यज्ञ के अनधिकारी से यज्ञ कराने और शात्रोक्त कर्मों में नास्तिक बुद्धि रखने से एवं वेदाध्ययन रहित हो जाने से कुल शीघ्र नष्ट हो जाते हैं। अल्प धन वाले कुल यदि वेदाध्ययन से समृद्ध हैं तो उनकी गणना भी अच्छे कुलों में होती है और वे यशस्वी कहलाते हैं।
ManuSmriti में बहुत कुछ ऐसा लिखा है जो आज के समय में सर्वथा तिरस्कार योग्य, त्याज्य दिखता है। वर्ण व्यवस्था के आधार पर बहुत कठोरता और कई स्थानों पर आज के सन्दर्भ में घृणित दिखने वाली बातें कही गई हैं, उनको नकारना ही उचित है, लेकिन मनु स्मृति में बहुत कुछ है जिससे किसी भी व्यक्ति का जीवन आचरण श्रेष्ठ हो सकता है। मनु स्मृति पढ़ने से आचरण-व्यवहार कुछ बेहतर ही होगा और जो आपको ठीक नहीं लगता, उसे नकार दीजिए। सभ्य, स्वस्थ समाज ऐसे ही बनता है।
अत: स्त्रियों को सदैव भूषण, वसन और भोजन से संतुष्ट करना चाहिए। समृद्धि की इच्छा रखने वाले को मंगलकार्य और उत्सवों में स्त्रियों को भूषण, वस्त्रादि से संतुष्ट रखना चाहिए। जिस कुल में पत्नी से पति और पति से पत्नी प्रसन्न रहती है, उस कुल में सदैव कल्याण ही होता है।
यदि हि स्त्री न रोचेतं पुमांसं न प्रोमोदयेत् ।
अप्रमोदात्पुन: पुंस: प्रजनं न प्रवर्तते।।६१।।
स्त्रियां तु रोचमानायां सर्वं तद्रोचते कुलम्।
तस्या त्वरोचमानायां सर्वमेव न रोचते।।६२।।
अर्थात्
यदि पत्नी प्रसन्नचित्त न हो तो वह पति को आनंदित नहीं कर सकती है और स्वामी प्रसन्न न हो तो सन्तानोत्पादन (वंश वृद्धि) नहीं होता। अलंकारादि में स्त्री की रुचि होने से सारा कुल दीप्तिमान होता है, परन्तु स्त्री के असंतुष्ट होने पर सारा कुल मलिन हो जाता है।
ManuSmriti में बहुत कुछ ऐसा लिखा है जो आज के समय में सर्वथा तिरस्कार योग्य, त्याज्य दिखता है। वर्ण व्यवस्था के आधार पर बहुत कठोरता और कई स्थानों पर आज के सन्दर्भ में घृणित दिखने वाली बातें कही गई हैं, उनको नकारना ही उचित है, लेकिन मनु स्मृति में बहुत कुछ है जिससे किसी भी व्यक्ति का जीवन आचरण श्रेष्ठ हो सकता है। मनु स्मृति पढ़ने से आचरण-व्यवहार कुछ बेहतर ही होगा और जो आपको ठीक नहीं लगता, उसे नकार दीजिए। सभ्य, स्वस्थ समाज ऐसे ही बनता है।
मनुस्मृति तृतीयोध्याय:
पितृभिर्भातृभिश्चैता: पितिभिर्देवरैस्तथा।
पूज्या भूषयितव्याश्च बहुकल्याणमीप्सुभि:।।५५।।
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सार्वास्तत्राफला: क्रिया:।।५६।।
अर्थात्
विशेष कल्याण कामना युक्त, माता-पिता, भाई, पति और देवरों को उचित है कि कन्या का सत्कार करें और वस्त्रालंकारादि से भूषित करें। जिस कुल में स्त्रियां सम्मानित होती हैं, उश कुल से देवतागण प्रसन्न होते हैं और जहां स्त्रियों का तिरस्कार होता है, वहां सभी क्रियाएं (यज्ञादिक कर्म भी) निष्फल होते हैं।
शोचन्ति जामयो यत्र विनश्यात्सु तत्कुलम।
न शोचन्ति तु यत्रैता वर्धते तद्धि सर्वदा।।५७।।
जामयो यानि गेहानि शपन्त्यप्रतिपूजिता:।
तानि कृत्याहतानीव विनश्यन्ति समन्तत:।।५८।।
अर्थात्
जिस कुल में बहू-बेटियां क्लेश पाती हैं, वह कुल शीघ्र नष्ट हो जाता है, किन्तु जहां इन्हें किसी प्रकार का दुख नहीं होता है, वह कुल सर्वदा वृद्धि को प्राप्त होता है। अपमानित होने के कारण बहू-बेटियां जिन घरों को शाप देती हैं, कोसती हैं, वे घर अभिचारादि से नष्ट होकर हर तरह से नाश को प्राप्त होते हैं।
