चल रहा है,
है न कोई भी अकेला
राह पर गतिमय इसी से
मैं तुम्हारी आग में
तन मन जलाना चाहता हूं
मैं तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं॥

देखता हूं एक मौन
अभाव सा संसार भर में,
सब विसुध, पर रिक्त प्याला एक है,
हर एक कर में,
भोर की मुस्कान के पीछे
छिपी निशि की सिसकियां,
फूल है हंसकर छिपाए
शूल को अपने जिगर में,
इसलिए ही मैं तुम्हारी आंख के
दो बूंद जल में
यह अधूरी जिन्दगी
अपनी डुबाना चाहता हूं।
मैं तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं॥

वे गए विष दे मुझे
मैंने हृदय जिनको दिया था,
शत्रु हैं वे
प्यार खुद से भी अधिक
जिनको किया था,
हंस रहे वे
याद में जिनकी
हजारों गीत रोये,
वे अपरिचित हैं,
जिन्हें हर सांस ने अपना लिया था,
इसलिए तुमको बनाकर
आंसुओं की मुस्कराहट,
मैं समय की क्रूर गति पर
मुस्कराना चाहता हूं।
मैं तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं॥

दूर जब तुम थे, स्वयं से
दूर मैं तब जा रहा था,
पास तुम आए
जमाना पास मेरे आ रहा था
तुम न थे तो कर सकी थी
प्यार मिट्टी भी न मुझको,
सृष्टि का हर एक कण
मुझ में कमी कुछ पा रहा था,
पर तुम्हें पाकर,
न अब कुछ शेष है पाना इसी से
मैं तुम्हीं से, बस तुम्हीं से
लौ लगाना चाहता हूं।
मैं तुम्हें, केवल तुम्हें
अपना बनाना चाहता हूं॥
©️गोपालदास "नीरज"
🌹🌹❤️❤️❤️🌹🌹🌹


अब मैं राशन की क़तारों में नज़र आता हूँ ,
अपने खेतों से बिछड़ने की सज़ा पाता हूँ ।
इतनी महंगाई कि बाज़ार से कुछ लाता हूँ,
अपने बच्चों में उसे बांट के शरमाता हूँ ।
अपनी नींदों का लहू पोंछने की कोशिश में,
जागते जागते थक जाता हूँ सो जाता हूँ,
कोई चादर समझ के 
खींच न ले फिर से 'ख़लील',
मैं कफ़न ओढ़ के 
फुटपाथ पे सो जाता हूँ ।
-ख़लील धनतेजवी
🌹🌹❤️❤️🌹🌹
'जब पूजा अजान में भेद न हो,
खिल जाती है भक्ति की प्रेम कली
रहमान की, राम की एक सदा,
घुलती मुख में मिसरी की डली।
जब संत फकीरों की राह मिली,
तब भूल गए पिछली-अगली
मियां वाहिद बोले मौला अली,
बजरंग बली- बजरंग बली..
-वाहिद अली
❤️❤️🌹🌹🌹❤️❤️❤️
वो किसी को याद कर के मुस्कुराया था उधर
और मैं नादान ये समझा कि वो मेरा हुआ
~ इक़बाल अशहर

‏मुद्दतों बा'द उठाए थे पुराने काग
साथ तेरे मिरी तस्वीर निकल आई है
~ साबिर दत्त

आज मुझी पर खुल गया,
मेरे दिल का राज़,
आई है हँसते समय,
रोने की आवाज़
~ भगवान दास एजाज़
❤️❤️❤️🌹🌹🌹
दोस्ती आम है लेकिन ऐ दोस्त
दोस्त मिलता है बड़ी मुश्किल से
~हफ़ीज़ होशियारपुरी
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वो कैसे लोग होते हैं
जिन्हें हम दोस्त कहते हैं
न कोई ख़ून का रिश्ता
न कोई साथ सदियों का
मगर एहसास अपनों सा
वो अनजाने दिलाते हैं
~इरफ़ान अहमद मीर
❤️❤️🌹🌹🌹🌹
जो पुल बनाएँगे
वे अनिवार्यत:
पीछे रह जाएँगे।
सेनाएँ हो जाएँगी पार
मारे जाएँगे रावण
जयी होंगे राम,
जो निर्माता रहे
इतिहास में
बन्दर कहलाएँगे।
    -अज्ञेय
❤️❤️🌹🌹🌹🌹

🌹🌹🌹❤️❤️❤️❤️🙏🙏🙏🌹❤️❤️🌹🌹

 ऐसा नौकर चाहिए, जो मांग जांच के खाय। 
समय से सारा काम करे, घर कभी न जाय।।

   -बाबा तिकड़म बाज


तुम्हारे जिस्म की महक 
मेरे कपड़ों से गयी नहीं 
अब तलक,
अभी कल ही किसी ने 
रोक कर पूछा था, 
इत्र कौन सा लगाते हो?
~ विपिन श्रीवास्तव







 कोई परदा?

कब तक बनेगा चेहरा?

जब रोशनी दूर हो आँखो से,

क्या करेगा परदा,

फिर तन्हा, मकानों मे,

खुद को पाता है,

ड़र-ड़र के, 

न जाने किससे,

चेहरा छुपाता है, 

आइने के सामने, 

परदा लेकर जाता है,

कुछ नज़र आए,

इससे पहले,

आइना ढ़क देता है..

एक खुशफहमी लिए

जीता रहता है

अच्छा है

कभी-कभी

परदे का बने रहना

इससे खुद को कोई

जवाब नहीं देना पड़ता है

©️Rajhansraju























मंदिर 
यूँ ही फिक्र करते, 
न जाने कितनी? 
सदियां गुजर गई, 
और वह अब भी, 
बुत बना बैठा है, 
कुछ इस तरह से
©️Rajhansraju 






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और कुछ नहीं, 
सिर्फ़ खुद से, 
वादा करते हैं, 
इससे बेहतर बनेंगे, 
और बेहतर बनाएंगे, 
कोई शिकायत नहीं, 
जो भी है अपना है, 
बस चलते रहे, 
तो कारवाँ बढ़ जाएगा, 
थोड़ा धीरज रखना है, 
साहस करना है, 
एक दूसरे का, 
हाथ पकड़कर, 
साथ चलना है, 
जिम्मेदारियां बहुत बड़ी है, 
हर हाथ में पूरा हिन्दुस्तान है, 
©️rajhansraju 

















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Comments

  1. एक शानदार page के लिए शुक्रिया

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  2. जो कहानी, कविता लिखते हों उनके लिए छापना, छपवाना और बहुत सारी समस्याएं होती हैं, जबकि ए digital कम खर्चे में यह काम हो जाता है और एक हफ्ते के अंदर एक link मिल जाएगा..
    बस ए चीजें करनी है..
    -कम से कम दस कविता होनी चाहिए, title के साथ हो तो अच्छा होगा
    -कविता संग्रह का नाम?
    -अपना परिचय?
    -Social network के link
    -Photo अपनी, घर वालों की, दोस्तों की या आपके मोबाइल में जो अच्छी लगती हो..
    इसके बाद editor का काम..
    मतलब blog पर देख लीजिए कई कविता संग्रह छपे है...
    और... /- ₹ Technician का न्यूनतम खर्च, जो इसको सजाने, बनाने में आता है

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