ManuSmriti में बहुत कुछ ऐसा लिखा है जो आज के समय में सर्वथा तिरस्कार योग्य, त्याज्य दिखता है। वर्ण व्यवस्था के आधार पर बहुत कठोरता और कई स्थानों पर आज के सन्दर्भ में घृणित दिखने वाली बातें कही गई हैं, उनको नकारना ही उचित है, लेकिन मनु स्मृति में बहुत कुछ है जिससे किसी भी व्यक्ति का जीवन आचरण श्रेष्ठ हो सकता है। मनु स्मृति पढ़ने से आचरण-व्यवहार कुछ बेहतर ही होगा और जो आपको ठीक नहीं लगता, उसे नकार दीजिए। सभ्य, स्वस्थ समाज ऐसे ही बनता है।
माता पृथिव्या मूर्तिस्तु भ्राता स्वो मूर्तिरात्मन:।।२२६।।
अर्थात्
दुखी होने पर भी आचार्य, माता, पिता और ज्येष्ठ भ्राता, इन लोगों का अपमान नहीं करना चाहिए, विशेषकर ब्राह्मणों का तो कभी भी नहीं करना चाहिए। आचार्य ब्रह्म-मूर्ति होता है। पिता ब्रह्मा की, माता पृथ्वी की और भाई अपने आत्मा की मूर्ति होता है
ManuSmriti पढ़ने से आचरण-व्यवहार कुछ बेहतर ही होगा और जो आपको ठीक नहीं लगता, उसे नकार दीजिए। सभ्य, स्वस्थ समाज ऐसे ही बनता है।
प्राणियों के कल्याण हेतु अहिंसा से ही अनुशासन करना श्रेष्ठ है, धार्मिक शासक को मधुर और नम्र वचनों का प्रयोग करना चाहिए। जिसकी वाणी और मन शुद्ध और सदैव सम्यक रीति से सुरक्षित है वह वेदान्त में कहे हुए सभी फलों को प्राप्त करता है।
ManuSmriti पढ़ने से आचरण-व्यवहार कुछ बेहतर ही होगा और जो आपको ठीक नहीं लगता, उसे नकार दीजिए। सभ्य, स्वस्थ समाज ऐसे ही बनता है।
मनुस्मृति द्वितीयोध्याय:
यथा काष्ठमयो हस्ती यथा चर्ममयो मृग:।
यश्च विप्रोनधीयानस्त्रयस्ते नाम बिभ्रति।।१५७।।
यथा षण्ढोफल: स्त्रीयु यथा गौर्गवि चाफला।
यथा चाज्ञेफलं दानं तथा विप्रोनृचोफल:।।१५८।।
अर्थात्
जैसे काठ का हाथी और चमड़े का मृग होता है वैसे ही बिना पढ़ा ब्राह्मण केवल नामधारी होता है। स्त्रियों के मध्य जिस प्रकार नपुंसक निष्फल होता है जैसे गौओ में गौ निष्फल होती है और जैसे मूर्ख को दिया हुआ दान निष्फल होता है वैसे ही वेद ऋचाओं को न जानने वाले ब्राह्मण निष्फल होता है।
ManuSmriti पढ़ने से आचरण-व्यवहार कुछ बेहतर ही होगा और जो आपको ठीक नहीं लगता, उसे नकार दीजिए। सभ्य, स्वस्थ समाज ऐसे ही बनता है।
मनुस्मृति द्वितीयोध्याय:
यथा काष्ठमयो हस्ती यथा चर्ममयो मृग:।
यश्च विप्रोनधीयानस्त्रयस्ते नाम बिभ्रति।।१५७।।
यथा षण्ढोफल: स्त्रीयु यथा गौर्गवि चाफला।
यथा चाज्ञेफलं दानं तथा विप्रोनृचोफल:।।१५८।।
अर्थात्
जैसे काठ का हाथी और चमड़े का मृग होता है वैसे ही बिना पढ़ा ब्राह्मण केवल नामधारी होता है। स्त्रियों के मध्य जिस प्रकार नपुंसक निष्फल होता है जैसे गौओ में गौ निष्फल होती है और जैसे मूर्ख को दिया हुआ दान निष्फल होता है वैसे ही वेद ऋचाओं को न जानने वाले ब्राह्मण निष्फल होता है।
ManuSmriti पढ़ने से आचरण-व्यवहार कुछ बेहतर ही होगा और जो आपको ठीक नहीं लगता, उसे नकार दीजिए। सभ्य, स्वस्थ समाज ऐसे ही बनता है।
यो वै युवाप्यधीयानस्तं देवां स्थिवरं विदु: ।।१५६।।
अर्थात्
ब्राह्मणों का ज्ञान से, क्षत्रियों का बल से, वैश्यों का धनधान्य से और शूद्रों का जन्म से बड़ापन होता है। केवर सिर के बाल पक जाने से ही कोई वृद्ध नहीं होता है, जो वेद वदांग का ज्ञाता है, वह युवा होते हुए भी वृद्ध होता है, यह देवताओं का वचन है
ManuSmriti पढ़ने से आचरण-व्यवहार कुछ बेहतर ही होगा और जो आपको ठीक नहीं लगता, उसे नकार दीजिए। सभ्य, स्वस्थ समाज ऐसे ही बनता है।
अर्थात् यज्ञ के अनधिकारी से यज्ञ कराने और शात्रोक्त कर्मों में नास्तिक बुद्धि रखने से एवं वेदाध्ययन रहित हो जाने से कुल शीघ्र नष्ट हो जाते हैं। अल्प धन वाले कुल यदि वेदाध्ययन से समृद्ध हैं तो उनकी गणना भी अच्छे कुलों में होती है और वे यशस्वी कहलाते हैं।
#ManuSmriti में बहुत कुछ ऐसा लिखा है जो आज के समय में सर्वथा तिरस्कार योग्य, त्याज्य दिखता है। वर्ण व्यवस्था के आधार पर बहुत कठोरता और कई स्थानों पर आज के सन्दर्भ में घृणित दिखने वाली बातें कही गई हैं, उनको नकारना ही उचित है, लेकिन मनु स्मृति में बहुत कुछ है जिससे किसी भी व्यक्ति का जीवन आचरण श्रेष्ठ हो सकता है। मनु स्मृति पढ़ने से आचरण-व्यवहार कुछ बेहतर ही होगा और जो आपको ठीक नहीं लगता, उसे नकार दीजिए। सभ्य, स्वस्थ समाज ऐसे ही बनता है।
जो दरिद्रता वश अतिथि सत्कार में असमर्थ हो तो वह नित्य स्वाध्याय करे, क्योंकि दैव कर्म में लगा हुआ पुरुष इस चराचर को धारण कर सकता है। सम्यक रूप से अग्नि में दी हुई आहुति सूर्य को प्राप्त होती है। सूर्य से वर्षा होती है, वर्षा से अन्न उपजता है, उससे प्रजा की उत्पत्ति होती है।
वायु के आश्रय से जिस प्रकार सब प्राणी जीते हैं, वैसे ही गृहस्थाश्रम के आश्रय से सब आश्रमों का निर्वाह होता है। तीनों आश्रमी (ब्रह्मचारी, वानप्रस्थी और संन्यासी) गृहस्थों का द्वारा नित्य वेदांत की चर्चा और अन्नदान से उपकृत होते हैं, इस कारण गृहस्थाश्रम ही सर्व आश्रमों में सबसे बड़ा होता है।
ManuSmriti में बहुत कुछ ऐसा लिखा है जो आज के समय में सर्वथा तिरस्कार योग्य, त्याज्य दिखता है। वर्ण व्यवस्था के आधार पर बहुत कठोरता और कई स्थानों पर आज के सन्दर्भ में घृणित दिखने वाली बातें कही गई हैं, उनको नकारना ही उचित है, लेकिन मनु स्मृति में बहुत कुछ है जिससे किसी भी व्यक्ति का जीवन आचरण श्रेष्ठ हो सकता है। मनु स्मृति पढ़ने से आचरण-व्यवहार कुछ बेहतर ही होगा और जो आपको ठीक नहीं लगता, उसे नकार दीजिए। सभ्य, स्वस्थ समाज ऐसे ही बनता है।
इस लोक में भी सुख चाहने वाले और अक्षय स्वर्ग पाने की इच्छा वाले को यत्नपूर्वक ऐसे गृहस्थाश्रम का पालन करना चाहिए। गृहस्थास्रम का पालन दुर्बल इंद्रियों से नहीं होता है। ऋषि, पितर, देवता, जीवजन्तु और अतिथि, ये कुटुम्बियों से कुछ पाने की इच्छा रखते हैं। शास्त्रज्ञ पुरुष उन्हें संतुष्ट करें।
स्वाध्यायेनार्चयेतर्षीन्होमैर्देवान्यथाविधि।
पितृन्श्राद्धैश्च नृनन्नैर्भूतानि बलिकर्मणा।।८१।।
कुर्यादहरह: श्राद्धमन्नाद्येनोदकेन वा।
पयोमूलफलैर्वापि पितृभ्य: प्रीतिमावहन्।।८१।।
अर्थात्
ऋषियों का वेदाध्ययन से, देवताओं का होम से, श्राद्ध और तर्पण से पितरों का, अन्न से अतिथियों और बालिकर्म से प्राणियों का सत्कार करना चाहिए। अन्नादि या जल से दूध से या फलादि से पितरों के प्रसन्नार्थ नित्य श्राद्ध करें।
#ManuSmriti में बहुत कुछ ऐसा लिखा है जो आज के समय में सर्वथा तिरस्कार योग्य, त्याज्य दिखता है। वर्ण व्यवस्था के आधार पर बहुत कठोरता और कई स्थानों पर आज के सन्दर्भ में घृणित दिखने वाली बातें कही गई हैं, उनको नकारना ही उचित है, लेकिन मनु स्मृति में बहुत कुछ है जिससे किसी भी व्यक्ति का जीवन आचरण श्रेष्ठ हो सकता है। मनु स्मृति पढ़ने से आचरण-व्यवहार कुछ बेहतर ही होगा और जो आपको ठीक नहीं लगता, उसे नकार दीजिए। सभ्य, स्वस्थ समाज ऐसे ही बनता है।
चीन में एक बहुत बड़ा फकीर हुआ। वह अपने गुरु के पास गया तो गुरु ने उससे पूछा कि तू सच में संन्यासी हो जाना चाहता है कि संन्यासी दिखना चाहता है? उसने कहा कि जब संन्यासी ही होने आया तो दिखने का क्या करूंगा?
होना चाहता हूं। तो गुरु ने कहा, फिर ऐसा कर, यह अपनी आखिरी मुलाकात हुई। पाँच सौ संन्यासी हैं इस आश्रम में तू उनका चावल कूटने का काम कर। अब दुबारा यहां मत आना। जरूरत जब होगी, मैं आ जाऊंगा।
कहते है, बारह साल बीत गए। वह संन्यासी चौके के पीछे, अंधेरे गृह में चावल कूटता रहा। पांच सौ संन्यासी थे।
सुबह से उठता, चावल कूटता रहता।
रात थक जाता, सो जाता। बारह साल बीत गए।
वह कभी गुरु के पास दुबारा नहीं गया।
क्योंकि जब गुरु ने कह दिया, तो बात खतम हो गयी।
जब जरूरत होगी वे आ जाएंगे, भरोसा कर लिया।
कुछ दिनों तक तो पुराने खयाल चलते रहे,
लेकिन अब चावल ही कूटना हो दिन-रात तो पुराने खयालों को चलाने से फायदा भी क्या?
धीरे-धीरे पुराने खयाल विदा हो गए।
उनकी पुनरुक्ति में कोई अर्थ न रहा।
खाली हो गए, जीर्ण-शीर्ण हो गए।
बारह साल बीतते-बीतते तो उसके सारे विदा ही हो गए विचार। चावल ही कूटता रहता। शांत रात सो जाता,
सुबह उठ आता, चावल कूटता रहता। न कोई अड़चन,
न कोई उलझन। सीधा-सादा काम, विश्राम।
बारह साल बीतने पर गुरु ने घोषणा की कि मेरे जाने का वक्त आ गया और जो व्यक्ति भी उत्तराधिकारी होना चाहता हो मेरा, रात मेरे दरवाजे पर चार पंक्तियां लिख जाए जिनसे उसके सत्य का अनुभव हो। लोग बहुत डरे, क्योंकि गुरु को धोखा देना आसान न था। शास्त्र तो बहुतों ने पढ़े थे। फिर जो सब से बडा पंडित था, वही रात लिख गया आकर। उसने लिखा कि मन एक दर्पण की तरह है, जिस पर धूल जम जाती है। धूल को साफ कर दो, धर्म उपलब्ध हो जाता है। धूल को साफ कर दो, सत्य अनुभव में आ जाता है। सुबह गुरु उठा, उसने कहा, यह किस नासमझ ने मेरी दीवाल खराब की? उसे पकड़ो।
वह पंडित तो रात ही भाग गया था, क्योंकि वह भी खुद डरा था कि धोखा दें! यह बात तो बढ़िया कही थी उसने, पर शास्त्र से निकाली थी। यह कुछ अपनी न थी। यह कोई अपना अनुभव न था। अस्तित्वगत न था। प्राणों में इसकी कोई गुंज न थी। वह रात ही भाग गया था कि कहीं अगर सुबह गुरु ने कहा, ठीक! तो मित्रों को कह गया था, खबर कर देना; अगर गुरु कहे कि पकड़ो, तो मेरी खबर मत देना।
सारा आश्रम चिंतित हुआ। इतने सुंदर वचन थे। वचनों में क्या कमी है? मन दर्पण की तरह है, शब्दों की, विचारों की, अनुभवों की धूल जम जाती है। बस इतनी ही तो बात है। साफ कर दो दर्पण, सत्य का प्रतिबिंब फिर बन जाता है। लोगों ने कहा, यह तो बात बिलकुल ठीक है, गुरु जरा जरूरत से ज्यादा कठोर है। पर अब देखें, इससे ऊंची बात कहां से गुरु ले आएंगे। ऐसी बात चलती थी, चार संन्यासी बात करते उस चावल कूटने वाले आदमी के पास से निकले। वह भी सुनने लगा उनकी बात। सारा आश्रम गर्म! इसी एक बात से गर्म था।
सुनी उनकी बात, वह हंसने लगा। उनमें से एक ने कहा, तुम हंसते हो! बात क्या है? उसने कहा, गुरु ठीक ही कहते हैं। यह किस नासमझ ने लिखा? वे चारों चौंके। उन्होंने कहा, तू बारह साल से चावल ही कूटता रहा, तू भी इतनी हो गया! हम शास्त्रों से सिर ठोंक-ठोंककर मर गए। तो तू लिख सकता है इससे बेहतर कोई वचन? उसने कहा, लिखना तो मैं भूल गया, बोल सकता हूं अगर कोई लिख दे जाकर। लेकिन एक बात खयाल रहे, उत्तराधिकारी होने की मेरी कोई आकांक्षा नहीं। यह शर्त बता देना कि वचन तो मै बोल देता हूं अगर कोई लिख भी दे जाकर--मैं तो लिखूंगा नहीं, क्योंकि मैं भूल गया, बारह साल हो गए कुछ लिखा नहीं--उत्तराधिकारी मुझे होना नहीं है। अगर इस लिखने की वजह से उत्तराधिकारी होना पड़े, तो मैंने कान पकड़े, मुझे लिखवाना भी नहीं। पर उन्होंने कहा, बोल! हम लिख देते है जाकर। उसने लिखवाया कि लिख दो जाकर--कैसा दर्पण? कैसी धूल? न कोई दर्पण है, न कोई धूल है, जो इसे जान लेता है, धर्म को उपलब्ध हो जाता है।
आधी रात गुरु उसके पास आया और उसने कहा कि अब तू यहां से भाग जा। अन्यथा ये पांच सौ तुझे मार डालेंगे। यह मेरा चोगा ले, तू मेरा उत्तराधिकारी बनना चाहे या न बनना चाहे, इससे कोई सवाल नही, तू मेरा उत्तराधिकारी है। मगर अब तू यहां से भाग जा। अन्यथा ये बर्दाश्त न करेंगे कि चावल कूटने वाला और सत्य को उपलब्ध हो गया, और ये सिर कूट-कूटकर मर गए।
जीवन में कुछ होने की चेष्टा तुम्हें और भी दुर्घटना में ले जाएगी। तुम चावल ही कूटते रहना, कोई हर्जा नहीं है।
कोई भी सरल सी क्रिया, काफी है। असली सवाल भीतर जाने का है। अपने जीवन को ऐसा जमा लो कि बाहर ज्यादा उलझाव न रहे। थोड़ा--बहुत काम है जरूरी है, कर दिया, फिर भीतर सरक गए। भीतर सरकना तुम्हारे लिए ज्यादा से ज्यादा रस भरा हो जाए। बस, जल्दी ही तुम पाओगे दुर्घटना समाप्त हो गयी, अपने को पहचानना शुरू हो गया।
अपने से मुलाकात होने लगी। अपने आमने-सामने पड़ने लगे। अपनी झलक मिलने लगी। कमल खिलने लगेंगे।बीज अंकुरित होगा।
धूमकेतु वह उसे यूं ही निहारता रहा एक टक देखता रहा एक भी शब्द नहीं कहा बस गुमसुम बैठा रहा कब से इसका एहसास नहीं है ऐसे ही वक्त फासला तय करता रहा कौन कहां गया किसी को पता नहीं चला सदियां गुजर गई वह इंतजार में था या ठहरा हुआ था किसके लिए उसे भी मालूम नहीं नदी अब भी वैसे ही बह रही है उसका नाम गंगा है सुना है उसने न जाने कितनों को उस पार पहुंचाया है बस वह नाव जो इस पार से उस पार जाती है शायद उसी की राह देख रहा है न जाने कब से? भगीरथ उसे यहां लाए थे अपने पूर्वजों के लिए उनकी प्यास मिटाने जिन्होंने इंतजार में अपनी काया इस माटी को सौंप दी थी तब से न जाने कितने लोग गंगा के साथ अपनी-अपनी यात्रा पर गए और यह यात्रा ऐसी है जिसकी कोई कहानी कहता नहीं क्योंकि गंगा गंगा सागर में जाकर मिल जाती हैं और सागर से भला कौन लौट कर आना चाहेगा जो खुद सागर बन गया हो लौटकर किसको अ...
कैक्टस जहां पानी कम होता है या फिर नहीं होता उस बंजर जमीन को भी हरा किया जा सकता है बस वहां कैक्टस लगाना होता है और कभी-कभी तो कैक्टस वहां खुद उग आते हैं यह बिरानगी उनसे देखी नहीं जाती अपने कांटों से रेत रोकने लग जाते हैं कोई इस हाल में इतना हरा हो सकता है पानी के अभाव में हरियाली की जिम्मेदारी कैसे ले सकता है इस सहरा में भी वैसे ही सहर होती है एक दिन सुकून की छांव होगी यहां भी पानी होगा यहीं किनारा होगा यहां सब कुछ होगा कैक्टस ने जिम्मेदारी ली है एक घरौंदा बनाने की उसकी अधूरी छांव में अब उतनी धूप नहीं लगती आज कोई अनजाना अंकुर फूटा है न जाने बड़ा पेड़ होगा या धरती का बिछौना मखमली घास होगा खैर कुछ भी हो शुरुआत तो ऐसे ही होती है मेरे सिवा कोई और है मैं अकेला नहीं हूंँ यह काफी है मैं कैक्टस हूंँ मेरा काम आसान नहीं है दूसरे पौधे अपना वजूद बनाने लगे हैं म...
सूखा दरख़्त हर किसी के लिए, एक मियाद तय है, जिसके दरमियाँ सब होता है, किसी बाग में, आज एक दरख्त सूख गया, हलांकि अब भी, उस पर चिड़ियों का घोसला है, शायद उसके हरा होने की उम्मीद, अब भी कहीं जिंदा है, मगर इस दुनियादारी से बेवाकिफ, इन आसमानी फरिश्तों को, कौन समझाए? अपनी उम्र पार करने के बाद, भला कौन ठहरता है? किसी बगीचे में, पौधे की कदर तभी तक है, जब तक वह हरा है, उसके सूखते ही, उसको उसकी जगह से, रुखसत करने की, तैयारी होने लगती है ऐसे ही उस पर, कुल्हाड़ियां पड़ने लगी, बेजान सूखा दरख्त, आहिस्ता-आहिस्ता बिखरने लगा, वह किसका दरख्त है, अब यह सवाल कोई नहीं पूछता, क्योंकि सूखी लकड़ियां, किस पेड़ की हैं, इस बात से कोई मतलब नहीं है, बस उन्हें ठीक से जलना चाहिए, जबकि हर दरख़्त की, एक जैसी दास्तान है, वह अपने लिए, कभी कु...
किसान का बेटा किसान का बेटा थानेदार बन गया बड़ा रौबदार हो गया अकड़ कर चलता है चले भी क्यों नहीं सरकारी अफसर है हाथ में पिस्टल है ऐसे ही थाने में एक दिन एक केस आया किसी मजदूर के बेटे पर चोरी का इल्जाम था पुलिस में भर्ती होने वाले सभी लोग बेहद साधारण घर से आते हैं गांव के लोग ही होते हैं खैर बात शहर के मजदूर की हो रही है जो शायद खलिहान छोड़कर आया हो उसी का बेटा है जिसकी उम्र छोटी है मांँ-बाप किसी सेठ के यहां काम करते हैं इतना कमा लेते हैं बस काम चल जाता है बेटा भी हाथ बटाता तो और बेहतर होता खैर मां-बाप के साथ वह भी मालिक के यहां आता जाता था कभी कभी छोटे मोटे कुछ काम भी कर लेता था फिर एक दिन कुछ सामान उसे पसंद आ गया उसने हाथ साफ कर दिया अक्सर ऐसा होता है चोरी की जो आदत है शायद कहीं किसी कमतरी के एहसास से जन्म लेता है उसी से शुरू होता है ए वाला सामान मेरे पास क्यों नहीं है हम इसे खरीद नहीं सकते यह हमारे पास तभी हो सकता है मतलब इसका आसान तरीका यही है चोरी उस वक्त बात आई गई हो गई बच्चे की उम्र को देखते हुए उसे समझाया गया बाल मन ने पूरी बात अपने ढंग से लिया उसे यह करना सामान्य लगा जो उस...
कुम्भ डायरी हमारे यहां कुम्भ से जुड़ी कहानियों की भरमार है आजकल तो सोशल नेटवर्क का जमाना है जिसे देखो कहानी कह रहा है 2-3 मिनट से बात चलकर 10 से 15 सेकंड के वीडियो पर आ गई है सब अदभुत अनोखा अनरिस्ट्रिक्टेड है जहां कोई भी कुछ भी कह सकता है और वह कह रहा है सोचिए रेलवे स्टेशन और बस अड्डा से उतर कर कुछ लोगों ने कहा वह 50 किलोमीटर तक पैदल चले जबकि कोई भी स्टेशन संगम से ज्यादा दूर नहीं है अब ऐसे लोगों की बात आती है जो अपने यहां से हजारों किलोमीटर दूरी तय करके आ रहे हैं साधन संपन्न है चीजें खरीद सकते हैं और ऐसे लोगों की अब कोई कमी नहीं है और ना तो उनकी आस्था भक्ति पर संदेह है पर कैसे जब आगे जगह ही नहीं है तो आपकी गाड़ी और आप कैसे आगे बढ़ेंगे कहीं तो रुकना पड़ेगा वही होता है फिर खबरें चलने लगी दक्षिण की तरफ से आने वाले लोगों ने 300 किलोमीटर का जाम लगा दिया यह भी तो हमारी ताकत ही है हम 300 किलोमीटर खड़े रहे संगम आने के लिए प्रयागराज महाकुंभ में शामिल होने के लिए इस तरह हर वह रास्ता जो संगम की तरफ प्रयागराज की तरफ जा रहा था वहां पर ऐसे ही लाखों वाहनों का काफिला था अगल-बगल के जिले दू...
गिद्ध गिद्ध कई दिनों से परेशान था उसकी भी जिंदगी का सवाल था वह गोश्त खाता है कैसा किसका इससे उसको कोई मतलब नहीं है ना तो कोई फर्क पड़ता है उसका पेट भरना चाहिए अगर गिद्ध यह विचार करने लग जाए गोश्त कैसा है क्या वह कभी खा पाएगा उसका गिद्धपन रह जाएगा गिद्ध के बने रहने की पहली शर्त यही है वह गोश्त खाता रहे कहीं दूर बैठकर यही सोचता रहता है अच्छा गोश्त कहां कैसे मिले हमने कहानी सुनी है कुछ लोगों को अनिष्ट होने पर ही रस मिलता है क्योंकि उनकी रोजी-रोटी उसी से चलती है शमशान में जब भीड़ बढ़ जाती है कुछ चेहरे खिल जाते हैं वहां भी व्यापार होता है लकड़ियों का चिता जलाने का गिद्धों के लिए भी जरूरी है उन्हें कुछ मिलता रहे जो उनको भाता हो जिसे वह चबा चबाकर खाता हो फिर गिद्ध के पीछे गिद्ध धूमधाम से लग जाते हैं गिद्ध गान शुरू हो जाता है पूरा झुंड एक साथ है एक जैसी आवाज में सब सुर मिलाते हैं देखो यहां पर गोश्त है एक दूसरे को बताते हैं गिद्ध को नोचने में बहुत मजा आता है गिद्ध की चोंच बहुत तेज है जिसमें धार कहीं और से आता है हालांकि उनकी संख्या निरंतर कम होती जा रही है मगर जितने हैं गिद्ध होने के...
भारत के जोकर ई हमरे भारत के लाल हैं एजेंडा पर सवार हैं टूल किट का कमाल है वैसे तो हैं प्रवक्ता किसी के पर कहते है खुद को निष्पक्ष उदार है सेक्यूलर हैं लोकतंत्र के प्रहरी स्वतंत्र आवाज़ के पैरोकार हैं कलाकार हैं कथित पत्रकार हैं सिनेमाई अंदाज है कहानी कविता का यही इनके आधार है बेंच लेते हैं बढ़िया से अच्छे दुकानदार हैं ई हमरे भारत के लाल हैं जब से नयी सरकार बनी है इनकी मर्जी नहीं चली है जिसको ए चाहते थे जनता ने उसको नहीं चुना है तभी से लोकतंत्र खतरे में है यही गाना गा रहे हैं न जाने किससे आजादी मांग रहे हैं ए सी मंच है फाइव star होटल है गरीब किसान की चिंता वाली यहीं आवाज बुलंद है लाइक view का चक्कर है Social network पर बहुत बड़ा business है बबुआ शातिर है, बबुनी बड़ी माहिर है पैसा कमाने की यहां बड़ी गुंजाइश है बदले ज़माने के साथ सबको बदलना है बाजार की ताकत ऐसे ही समझना है Skill कितना जरूरी है यह बात इन्हीं से सीखनी है जो बिके बाजार में वह खेती करनी है अपनी कीमत तुमको अपने हुनर से तय करनी है ई हमरे भारत के होनहार हैं भारत माता के लाल हैं कुछ दिन आराम किया विदेश यात्रा किया शांत...
दस्तक उसने कई बार दस्तक दी पर दरवाजा नहीं खुला कुछ देर ठहर कर फिर दस्तक दी अब भी दरवाजा नहीं खुला दरअसल उसको आते हुए घर वालों ने देखकर दरवाजा बंद किया था बच्चों को भी सहेज दिया कितना भी दस्तक दे दरवाजा मत खोलना वह थककर डेहरी पर बैठ गयी काफी देर तक बैठी रही फिर घर से चिल्लाने की आवाज आई यह इनका रोज का नाटक है शायद एक छोटा बच्चा दादी के लिए रो रहा था दरवाजा खुला... हाँ! यह इस घर की मालकिन है घर में जो कुछ भी है सब की वजह यही है आज बच्चे जिस मुकाम पर हैं इन्होंने ने ही बनाया है पर उम्र के एक पड़ाव के बाद शरीर और दिमाग थक जाता है पहले जैसा कहाँ कुछ रह जाता है बच्चों की उम्र कम ही थी तभी पिता का साया उठ गया था न जाने कितनी रातें जाग कर बिना कुछ खाए गुजारी थी बच्चों के लिए ही सब कुछ एक मां के लिए अपने लिए कुछ नहीं होता वह खुद को भूल जाती है जब बच्चों के पिता ने दुनिया छोड़ी थी उस वक्त.. उसकी उम्र बहुत ज्यादा नहीं थी चाहती तो किसी और से ब्याह कर लेती एक दूसरी जिंदगी बड़े आराम से अपना लेती पर बच्चों का मासूम चेहरा उनका हाथ उसके हाथ में था उसने सिर्फ बच्चों को देखा खुद की कोई फिक्र न...
आजाद परिंदे यह आसमान में उड़ने वाले आजाद पंछी जिंहे देखकर हर शख़्स में ख्वाहिश जग जाती है आसमान की ऊंचाई तो कुछ भी नहीं है बस पर चाहिए उड़ना आना चाहिए आजादी का मुकम्मल मुकाम कहीं है? जहां हद की भी कोई हद नहीं है उसे ही तो आसमान कहते हैं जिन हदों तक परिंदे जा सकते हैं उसके आगे भी न जाने कितनी हदें हैं आसमान कुछ ऐसे ही बना है और हम भी कुछ इसी तरह की आजादी चाहते हैं जहां कोई हद न हो सिर्फ आसमान हो चिड़ियों को देखकर उसी हद की ख्वाहिश में जीते हैं जो अनहद है यह परिंदे जो आसमान के सैलानी है जिंहे देखकर हर शख़्स उड़ने की चाहत रखता है बदकिस्मती देखिए उन इंसानों की वह परिंदों को पिंजरे में कैद रखना चाहता हैं जबकि किसी भी चिड़िया के लिए यह तो सजा है जिसे एक पंछी बखूबी समझता है तेरी फितरत भी तो उसी परिंदे जैसी है तूँ आसमान में उड़ना चाहता है इसका मतलब तो यही है पिंजरे का मतलब तूँ भी समझता है चलो अब उड़ा...
बुलबुल अपनी उड़ान जानती है
ReplyDeleteवह आसमान को कुछ-कुछ समझती है
उसकी तरफ देखकर गाती है
फिर खुद पर हंसी आ जाती है
हर ऊँचाई
उसके सामने शून्य हो जाती है
©️Rajhansraju
उसने भी समझ लिए हैं
ReplyDeleteशायद सही गलत के मायने
शांत एक कोने में बैठा है
या फिर अपना सफर
पूरा कर चुका है
सही गलत का
अब कोई फर्क नहीं पड़ता
सही गलत का
©️RajhansRaju
नालायक तो बहुत लायक है
ReplyDeleteबुलबुल की समझ में गहराई है
ReplyDeleteखुद को ढूँढने और पाने की कोशिश कि शानदार अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबुलबुल अपनी उड़ान जानती है
ReplyDeleteवह आसमान को कुछ-कुछ समझती है
उसकी तरफ देखकर गाती है
फिर खुद पर हंसी आ जाती है
हर ऊँचाई
उसके सामने शून्य हो जाती है
बुलबुल खुद की तलाश में
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